RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
शालू अपने दोनों पैर सिकोड़े सजे धजे पलंग के बीचों बीच घूंघट में छिपी बैठी थी। विराज सीधे गया और जा कर उसका घूंघट ऐसे उठा दिया जैसे किसी सामान के ऊपर ढका कपड़ा हटाया जाता है। लेकिन जैसे ही उसकी नज़र शालू पर पड़ी, उसका आधा गुस्सा तो वहीं गायब हो गया। इतनी सुन्दर लड़की की तो उसने कल्पना भी नहीं की थी।
लेकिन शालू में लाज शर्म जैसी कोई बात नज़र नहीं आई; वो विराज की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी ये मुस्कराहट उसके सुन्दर रूप पर और चार चाँद लगा रही थी।
विराज से रहा नहीं गया और उसने उन मुस्कुराते हुए होंठों को चूम लिया। शालू ने भी को शर्म किये बिना उसका पूरा साथ दिया।
लेकिन अचानक विराज को विचार आया कि ये इतनी बेशर्मी से चुम्बन कर रही है; ज़रूर लोगों की बात सही होगी। इस विचार ने एक बार फिर उसके अन्दर बैचेनी पैदा कर दी। अब वो जल्दी से जल्दी पता करना चाहता था कि सच्चाई क्या है।
उसने ताबड़-तोड़ अपने और शालू के कपड़े निकाल फेंके, शालू ने भी उसका पूरा साथ दिया। जैसे ही वो पूरी नंगी हुई तो एक बार फिर उस संग-ए-मरमर की तरह तराशे हुए बदन को देख कर विराज मंत्रमुग्ध हो गया।
जिस ज़माने की से बात है तब लड़कियां बहुत शर्मीली हुआ करती थीं और जो नहीं भी होतीं थीं वो भी कम से कम ऐसा अभिनय ही कर लेतीं थीं क्योंकि ऐसा कहते थे कि लाज-शरम औरत का गहना होती है।
पर यहाँ तो शालू ज़रा भी नहीं शरमा रही थी। कपड़े निकालने में ना-नुकर करना तो दूर वो तो खुद मदद कर रही थी। विराज काफी भ्रमित था कि वो इसका क्या मतलब निकाले लेकिन जब सामने ईश्वर की इतनी खूबसूरत रचना अपने प्राकृतिक रूप में मुस्कुराते हुए आपके सामने हो तो दिमाग कम ही काम करता है।
विराज से एक बार फिर रहा नहीं गया और वो शालू के होंठ चूमने के लिए झुका। इस बार निशाना वो होंठ थे जो बोला नहीं करते।
दरअसल विराज को चूत की चुम्मी लेने की जल्दी इसलिए भी थी कि वो यह जानना चाहता था कि शालू कुंवारी है या नहीं। इसीलिए उसने कमरे में ज्यादा रोशनी की थी।
जैसे ही वो शालू की जाँघों के बीच पहुंचा, उसे एक गंध ने मदहोश कर दिया। ये कुछ ऐसी गंध थी जो अक्सर नदी या झील के आसपास के पौधों में आती है, एक ताजेपन का अहसास था उसमें।
एक और वजह जिसने विराज को अपनी ओर खींचा था वो ये थी कि शालू की चूत पर एक भी बाल नहीं था। छूने से साफ़ पता लगता था कि ये बाल शेव करके नहीं निकाले गए हैं, क्योंकि शेव करने के बाद त्वचा इतनी मुलायम और चिकनी नहीं रह जाती।
उत्तेजना में विराज ने अपनी दुल्हन की पूरी चूत को चाट डाला। शालू भी सिसकारियां लेने लगी और विराज के सर को अपनी चूत पर दबाने लगी। विराज ने अपनी एक उंगली गीली करके उसकी चूत में डाल दी और उसे अंदर बहार करते हुए उसकी चूत का दाना चूसने लगा।
अब तक विराज को शालू की चूत पर खरोंच का एक निशान तक नहीं मिला था और लंड तो दूर की बात है उसकी चूत उसे अपनी एक उंगली पर भी कसी हुई महसूस हो रही थी। अब उसे पूरा भरोसा हो गया था कि वो सब बातें झूठ थीं।
हाँ … वो दूसरी लड़कियों के मुकाबले थोड़ी ज़्यादा ही बिंदास थी लेकिन इतना तो पक्का था कि उसने अब तक किसी से चुदवाया तो नहीं था। लेकिन उसकी हरकतों से तो वो काफी अनुभवी लग रही थी।
खैर ये तो वक्त ही बताएगा कि असलियत क्या थी।
बहरहाल विराज का सारा गुस्सा हवा हो चुका था बल्कि उसे ख़ुशी हो रही थी कि उसे इतनी सुन्दर और बिंदास बीवी मिली थी। वो ऊपर की ओर सरका और अपना एक से हाथ शालू के सर को पीछे से अपनी ओर दबाते हुए उसके रसीले होंठों को चूसने लगा।
शालू भी एक कदम आगे निकली और उसने अपनी जीभ से विराज के होंठों के भीतरी हिस्से को गुदगुदाना शुरू कर दिया। विराज का दूसरा हाथ शालू के बाएँ स्तन को हल्के हल्के मसलते हुए उसके चूचुक के साथ छेड़खानी कर रहा था।
काफी देर तक अलग अलग तरह से चुम्बन और नग्न शरीरों के आलिंगन के बाद जब विराज से अपने लिंग की अकड़न और शालू से अपनी योनि का गीलापन बर्दाश्त नहीं हुआ हुआ तो विराज ने अपना लंड शालू की चूत में डालने की कोशिश की। लेकिन उसकी चूत का छेद इतना कसा हुआ था कि काफी कोशिश करने पर भी केवल लंड का सर अन्दर जा सका। अब ना केवल शालू बल्कि विराज को भी दर्द होने लगा था।
शालू- सुनो जी! आप ज्यादा परेशान मत हो। अभी इतना चला गया है तो इतने को ही अन्दर बाहर कर लो। बाकी ऐसे ही कोशिश करते रहोगे तो कुछ दिन में पूरा चला जाएगा।
विराज- मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे तुम्हारे जैसी बिंदास बीवी मिलेगी।
इतना कहकर विराज ने कुछ देर छोटे छोटे धक्के मार कर चुदाई की लेकिन वो पहले ही थक चुका था और इसलिए वो इस चुदाई का उतना आनन्द नहीं ले पा रहा था जितना उम्मीद थी।
शालू को ये बात जल्दी ही समझ आ गई, वो बोली- एक काम करो …ये अंदर बाहर रहने दो… लाओ मैं आपका लंड चूस के झड़ा देती हूँ।
विराज- ठीक है, तुम लंड चूस लो, मैं तुम्हारी चूत चाट देता हूँ।
विराज वैसे ही करवट ले कर लेट गया जैसे वो जय का लंड चूसते समय लेटता था। शालू ने भी करवट ली और अपना नीचे वाला पैर सीधा रखा लेकिन ऊपर वाला सिकोड़ कर घुटना ऊपर खड़ा कर लिया जिससे उसकी चूत खुल गई। फिर लंड और चूत की चुसाई-चटाई जोर शोर से शुरू हो गई।
शालू एक अनुभवी की तरह विराज का लंड चूस रही थी। यहाँ तक कि वो उसके लंड का लगभग दो-तिहाई अपने गले तक अन्दर ले रही थी। इतनी अच्छी लंड चुसाई तो जय भी नहीं कर पाता था जबकि वो काफी समय से विराज का लंड चूस रहा था। आखिर जब विराज झड़ने वाला था तो जैसे वो जय के मुंह से निकाल लिया करता था वैसे ही शालू के मुंह से भी निकालने की कोशिश की लेकिन शालू ने निकालने नहीं दिया।
विराज- मैं झड़ने वाला हूँऽऽऽ…
विराज की बात पूरी तो हुई लेकिन शालू ने अपना दूसरा पैर उसके सर के ऊपर से घुमाते हुए विराज के सर को अपनी जाँघों के बीच दबा लिया और जोर जोर से अपनी कमर हिलाने लगी। अब तो विराज को अपनी जीभ हिलाना भी नहीं पड़ रहा था, शालू की चूत खुद ही उसके मुंह पर रगड़ रही थी। शालू विराज के साथ ही झड़ना चाहती थी और वही हुआ। दोनों साथ में झड़ने लगे लेकिन शालू ने विराज का लंड अपने मुंह से निकलने नहीं दिया। थोड़ी देर तक यूँ ही हाँफते हुए दोनों पड़े रहे।
जब विराज का लंड ढीला पड़ा तो शालू ने उसे किसी स्ट्रॉ की तरह चूसते हुए पूरा निचोड़ लिया। विराज जब उठा तो शालू ने उसे अपना मुँह खोल कर दिखाया और फिर सारा वीर्य एक घूँट में पी गई और एक बार फिर अपनी खूबसूरत मुस्कराहट बिखेर दी।
विराज- एक बात पूछूँ?
शालू- पूछो!
विराज- शादी के पहले तुम्हारे बारे में बहुत खुसुर-फुसुर सुनने को मिली थी। अभी तो साफ़ समझ आ रहा है कि तुम्हारी चूत बिलकुल कुँवारी है लेकिन फिर बाक़ी सब काम तुम ऐसे कर रही हो जैसे बड़ा अनुभव हो। ये चक्कर क्या है?
शालू- देखिये मैं आपसे झूठ नहीं बोलना चाहती लेकिन आप वादा करो कि आप गुस्सा नहीं करोगे?
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