RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
विराज- हाँ यार, ये तो तूने सही कही। मैं हमेशा उसी के साथ करता था सब अगर तू भी साथ रहेगी तो मज़ा ही आ जाएगा। तू कितना प्यार करती है ना मुझसे।
विराज ने जय को गाँव बुलाया। जय, छुट्टी वाले दिन शीतल को ले कर पहुँच गया। दिन भर तो घर में सबके साथ बातचीत में गुज़र गया लेकिन रात को विराज और जय खेत पर जा कर सोने के बहाने निकल गए। सच तो ये था कि दोनों ने खेत पर प्राइवेट में दारू पार्टी करने का प्लान बनाया था। दारू के बाद एक दूसरे का लंड चूसने का कार्यक्रम तो ज़रूर होना ही था।
रात को शीतल, शालू के साथ ही सोई। शालू बहुत तेज़ दिमाग थी, तो उसने शीतल के मन की टोह लेने के लिए उससे बात करना शुरू किया। वो ना केवल ये पता करना चाहती थी कि शीतल में कामवासना कितनी है, बल्कि उसे सेक्स की ओर आकर्षित भी करना चाहती थी।
शालू- तुमको पता है, ये लोग खेत पर क्यों गए है?
शीतल- सोने के लिए। … नहीं?
शालू- सोएंगे… सोएंगे… लेकिन सोने से पहले और भी बहुत कुछ करेंगे।
शीतल- क्या करेंगे? और आपको कैसे पता ये सब?
शालू- मुझे इसलिए पता है कि मैंने ही विराज को कहा था। और रही बात ये कि क्या करेंगे तो हुआ ये कि जब से मैं पेट से हुई हूँ तब से हमारी मस्ती ज़रा कम हो गई थी। विराज ने बताया था कि ये दोनों दोस्त बचपन में ये सब मस्ती आपस में किया करते थे तो मैंने कहा एक बार पुरानी यादें ही ताज़ा कर लो।
शीतल- क्या बात कर रही हो दीदी ऐसा भी कोई होता है क्या? और आपके इन्होंने आपको बताया लेकिन मेरे यहाँ तो इन्होंने ऐसा कुछ नहीं बताया।
शालू- अब तुम थोड़ी रिज़र्व टाइप की हो ना इसलिए बताने में झिझक रहे होंगे।
शीतल- नहीं आप झूठ बोल रही हो। मेरे ये ऐसे नहीं हैं।
शालू- ये तो सही कही तुमने जय भाईसाहब हैं तो बड़े सीधे सच्चे आदमी लेकिन मैं झूठ नहीं बोल रही।
शीतल- सीधे सच्चे हैं ये भी बोल रही हो और ऐसे गंदे काम करने गए हैं ये भी बोल रही हो, ऐसा कैसे हो सकता है।
शालू- शीतल… शीतल… ! कितनी भोली है री तू। देख, तू जितना खुल के बात करेगी अपने पति से, वो भी उतना खुल के बताएगा ना तुझे सब। मैंने तो पहली रात को ही सब बातें जान ली थीं।
फिर शालू ने शीतल को विराज-जय की सारी कहानी सुना डाली जो विराज ने उसे बताई थी।
शीतल- सच कहूँ तो मेरी कभी इतनी करीब की कोई सहेली रही ही नहीं। माँ के नहीं रहने के बाद कभी इतना समय ही नहीं मिला कि इन सब बातों में बारे में सोच सकूँ। लेकिन अब मैं कोशिश करुँगी कि इन के साथ खुल कर ये सब बातें कर सकूँ।
शालू- मुझे ही अपनी करीब की सहेली मान लो।
शीतल- वो तो मान ही लिया है तभी तो आपसे इतनी सब बातें कर लीं।
शालू- ऐसा है तो हम भी वो करें जो ये लोग वहां खेत पर करने गए हैं।
शीतल- नहीं दीदी, मेरी इतनी हिम्मत नहीं है। आपने किया है कभी।
शालू- नहीं किया लेकिन सोच रही थी कि तुम हाँ कह देतीं तो एक बार ये भी करके देख लेती।
फिर थोड़ी देर के लिए चुप्पी छा गई। थोड़ी देर बाद जब शीतल ना अपना सर घुमा कर शालू की ओर देखा तो पाया कि शालू बड़ी ही कामुक अदा और नशीली आँखों से एक टक उसी को देख रही थी। कुछ पलों तक वो भी उसकी आँखों में आँखें डाले सम्मोहित सी देखती रही अचानक शालू ने अपने होंठ शीतल के होंठों पर रख दिए। शीतल की आँखें अपने आप बंद हो गईं और उसने अपने आप को उस कोमल चुम्बन की लहरों पर हिचकोले खाते हुआ पाया।
शीतल भी अब तक कम से कम चुम्बन की कला में तो पारंगत हो ही चुकी थी। वो वैसे ही शालू का साथ देने लगी जैसे जय का देती थी। लेकिन ये अनुभव कुछ नया ही था। शालू के पतले मुलायम होंठों के स्पर्श से मंत्रमुग्ध शीतल को पता ही नहीं चला कि कब शालू ने उसके ब्लाउज के सारे हुक खोल दिए। शालू ने ब्रा को नीचे सरकाया और शीतल के एक स्तन का चूचुक चूसने लगी। शीतल कभी जय को कहने की हिम्मत नहीं कर पाई थी कि वो किस तरह से अपने स्तन चुसवाना चाहती है लेकिन शालू को तो जैसे पहले से ही पता था।
शीतल आनंद के सागर में गोते लगा रही थी कि उसका ध्यान गया कि शालू भी एक हाथ से अपना ब्लाउज खोलने की कोशिश कर रही थी। शीतल ने भी उसकी मदद की और जल्दी ही दोनों स्त्रियाँ अर्धनग्न अवस्था में एक दूसरी के स्तनों को चूस रही थीं। शालू शीतल के ऊपर झुक कर उसका दाहिना स्तन चूस रही थी और बायाँ अपने एक हाथ से सहला रही थी। उधर उसका दाहिना स्तन शीतल के चेहरे पर झूल रहा था जिसे शीतल किसी आम की तरह पकड़ का ऐसे चूस रही थी जैसे बछड़ा गाय का दूध पीता है।
इसी बीच वासना से सराबोर शालू ने अपना बायाँ हाथ शीतल के साए के अन्दर सरका दिया और उसकी चूत का दाना खोजने लगी। लेकिन जैसे ही उसकी उंगली शीतल की गीली चूत के दाने को छू पाई, शीतल उठ कर बैठ गई।
शीतल- नहीं दीदी! ये सब सही नहीं है… हमको ये सब नहीं करना चाहिए।
इतना कह कर उसने जल्दी जल्दी अपनी ब्रा और ब्लाउज पहना और साड़ी ठीक करके दूसरी ओर करवट ले कर सो गई।
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