Desi Porn Kahani अनोखा सफर
09-20-2019, 01:54 PM,
#18
RE: Desi Porn Kahani अनोखा सफर
अगला दिन मेरे लिए काटना मुश्किल हो रहा था मुझे बस इंतज़ार था कि कब रूपम चलने का संदेश लेके आये। काफी इंतज़ार के बाद आखिर वो घडी आ ही गयी रूपम ने मुझे निकलने का इशारा किया। हम दोनों क़बीले में सब की दृष्टि से बचते हुए निकल गए।
हम तेजी से कदम बढ़ा रहे थे और जल्दी से जल्दी क़बीले से दूर निकलना चाहते थे । काफी देर तक हम यु ही चुप चाप चलते रहे जब हमें लगा की हम क़बीले से काफी दूर निकल आये हैं तो हमने रुक के सुस्ताने की सोची। सूर्य सर के ऊपर आ चूका था हम एक पेड़ की छांव में आराम करने लगे। मुझसे कुछ ही दूर पर रूपम भी बैठ गयी। मैंने उससे पूछा " अभी और कितनी दूर चलना होगा ?"
रुपम " महाराज अभी 3 कोस और चलना है दिन ढलने तक हम पहुँच जाएंगे ।"
मैंने फिर पूछा " कौन कौन होगा वहां पे ?"
रूपम " महाराज मुझे नहीं पता बस ये जानती हूं कि देवी देवसेना वहां पे होंगी ।"
मैंने आगे बात बढ़ाते हुए उससे पूछा " तुम अपने पिता कपाला के खिलाफ जाके देवसेना की मदद क्यों कर रही हो ?"
रूपम " महाराज मैं अपने पिता से अत्यंत घृणा करती हूँ और उन्हें कभी सफल होता नहीं देख सकती।"
मैं " ऐसा क्यों आखिर वो तुम्हारे पिता हैं ?"
रूपम " महाराज मैं एक लड़के से बहुत प्रेम करती थी पर मेरे पिता को वो पसंद नहीं था क्योंकि वो दूसरे क़बीले का था । एक दिन जब हम सबसे छुप के एक दूसरे से मिल रहे थे तो मेरे पिता वहां पहुँच गए। उन्होंने मेरे सामने ही उसकी हत्या कर दी और मैं कुछ नहीं कर सकी । अब मेरी जिंदगी का एक ही उद्देश्य है कि मेरे पिता का कोई काम सफल न हो।"
अपनी कहानी सुनाते सुनाते उसकी आँखे गीली ही गयी। मैंने भी अब उसके जख्मों को कुरेदना उचित नहीं समझा । मैं अपनी आँखे बंद करके आराम करने लगा।
थोड़ी देर आराम करने के बाद फिर हम आगे बढे । शाम ढलते ढलते हम अपने गंतव्य स्थान तक पहुच गए। वहां पे देवसेना हमारा पहले से ही इंतज़ार कर रही थी । उसके साथ करीब 200 लोगो की सेना थी। इसी सेना के साथ हमें विशाला और कपाला की संयुक्त सेना से लड़ना था ।
मेरी पहुचते ही देवसेना ने मेरा परिचय उसके साथ आये अन्य क़बीले के सरदारों से करवाया फिर हम अपनी आगे की रणनीति के बारे में विचार करने लगे।
देवसेना " महाराज मेरी जानकारी के अनुसार विशाला और कपाला में संधि हो चुकी है और वो अपनी सेना के साथ इसी तरफ आ रहे हैं।"
मैं " कितने सैनिक होंगे उनके साथ ?"
देवसेना " करीब 400 "
मैं " कितना समय लगेगा उन्हें यहाँ पहुचने में ?"
देवसेना " कल दोपहर तक वो यहाँ पहुच जाएंगे "
मैं अब अपने दिमाग पर जोर डालने लगा और किस प्रकार विशाला और कपाला की सेना से मुकाबला किया जाए।
कुछ देर बाद देवसेना ने मुझसे पूछा " क्या सोच रहे हैं महाराज ।"
मैं " यही की हमारा संख्या बल कम है और विशाला से आमने सामने के युद्ध में हम इस संख्या के साथ नहीं जीत सकते।"
देवसेना " महाराज आपने अपनी युद्ध नीति से पहले भी कई युद्ध कम संख्या बल पे जीते हैं ये भी हम जीत लेंगे।"
मैं " नहीं देवसेना ये इतना आसान नहीं होगा क्योंकि इस बार हम कही छुपके नहीं बल्कि आमने सामने का युद्ध लड़ रहे हैं और विशाला और कपाला मेरी कुछ युद्ध नीतियों से पहले से परिचित हैं इसलिए उन्होंने इसकी तैयारी पहले से की होगी ।"
देवसेना " फिर महाराज हमे क्या करना होगा ?"
मैं " क्या तुम कुछ और क़बीलों को अपने साथ ले सकती हो जिससे हमारी संख्या कुछ बढ़ जाए ।"
देवसेना " महाराज ऐसा ही सकता है पर समय बहुत कम है संभवतः कल दुपहर को विशाला यहाँ पे पहुचे ऐसे समय में मुझे आपको अकेले छोड़ के नहीं जाना चाहिए ।"
मैं " तुम्हे जाना ही होगा क्योंकि उसके बगैर हम विशाला की सेना से नहीं जीत सकते । किसी भी तरह से तुम्हे सैनिकों का प्रबंध करके कल दुपहर तक यहाँ पहुचना होगा ।"
देवसेना " ठीक है महाराज मैं अपनी पूरी कोशिश करुँगी ।"
मैं " ठीक है फिर जाने से पहले कबीलों के सरदारों को मेरे पास भेजो मेरे पास कुछ योजनाएं हैं जिससे मैं विशाला की सेना का ज्यादा से ज्यादा नुक्सान करने की कोशिश करूँगा ।"
देवसेना " ठीक है महाराज "
मैं देवसेना को जाते हुए देखता हु और ये सोचता हूं क्या ये वापस आएगी या मुझे धोखा देगी । जो भी हो मेरे पास ये आखरी रास्ता था और शायद ये मेरी आखरी युद्ध भी होगा।

उम्मीद के मुताबिक विशाला की सेना दुपहर को हमारे साथ उपस्थित थी । उसके साथ विशाखा और कपाला भी थे । यहाँ मेरी तरफ से अभी तक देवसेना का कोई अता पता नहीं था मेरी सेना भी अब तक घट के आधी रह गयी थी क्योंकि मैंने बाकी सैनिको को कुछ और काम सौंप रखा था। अब दृश्य ये था कि एक तरफ विशाला की 400 सैनिको की सेना उसके सामने मेरी 100 सैनिको की सेना ।
विशाला मेरी सेना देख के काफी उत्साहित हो गयी थी वो ये खेल जल्द से जल्द ख़त्म करना चाहती थी इसलिए उसने बिना अपने सैनिको को आराम दिए ही युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश दे दिया । ये शायद मेरे लिए शुभ संकेत था क्योंकि उसके सैनिक काफी देर से चलते हुए यहाँ पहुचे थे जिसके कारण निश्चित रूप से वे थक गए होंगे।
युद्ध से पहले मुझे एक बार मौका देने की औपचारिकता के तौर पर उन्होंने संवाद करने हेतु मुझे बुलाया।
दोनो सेनाओं के बीच में हम दोनों संवाद करने पहुचे। इधर से सिर्फ मैं था और उधर से विशाला विशाखा और कपाला ।
मेरे पहुचते ही विशाखा और कपाला ने झुक के मुझे प्रणाम किया परंतु विशाला वैसे ही खड़ी रही।
मैंने कहा " बताइये आप लोग क्या कहना चाहते हैं ?"
सबसे पहले कपाला बोला " महाराज हम चाहते हैं कि आप अपनी सेना के साथ हमारे सामने आत्मसमर्पण कर दे तथा विशाला को सरदारों का सरदार मान ले इस व्यर्थ के खून खराबे से बचा जा सकता है।"
मैं " कपाला आपने मुझे शरण दी थी और मेरी रक्षा का वचन दिया था केकिन अब आप मुझे धोखा दे कर मुझसे युद्ध करने आये हैं अगर अभी भी आप क्षमा मांग के अपनी सेना के साथ मेरी तरफ आ जाएं तो मैं आपको क्षमा कर दूंगा।"
तब तक विशाला को क्रोध आ चुका था " वो बोली मेरे पिता के हत्यारे तेरे पास इतनी सेना भी नहीं है कि तू हमारा सामना कर सके इसलिये तू कोई शर्त रखने के काबिल भी नहीं है।"
मैंने संयम से बोला " मैंने आत्म रक्षा में वज्राराज को मारा इसलिये मैं किसी का हत्यारा नहीं हूं। मैंने तुम्हे और तुम्हारी माँ को शरण दी और मरने से बचाया इसलिए मैं उसका दोषी हु । अब मैं तुम दोनो की मृत्यु से ही उसका पश्चाताप करूँगा ।"
विशाला " फिर अब बात करने को कुछ भी नहीं है अब युद्ध ही होगा तुम्हारे चींटी जैसी सेना को मैं रौंद दूंगी।"
मैं " चींटी और हाथी की कहानी तो तुमने सुनी ही होगी और शायद तुम लोग जानते भी हो मैं कम सेना के साथ भी तुम लोगों को हरा सकता हूँ ।"
मेरी बात सुनके विशाखा और कपाला के चेहरे का रंग ही उड़ गया। विशाखा ने बात सँभालने की कोशिश की " महाराज जो हुआ सो हुआ अब आप सब भूल के हमारे साथ आ जाइये सब पहले जैसा हो जाएगा ।"
मैं " कुछ पहले जैसा नहीं होगा अब सिर्फ युद्ध ही होगा "
ये कह कर मैं वापस अपनी सेना के पास लौट आया।
अब हमारी सेना एक दुसरे के आमने सामने थी और एक दुसरे से युद्ध करने के लिए पूर्ण रूप से तैयार थी | पर मैंने अभी अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश नहीं दिया मैं चाहता था की विशाला खुद आगे बढे और मेरे बिछाये जाल में फंस जाए | मेरी उम्मीद के हिसाब से ही विशाला युद्ध समाप्त करने की जल्दी में थी इसलिए उसने अपनी सेना को आगे बढ़ने का आदेश दे दिया अब मैं भी आराम से मछली के जाल में फंसने का इंतज़ार करने लगा |

विशाला की सेना पैदल ही आगे बढ़ रही थी | एक जगह पहुचने के बाद मैंने अपने साथ खड़े सैनिक को इशारा किया तो उसने मशाल जलाई और इशारा किया | उसके इशारा करते ही दस तीरंदाज आगे आये और अपनी तीरों को कमान पे चढ़ा लिया | फिर मेरे इशारे पे मशाल पकडे सैनिक ने उनके तीरों के सिरे पे आग लगा दिया | मैंने फिर इशारा किया तो तीरंदाजो ने अपने तीर छोड़ दिया | वो तीर जाके विशाला के बढ़ते सैनिको के पास पड़े घांस फुंस के ढेरो पे पड़ी जो धीरे धीरे जलने लगे | कुछ ही देर में उन जलते हुए ढेरो ने खूब धुयाँ फेंकना शुरू कर दिया | मेरा पहला दांव कामयाब हो गया गीले घांस फुंस के ढेरो से निकलते धुएं ने जल्दी ही विशाला की पूरी सेना को घेर लिया | अब मैंने सैनिक को दूसरा इशारा करने को कहा | सैनिक ने मशाल से दूसरा इशारा किया | इशारा मिलते ही मेरे करीब ५० सैनिक जो वही पास में ही छुपे हुए थे विशाला के सैनिको पे टूट पड़े | कुछ ही देर में चीख पुकारो की आवाजे गूंजने लगी | मेरे आदेशानुसार मेरे सैनिक थोड़े देर बाद वहां से बाहर निकल कर मेरी सेना में आ मिले | उम्मीद के मुताबिक धुंए के कारण कुछ दिखाई ना पड़ने के कारण विशाला के सैनिक अपने ही साथियों पे टूट पड़े | काफी देर तक उनपे यही ग़लतफहमी हावी रही |

अब मैं अपने दुसरे दांव का इंतज़ार करने लगा | कुछ ही देर में मेरा वो दांव भी सफल हो गया जब मुझे ढोल नगाडो की आवाजे सुनाई दी| तब तक धुवां छट चुका था और सामने का दृश्य काफी ही भयावह था | चारो ओरे लाशें ही लाशें थीं | विशाला के सैनिक तितर बितर हो गए थे जिन्हें वो चिल्ला चिल्ला के इकठ्ठा कर रही थी | कपाला भी बाकी सैनिको को इकठ्ठा करने की कोशिश कर रहा था | रानी विशाखा के पैर में शयद चोट लग गयी थी वो एक जगह बैठ हुयी थी | वो सब इसी में व्यस्त थे की मेरा दूसरा वार हुवा | जंगली भैंसों का एक झुण्ड उनकी एक बगल से उनकी तरफ तेजी से दौड़ता हुआ आ गया जिसके पीछे मेरे सैनिक ढोल नगाड़े बजाते हुए आ रहे थे | नतीजा जैसा मैंने सोचा था उससे भी भयावह था विशाला के सैनिक जो अभी तक पहले हमले से संभले भी नहीं थे की दौड़ते हुए जंगली भैसों के पैरो तले कुचले जाने लगे | रानी विशाखा जो चलने में असमर्थ थी रौंद दी गयी उनकी शिथिल लाश देखके मेरे कलेजे को ठंडक पहुची एक गयी अब बस विशाला और कपाला बचे थे |

मैंने देखा की ये विशाला की सेना पे हमला करने का उत्तम समय था क्युकी वो अभी तितर बितर थे मैंने अपनी सेना को इशारा किया तो वो विशाला की सेना पे टूट पड़े | मैं भी उनके साथ हाथ में तलवार लिए विशाला के सैनिको से भिड गया | जो भी सामने आया उसे काटता हुवा मैं आगे बढ़ रहा था | हमारी सेना ने विशाला की बची खुची सेना में कोहराम मचा दिया था |

कपाला ने जब देखा की उसकी सेना पराजित हो रही है तो मुझपे हमला करने की सोची जिससे मेरी मृत्यु के बाद मेरी सेना अपने आप हार मान ले | वो मेरे सामने एक तलवार लेके कूद पड़ा| मेरे एक एक वार का वो समुचित जवाब दे रहा था | मुझे बहुत अच्छी तलवारबाजी तो आती नहीं थी और कपाला गजब का तलवार चला रहा था | अचानक कपाला का एक वार मेरे वार को छकाते हुए मेरे सीने पे घाव करता हुआ निकल गया | घाव से रक्त रिसने लगा | मुझे लगा की इस तरह तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाउँगा | मैं जल्दी से कपाला की युद्ध कला में कोई कमी ढूँढने लगा |मैं एक कदम पीछे हुआ तो कपाला तलवार को जोर से मेरा सर काटने के लिए घुमाया मैं झुकके उसके वार के नीचे से निकल के उससके पास पंहुचा और अपनी पूरी तलवार उसके सीने में भोंक दी| एक चिंघाड़ के साथ कपाला अपने घुटनों पे आ गया | मैंने जल्दी से अपनी कटार निकाल कर उसका गला रेत दिया | कपाला का बेजान शारीर जमीन पे ढेर हो गया |

कपाला के मरते ही विशाला के सैनिको में अफरा तफरी मच जाती है | विशाला अपने सैनिको को नियंत्रित करने का प्रयास करने लगती है | मुझे लगता है की विशाला को ख़त्म करने का यही सही मौका है इसलिए मैं तलवार लेके विशाला की तरफ बढ़ता हु साथ ही मैं अपने सैनिको को विशाला के सैनिको को ख़त्म करने का आदेश देता हु |

कुछ ही देर में मैं और विशाला आमने सामने होते हैं | मेरे सैनिक विशाला के सैनिको को चुन चुन के ख़त्म करने लगते हैं |अब युद्ध महज एक औपचारिकता ही थी जिसका अंत विशाला की मृत्यु से होना था | मैं और विशाला एक दुसरे की आँखों में घूर रहे होते हैं |
मैंने विशाला से कहता हु " अभी भी वक़्त है विशाला अपनी हार मान लो तुम्हारे सैनिक मरने से बच जायेंगे |"
विशाला की आँखों में खून उतर चुका था वो मेरी तरफ तलवार लेके लपकती है |

पहला वार उसने ही किया जिसे मैंने अपनी तलवार से रोक दिया | अब हम दोनों में भीषण युद्ध शुरू हो चुका था | विशाला किसी घायल सिहनी की तरह मुझ पे वार पे वार किये जा रहे थी जिसका मैं प्रतिकार किये जा रहा था | अभी तक हम दोनों एक दुसरे पर किसी तरह का घातक वार नहीं कर पाए थे | अचानक मैंने देखा का विशाला जब भी मेरी तरफ जोर से तलवार से प्रहार करने की कोशिश करती है तो अधिक जोर लगाने के कारण उसकी दायीं तरफ खुल जाती है | अब मैं इन्तेजार करने लगा की कब विशाला वैसे प्रहार करे |आखिर वो भी हुआ विशाला ने मेरी तरफ जोर से प्रहार करने की एक और कोशिश की मैंने भी घूम कर उसका वार बचाया और उसकी दाई ओरे जाके उसके बाजू पे एक घातक प्रहार किया |मेरी तलवार उसकी बाजू में अन्दर तक घाव कर गयी फलस्वरूप विशाला कराह के जमीं पे आ गिरी | मैंने उसे उठने का मौका दिया पर शायद घाव गहरा था और वो दर्द के कारण उठ नहीं पा रही थी | मैं अब उसकी जीवन लीला समाप्त करने के लिए आगे बढ़ा | उसके पास पहुच कर मैंने जैसे ही उसका सर धड से अलग करने के लिए तलवार उठाई एक जोर की युद्ध नाद ने मेरा ध्यान भटका दिया | मैंने पीछे घूम के देखा तो चरक कपाला के काबिले के साथ मेरे सैनिको पे टूट पड़ा था और वो अब मेरे सैनिको पे भरी पड रहा था |
मेरा पल भर के लिए विशाला से दृष्टि हटाना मेरे लिए घटक हो गया | विशाला ने तब तक एक टूटा हुआ तीर उठा के मेरे पैर में भोक दिया | वो तीर मेरा पैर चीरता हुवा आर पार हो गया | अब मैं भी जमीं पर गिर पड़ा| एक असहनीय पीड़ा मेरे पैरो से उठ कर मेरे मष्तिष्क तक जा रही थी | उधर विशाला भी अपने बांह की चोट से उबार नहीं पायी थी पर अब वो भी धीरे धीरे अपने साँसे नियंत्रित कर रही थी | उधर चरक अपने सैनिको के साथ मेरी तरफ बढ़ रहा था | मेरे और उसके बीच अब मेरे ज्यादा सैनिक नहीं बचे थे |
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