RE: Hindi Adult Kahani कामाग्नि
दोस्तो, आपने पिछले भाग में पढ़ा कि कैसे शालू ने दो लंडों से चुदवाने की इच्छा ज़ाहिर की और दूसरे लंड के लिए अपने सगे भाई का प्रस्ताव रखा। शालू ने अपने पुराने राज़ खोले कि कैसे उसकी कामुकता ने उसे अपने भाई के नज़दीक पहुंचाया और कैसे अपने भाई से केवल गांड मरवा कर वो शादी तक अपनी चूत कुंवारी रखी।
अब आगे…
*नीचे सैंया ऊपर भैया*
यह सारी कहानी सुनाने के बाद शालू ने विराज से पूछा कि वो ये सब सुन कर नाराज़ तो नहीं है?
विराज- नहीं यार, अब क्या नाराजगी? मुझे वैसे भी गांड मारने का कोई खास शौक नहीं है। तूने मुझे कुँवारी चूत का मज़ा दिला दिया और क्या चाहिए? रही बात भाई की … तो अब उस बात पे क्या नाराज़ होऊंगा, अब तो मैं खुद मादरचोद बन के बैठा हूँ।
शालू- तो फिर अगर आपको ऐतराज़ ना हो तो मुझे आपसे चूत और भैया से गांड एक साथ मरवाने में बड़ा मज़ा आएगा।
विराज- ऐतराज़ क्या होगा? एक काम कर अभी राखी आने वाली है तो सुनील को यहीं बुलवा ले। बाकी सब मैं सम्हाल लूँगा।
अगले ही दिन शालू ने अपने भाई को संदेश भिजवा दिया कि इस साल राखी पर वो ही आ जाए और साथ में इशारे के तौर पर ये भी लिख दिया कि कुछ पुरानी यादें ताज़ा करनी हैं।
यह पढ़ कर सुनील समझ गया कि शायद उसकी बहन राखी पर उपहार में उसका लंड चाहती है। यह इशारा इसलिए था ताकि सुनील अकेला ही आये।
राखी को ज्यादा समय बचा भी नहीं था। सुनील ने अकेले जाने का कोई बहाना सोच लिया।
एक समस्या और थी वो ये कि माँ को बताना है या नहीं। शालू ने इस बारे में विराज को कहा तो उसने कहा कि वो माँ से बात करके पता करेगा।
फिर एक रात विराज सोने के समय अपनी माँ के कमरे में पहुँच गया और शालू के सरदर्द का बहाना बना कर उसने अपनी माँ को चोदा और चुदाई के बाद जब लंड चूत में ही फंसा था, वो अपनी माँ से चिपका उनके स्तनों को सहला रहा था।
विराज- माँ… एक बात बता?
माँ- पूछ?
विराज- मेरी कोई बहन होती तो तू उसको चोदने देती क्या?
माँ- चोदन तो तोय जा चूत बी ना मिलती… अब का करूँ, मो सेई चुदास सेन नी भई।
विराज- मेरा मतलब अगर मेरी बहन होती और हमसे भी रहा नहीं जाता और हम दोनों चुदाई करने लगते तो तू मना करती क्या?
माँ- और नी तो का…! अब बा की चूत बा के खसम के लाने… पर तू काय इत्तो खोद खोद के पूछ राओ है। थारी तो कोई भेन हैइज नी।
विराज- कुछ नहीं ऐसे ही पड़े पड़े मन में ख्याल आया इसलिए पूछ लिया। चल अब तू सो जा। मैं चलता हूँ अब।
विराज ने और ज्यादा पूछना सही नहीं समझा क्योंकि माँ को शक होने लगा था कि बात क्या है। इन सब बातों से ये भी नहीं लगा कि माँ को भाई-बहन की चुदाई मंज़ूर हो सकती है। विराज ने ये बात शालू को बताई और दोनों ने निर्णय लिया कि माँ को ये बात ना बताई जाए।
शालू- लेकिन फिर कैसे करेंगे? माँ की खिड़की तो आजकल सारा टाइम खुली रहती है। इतने दिन के बाद मस्त चुदाई मिलेगी। मुझे वो छोटे से मेहमानों के कमरे में नहीं चुदाना। ऊपर से बेचारे भैया ने आज तक हमेशा गांड ही मारी है कभी चोदा नहीं। पहली बार उनसे चुदवाऊँगी तो कुछ तो ख़ास होना चाहिए ना।
विराज- एक काम करेंगे, मैं सुनील के पास चला जाऊँगा और तुम माँ को कुछ बहाना बना कर वो कांच बंद कर देना।
आखिर राखी वाले दिन सुबह सुनील आ गया। रक्षाबंधन का मुँहूर्त दोपहर का था तो विराज सुनील से खेती-किसानी की बातें करने लगा। शालू जल्दी से नाश्ता ले कर आ गई। उसने विराज और सुनील को नाश्ता दिया और वापस रसोई में खाना बनाने के लिए जाने लगी तो सुनील ने उसे वहीं उनके साथ बैठने को कहा।
शालू ने विराज से नज़रें बचाते हुए सुनील से कहा- मैं तो अपना नाश्ता कर ही लूंगी.
और फिर आँख मार कर अपनी एक उंगली बड़े कातिलाना अंदाज़ में ऐसे चूसी जैसे लंड चूस रही हो।
सुनील समझ गया कि आज तो ये उसका लंड चूस कर ही राखी मनाने वाली है। लेकिन मौका कब मिलेगा ये सुनील को नहीं पता था।
सच तो ये था कि जब तक शालू और सुनील के बाबा जिंदा थे तब तक उन्होंने कभी सुनील को अपनी बहन से मिलने नहीं दिया। पिछली बार उनके गुजरने के बाद के कार्यक्रम में ही दोनों मिले थे लेकिन तब माहौल थोड़ा ग़मगीन भी था और भीड़-भाड़ भी बहुत थी। उसके बाद से अब तक मिलने का कभी मौका ही नहीं मिला था।
बहरहाल, नाश्ते के बाद खाना और खाने के बाद राखी बाँधने का कार्यक्रम हुआ और फिर सब बैठ कर परिवार और रिश्तेदारी की बातें करते रहे। थोड़ी देर बाद माँ तो अपने पोते राजन के साथ खेलने चली गईं और थोड़ी देर बाद विराज भी बोला कि वो पेशाब करने जा रहा है। जैसे ही कमरे में शालू और सुनील के अलावा कोई ना बचा वैसे ही शालू सुनील पर झपट पड़ी। वो उसके ऊपर चढ़ गई और उसके मुँह में अपनी जीभ डाल कर एक गहरा चुम्बन लिया, फिर उसका लंड सहलाने लगी।
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