RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
आँखों खोली तो खुद को एक झोपड़ी में पाया जहाँ पे सिरहाने फलो का ढेर लगा हुआ था मेरे शरीर के घावों को जड़ी बूटियों के लेप से भरकर उनपे चमड़े की पट्टी बांध दिया गया था पूरा कमरा चन्दन की खुशबु से महक रहा था । मैं अपने पैरों पे खड़ा होने की कोशिश करने लगा तो जैसे लगा की पैर जवाब दे गए हो । तभी दरवाजे से आवाज आई की " आपको आराम करना चाहिए राजन "
ये चरक महाराज थे मैंने उनसे पूछा की मैं कहाँ हु तो उन्होंने जवाब दिया की " राजन आप इस गरीब वैद्य की कुटिया में है "
मैंने पूछा " आप मुझे राजन क्यों कह रहे है ?"
चरक " राजन हमारे कबीलो का नियम है कि जब कोई काबिले के राजा को युद्ध में हरा देता है तो वो केबीले का राजा हो जाता है इस प्रकार आप केबीले के राजा है"
मैंने पूछा इसका क्या मतलब है
चरक " इसका मतलब है कि अब ये कबीला आप की जिम्मेदारी पर है "
ये सारी बाते मेरा सर घुमा रही थी की तभी कुटिया के दरवाजे पे दरबान ने आवाज दी की रानी विशाखा पधारी हैं ।
चरक " उन्हें अंदर भेजो"
तभी अंदर एक 40 45 साल की महिला प्रवेश करती है चरक " रानी प्रणाम "
विशाखा " अब मैं रानी नहीं रही नए महाराज को दासी का प्रणाम "
मैंने भी प्रणाम किया
विशाखा " महाराज आपसे वज्राराज और हमारे अंतिम संस्कार के लिए क्या आदेश है "
मैंने पूछा " मतलब "
चरक " राजन हमारी परंपरा के अनुसार राजा की मृत्यु के पश्चात उनके आश्रितों को अगर कही आश्रय नहीं मिलता तो उन्हें राजा के साथ ही मृत्यु को वरन करना होता है "
मैंने चौकते हुए पूछा " इसका मतलब रानी विशाखा .."
मेरी बात पूरी भी नहीं हुई थी रानी बोल पड़ी " हां मैं और मेरी बेटी विशाला दोनों मृत्यु का वरन करेंगी "
मैंने फिर चौंकते हुए पूछा " दोनों ??"
विशाखा " जी महाराज"
मैंने पूछा " तो आप किसी से आश्रय क्यों नहीं ले लेती "
विशाखा " ये इतना आसान नहीं है महाराज एक राज परिवार को एक राजा ही आश्रय दे सकता है ।"
मैंने पूछा " क्या मैं आपको आश्रय दे सकता हु ??"
अब चौंकने की बारी विशाखा और चरक की थी । कुछ देर के लिए दोनों चुप हो गए फिर चरक के चेहरे पे एक कुटिल मुस्कान तैर गयी उसने मुझसे पूछा "राजन क्या आप रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला को आश्रय देना चाहते हैं ?"
मैंने कहा हाँ
मेरे ऐसा कहते ही महारानी विशाला ने मेरे चरण स्पर्श किये और शरमाते हुए कुटिया से बाहर चली गयी ।
मैंने अचंभित होते हुए चरक से पुछा" इसका मतलब "
चरक " महाराज हमारे काबिले में आश्रय देने का मतलब है कि आज से रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपकी हुई आप उन्हें पत्नी से लेके दासी किसी भी तरह रख सकते है "
ये सोचना मेरे लिए काफी चौकाने वाली थी मैंने चरक से पुछा "तो क्या अब रानी विशाखा मेरी पत्नी है ?"
चरक ने जवाब दिया " नहीं पर आप पत्नी की जरूरतें उनसे पूरी कर सकते है "
अब मेरे दिमाग में रानी विशाखा का शरीर घूम गया सफ़ेद रंग उभरी हुई छाती मोटे चौड़े कूल्हे भरा हुआ बदन बस फिर था दिमाग की चीज़ लंड ने भी भांप ली और लगा हिलौरे मारने ।
चरक जी ने मेरी अवस्था को भांपते हुए कहा " राजन अभी आप स्वस्थ हो जाइये कल आपका अभिषेक है उसके बाद आप रानी को आश्रय दे सकते है ।"
फिर चरक जी ने मुझे एक काढ़ा पीने को दिया जिसको पीने के बाद मुझे नींद आ गयी ।
मेरी आँखें खुलती है तो मैं खुद को फिर उसी कुटिया में पाता हूं मेरे सामने चरक जी बैठे होते है । मेरे आंखे खोलते ही वो मुझसे कहते हैं कि महाराज आज आपका अभिषेक होगा कृपा करके मेरे साथ आये और नित्यक्रिया की तैयारी करे । नित्यक्रिया पूरी करने के बाद चरक जी मुझे स्नान गृह में ले जाते गई जहाँ एक बड़े से गढ्डे ने फूलों वाला पानी था चरक जी ने फिर ताली बजाईं और चार दासियो ने प्रवेश किया चरक जी ने कहा कि ये आपकी व्यक्तिगत परिचारिकाये है आगे का काम ये संपन्न करेंगी ये कहकर चरक चले गए। मैंने चारो की तरफ देखा उनकी उम्र 20 से 21 साल की होगी । मैंने पूछा की तुम्हारा नाम तो उनमें से एक ने जवाब दिया जी परिचारिकाओं के नाम नहीं होते।
अचंभित होते हुए मैं पानी में उतर गया परिचारिकाओं ने भी अपने वस्त्र और आभुषण उतारे और मेरे साथ पानी में आ गयी । दो ने मेरा हाथ पकड़ा और धीरे धीरे मालिश करते हुए मुझे नहलाने लगी । शायद उनके नंगे बदन का असर था जी मेरा लंड फड़फड़ाने लगा। एक ने यह देखा तो धीरे से मेरे लंड की भी मालिश शुरू कर दी फिर क्या था मेरा लंड भी अपने रौद्र रूप में आने लगा । तो फिर उसने मेरे लंड को अपने मुंह में लेके चुसाई शुरू कर दी मैं तो जैसे जन्नत की सैर करने लगा । उसकी चुसाई से लग रहा था कि वो पहले भी ऐसा कर चुकी है । खैर कुछ देर की चुसाई के बाद वो अपनी चूत को सेट करके मेरे लंड पे बैठ गयी और सवारी करने लगी और मुझे असीम आनंद की अनुभूति करवाने लगी । कुछ देर की चुदाई के बाद मुझे भी जोश आने लगा मैंने भी उसके कानों के पास गर्दन पे चुम्मिया लेना शुरू कर दिया जिसके कारण उसकी भी सिसकारियां निकलने लगी मैंने दोनों हाथों सो उसके नितंबो को दबाना शुरू किया और एक उंगली उसकी गांड के छेद में दाल दी अब उसकी सिसकारियां हलकी आहों में बदल गयी अब मैं भी चरमोत्कर्ष के निकट आ रहा था तो मैंने उसके नितंबो को छोड़ उसके वक्ष को मसलना शुरू किया फिर उसके एक चूचक को मुह में लेके चूसा तो वो चीखती हुई झड़ गयी और साथ ही मैं भी। हमारी सांसे जब थमी तो हमने देखा की बाक़ी हमे अचंभित होके देखे जा रही थी जैसे की क्या देख लिया हो मेरी गोद में बैठी का तो गाल टमाटर जैसे लाल हो गया था। किसी तरह नहाने का कार्यक्रम ख़त्म हुआ तो पहनने जे लिए मुझे सभी की तरह एक चमड़े का टुकड़ा मिला जिसे मैंने भी अपने कमर पे लपेट लिया ।
स्नान गृह से बाहर निकला तो देखा चरक जी दरवाजे पे खड़े है उन्होंने कहा कि महाराज आपसे मिलने पुजारन देवसेना आयी है। मैंने पूछा की ये कौन है तो चरक ने बताया कि ये द्वीप के कुल देवता की प्रमुख पुजारन है और इस द्वीप के सारे काबिले इनकी बात मानते है और उनको साथ लेने में हि भलाई है । मैं वापस अपनी कुटिया में पंहुचा मैंने देझा की वहां एक अत्यंत खूबसूरत 30 साल की औरत बैठी है जिसके शारीर पे न कोई वस्त्र है न आभूषण बस पूरे शरीर पर भस्म का लेपन किया हुआ था । उसके वक्ष सुडौल और कमर सुराहीदार ऐसा लग रहा था जैसे कोई अप्सरा हो ।
मैंने उन्हें प्रणाम किया जिसका उसने कोई जवाब नहीं दिया तथा चरक से कहा कि अभिषेक की तैयारी की जाये जिससे वो जल्द से जल्द यहाँ से जा सके। फिर वो कुटिया से निकल गयी।
मैंने चरक की तरफ देखा उसने मुझसे कहा " राजन इन्हें मनाना इतना आसान नहीं लेकिन अगर आप ने मना लिया तो पूरे द्वीप पे आपका राज होगा "
मैंने दिमाग से सारी बातें निकालते हुए चरक से तयारी करने को कहा।
शाम को चरक फिर से कुटिया में प्रवेश किया उन्होंने मुझसे कहा " रानी विशाखा और उनकी पुत्री विशाला आपसे मिलने की अनुमति चाहती है "
मैंने कहा "उन्हें अंदर लाईये "
कुछ देर बाद रानी विशाला अंदर आती हैं उनके साथ वही युवक था जिसने वज्राराज के साथ युद्ध के बाद मुझपे हुमला किया था । रानी विशाखा ने परिचय कराया " महाराज ये मेरी पुत्री है विशाला "
मेरा सर चकरा गया अभी तक मैं जिसे लड़का समझ रहा था वो तो लड़की थी पर उसके वक्ष न के बराबर कमर बहुत ही पतली तथा बदन वर्जिश के कारण काफी कसा हुआ तथा टैटू से ढका हुआ था जैसा इस कबीले के पुरुष आदिवासियों के होते है इसलिए मेरा धोखा खा जाना लाजमी था ।
रानी विशाखा बोली " महाराज मेरी पुत्री उस दिन आपके ऊपर वार करने को लेके शर्मिंदा है तथा आपसे माफ़ी माँगना चाहती है ।"
मैंने विशाला को देखा तो उसकी आँखे अभी भी मुझे गुस्से से घूर रही थी तथा उसके हाथ कमर में बंधी तलवार के ऊपर थे उसे देख कर नहीं लग रहा था कि वो माफ़ी माँगना चाह रही हो । मैंने अभी बात और न बढ़ाने की सोचते हुए कहा " महारानी विशाखा मैं विशाखा की मनः स्थिति समझ सकता हु अतः मैंने उसे माफ़ किया "
महारानी विशाखा प्रसन्न हो जाती है " महाराज अब हम बाहर जाने की इज़ाज़त चाहते है "
मैंने कहा " ठीक है "
फिर मैं चरक के तरफ मुड़ा मैंने उनसे पूछा " तो आज इस अभिषेक समारोह में क्या क्या होगा और मुझे क्या करना होगा "
चरक " समारोह में आस पास के कबीलो के सरदार भी आये है पहले आपको इन सब से मिलना होगा फिर पुजारिन महादेवी जी आपको कबीले का सरदार घोषित करते हुए आपका अभिषेक करेंगी और उसके बाद नृत्य संगीत तथा मदिरा का सेवन रात तक चलेगा "
मैंने कहा " और कुछ"
चरक " हाँ महाराज आपको अपने सलाहकार सेनापति और संगिनी का चुनाव भी करना होगा "
मैंने पूछा " ये कैसे होगा ?"
चरक " महाराज आप जिसके सर पर हाथ रख देंगे वो आपका सलाहकार होगा जिसके कंधे पे हाथ रख देंगे वो आपका सेनापति तथा जिसको अपनी जांघ पे बिठा लेंगे वो आपकी संगिनी "
मैंने फिर पूछा " इन तीनो का दायित्व "
चरक " सलाहकार आपको क़बीलों के नियमो राजनीति तथा कूटनीति में सहायता प्रदान करेगा सेनापति आपकी सेना तथा कबीले की सुरक्षा में सहायता प्रदान करेगा तथा वो आपका व्यक्तिगत अंगरक्षक भी होगा तथा जब तक महाराज अपना कोई जीवनसाथी नहीं चुन लेते महाराज के घर का जिम्मा संगिनी का दायित्व होगा "
मैंने पूछा " क्या सेनापति पुरुष होना आवश्यक है ?"
चरक " महाराज आवश्यक तो नहीं पर अभी तक किसी कबीले ने महिला सेनापति का चुनाव नहीं किया है "
मैंने चरक ऐ कहा " ठीक है फिर चले "
चरक " चलिये महाराज "
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