Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-05-2019, 01:38 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
अगले दिन मैने लिली को देखा तो मैने सोचा यार इतने ज़ोर का माल साला मेरी नज़र से कैसे बच गया मैं सोचने लगा कि इसको तो चोदना ही पड़ेगा पर वो तो भाई की सेट्टिंग थी तो समस्या थी तो मैने एक प्लान बनाया और सरोज को फोन किया और कहा कि मामी मेरी एक समस्या है जिसका समाधान आप ही कर सकती हो तो वो बोली बताओ मैने कहा कि मामी आपको मेरे लिए किसी को एक बार अपनी चूत देनी पड़ेगी तो वो बोली किसको तो मैने कहा अशोक भाई को तो वो बोली पागल है क्या मोहल्ले का मामला है और फिर वो तो मेरे बेटे जैसे ही तो है उसकी मम्मी मेरी सहेली है तो मैने कहा मैं भी तो आपके बेटे सा ही हू जब मुझसे चुद सकती हो तो उस से भी चुद लेना प्लीज़ बहुत समझाने पर मामी मानी वो बोली देख मैं बस तेरे क़म के लिए उस को दे रही हू


अब बारी थी अशोक से लिली के बारे मे पूछने की मैने उसको कहा भाई मुझे भी लिली की दिलवा दे तो वो भड़क गया और बोला यार वो मेरी सेट्टिंग है वगेरह वगेरह तो मैने कहा कि भाई मैं भी बदले मे तुझे एक मस्त चूत दिलवा दूं तो ये सुनते ही वो बोला कौन किसकी जल्दी बता तो मैने कहा सरोज की तो वो बोला सरोज चाची की क्या बात कर रहा है तू कब कैसे तो मैने कहा तू आम खा ना भाई बोल मंजूर है या नही तो वो बोला भाई मुझे थोड़ा टाइम दे मैं लिली से बात करता हू फिर बताउन्गा इधर इन सब बातों के चक्कर मे मैं बड़ी मामी के बारे मे भूल ही गया अब वो नाराज़ थी वो अलग शाम को भाई ने बताया कि यार लिली मान ही नही रही तो मैने कहा की ठीक है अब तुझे सरोज की चाहिए तो मुझे लिली की दिलवानी ही पड़ेगी चाहे कुछ भी कर . वो बोला कोशिस कर तो रहा हू


इधर मैने कौशल्या को कहा कि मामी मेरी छुट्टियाँ क्या ऐसे ही बीत जाएँगी प्लीज़ मेरा कुछ तो ख़याल करो तो वो बोली ठीक है चाहे कुछ हो जाए आज रात तेरी प्यास ज़रूर बुझा दुगी तो मैने कहा कि कैसे तो वो बोली कि रात को मैं अपने घर पे रहूंगी तेरे मामा तो यहाँ पर रहेंगे तू वही आ जाना फिर मैं अड्जस्ट कर लुगी तो मैने कहा ठीक है डार्लिंग जब मामी जाने लगी तो उन्होने मामा से कहा कि बच्चे भी यही है तो मामी मेरा नाम लेते हुए बोली कि इसको भी घर ले जाती हू इधर गम के माहौल मे ये थोड़ा सा उदास है तो थोड़ा सा फ्रेश भी हो जाएगा तो मामा बोले हम ठीक है वैसे भी फौज मे परेशान ही है बेचारा फिर मैं और कौशल्या मामी उनके घर चल पड़े


मामी आज बड़ा ही मुस्कुरा रही थी उनके घर पहुचते ही मामी बोली मैं पहले नहा लेती हू पूरा शरीर पसीने से भरा पड़ा है तो मैने कहा चलो साथ ही नहाते है तो वो बोली कि नही कही कोई आ गया तो तुम बाहर होदि पे नहा लो तो मैने अपने कपड़े उतारे और पानी के होद मे उतार गया ठंडे पानी मे जाते ही मेरी सारी थकान एक दम गायब ही हो गयी मैं बहुत देर तक ठंडे पानी मे पड़ा रहा फिर मैं बाहर आया और कपड़े पहने जब मैं अंदर गया तो मामी ने बस एक ढीली सी मॅक्सी ही डाल रखी थी वो भी आधे से ज़्यादा गीली थी उनके बालो से टपकती बूँदो की वजह से उनकी पीठ पूरी भीगी हुई थी


मैं सीधा उनके पास गया और उनके होंठो पर अपने होंठ रख दिए और उनके बतख से होंठो का रस निचोड़ने लगा मामी ने भी एक मजेदार किस दिया और फिर बोली कि तुमसे कभी भी सबर नही होता है तुम हमेशा ही इतने उतावले रहते हो तो मैने कहा कि मामी चार साल बाद आज आपकी चूत मारने का मौका मिला है अभी भी उतावला ना होऊ तो कैसे चलेगा तो मामी बोली रूको बाहर का दरवाजा तो बंद कर लू मामी ने दरवाजा बंद किया और बोली आँगन मे ही चारपाई बिछा लेते है यही पर सोएंगे तो मैने कहा कि मामी आज की रात कौन सोएगा तो मामी मुझे अपनी आँखे दिखाने लगी खाना वाना खाने के बाद रात को कोई साढ़े 9 बजे मैं कौशल्या मामी के साथ बिस्तर मे लेटा हुआ था मेरे हाथ मामी के शरीर पर साँप की तरह रेंगने लगे थे मामी बोली मुझे तुम्हारी बहुत याद आती थी तुम्हारे बारे मे सोच कर ना जाने कितनी बार मैने अपनी चूत मे उगली करके ही गुज़ारा किया है तो मैने कहा मामी कुछ ऐसा ही हाल मेरा है अब बात मत करो और बस मुझ मे खो जाओ…

अट प्रेज़ेंट
मैं क्या कहूँ तुझे ज़िंदगी अगर तू इतनी कठोर है तो मुझे कभी तू चाहिए ही नही थी मैं अकसर यही सोचता रहता हू कि लोग कहते है कि ज़िंदगी खूबसूरत होती है फिर तू ऐसी क्यो है क्यो कोई रंग नही है मेरे इस जीवन मे क्यो मैं ऐसा हू पर आख़िर मैं तुम्हे क्यो दोष दे रहा हू वो मैं ही तो था जिसने इस राह को चुना था पर अब मैं तंग आ चुका हू अपने इस बन्जारेपन से एक घुटन सी महसूस करता हू मैं अपने आप मे सिमट कर रह गया हू कोई भी तो नही है पास मेरे बस मैं हू और मेरा परिचय है ज़िंदगी मैं अक्सर सोचता हू कि तू इतनी बेरहम कैसे है अगर तू ऐसी है तो मौत कैसी होगी क्या बो खूबसूरत होगी या वो भी बस तेरी तरह एक छलावा भर ही है भटक ता रहता हू मैं यहाँ से वहाँ मैं वो मुसाफिर हू जिसकी कोई मंज़िल कोई ठिकाना नही है बस एक खाना बदोश ज़िंदगी ज़ीनी है

मैं हू कौन, एक सैनिक या एक कातिल एक प्रेमी या एक आवारा बहुत कोशिश करता हू खुद को एक पहचान देने की पर नाकामी ही मिला करती है मैं घुट ता रहता हू हर पल एक लाश ही हू मैं बस फरक इतना है कि सांस कुछ बाकी सी है इस सफ़र मे साथी तो कई मिले पर हमसफ़र पास होकर भी दूर है मैं आज एक ऐसे मुकाम पर आ खड़ा हू कि वापिस जाने को कोई राह दिखाई ही नही देती है बस अकेलेपन को ही साथ लेकर चलना है यार-दोस्त सन्गि-साथी कभी मिले ही नही जो भी मिला बस लूट ही ले गया थोड़ा थोड़ा किसी ने देखा ही नही कि इस सीने मे भी एक चीज़ धड़कती है जिसे लोग दिल कहा करते है ये खूबसूरत वादियाँ भी मेरे दर्द को कम नही कर पाती है इतने नकाब है मेरे कि अब भूल ही गया हू मैं कि असल मे मैं हू कौन एक आम इंसान या कोई छलावा दिल मे एक उमंग थी तो मैने ये राह चुन ली पर कांटो के इस सफ़र मे रोज मेरे पाँव छिलते गये हर अपना मुझ से दूर और दूर होता गया घर छूट गया अपने रूठ गये पर सबर कर लिया कि देश तो अपना ही है लोग अपने है पर कौई साला कदर करता है हीरो की और फिर क्या फरक पड़ता है हम रहे या ना रहे सबकुछ अपना दाँव पर लगा दिया सोचा था कि एक छोटा सा आशियाना अपना भी होगा पर साली तकदीर जब लेने पे आई तो कुछ भी बाकी ना छोड़ा सब कुछ वसूल कर लिया मैं हैरान परेशान सोचता रहता हू कि आख़िर मैने कौन सी ग़लती करदी क्या गुनाह हो गया मुझ से ऐसा कि ये सज़ा मिली है मुझ को मैं तो हार ही चुका हू ज़िंदगी तेरे आगे बस इतनी सी मेरी गुज़ारिश मान ले और मुझे इस दर्द से आज़ाद कर दे


मौत तू मुझे कोई दुख ना देना मैं बहुत थक गया हू तुझसे पनाह माँगता हू मैं बहुत भाग लिया अब रुकना चाहता हू थमना चाहता हू मुझे अपनी बाहों मे ले ले ना तू कम से कम तू तो मेरी बात मान ले आख़िर कब तक मैं यू ज़िंदा रहूं अब कुछ भी तो नही है ना वो गाँव मेरा है ना वो घर मेरा है अब सर्दियो मे लहराती वो सरसो की फसल नही दिखती है मुझे ना गाँव मे नीम के पेड़ पे झूला झूलती वो मुटियारे दिखती है सब कुछ खो गया है इस चका चौध मे वैसे तो अब पूरी दुनियाँ ही मेरी है पर वो छत कहाँ है जहा मैं दो पल आराम कर सकूँ कहाँ है वो आँगन जहाँ मैं बैठ कर अपने बचपन को याद कर सकूँ कुछ भी तो नही है फिर क्यो मैं इस ज़िंदगी का एहसान लूँ आख़िर क्या लगती है ये मेरी होगी वो बहुत खूबसूरत होंगी उसमे हज़ारो रंग पर मैं क्यों फिर बेरंग हू है कोई जवाब तेरे पास

बुरा लगता है मुझे जब लोग साले समझ ही नही पाते है कि क्या खोते है मेरे जैसे लोग दिन महीनो मे और महीने साल मे बदल जाते है पर हम मजबूरी का घूँट पी कर रह जाते है हाँ सही है कि हम अपनी तकदीर खुद लिखते है पर किस के लिए कोई नही समझता बहुत दर्द होता है बदन मे पीठ ज़ख़्मी है करवट नही बदल पाता हू मैं शूकर है हाथ सही सलामत है और थॅंक्स टू टेक्नालजी जिसने ये आइपॅड जैसे गॅड्जेस्ट्स बनाए जिनके सहारे मैं अपने मन की बात आप तक पहुचा पाता हू कल पूरी रात दर्द से कराहता ही रहा कभी कभी सो नही पाता हू इसको मैं सोच ता हू कि काश कोई अपना होता जो मेरा थोड़ा दर्द बाँट लेता पर अब तो आदत सी हो गयी है दर्द मे भी मुस्कुराने की मेरी इन भीगी आँखो मे भी कुछ सपने है जो मैं शायद कभी पूरा ना कर पाऊ सबकुछ पैसा नही होता अगर होता तो आज मैं दुखी नही होता कभी जब घर की याद आती है तो कलेजा चीर जाती है तब दारू का पेग भी गम भुलाने मे कोई मदद नही कर पाता है इच्छा होती है कि बुढ़ापे मे घर वालो का सहारा बनू उनकी राह देखती आँखो का सुना पन दिखता है मुझे पर मजबूर हू तकदीर के हाथो
क्या लिखू इन कागज के टुकड़ो पे अब कुछ बाकी ना रहा जबसे छूटा तेरा साथ अपना कोई साथी ना रहा
बस मैं हू और ये अधूरी हसरते है और एक ये दिल है जो साला मानता ही नही है क्या करू
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RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है - by sexstories - 10-05-2019, 01:38 PM

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