RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
चरक मुझे लेके एक खुले मैदान में पहुचते है जहाँ कबीले के सारे महिला पुरूष बच्चे इकठ्ठा थे । चरक ने पहले मुझे आसपास से आये कबीले के सरदारों से मिलवाया फिर वो मुझे लेके एक ऊँचे चबूतरे पे ले गए जहाँ पर एक बड़ा सा पत्थर नुमा सिंहासन था । मेरे वहां पहुचते ही पुजारिन देवसेना भी प्रकट हुई आज उसने भस्म से शरीर का लेप नहीं किया था अर्थात आज उसके शरीर पर कुछ भी नहीं था मेरी नज़रे उसके शरीर पर रुक सी गई। देवसेना ने मेरी नज़रे भांपते हुए मुझसे कहा कि "सिहासन ग्रहण करे महाराज"
मैं सिहासन पे जाके बैठ गया फिर देवसेना ने कहा " कुलदेवता दधातु को शाक्षी मान कर मैं महाराज अक्षय को कबीले का सरदार घोषित करती हूं "
यह कहते हुए उसने मेरे सर पर भैसे के सींग का मुकुट पहना दिया । वहां उपस्थित सभी लोगो ने मेरे नाम की जयघोष शुरू कर दी ।
थोड़ी देर बाद जब शोर शांत हुआ तो देवसेना ने कहा अब महाराज अक्षय अपने सहयोगियों का चुनाव करेंगे। सारी सभा में सन्नाटा पसर गया ।
मैं खड़ा हुआ और चबूतरे से नीचे उतरा अपने सलाहकार के रूप में मैंने चरक को चुना और उनके सिर पे हाथ रख दिया चरक ने भी स्वीकारोक्ति स्वरुप मेरे चरण स्पर्श किए । पूरी सभा ने चरक के नाम का जयघोष किया । फिर मैं रानी विशाखा और विशाला की तरफ बढ़ चला । वो दोनों विस्मित नज़रो से मेरी तरफ देखने लगी मैंने विशाला के कंधों पे हाथ रख कर उसे अपना सेनापति बना दिया। सारे कबीले वाले शांत पड़ गए और विशाला जो कुछ देर तक जड़ व्रत मुझे देखने लगी । इसी बीच किसी ने विशाला के नाम की जयकार की मैंने घूम के देखा तो ये चरक जी थे कुछ देर में बाकि कबीले वाले भी विशाला के नाम की जयकार करने लगे । अब आखरी में संगिनी स्वरुप मैंने रानी विशाखा को चुना मैंने उनका हाथ पकड़कर अपने साथ चबूतरे पे ले गया और उन्हें अपने जांघ पे बिठा लिया। महारानी विशाखा के ख़ुशी के मारे आंसू निकलने लगे।
कुछ देर चरक जी ने नृत्य और मदिरा शुरू करने आव्हान किया। कुछ ही देर में सामने अर्धनग्न नृत्यांग्नायो का झुण्ड उपस्थित हुआ तथा सभी को मदिरा परोसी जाने लगी। धीरे धीरे रात घिरने लगी मदिरा और सामने होता उत्तेजक नृत्य मेरे लंड में भी हलचल मचाने लगा जिसका आभास मेरी जांघ पे बैठी रानी विशाखा को भी हो गया उन्होंने मुझसे कहा " राजन आपका यहाँ बैठा रहना जरूरी नहीं है आइये आप अपनी कुटिया में चलिये ।"
मैं अपनी जगह से उठ गया तो चरक जी मेरे पास आये और मुझे एक प्याला दिया और मुझे कुटिल मुस्कान से देखते हुए कहा " राजन ये काढ़ा पी लीजिये आपको आज रात आराम मिलेगा " मैंने भी बिना कुछ सोचे पी लिया और आगे बढ़ा रानी विशाखा और विशाला भी मेरे साथ हो ली । वो मुझे लेके एक बड़ी सी कुटिया तक ले गयी जिनके चारो तरफ छोटे छोटे झोपड़े बने हुए थे । मैं अंदर घुस गया मेरे साथ रानी विशाखा भी आ गयी विशाला दरवाजे पर सुरक्षा हेतु खड़ी हो गयी ।
अंदर आते ही रानी विशाखा ने मुझसे पूछा "महाराज क्या लेना पसंद करेंगे "
मैंने चौकते हुए पूछा " क्या मतलब "
रानी विशाखा ने मेरे खड़े लंड की तरफ इशारा करते हुए कहा " पहले इसका इलाज किया जाए या आप भोजन करेंगे ? "
रानी के इस प्रश्न ने मुझे असहज कर दिया मैंने रानी से कहा रानी " विशाखा आप सच में ऐसा करना चाहती है ?"
रानी विशाखा ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " महाराज आपकी संगिनी के कारण मेरा ये दायित्व है कि आप की भौतिक और शारीरिक जरूरतों का मैं ख्याल रखु "
इसी के साथ रानी घुटनो के बल मेरे सामने बैठ गयी मेरे चमड़े का वस्त्र उतार दिया और मेरे लंड को सहलाते हुए बड़े प्यार से अपने मुह में ले लिया और चूसने लगी । रानी धीरे धीरे अपने चूसने की रफ़्तार बढ़ा रही थी और मैं अत्यंत मजे की तरंगें अपने शरीर में उठती महसूस कर रहा था। चूसते चूसते रानी ने मेरा लंड पूरा अपनेमुह में ले लिया था और पूरे अपने गले तक निगलते हुए अंदर बाहर कर रही थी । कुछ देर बाद मुझे महसूस होने लगा की अब मेरा वीर्य शीघ्र ही निकलने वाला है तो मैबे अपना लंड बाहर खींचने को कोशिश की पर रानी ने दिनों हाथो से मेरा नितम्ब पकड़ लिया और जोर से लंड अपने मुह में अंदर बाहर करने लगी । कुछ ही देर में मैंने सारा वीर्य रानी के मुह में ही छोड़ दिया ।
मैंने साँसे सँभालते हुए रानी विशाखा की तरफ देखा तो वो बड़े अचंभे से मेरे लंड की तरफ देख रही थी जो झड़ने के बाद भी पूरी तरह से ढीला नहीं पड़ा था तभी मुझे याद आया की चरक जी ने कुटिया में आने से पहले मुझे कुछ पिलाया था हो न हो ये उसी का असर है जो अभी भी मेरा लंड ढीला नहीं पड़ा है । मैंने सोचा की रानी को अब थोड़ा आराम देते है तो मैंने उन्हें खाना लाने की बोल दिया । वो खाने का इंतज़ाम करने कुटिया से बाहर चली गयी । उनके जाते ही विशाला अंदर आ गयी और मेरे नग्न शरीर और खड़े लंड को देख कर चौंक गयी और इधर उधर देखने लगी ।
मैं भी अपनी नग्नता छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया और पास ही पड़े बिस्तर पर लेट गया ।
कुछ देर में रानी विशाखा भोजन लेके वापस आ गयीं और विशाला फिरसे बाहर चली गयी ।
रानी के साथ भोजन ख़त्म करते करते मुझे आभास हुआ की समारोह भी ख़त्म हो गया है तथा हमारे अगल बगल के झोपड़े में चहल पहल बढ़ गयी है मैंने या बारे में महारानी विशाखा से पूछा उन्होंने बताया कि मेरी कुटिया के बगल की एक कुटिया मेरे सलाहकार की तथा बाकि कुटिया मेरे मेहमान जैसे पुजारिन और अन्य सरदारों के लिए है वो सब समारोह से वापस अपनी झोपड़ियो में लौट आये हैं।
मैंने पूछा " और मेरी सेनापति जी कहाँ रहेंगी?"
रानी ने हँसते हुए कहा कि " वो सेनापति के साथ साथ आपकी अंगरक्षक भी है इसलिए वो आपके साथ ही रहेगी "
मैंने पूछा " और रानी विशाखा आप ?"
रानी विशाखा ने जवाब दिया " जैसा आप चाहे "
मैंने रानी विशाखा को अपने पास आने का इशारा किया उनके पास आते ही मैंने उनके कमर पे बांध चमड़े का वस्त्र खोल दिया और उन्हें बिस्तर पर धकेल दिया फिर उनके ऊपर आते हुए अपने लंड को उनकी चूत पे सेट करते हुए कमर को झटका दिया तो पूरा का पूरा लंड रानी की चूत में घुसता चला गया रानी विशाखा के मुह से सिसकिया निकलने लगी और मैंने भी लंड बहार निकल कर उनकी चूत ने धक्के मारने शुरू कर दिए रानी ने भी अपनी टाँगे चौड़ी करते हुए मेरी कमर के उपर चढ़ा ली जिससे मेरा लंड चूत की और गहराइयों में भी गोते लगाने लगा । धीरे धीरे मेरे धक्कों की गति बढ़ती रही और रानी की सिसकिया भी अब आहों में बदल गयी थी । मैंने धक्कों को और तेज कर दिया और रानी के चुचको को मुह में लेके चूसने लगा । मेरा ऐसे करते हु रानी जैसे पागल हो गयी और चीखते हुए झड़ गयी। चीख तेज़ थी शायद बगल के झोपडी के मेहमानों ने भी सुनी होगी । फिलहाल मेरा लंड शायद चरक के काढ़े के कारण झड़ने का नाम नहीं ले रहा था तो मैंने रानी को घोड़ी बना दिया और उसकी गांड के छेद पे अपना लंड लगाया और एक जोर का धक्का दिया रानी ने शायद अपनी तैयारी की थी क्योंकि गांड में चिकना कुछ लगा था कि मेरा लंड फिसलता हुआ अंदर पूरा घुस गया मैंने भी रानी के दोनों चौड़े कूल्हों पे अपने हाथ टिकाये और जोर जोर से चुदाई करने लगा रानी भी हर धक्के के साथ सुधबुध भूलकर चीखने लगी उसकी चीखो ने मुझे और उत्तेजित कर दिया और मैं और जोर से उसकी गांड चोदने लगा इस ताबड़तोड़ चुदाई से हम दोनों ही जल्दी चीखते हुए झड़ गए। उसके बाद मुझे तुरंत नींद आ गयी ।
सुबह मेरी नींद खुली तो मैंने देखा रानी विशाला बगल में अभी भी नींद में है तो मैंने नित्यक्रिया निपटाने का सोचा और चमड़े का वस्त्र अपने कमर पे लपेट कुटिया से बाहर निकला। बाहर विशाखा जाग चुकी थी और मुस्तैद खड़ी थी वो भी मेरे साथ हो ली । मैंने उससे कहा कि " मैं नित्यक्रिया के लिए जा रहा हु "
विशाला ने जवाब दिया की " ठीक है मैं यहीं हु "
मैं आगे बढ़ा कबीले के पुरुष मुझे अजीब नज़रो से देख रहे थे तथा स्त्रियां मुझे देखते ही शरमाते हुए आपस में खुसुर पुसुर करने लगी । मैंने भी ज्यादा ध्यान इस ओर नहीं दिया और आगे बढ़ा ।
नित्यक्रिया निपटा कर मैं वापस लौटा तो मेरी कुटिया के बाहर विशाला और चरक महाराज मौजूद थे। मुझे देख कर चरक जी ने नमन किया मैंने भी जवाब दिया और स्नान के लिए अंदर चला गया।
अंदर रानी विशाखा मेरा इंतज़ार कर रही थी मुझे देख कर वो शर्मा गयी मैंने उनसे पूछा " क्या हुआ रानी विशाखा ?"
विशाखा ने जवाब दिया " मेरे इतने साल के वैवाहिक जीवन में मैंने इतना सुख कभी नहीं प्राप्त किया जितना मुझे कल मिला "
मैंने कहा " ही सकता है क्योंकि शायद आपने अपने पति के अलावा किसी और से सम्भोग न किया हो इस लिए आपको ऐसा लग रहा हो ।"
विशाखा " ऐसा नहीं है कि मैंने अपने वैवाहिक जीवन में सिर्फ अपने पति से ही सम्बन्ध बनाये हो "
मैंने चौकते हुए पूछा " मतलब ??"
विशाखा " महाराज सम्भोग के मामले में हमारे काबिले की स्त्री और पुरुष काफी स्वछंद है ।"
मैंने पूछा " मैं समझा नहीं ?"
विशाखा " महाराज आप धीरे धीरे समझ जाएंगे अभी आप स्नान कर ले "
फिर वो अपनी कुटिया से सटे एक स्नानगृह में लेके मुझे आयी वहां भी एक कुंड में सुगन्धित फूलो की खुशबू वाला पानी एकत्रित था मैं भी अपना चमड़े का वस्त्र उतार कर पानी में उतर गया मेरे पीछे रानी विशाखा भी अपने वस्त्र और आभूषण उतार पानी में उतर गयी और मुझे स्नान कराने लगी ।
मैंने रानी से पुछा " इस द्वीप पे और भी कबीले हैं क्या ?"
रानी ने जवाब दिया " हाँ इस द्वीप पे अनेको कबीले है "
मैंने फिर पूछा " तो फिर ये कबीले आपस में लड़ते नहीं ?"
रानी " पहले कबीलो में बहुत आपसी लड़ाईया होती थी पर पिछली बारिश के बाद पुजारिन देवसेना की पहल के बाद लगभग सभी कबीलो ने एक आपसी सन्धि की और फैसला किया कि सब कबीले का एक सरदार चुना जाएगा जो की कबीलों के आपसी विवादों को सुलझाएगा ।"
मैंने पूछा " तो अब कबीलों का सरदार कौन है ? "
रानी " ये चुनाव करना पुजारन देवसेना को करना है अभी तक उनकी पसंद महाराज वज्राराज थे पर उनकी मृत्यु के पश्चात अब मुझे लगता है कि वो दुष्ट कपाला का चुनाव करेंगी ।"
मैंने रानी से पुछा " ये कपाला कौन है "
रानी " कपाला आदमखोर कबीले का सरदार है वो बहुत ही खतरनाक जालिम और धूर्त किस्म का इंसान है "
मैंने पूछा " तो फिर पुजारन उसे क्यों क़बीलों का सरदार बनाना चाहती हैं ?"
रानी " महाराज मुझे भी इस बारे में ठीक से नहीं पता पर मुझे ऐसा लगता है "
तभी दरवाजे से विशाला की आवाज आई " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवमाला आपसे मिलने चाहती है ।"
मैंने कहा " ठीक है मैं तैयार होके आता हूं "
मैं स्नानगृह से बाहर आया तो देखा की देवमाला मेरा इंतज़ार कर रही थी । देवमाला भी कोई 24 25 साल की महिला थी उसने भी शारीर पर भस्म का लेपन किया था देखने में वो भी देवसेना से कम न थी । मेरे प्रवेश करते ही उसने झुक कर मुझे प्रणाम किया और मुझसे कहा " महाराज पुजारन देवसेना आपसे अपनी कुटिया मे मिलना चाहती हैं "।
मैंने कहा "चलिये "
पुजारन देवसेना की कुटिया में पहुचने पर मैंने देखा की पुजारन देवसेना कहीं दिखाई नहीं दे रही हैं । मैंने देवमाला की तरफ देखा तो उसने मुझे एक चमड़े के परदे की तरफ इशारा किया । परदे के पास पहुचते ही देवमाला ने कहा कि " पुजारन देवसेना महाराज पधार चुके हैं "
परदे के पीछे से देवसेना की आवाज आई " महाराज मैं आपके सामने नहीं आ सकती क्योंकि मैं रजोधर्म का पालन कर रही हु "
मैंने कहा " कोई बात नहीं मैं समझ सकता हु बताइये मेरे लिए क्या आदेश है ?"
देवसेना " आदेश नहीं महाराज चुकी मेरा मासिक आपके काबिले में आया है अतः हमारी परंपरा के अनुसार आपको आज से एक सप्ताह बाद मेरे मंदिर पर कालरात्रि की पूजा हेतु आना होगा इसलिए मैं आपको अपने मंदिर पे आने का निमंत्रण देना चाहती हु ।"
मैंने कहा " ठीक है पुजारन देवसेना जैसी आपकी इच्छा एक सप्ताह बाद आपसे मुलाक़ात होगी अब मैं चलता हूं "
फिर मैं देवसेना की कुटिया से निकल गया।
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