RE: Chudai Kahani मेरी कमसिन जवानी की आग
तभी चाचा बोले- संध्या तुम तो पूरी बड़ी हो गई हो.
इस समय उनको मेरी नंगी गांड दिखाई दे रही थी, अब जाकर सामने मम्मी का पेटीकोट मुझे नजर आया. जैसे ही उसे पकड़ने को बढ़ी और पेटीकोट को उठाया, तभी मुझसे पेटीकोट चाचा ने छीन लिया और बोली- तू ऐसे ही खड़ी रह संध्या, अब मुझसे क्या छुपा रही है, मैंने तेरा सब कुछ देख लिया.. वो भी बहुत अच्छे से देख लिया. आज तेरे मां-बाप भाई सबको बताता हूं तेरी ये करतूत कि तूने अपने मौसी के बेटे और बहन के लड़के से एक साथ दो लड़कों से मुँह काला करवा लिया जमकर चुदाई करवाई है.
मैं हाथ जोड़कर खड़ी हो गई और रोने लगी. ऐसा लग रहा था कि मुँह कैसे दिखाऊंगी अपने घर में, मैं बोली कि मुझसे गलती हो गई प्लीज किसी से नहीं बताना चाचा, नहीं तो मैं मर जाऊंगी, मुझसे गलती हो गई.मैंने चाचा के पैर पकड़ लिए.
तब चाचा बोले- नहीं कोई गलती नहीं हुई, तू इतना डर क्यों रही है संध्या? यह उम्र इसीलिए होती है, सब इस उम्र में करते हैं.यह कह कर वे एकदम से मेरी ओर घूरने लगे और मेरे सर पर हाथ रखकर बोले- रो और डर मत, मैं तुझे बचा लूंगा पर तुझे भी मेरा साथ देना होगा संध्या.बिना कुछ सोचे-समझे मैं बोली- चाचा मैं जिंदगी भर आप जो कहेंगे सब करूंगी, आपका पूरा साथ दूंगी गॉड प्रामिस, मम्मी की कसम चाचा, बस मुझे आज बचा लो और किसी को मत बताना बस.
चाचा बोले- फिर से सोच ले संध्या, मैं तुझे चोदूंगा और अपने दोस्त के साथ चोदूंगा.. क्योंकि तुझे दो मर्दों की जरूरत है, तू तो पागलपन कर देने वाली हद पार कर गई है..एकदम मस्त माल हो गई है तू.मैंने फिर कुछ ना सोचा-समझा और हां बोल दिया. मैं बोली- चाचा मुझे कोई दिक्कत नहीं है, बस ये आज की बात किसी को भी भी पता नहीं चले.
चाचा बोले- फिर डन.. वादा तुझसे संध्या कभी किसी को पता नहीं चलेगी आज की ये बात मैं तेरे साथ हूं.यह कह कर चाचा ने मुझे अपने गले से लगा लिया और बोले- सच बोलूं तुम्हें देखकर लगता है कि जैसे तू आसमान की परी है संध्या.
उन्होंने अपना हाथ धीरे से मेरे नीचे नंगी चूत में ले गए और बोले- यह तेरी चूत से रस बह रहा है, तू तो बहुत चुदासी हो रही है, चल जल्दी से तुम्हारी चूत को मैं साफ कर दूं और तुम्हें एक अलग सा मजा भी दे दूं.
मैं उस समय मजबूर थी, कुछ नहीं कह सकी चाचा से, पर मुझे उनकी ये बात बहुत अजीब सी लगी. वो बिल्कुल बुड्ढे थे, मैं छोटी सी लड़की थी, वो मुझसे उम्र में लगभग चालीस वर्ष के बड़े थे. चाचा ने मुझे उसी रजाई में बैठने को बोला. मैं झिझक रही थी क्योंकि वह मेरे बाबा की उम्र के थे, बहुत ही बड़े थे. मुझे थोड़ा नहीं बहुत बेकार सा लगा.
पर चाचा नहीं माने और मेरा हाथ पकड़ कर बोले- संध्या तू बैठ जा बस दो मिनट के लिए.. मुझे फिर जाना भी है.
मैं बोली- यह ठीक नहीं है चाचा, आप मुझसे बहुत बड़े हैं, मुझे छोड़ दीजिए, भगवान के लिए मेरे साथ ऐसा मत करिए. आपको चाचा सब कहते हैं तो मैं भी कहती हूं, पर आप मेरे पापा के चाचा हो, यानि मेरे बाबा हुए.. प्लीज मुझे छोड़ दो, मैं आपके आगे हाथ जोड़ती हूं.
चाचा बोले- चल छोड़ दिया पर आज तेरे बाप को ये सब तेरे कारनामे बताता हूं.
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