RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
-----------------------------------------------------
देव सेना की कुटिया का दृश्य मेरे जाने के बाद
–----–---------------------------------------
देवसेना परदे की आड़ से बाहर आती है आज उसने कोई भस्म श्रृंगार नहीं किया हुआ है और उसके बाल भी नहीं धुले हुए है।
देवमाला " देवी क्या आपने ये सही किया "
देवसेना " शायद प्रभु की भी यही इच्छा है जो मेरा मासिक समय से पहले आ गया नहीं तो मेरी गड़ना के अनुसार कपाला के कबीले तक पहुचने से पहले ये नहीं आना था "
देवमाला " हो सकता है इस बार आप सफल हो जाये"
देवसेना " तुझे ऐसा क्यु लगता है "
देवमाला " रानी विशाखा की चीखें आपने नहीं सुनी क्या "
देवसेना " सुनी तो पर मुझे विश्वास नहीं होता की कोई स्त्री इतनी भी उत्तेजित हो सकती है "
देवमाला " मेरी एक परिचारिका से भी बात हुई जिसने प्रथम दिन महाराज को स्नान कराया था वो भी बता रही थी की महाराज कोई जादू कर देते है कि कोई स्त्री अपने वश में नहीं रहती "
देवसेना " देखते हैं अब तुम प्रस्थान की तैयारी करो "
पुजारन देवसेना से मिलके मैं अपनी कुटिया की तरफ बढ़ा तो रास्ते में चरक जी मिल गये। मैने उनसे मुझे कबीला घुमाने की लिए कहा वो मुझे लेके निकल पड़े। रास्ते में मैंने फिर गौर किया कि कबीले की महिलाये मुझे देख के शर्मा रही हैं । मैंने चरक जी से इस बारे में पूछा उन्होंने कहा " कल रात रानी देवसेना की चीखें पूरे काबिले ने सुनी इसी लिए वो आपको देख के शर्मा रही हैं।"
मैंने चरक जी से कहा " उसमे आपका भी हाथ है आपने कल मुझे क्या पिला दिया था ?"
चरक जी ने हँसते हुए कहा " महाराज बस शिलाजीत का काढ़ा था "
इसी तरह बात करते हुए हमने पूरे कबीले को देखा की कबीले के बाकी लोग कहाँ रहते है, खेती कहाँ होती है , जानवर कहाँ रखे जाते हैं , पीने का पानी कहाँ से आता है , अनाज कहाँ रखा जाता है वगैरह वगैरह ।
शाम को चरक जी के साथ मैं अपनी कुटिया पे पंहुचा । कुटिया में रानी विशाखा और विशाला पहले से मौजूद थी ।
रानी विशाखा ने पुछा " कहाँ थे अब तक महाराज ?"
मैंने कहा " कबीले के भ्रमण पर था "
रानी विशाखा ने पुछा " कैसा लगा हमारा कबीला ?"
मैंने कहा " कबीला तो ठीक है पर सुरक्षा की दृष्टि से कमजोर है ?"
चरक जी ने पुछा " मतलब "
मैंने समझाना शुरू किया " देखिये कबीले में कोई भी बाहरी आसानी से आ जा सकता है दूसरा कबीले का पानी का स्त्रोत और अनाज के भण्डार बिना किसी सुरक्षा के है तीसरा कबीले में अचानक आक्रमण से निपटने के कोई इंतज़ाम नहीं है "
चरक जी ने पुछा " महाराज आप क्या चाहते हैं "
मैंने कहा कि "कबीले के चारो ओर लकड़ी की दिवार बनायीं जाए और काबिले में घुसने के बस दो या तीन द्वार हो जिसपे हमेशा पहरा रहे दूसरा पानी के स्त्रोत और अनाज के भण्डार की हर प्रहर निगरानी हो और तीसरा हमे काबिले की सीमा से कुछ दूर पेड़ो पर छुपी मचाने बनानी होंगी जिसपर हर प्रहर कोई प्रहरी रहे जो की किसी अचानक आक्रमण की सूचना हम तक पंहुचा सके । "
चरक जी ने कहा " उच्च विचार है महाराज मैं और सेनापति विशाला अभी से इसी काम पे लग जाते हैं अब हमें आज्ञा दे "
उन दोनों के जाने के बाद मैं रानी विशाखा से भोजन का प्रबंध करने को कहता हूं।
भोजन करने के पश्चात मैं अपने बिस्तर पे आके लेट जाता हूँ और रानी विशाखा भी आके मेरे समीप लेट जाती हैं। मैं रानी विशाखा से पूछता हूं " रानी आप कह रही थीं के कबीले के महिला और पुरुष सम्भोग के मामले में स्वछंद हैं इसका क्या मतलब है "
रानी विशाखा " महाराज हमारे कबीले की पुरानी मान्यता है कि सम्भोग परमात्मा तक पहुचने का जरिया है या ये कहे सम्भोग की क्रिया एक समाधी की तरह है जो हमे परमात्मा तक पहुचाती है और हम कभी भी किसी के साथ कहीं भी सम्भोग करने को स्वछंद है "
मैंने पूछा की " इसका कोई पुरुष किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता है ? "
रानी विशाखा " हाँ अगर उस महिला की भी सहमति है तो "
मैंने फिर पूछा " मैं भी कबीले की किसी भी महिला के साथ सम्भोग कर सकता हु अगर वो सहमत हो तो ?"
रानी विशाखा " कबीले के सरदार होने के नाते आपको सहमति की आवश्यकता नहीं है आप अगर किसी महिला से सम्भोग करना चाहते हैं तो उसे आपकी बात माननी पड़ेगी इसी तरह अगर कबीले की कोई महिला आपके साथ सम्भोग करना चाहती है तो उसे आपकी सहमति की आवश्यकता नहीं एक सरदार होने के कारण आपको उसे संतुष्ट करना पड़ेगा ।"
मैंने रानी विशाखा से पुछा " अच्छा आपने कहा कि आपने और भी पुरुषों के साथ सम्भोग कियाहै उसका क्या मतलब "
रानी विशाखा " महाराज वज्राराज हर रात किसी न किसी कबीले की औरत के साथ सोते थे तो मुझे भी अपनी शारीरिक जरूरतों को पूरा करने के लिए और पुरुषों का सहारा लेना पड़ा "
मैंने कहा " तो फिर महारानी आओ मेरा सहारा कब लेंगी ?"
रानी विशाखा हँसते हुए मेरे ऊपर आ गयी और मेरे लंड पर अपनी चूत को रगड़ने लगी कुछ ही देर में मेरा लंड रौद्र रूप लेने लगा उन्होंने मेरे लंड को अपनी चूत पे लगाया और उसपर बैठना चालू किया । मेरा लंड भी फिसलता हुआ उनकी चूत में जड़ तक घुस गया अब रानी मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगी और मुझे स्वर्ग की सैर कराने लगी । धीरे धीरे रानी ने अपनी गति बढ़ाना शुरू किया तो मुझे और आनंद आने लगा रानी को भी अब इस चुदाई में मजा आने लगा । मैंने रानी के चूतड़ को धीरे धीरे दबाना शुरू किया रानी की सिसकारियां बढ़ गयी और रानी और तेजी से धक्के लगाने लगी । मैंने अपनी एक उंगली रानी की गांड में घुसा दी और उसी के साथ रानी झड़ती हुई मेरे ऊपर गिर पड़ी।
मैंने रानी की पीठ के बल किया और उनके ऊपर आ के चूत में धक्के लगाने लगा। कुछ देर बाद मैंने रानी की दोनों टाँगे उठाके अपने कंधे पे रख ली और उनकी चूत में लंबे लंबे धक्के लगाने लगा रानी की सिसकियाँ फिर चालू हो गयी थी और मुझे भी लग रहा था कि मेरा भी जल्दी ई निकल जाएगा तो मैंने रानी के चुचको को अपनी उंगलियों से मसलना शुरू किया तो रानी चीखने लगी। मैंने भी और जोर से धक्के लगाने शुरू कर दिए । कुछ देर बाद मैंने अपना पूरा का पूरा वीर्य रानी की चूत में भर दिया मेरे साथ ही रानी भी खूब जोर से चीखते हुए झड़ गयी।
सुबह नित्यक्रिया और स्नान निपटाने के बाद मैंने विशाला को अपने साथ चलने को कहा। कबीले की सीमा पर पर मेरे कहे अनुसार चरक ने दीवार बनाने का काम शुरू करवा दिया था । मैंने घूम कर काम की प्रगति देखी। फिर मैं विशाला को कबीले की सीमा से और आगे ले गया और उससे पूछा " क्या मैं तुमपे विश्वास कर सकता हु विशाला "
विशाला ने मेरी आँखों में देखते हुए जवाब दिया " जी महाराज "
|