RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे शालू ने अपने काम जीवन में नए रंग भरने के लिए पहले अपनी सास के साथ समलैंगिक समबन्ध बनाए और फिर विराज को उसके बचपन की चाहत उसकी माँ की चूत दिलवा दी। आखिर विराज मादरचोद बन गया।
अब आगे…
शेर एक बार आदमखोर हो गया तो बस हो गया; फिर वो वापस साधारण शेर नहीं बन सकता। विराज को भी अपनी माँ की चूत की ऐसी चाहत लगी कि अगले कई दिनों तक उसने शालू के साथ मिल कर अपनी माँ को बजा बजा के पेला लेकिन माँ की उमर जवाब दे चुकी थी।
माँ ने एक दिन बोल ही दिया कि अब वो केवल कभी कभी चुदवाया करेंगी लेकिन विराज ने भी चालाकी दिखा दी- देख माँ! बाक़ी तेरा जब मन करे चुदवा, ना चुदवा… तेरी मर्ज़ी! लेकिन शालू की माहवारी के दिनों में मेरी मर्ज़ी चलेगी। बोलो मंज़ूर है?
माँ- हओ बेटा, तेरे लाने इत्तो तो करई सकत हूँ। अबे इत्ति बुड्ढी बी नईं भई हूँ के मइना में 3-4 बखत जा ओखल में तुहार मूसल की कुटाई ना झेल सकूँ।
उसके बाद माँ अपने तरफ का दर्पण हमेशा खुला रखतीं थीं और रोज़ बेटे बहु की चुदाई देखती थीं। कभी अगर देर से नींद खुलती तो नहाने के लिए बेटा-बहू के साथ ही चली जातीं थीं। तीनो फव्वारे के नीचे एक साथ नहाते, एक दूसरे को साबुन लगते और नहाते नहाते माँ की चुदाई तो ज़रूर होती ही थी।
इसके अलावा जब भी मन करता तो कभी कभी रात को बेटे के बेडरूम में जाकर खुद भी बेटे से चुदवा आतीं थीं; नहीं तो महीने के उन दिनों में तो विराज खुद आ जाता और पटक पटक के अपनी माँ की चूत चोदता था। कभी कभी माँ-बेटे की चुदाई देख कर, शालू माहवारी के टाइम पर भी इतनी गर्म हो जाती कि वो भी आ कर अपनी गांड मरवा लेती थी।
कभी शालू को बोल दिया जाता कि राजन का ध्यान रखे और फिर दिन दिहाड़े किचन या बाहर के कमरे में माँ बेटा की चुदाई हो जाती। यह सुविधा शालू को भी मिलती थी; बस इतना बोलने की ज़रूरत होती थी कि माँ जी ज़रा राजन का ध्यान रखना, मैं रसोई में चुदा रही हूँ।
जब सब मज़े में चल रहा होता है तो समय भी जैसे पंख लगा कर उड़ने लगता है। राजन छह साल का हो गया था और जय और शीतल की बेटी सोनिया दो से ऊपर की थी जब खबर मिली कि शीतल एक बार फिर गर्भवती हो गई है। पिछली बार उसके पेट से होने पर जय ने शालू को चोद कर ना केवल खुद बहुत मज़े किये थे बल्कि शालू ने भी अपनी दो लंडों से चुदाने की इच्छा पूरी कर ली थी।
इसी सबको याद करते करते एक रात विराज और शालू पुरानी यादों में खोए हुए थे।
विराज- उस बार तुमने जय से माँ के कमरे में जा के चुदाया था ना? तब तो तुमने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन तुम माँ के इतने करीब आ जाओगी।
शालू- हाँ, तब तो उनके कमरे में चुदवाना ही मुझे बड़े जोखिम का काम लगा था तब क्या पता था कि एक दिन मैं उनको उनके बेटे से ही चुदवा दूँगी और फिर उनके साथ मिल कर चुदाई किया करुँगी।
विराज- अरे हाँ इस बात से याद आया। तुमको वादा किया था कि अगर तुमने मुझे माँ की चूत दिलवा दी तो जो तू मांगेगी वो दिलवाऊंगा।
शालू- हाँ कहा तो था लेकिन…
विराज- लेकिन क्या? तू बोल के तो देख?
शालू- मेरा तो फिर से दो लौड़ों से एक साथ चुदाने का मन कर रहा है।
विराज- अरे, इसमें मांगने जैसा क्या है ये तो बिना मांगे मिला था ना जब जय आया था। हाँ लेकिन अब तो वो आएगा नहीं… देख शालू, मैं तो बिल्कुल राजी हूँ। तू कहे तो एक बार जा के जय को मना के लाने की कोशिश भी कर सकता हूँ लेकिन उसका आना मुश्किल है। और तेरे ही भले के लिए मैं नहीं चाहता कि अपन किसी ऐरे-गैरे को अपनी चुदाई में शामिल करें। अब तू ही बता कैसे करना है? तू जो कहेगी मुझे मंज़ूर है।
शालू- आपकी बात बिल्कुल सही है। मैं भी किसी गैर से चुदाना नहीं चाहती। एक अपना है अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो लेकिन उसके पहले मुझे एक राज़ की बात बतानी पड़ेगी।
विराज- राज़ की बात? मुझे तो लगा तुमने मुझसे कभी कुछ नहीं छिपाया। सुहागरात पर ही सब सच सच बता दिया था। फिर कौन सी राज़ की बात?
शालू- सुहागरात पर जो बताया वो सब सच ही था। एक शब्द भी आज तक आपसे झूठ नहीं बोला लेकिन एक बात थी जो बस बताई नहीं थी। आप पहले ही गुस्से में थे और मुझे डर था कि अगर ये बात बता दी तो कहीं आप मुझे छोड़ ही ना दो।
विराज- तो फिर अब क्यों बता रही हो? अब डर नहीं है? मन भर गया क्या मेरे से?
शालू- अरे नहीं, अब डर नहीं अब भरोसा है। अब हमारे बीच प्यार इतना गहरा है कि मुझे पता है कुछ नहीं होगा। और सबसे बड़ी बात यह कि अब मुझे पता है कि आपको यह बात शायद इतनी बुरी ना लगे जितना मैंने सोचा था।
विराज- अब पहेलियाँ ना बुझाओ! बता भी दो!
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