RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
शीतल- देखना कहीं कोई गड़बड़ ना हो जाए। किसे बुलाओगे; रंडियों को?
जय- नहीं यार, वो विराज को मैंने बताया था कि हमने क्या क्या किया वहां तो उसका भी मन था। अब परदेस जाना वो चाहता नहीं है तो मैंने सोचा आगर तुम हाँ करो तो उसको और शालू भाभी को यहीं पर वो सब मज़े करवा दें।
शीतल कुछ सोचते हुए- हम्म … शालू भाभी तो शायद मान भी जाएंगी। लेकिन मुझे आपके अलावा कोई छुएगा नहीं; ये वादा करो तो मुझे मंज़ूर है।
जय- एम्स्टर्डम में भी तो किसी ने कुछ नहीं किया था ना तुमको। बस वैसे ही करेंगे। चिंता ना करो विराज नहीं चोदेगा तुमको। मैं ही चोदूँगा बस … ऐसे …
फिर जय ने इसी ख़ुशी में शीतल को जम के चोदा। शीतल भी उन यादों से काफी उत्तेजित हो गई थी। साथ साथ वो अदला-बदली करके चुदाई करने वाली फिल्म का वीडियो भी देखती जा रही थी। उसे भी चुदाई में बड़ा मज़ा आया। अगले ही दिन जय ने विराज को सन्देश भिजवा दिया कि न्यू इयर मनाने शहर आ जाए। यह तो बस एक कोडवर्ड था जिससे विराज समझ जाए कि शीतल तैयार है।
31 दिसंबर 1987 की शाम के पहले ही विराज और शालू, राजन को अपनी दादी के भरोसे छोड़ कर एक रात के लिए जय के घर आ गए। यहाँ कोई बड़ा बूढ़ा तो था नहीं, सब हमउम्र थे और ना केवल विराज-जय बल्कि शालू-शीतल के भी काफी हद तक अन्तरंग समबन्ध रह चुके थे। यह अलग बात है कि शीतल को किसी और के साथ ऐसे समबन्ध रखना सही नहीं लगता था इसलिए उसने शालू से दूरी बनाई हुई थी लेकिन आज तो उनके संबंधों में एक नया मोड़ आने वाला था।
शालू अन्दर रसोई में शीतल का हाथ बंटाने चली गई।
शालू- क्या बना रही है?
शीतल- मसाला पापड़ के लिए मसाला बना रही हूँ। खाना तो ये बोले खाने की शायद ज़रूरत ना पड़े नाश्ते से ही पेट भरने का प्रोग्राम है।
शालू- हाँ, वैसे भी ऐसे में थोड़ा पेट हल्का ही रहे तो सही है।
शीतल- तुमको पता है ना ये दोनों क्या क्या सोच कर बैठे हुए हैं?
शालू- मुझे इनके प्लान का तुझसे तो ज्यादा ही पता रहता है।
शीतल- हाँ, जब इन्होंने कहा तो मुझे यही लगा था कि तुम तो तैयार हो ही जाओगी।
शालू- देख शीतल! मेरा तो सीधा हिसाब है पति बोले तो मैं तो किसी और से भी चुदवा लूँ।
शीतल- हाय दैया! दीदी, आप भी ना … कैसी बातें करती हो।
इधर शालू और शीतल की बातें शुरू हो रहीं थीं जिसमें यूरोप की यात्रा की यादें थीं तो शालू की टिप्पणियां भी थीं कि अगर वो होती तो क्या क्या हो सकता था। शालू शीतल को और भी बिंदास बनाने की कोशिश कर रही थी। उधर विराज और जय योजना बना रहे थे कि कैसे इन महिलाओं की स्वाभाविक शर्म के पर्दे को गिराया जाए और अपने लक्ष्य तक पहुंचा जाए।
जय- बाकी सब तो ठीक है यार लेकिन शीतल ने साफ़ कह दिया है कि वो मेरे अलावा किसी और से नहीं चुदवाएगी। मैंने सोचा एक बार साथ मिल के चुदाई तो कर लें फिर हो सकता है उसकी हिम्मत बढ़ जाए और हम अदला-बदली भी कर पाएं।
विराज- तू फिकर मत कर, मैं शालू को ही चोदूँगा। लेकिन शालू ने ऐसी कोई शर्त नहीं रखी है, तो अगर तुम दोनों का जुगाड़ जम जाए तो मुझे आपत्ति नहीं है, तू शालू को चोद सकता है।
रात 9 बजे तक तो ऐसे ही बातें चलती रहीं और उधर रसोई का काम ख़त्म करके शीतल और शालू भी तैयार हो गईं थीं। फिर दारु पीते हुए गप्पें लड़ाने का दौर शुरू हुआ। विराज और जय स्कॉच पी रहे थे और महिलाओं के लिए व्हाइट वाइन लाई गई थी।
कुछ देर तक इधर उधर की बातों के बाद यूरोप की बातें शुरू हुईं। शीतल शर्म से पानी पानी हुए जा रही थी लेकिन शालू आगे होकर शीतल की बताई हुई बातें चटखारे लेकर सुना रही थी।
विराज- फिर वो नंगे बीच पर बस नंगे होकर घूमे ही … या कुछ किया भी?
जय- दिन में तो नहीं, लेकिन रात को किया था … जुगनुओं के साथ।
शालू- क्या बात कर रहे हो जय भाईसाहब। बस जुगनुओं के साथ? शीतल तो बता रही थी किसी क्लब में किसी और जोड़े के साथ भी किया था?
शीतल (धीरे से)- क्या दीदी आप भी … सबके सामने!
आखिर सबने मिल कर एक सेक्सी फिल्म देखने का फैसला किया। जय ने जो ब्लू फिल्मों की कैस्सेट्स लेकर आया था उनमें से सबसे कम सेक्स वाली फिल्म लगा दी। इसमें चुदाई को बहुत ज्यादा गहराई से नहीं दिखाया था। बस नंगे होकर चुम्बन-आलिंगन तक ही दिखाया था लेकिन बहुत ही उत्तेजक तरीके से जैसे कि स्तनों को लड़के की छाती से चिपक कर दबना या उनकी जीभों का आपस में खेल करना जो कि काफी करीब से फिल्माया गया था। इसको देख कर सब काफी उत्तेजित हो गए थे।
शालू विराज के साथ ही बैठ गई थी और विराज मैक्सी के ऊपर से ही उसके स्तनों को दबा रहा था। एक बार तो उस से रहा नहीं गया और उसने उंदर हाथ डाल कर शालू का एक स्तन मसल डाला। उधर वाइन का असर शीतल पर भी होने लगा था और इस फिल्म के दृश्यों ने उसकी वासना भड़का दी थी वो भी जय के साथ जीभ से जीभ लड़ा कर चुम्बन करने लगी।
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