RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
मेरी रणनीति के मुताबिक हमने बड़ी बड़ी चट्टानें ऊँची पहाड़ियों की चोटी से लुढ़का दी। लुढकने से उनका वेग इतना बढ़ गया की जब वो क़बीले पहुची तो न जाने कितनी झोपड़ियों और क़बीले वासियों को कुचलते हुए निकल गयी। उन चट्टानों ने क़बीले में इतना आतंक मचाया की पूरे क़बीले में अफरा तफरी मच गयी। इसी का फायदा उठा कर सैनिकों ने उनके अनाज के भण्डार में आग लगा दी। पूरे क़बीले वासी जब अनाज बचाने के लिए भागे तो सैनिको ने चुपके से पानी को दूषित कर दिया। फिर मेरे आदेशानुसार ये सब करने के बाद वो वापस लौट आये।
लौटते वक़्त मैंने विशाला से कहा " कपाला को ये पता चलना चाहिए ये हमने किया है।"
विशाला " हो जाएगा महाराज "
फिर हम क़बीले की तरफ वापस चल पड़े।
मैं अपनी कुटिया में बैठा ये सोच रहा था कि रानी विशाखा और रानी त्रिशाला को कपाला ने कहाँ छुपा रखा होगा तभी सेनापति विशाला कुटिया में प्रवेश किया।
विशाला " महाराज पुजारन देवसेना की दासी देवबाला और कपाला का एक दूत आपसे मिलने चाहते हैं।"
मैंने उससे कहा " उन्हें अंदर लाओ "
दासी देवबाला और उसके साथ एक दूत प्रवेश करता है । मेरे सामने आकर दोनों मुझे प्रणाम करते हैं ।
देवबाला " महाराज मैं पुजारन देवसेना का एक विशेष सन्देश लेके उपस्थित हूँ "
मैंने कहा " बोलो देवबाला "
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना के संदेश से पहले मेरी विनती है कि आप पहले कपाला के दूत की बात सुन ले।"
कपाला का दूत " महाराज सरदार कपाला ने आपको संघर्ष विराम करने और संधि वार्ता करने के लिए अपने क़बीले बुलाया है। "
मैंने देवबाला से कहा " पुजारन जी क्या सन्देश है ?"
देवबाला " महाराज पुजारन देवसेना चाहती हैं कि आप और कपाला के बीच संधि हो जाए। "
मैं कुछ देर सोचने के बाद कपाला के दूत से कहता हूं " संधि वार्ता पे आने के लिए मेरी दो शर्ते हैं पहली कपाला को मेरी दोनों रानियों को लेके आना होगा । दूसरी संधि वार्ता कपाला के क़बीले पे नहीं होगी। अगर कपाला को मेरी ये दोनों शर्तें स्वीकार्य हैं तभी वार्ता होगी अगर नहीं तो कपाला से कह देना की उसको मैं चैनसे बैठने नहीं दूंगा।"
मेरी बातें सुनके देवबाला बोली " महाराज क्षमा करें पर मैं कुछ कहना चाहती हूँ"
मैंने कहा " बोलो देवबाला क्या कहना चाहती हो ?"
देवबाला " महाराज अगर आप सही समझे तो ये संधि वार्ता देवसेना जी के मंदिर में ही सकती है।"
मुझे भी ये विचार सही लगा किसी अपरिचित जगह पे संधि वार्ता करने से अच्छा देवसेना के मंदिर पर की जाए।
मैंने कपाला के दूत से कहा " कह देना अपने सरदार से अगली पूर्णिमा को वो मेरी रानियों को लेके देवसेना के मंदिर पे पहुँचे अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहे।"
फिर देवबाला और कपाला का दूत कुटिया सर बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद विशाला कुटिया में आती है। मैं उससे सारी बाते बता देता हूं। वो मुझसे पूछती है " अब आपका क्या विचार है महाराज ?"
मैंने उसे अपनी पूरी योजना समझाना शुरू की " मैं और चरक देवसेना के मंदिर शान्ति वार्ता के लिए जाएंगे।"
विशाला " महाराज वहां अकेला जाना सही न होगा, वो भी चरक के साथ वो हमसे कुछ छुपा रहे हैं ?"
मैंने कुछ सोचते हुए कहा " तुम ठीक कह रही हो इसलिए तुम भी हमारे साथ चलोगी पर छुप कर किसी को पता न चले इस तरह।"
विशाला " ठीक है महाराज "
मैंने विशाला से कहा " चरक को मेरे पास भेजना जरा "
विशाला " जो आज्ञा महाराज "
विशाला के जाने के कुछ देर बाद चरक मेरे पास आता है ।
चरक "महाराज प्रणाम "
मैं चरक से बोला " चरक जी कपाला ने हमें शान्ति वार्ता पे बुलाया है ।"
चरक " तो आपने क्या सोच है महाराज ?"
मैं " मैं और आप अगली पूर्णिमा को कपाला से शांति वार्ता के लिये देवसेना के मंदिर जाएंगे।"
चरक " महाराज मैं और आप ही और सेनापति विशाला??"
मैं " वो क़बीले में रहकर यहाँ की सुरक्षा का जिम्मा उठाएंगी।"
चरक खुश होते हुए " उत्तम विचार है महाराज "
मैं " तो फिर हमारे वहां जाने की व्यवस्था की जाये।"
चरक " जो आज्ञा महाराज "
आखिर वो दिन आ ही गया जब संधि वार्ता होनी थी। मैं और चरक पहले ही वहां पहुच गए थे। साथ ही विशाला भी आ गयी थी पर वो छुप के मेरी हिफाजत कर रही थी।
खैर हम सब एक कुटिया में इकठ्ठा हुए । वहां पे देवसेना और देवबाला पहले से ही मौजूद थी। कुछ देर बाद भी कपाला ने भी कुटिया में प्रवेश किया। उसकी एक आँख पे काली पट्टी बंधी हुई थी जो उसे देखने में और क्रूर बना रही थी।
चरक ने हमारा परिचय कराते हुए कहा " महाराज ये सरदार कपाला है और सरदार ये कबीलों के सरदार महाराज अक्षय हैं।"
मेरी उम्मीद के विपरीत कपाला ने मुझे झुक के प्रणाम किया और बोला " महाराज की जय हो आपके बारे में बहुत सुना था आज आप से मिलके बहुत ख़ुशी हुई।"
मैंने भी उसका जवाब दिया " सरदार कपाला मैंने भी आपके बारे में बहुत सुना है।"
पुजारन देवसेना ने कहा " आप लोगो का परिचय हो गया हो तो संधिवार्ता शुरू की जाय ?"
मैंने कहा " पुजारन देवसेना मेरी संधि वार्ता की शर्त अभी पूरी नहीं हुई है ।"
सभी कपाला की तरफ देखने लगे तो कपाला ने गंभीर मुद्रा में कहा " पुजारन देवसेना और महाराज अक्षय मैं आपको बताना चाहता हु की रानी विशाखा और रानी त्रिशाला का अपहरण मैंने नहीं किया है आप लोगो को ग़लतफ़हमी हुई है।"
मुझे अब क्रोध आ गया मैंने आवेश में आके कहा " सरदार कपाला बहुत हो गया अब आप सीधे सीधे मेरी रानियों को मुझे लौटा दे नहीं तो परिणाम बहुत भयानक होगा ।"
कपाला ने शांत रहकर धीमे से कहा " महाराज आप ने दो बार मेरे क़बीले पे अकारण ही आक्रमण किया और मासूम क़बीले वालों की हत्या की और आप मुझ पर अपनी रानियों के अपहरण का झूठा आरोप लगा रहे हैं।"
मेरा क्रोध अब सातवे आसमान पे था मैं चिल्लाते हुए कहा " कपाला झूठ तो तुम बोल रहे हो पहले तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया था जब मैं कालरात्रि की पूजा के लिए यहाँ पुजारन देवसेना के मंदिर आया हुआ था। फिर तुमने मेरे क़बीले पे हमला किया जब तुम्हारी आँख में तीर लगा था फिर तुमने उसी युद्ध में मेरी रानियों का अपहरण कर लिया ।"
कपाला अभी भी शांत ही था वो बोला " महाराज मैंने पहले आपके क़बीले पे आक्रमण नहीं किया बल्कि पहले आपने सेनापति विशाला को भेज कर मेरे क़बीले पे आक्रमण करवाया।"
अब मेरा सर घूमने लगा मैंने चरक की तरफ देखा तो वो मुझसे बोला " महाराज मुझे पहले ही शक था कि सेनापति विशाला कुछ षड्यंत्र रच रही हैं । जब आप पुजारन देवसेना के यहाँ से कालरात्रि की पूजा कर के लौटे थे तो विशाला ने आपसे बताया कि आप की गैरमौजूदगी में कपाला के सैनिकों ने आक्रमण किया था जबकि मारे गए सैनिक कपाला के क़बीले के नहीं थे। मैं उस समय पूरी तरह से विश्वस्त नहीं था इसलिए मैंने आपको ये बात बताना उचित नहीं समझा पर विशाला ने आपको ये कहकर ये बात बताई की कपाला ने हमला किया था।"
मैं अब कुछ समझ नहीं पा रहा था मैंने पूछा " विशाला ने आखिर ऐसा क्यों किया ?"
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