Desi Porn Kahani अनोखा सफर
09-20-2019, 01:52 PM,
#7
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे एहसास होता है कि कोई मेरा लंड चूस रहा है मैं आँख खोलके देखता हूं रानी विशाला मेरा लंड चूस रही थी । मैंने भी उसे रोका नहीं और मजे लेने लगा। आज लग रहा था रानी सुबह की डांट का बदला मेरे लंड से लेने पे उतारू हो वो खूब जोर जोर से चूसे जा रहा थी। कुछ देर के बाद मुझसे रहा नहीं गया मैंने उसका सर अपने लंड से हटाया और उसे बिस्तर पर लिटा के उसके दोनों पैर मोड़ दिए जिससे उसकी गांड और चूत दोनों मुझे एक साथ नज़र आने लगी । मैंने अब अपना लंड उसकी चूत में एक झटके में उतार दिया और जोर जोर से उसकी चूत चोदने लगा । रानी विशाला भी उत्तेजित हो कर मेरा साथ देने लगी । कुछ देर की चूत चुदाई के बाद जब मेरा लंड उसके कामरस से सन गया तो मैंने अपना लंड उसकी गांड में उतार दिया और ताबड़तोड़ धक्के लगाने लगा । रानी विशाखा अब और भी उन्मुक्त हो कर चुदने लगी और चीखने लगी । मैंने भी रफ़्तार बढ़ाई और जोर से उसकी गांड में धक्के लगाने लगा । कुछ ही देर में हम दोनों अपने चरमोत्कर्ष पे पहुँच चीख मारते हुए झड़ गए।
कुछ देर तक अपनी सांसे स्थिर करने के बाद रानी विशाखा बिना कुछ बोले कुटिया से चली गयी। मैंने बाहर देखा तो शाम ढल चुकी थी मैंने सुबह जल्दी निकलने की सोचा था सो मैं वापस बिस्तर पे लेट आराम करने की कोशिश करने लगा।
सुबह भोर में ही मैं और विशाला खाने पीने का सामान लेके पैदल ही देवसेना के मंदिर की ओर निकल पड़े। हम दिन चढ़ने से पहले ही ज्यादा से ज्यादा रास्ता पार करना चाहते थे । तेज कदमो के साथ मैं विशाला के पीछे पीछे चल रहा था वो अभी तक के सफर में चुप थी तो मैंने बात शुरू करने की सोची मैंने उससे कहा " सेनापति विशाला मैंने सुना है कि एक दूसरे से बात करने से रास्ता जल्दी कट जाता है "
वो ठिठककर रुक गयी और मेरी ओर देखते हुए बोली " मैं समझी नही महाराज "
मैंने कहा " रास्ते काटने के लिये कुछ बात करते हैं "
उसने फिर पूछा " क्या बात महाराज "
मैंने कहा कि " कुछ आओ अपने बारे में बताइये कुछ मैं आपको अपने बारे में बताऊंगा "
उसने कहा " महाराज मेरे बारे में बताने के लिये कुछ नहीं है मैं महाराज वज्राराज और रानी विशाखा की एकमात्र संतान हु । मेरे पिता हमेशा से एक बेटा चाहते थे पर अनेको कोशिशों के बावजूद उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई । फिर पिताजी ने थक हार कर मेरी परवरिश ही बेटो की तरह करनी शुरू कर दी । वो मुझे शस्त्र विद्या की शिक्षा देने लगे साथ ही वो मुझे औ इ साथ युद्ध और आखेट पर भी ले जाते थे। मैं भी पिताजी को बेटे की कमी महसूस नहीं होने देना चाहती थी इसलिए मैंने भी खूब मेहनत करनी शुरू कर दी । धीरे धीरे मैं सिर्फ तन से ही स्त्री रह गयी मन से मैं इस कबीले की योद्धा बन गयी । बस यही है मेरी कहानी । "
बातो बातो में सूर्य सर वे चढ़ आया था और गर्मी और उमस से मेरा बुरा हाल हो गया था तो हमने एक नदी के किनारे विश्राम करने की सोची ।
विशाला वही किनारे पे बैठ कर भोजन करने लगी और मैं नहाने के लिए झरने में उतर गया। मैंने अपना चमड़े का वस्त्र उतार किनारे पे फेंक दिया ।और नदी में नहाने लगा। नहाते वक़्त मैंने महसूस किया कि विशाला की निगाहें मेरे शरीर पे टिकी हुई है । कुछ देर नहाने के बाद मैं किनारे पे लौट आया और बिना कपडे के ही विशाला से कुछ दूर लेट कर आराम करने लगा। विशाला कि नजरे अब मेरे लंड पे टिकी हुई थी मैंने भी थोड़ा उसे अंगप्रर्दशन करने की सोची और उसकी तरफ करवट कर ली अब मेरा लंड उसे और अच्छे से दिखने लगा। वो भी बड़े ध्यान से उसे निहारने लगी ।
थोड़ी देर बाद उसने मुझेसे कहा " महाराज अब हमें चलना चाहिए "
मैंने भी कहा " चलो "
फिर हम चल पड़े । कुछ देर बाद विशाला ने मुझसे कहा " अब वचनानुसार आपको अपने बारे में बताना चाहिए "
मैंने कहा "ठीक है मेरा नाम अक्षय है मैं भारतीय सेना में हूं । सेना में सभी सैनिको की तरह मेरा काम भी शत्रुओं को ख़त्म करना का है। एक रात हमे पता चला की कुछ समुद्री डाकू एक द्वीप पर छुपे हुए हैं । मुझे जिम्मेदारी मिली की कुछ सैनिको के साथ उन पर रात के अँधेरे में हमला कर उन्हें ख़त्म कर दू। हम सब इसी काम से जा रहे थे की हमारी नाव तूफान में फंस गयी और पलट गयी । उसके बाद जो आखिरी चीज मुझे याद है वो ये कि मैं डूब रहा हु। इसके बाद मैं इस द्वीप पे कैसे पंहुचा ये मुझे पता नहीं और बाकि तो सब तुम जानती ही हो ।"
ऐसे ही हम बात करते हुए आगे अपबे रास्ते पे बढ़ रहे थे की अचानक बादल घिर आये और बारिश होने लगी । चूँकि अभी काफी लंबा रास्ता तय करना था तो बारिश की परवाह किये बगैर हम आगे बढ़ते रहे । धीरे धीरे शाम भी ढल आई और रोशिनी भी कम ही चली तो हम रात रुकने के लिए ठिकाना खोजना शुरू किया बहुत खोजबीन के बाद हमे एक बड़े पत्थरो की ओट में थोड़ी सी जगह सर छुपाने को मिली हम वही आराम करने के लिये रुक गए। बारिश अब और परवान चढ़ चुकी थी और थमने का नाम नहीं ले रही थी। हमारे भीगे शरीरों ने हमारे शरीर में ठिठुरन पैदा कर दी थी। किसी तरह हम दोनों अपने अपने शरीर को गर्म रखने की कोशिश कर रहे थे पर सब नाकाम था। कुछ देर बाद बारिश आखिर बंद हुयी तो हूँ दोनों सूखी लकड़ियों की तलाश करने लगे भगवान् की दया से कुछ लकड़िया हमे मिल गयी जो रात काटने के लिए काफी थी। फिर विशाला ने आग जलायी और हम दोनों अपना बदन सेंकने लगे । ऐसे ही बैठे बैठे जब मेरा शरीर अकड़ने लगा तो मैं पत्थर पे लेट गया ।
जलती आग की गर्मी भी मेरे शरीर की ठिठुरन को कम नहीं कर पा रही थी । अपनी जगह पे लेटे लेटे मैंने विशाला पे नज़र डाली तो उसका भी वही हाल था । मैंने अपनी दोनों टाँगे सिकोड़ के अपने सीने से लगा ली और सोने की कोशिश करने लगा। थकान अधिक होने के कारण धीरे धीरे नींद ने मुझे अपने आगोश में ले लिया।
मेरी नींद तब खुलती है जब मुझे अपने सीने पे कुछ रगड़ता हुआ महसूस होता है आँखे खोलता हु तो देखता हूं कि विशाला अपनी देह को मेरी देह से रगड़ रही थी जिससे हमारे शरीर में गर्मी उत्पन्न हो रही थी । मुझे ऐसा लग रहा था की मेरा पूरा शरीर ठण्ड से अकड़ गया है और विशाला की अपने शरीर को मेरे शरीर से रगड़ने की गर्मी से मेरा शरीर धीरे धीरे सामान्य हो रहा था। पर विशाला का शरीर मेरे अंदर कुछ और ख्याल उत्पन्न कर रहा था जिसके कारण मेरा लंड धीरे धीरे खड़ा होने लगा और विशाला की चूत पे रगड़ खाने लगा। शायद कुछ देर में उसकी चूत में भी आग लग गयी क्योकि उसका कामरस बहकर मेरे लंड और जांघों पे लगने लगा। अब हम दोनों ही उत्तेजना में सराबोर थे पर आपसी झिझक के कारण कोई पहल नहीं कर रहे थे। विशाला अभी भी अपने शारीर को मेरे शरीर से रगड़े जा रही थी बस अब उसने अपनी टाँगे मेरी कमर के साइड में कर ली थी जिसके कारण मेरा लैंड उसकी चूत की सिधाई में आ गया । उसने अपनी कमर को एक बार फिर मेरे शरीर पर रगड़ने के लिए उठाया और जैसे ही अपनी कमर मेरे पेट से रगड़ती हुई पीछे ले गयी मेरा खड़ा लंड फिसलते हुये उसकी गीली चूत में घुस गया । वो भी एकबार को चौंक के रुक गयी और मैंने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी । फिर न जाने उसे क्या सूझा की वो अपनी चूत को मेरे लंड पे दबाती चली गयी जिससे मेरा लंड और अंदर तक घुस गया। उसकी चूत अभी तक की मेरी चखी कबीले की सभी चूतो से कसी थी पर वो कुँवारी भी नहीं थी । विशाला भी खूब रफ़्तार में मेरे सीने पे अपने नींबू जैसे छोटे वक्षो को रगड़ते हुए चुदाई कर रही थी कुछ देर में ही मुझे लगा की अब मैं झड़ने के नजदीक हु तो मुझसे रहा न गया मैंने भी उसके नितम्ब को अपने हाथों में लिया और दबाना शुरू किया तो वो पागल सी हो गयी और खूब जोर जोर से अपनी चूत को मेरे लंड पे ऊपर नीचे करने लगी । जल्द ही हम दोनों झड़ गए और एक दूसरे से चिपके हुए ही सो गए।
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