RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
प्रिय पाठको, मेरी कामुक कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे जय ने हनीमून के लिए यूरोप जा कर अपनी बीवी को नग्न बीच पर सबके सामने नंगी होने के लिए प्रोत्साहित किया और बाद में एक क्लब में दूसरे जोड़े के सामने उसकी चुदाई भी कर दी। जय को लगा कि इतना सब होने के बाद शायद वो विराज से चुदवाने के लिए तैयार हो जाएगी और फिर दोनों दोस्त आपस में मिल कर एक दूसरे की बीवियों को चोदेंगे। अब आगे …
यूरोप से वापस आने के बाद एक अलग ही जोश आ गया था जय और शीतल के जीवन में। अब शीतल पहले जैसी नहीं रह गई थी; उसे अब चोदा-चादी के इस खेल में मज़ा आने लगा था। दरअसल मज़ा कभी चुदाई में नहीं होता। मज़ा तो उन खेलों में होता है जो चुदाई के साथ साथ खेले जाते हैं। मज़ा समाज के उन नियमों को चकमा देने में होता है जिनको आप बचपन से बिना सोचे समझे निभाए जा रहे हो।
देर रात सुनसान सड़क पर चुदाई करने में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि सड़क कोई बहुत आरामदायक जगह होती है। चलती ट्रेन में सबके सोने के बाद चुदाई में ज्यादा मज़ा इसलिए नहीं आता कि वो कोई आसान काम है। दिन दिहाड़े किसी और के खेत में घुस के चोदने में ज्यादा मज़ा आता है पर इसलिए नहीं कि खेतों में कोई सौंधी खुशबू होती है।
इन सब जोखिम भरे तरीकों से चोदने-चुदाने में ज्यादा मज़ा इसलिए आता है क्योंकि एक तो जोखिम भरे काम उत्तेजना बढ़ाते हैं और ऊपर से हमारे अन्दर का जो जानवर है जिसको प्रकृति ने नंगा पैदा किया था वो वापस आज़ादी का अनुभव करता है। आज़ादी उन नियमों से जो समाज ने हम पर थोपे हैं जिनका शायद कोई फायदा भी होगा लेकिन फिर भी वो हमें अपने सर पर रखा वज़न ही लगते हैं।
शीतल इस वज़न से मुक्त हो गई थी इसलिए अब वो जय के साथ ये सारे काम करने में पूरी तरह से उसका साथ देने लगी थी। घर पर अब वो अक्सर नंगी ही रहती थी; जब भी गाँव जाते तो कभी किसी के खेत में तो कभी नदी के किनारे किसी टेकरी के पीछे चुदाई कर लेते। बस में, ट्रेन में, कभी मोहल्ले की पीछे वाली गली में तो कभी अपने ही घर की छत पर। शायद ही कोई जगह बची हो जहाँ जय ने शीतल को चोदा ना हो।
इस सब में कई महीने निकल गए। अब तो बस एक ही ख्वाहिश बाकी थी कि वो अपने दोस्त विराज के साथ मिल कर शीतल और शालू की सामूहिक चुदाई कर पाए। समय निकलते देर नहीं लगती, जल्दी ही राजन एक साल का हो गया और विराज ने उसके जन्मदिन पर जय और शीतल को बुलाया।
जन्मदिन मनाने के बाद विराज और राजन अकेले में बैठ कर बातें कर रहे थे।
जय- और सुना! शालू भाभी की टाइट हुई कि नहीं?
विराज- अरे तू भी क्या शर्मा रहा है सीधे सीधे बोल ना कि भाभी की चूत टाइट हुई या नहीं?
जय- हाँ यार वही, तूने कहा था ना कि भाभी की चूत वापस टाइट हो जाए फिर प्रोग्राम करेंगे।
विराज- इसीलिए तो तुम लोगों को बुलाया है। तेरी शीतल तैयार हो तो अभी कर लेते हैं।
जय- अरे तैयार तो हो ही जाएगी। यूरोप में जो जो करके हम आये हैं उसके बाद मुझे नहीं लगता कि मना करेगी, लेकिन फिर भी मुझे एक बार बात कर लेने दे। अगर सब सही रहा तो न्यू इयर की पार्टी मनाने तुम हमारे यहाँ आ जाना फिर वहीं करेंगे जो करना है।
विराज- ठीक है फिर। जहाँ इतना इंतज़ार किया वहां थोड़ा और सही। लेकिन अपनी यूरोप की कहानी ज़रा विस्तार में तो सुना।
फिर देर रात तक जय ने विराज को यूरोप की पूरी कहानी एक एक बारीकी के साथ सुना दी।
अगले दिन शीतल और जय शहर वापस आ गए। उस रात जय ने वो विडियो कैसेट निकाले जो वो एम्स्टर्डम से ले कर आया था। इनमें उस समय की 8-10 मानी हुई पोर्न फ़िल्में थीं। उसने उनमें से वो फिल्म निकाली जिसमें दो जोड़े आपस में एक दूसरे के पति-पत्नी के साथ मिल कर सामूहिक सेक्स करते हैं।
फिल्म को देखते देखते शीतल उत्तेजित हो कर जय का लंड और अपनी चूत सहलाने लगी।
जय- याद है, हमने भी एम्स्टर्डम में ऐसे ही किसी अनजान कपल के साथ सेक्स किया था।
शीतल- हाँ! बड़ा मज़ा आया था। लेकिन ये लोग तो अदला बदली कर रहे हैं मैंने तो आपके ही साथ किया था बस।
जय- तो अदला बदली भी कर लेती, मैंने कब मना किया था।
शीतल- अरे नहीं, ये कभी नहीं हो सकता। आपके अलावा कोई मुझे छू नहीं सकता।
जय- लेकिन मेरी इजाज़त तो तब तो कर सकती हो ना?
शीतल- अरे ऐसे कैसे … मेरा शरीर है तो आपकी इजाज़त से क्या होगा। अग्नि के सात फेरे ले कर ये शरीर आपको सौंपा है तो आपके अलावा किसी और को छूने भी नहीं दूँगी मैं।
जय- ठीक है ठीक है बाबा … लेकिन जो एम्स्टर्डम के उस क्लब में किया था वैसा कुछ तो कर सकती हो ना?
शीतल मुस्कुराती हुई- क्यों? फिर से एम्स्टर्डम चलने का मन है क्या?
जय- नहीं लेकिन वो काम तो यहाँ भी हो सकता है ना!
शीतल- यहाँ भी वैसे क्लब हैं क्या?
जय- क्लब तो नहीं हैं लेकिन तुम हाँ तो करो हम घर में ही क्लब बना लेंगे।
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