Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:20 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
निशा ने फटा फट चेंज किया तो फिर मैने गाड़ी फिर से स्टार्ट कर दी पर हर कुछ मीटर्स बाद मेरी धड़कने बढ़ती ही जा रही थी और फिर एक जगह ऐसी आई जहाँ मैने गाड़ी को रोक दिया और बाहर उतर गया , ये मिता के गाँव का अड्डा था लगता था जैसे आज भी वो आएगी और ऑटो का इंतज़ार करेगी, वो सब कुछ , वो सुनहरे दिन मेरी आँखो के सामने आ गये मैं अपने आप को रोक ना सका मैं दौड़ कर उस जगह गया जहाँ पर वो खड़ी होती थी वो पेड़ आज भी खड़ा था हमारी प्रेम कहानी के साक्षी के रूप मे

हमारी मोहब्बत भी तो कुछ ऐसी ही थी पर अफ़सोस कि अमे मुकम्मल जहाँ नसीब ना हो पाया, आँखो के सामने वो यादे थी जब वो स्कूल ड्रेस पहने टेंपो का इंतज़ार किया करती थी पर दोस्तो तकदीर पर किसका ज़ोर चलता है मेरे जैसे आम इंसान का तो बिल्कुल नही काफ़ी देर हो गयी थी मुझे खड़े हुए वहाँ पर पर मैं कर भी तो कुछ नही सकता था दिल कह रहा था कि काश कही से वो दौड़ती हुई आए और मेरे गले लग जाए पर ऐसा कहाँ मुमकिन था

तो भारी मन से अपने कदमो को पीछे खीचा कार स्टार्ट की और बस अब सीधा घर ही जाकर रुकना था , गाँव जैसे ही करीब आया दिल मे एक हलचल सी मच गयी थी कुछ भी कहो आप लोग अपना घर तो अपना ही होता है मेरे जैसे ख़ानाबदोश लोग भटकते है इस गली से गली आज यहाँ कल कही ऑर पर जैसा भी था अपना भी एक घर था एक परिवार था निशा बोली घर फोन करदो मैने कहा अब पहुच ही तो गये है अब क्या फोन करना वैसे भी गाँव मे लोग जल्दी उठ ही जाते है

निशा ने प्यार से मेरे गाल को सहलाया और अब मैने गाड़ी अपने घर के रास्ते पर मोड़ दी बस कुछ मिनिट की दूरी थी और वो भी पार हो गयी, घर का दरवाजा बंद था मैने खड़काया कुछ देर बाद चाची ने खोला मुझे देखते ही उनके होटो पर एक गहरी मुस्कान आ गयी उन्होने मुझे गले से लगाया और बोली आ गये मैने कहाँ जी आ गया , तभी निशा भी आ गयी बॅग्स वग़ैरा लेकर चाची ने उसको भी गले से लगाया

हम अंदर जाने ही वाले थे कि चाची ने निशा को दरवाजे पर ही रोका और कहा कि दो मिनिट रूको हमारी बहू के रूप मे तुम पहली बार आ रही हो मैं अभी आती हूँ चाची दौड़ कर गयी और आरती की थाली ले आई उसके पीछे पीछे मम्मी भी आ गयी, उन्होने भी निशा को गले से लगाया कुछ फॉरमॅलिटीस पूरी हुई और फिर हम आए अंदर तो पता चला कि पापा बाहर घूमने गये थे चाची चाइ-नाश्ता बनाने लगी मैं हॉल मे चला गया

दीवार पर एक साइड मे मेरी दादी की तस्वीर रखी थी, मैने उसको प्रणाम किया और उसके पास मे ही थी एक बड़ी सी तस्वीर मिथ्लेश की उसका वो मुस्कुराता हुवा चेहरा अब बस तस्वीरो मे ही था, लगता था जैसे अभी के अभी बोल पड़ेगी ,क्यो चली गयी वो मुझे छोड़ कर क्यो थोड़ा सा इंतज़ार और ना हो सका था उस से,मैने जेब से रुमाल निकाला और उस तस्वीर को पोछने लगा हालाँकि वो ज़रा भी धूल भरी नही थी

तभी किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा, मैने देखा तो पापा थे मैने पैरो को हाथ लगाया और फिर उनके साथ आकर सोफे पर बैठ गया बाते होने लगी , चाइ भी आ गयी थी और प्यारी साक्षी भी आ गयी थी चाचू चाचू कहते हुए तभी मुझे याद आया कि उसके लिए तो कुछ लेकर आया ही नही तो बुरा सा लगा पूरा परिवार बाते कर रहा था कि तभी चाचा ने कुछ कहा

वो बोले, मनीष यार तूने अपने ही गाँव की लड़की से ब्याह कर लिया डर है कही गाँव का माहौल ना बिगड़ जाए भाई चारे वाले टाँग अड़ाएँगे मैने कहा चाचा आप टेन्षन ना लो मैं हॅंडल कर लूँगा और रही बात निशा के काका-ताऊ की तो उन सालो ने कभी संभाला ही नही इसे तो किस हक़ से वो टाँग अड़ाएँगे और वैसे भी किसी ऐरे गैरे की पत्नी ना है वो अब कोई बोल के तो देखे तो वो बोले हाँ वो तो है पर गाँव का मामला है मैने कहा आप चिंता ना करो

अब यार इस चक्कर मे ना जाने कितनी प्रेम कहानिया बस कहानिया बन कर ही रह गयी थी मैं तो खुद भुगत चुका था इस बात को पर अब निशा मेरी थी बातों बातों मे दोपहर हो गयी थी मम्मी बोली तुम लोग आराम करो शाम को मिलते है मैने कहा नही मैं और निशा मंदिर जा रहे है तो वो बोली ठीक है पर जल्दी ही आ जाना

मैने कहा जी जल्दी ही आ जाएँगे मैने निशा से कहा कि चलें तो वो बोली मैं बस दस मिनिट मे आती हूँ, मैने चाची को कहा कि अपनी फेव. मटर-पनीर की सब्ज़ी बना दो आते ही खाना खाएँगे घर के पिछली हिस्से मे बाइक खड़ी थी कपड़ा हटाया तो देखा कि बिल्कुल सॉफ सुथरी थी जबकि लगता था कि जैसे मुद्दते ही बीत गयी थी उसको चलाए हुवे पापा बोले तुम्हारी मम्मी डेली ही इसको सफाई करती है तो मैं मुस्कुरा गया

फिर मैं और निशा उड़ चले काफ़ी दिनो बाद बाइक चला रहा था इस गाड़ी से भी कुछ यादे तो जुड़ी ही थी मैं और मिथ्लेश बहुत घूमे थे इस पर, मंदिर पहुच कर सबसे पहले देवता के दर्शन किए, गाँव पहले से बहुत ज़्यादा बदल गया था लोग भी बदल गये थे जो खाली ज़मीन पड़ी थी उधर अब एक बड़ा सा पार्क बना दिया गया था जो बगीची हुवा करती थी उस के पास से एक रोड बना दिया गया था तो वो भी बस नाम की बची थी

निशा बोली सबकुछ बदल गया हैना मैने कहा हाँ यार चल तालाब पर चलते है तालाब का भी कुछ काम करवाया गया था सीढ़िया बना दी गयी थी, पर मैं और निशा कच्चे किनारे की तरफ बढ़ गये पानी मे कमल के फूल खिले थे एक साइड मे सच ही तो था वक़्त अपनी गति से भाग रहा था लोग आगे को बढ़ गये थे अपनी अपनी मंज़िलो की ओर पर इस मुसाफिर का सफ़र अभी भी जारी थी शायद इसलिए भी क्योंकि मैं खुद अपने आप को वक़्त के अनुसार ढाल नही पाया था

निशा मेरे हाथ को सहलाते हुए बोली, क्या सोचने लगे मैने कहा यार अपना गाँव तो बिल्कुल ही सहर बन गया है अब वो बात कहाँ रही वो बोली हम भी तो कहाँ रहे पहले जैसे मैने कहा क्या तुम अपने घरवालो से मिलने जाओगी वो बोली उनसे मिलने का मूड तो नही है पर अपने घर मे ज़रूर थोड़ा टाइम गुज़ारुँगी मैने कहा चलो फिर वो बोली आज नही कल गाँव मे अपने बस दो तीन ही ठिकाने होते थे जहा बचपन मे उठ बैठ जाया करते थे

एक मंदिर, एक जंगल मे होता था नहर की पुलिया पर दोस्त तो कभी बने ही नही थे आवारापन मे ही कटी जिंदगी अपनी कुछ समझता उस से पहले आर्मी मे हो गये और फिर धक्के खाने शुरू हुवे ज़िंदगी के करीब घंटा भर उधर रहने के बाद हम घर आ गये खाना वाना खाया निशा थकि सी थी तो वो सोने चली गयी थी सब अपना अपना काम कर रहे थे मैं अनिता भाभी के पास चला गया वो घर के बाहर चबूतरे पर कपड़े धो रही थी

मैने कहा आओ भाभी कुछ बाते करते है, तो वो बोली हम बस कुछ कपड़े पड़े है ये धो लूँ फिर फ्री ही हूँ तो मैं वही पेड़ की नीचे बैठ गया भाभी से भी एक अजीब सा ही रिश्ता था जो सिर्फ़ वो या मैं ही समझते थे हालांकीी हमारे रिश्ते मे सेक्स भी था पर कोई लालच नही था, ये भी एक फीलिंग थी जो आसानी से नही समझ सकते एक ऐसा रिश्ता जो ग़लत होकर भी अपनी जगह सही था

फिर हम लोग उपर भाभी के कमरे मे आ गये, मैं भाभी के बेड पर लेट गया वो मेरे पास बैठ गयी बातों का सिलसिला शुरू हुआ वो बोली कमजोर हो गये हो काफ़ी मैने कहा भाभी बस जी रहा हूँ तो वो बोली कब तक ऐसा चलेगा अब निशा भी है तो तुम्हे आगे तो बढ़ना ही पड़ेगा, जो लोग चले जाते है उनकी कमी तो कभी पूरी नही हो सकती है पर हमे भी तो कई चीज़ो को देखना पड़ता है आख़िर इस तरह दुखी होने से क्या मिता की आत्मा खुश होगी

भाभी ने किवाड़ को हल्का सा बंद किया और आकर मेरे पास लेट गयी उनके जिस्म से उठती हुवी मादक खुसबू मेरी साँसों मे जैसे समाती चली गयी भाभी थोड़ा सा और मुझसे सट गयी और बोली अब तुम निशा के साथ हँसी खुशी रहो उसको भी प्यार दो थोड़े दिन मे तुम्हारे बच्चे हो जाएँगे फिर तुम भी परिवार मे रम जाओगे धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा मैने कहा भाभी मैं कोशिश कर रहा हूँ मैने अपना हाथ भाभी के गोरे पेट पर रख दिया और उसको सहलाने लगा

तो भाभी बोली, अब तुम्हे मेरी ज़रूरत नही है नयी दुल्हन के पास जाओ मैने भाभी को अपने पास समेट लिया और कहा भाभी वो अपनी जगह आप अपनी जगह उसके आने से हमारी फीलिंग्स थोड़ी ना बदल जाएँगी, और मैने अपने होठ भाभी के होंठो पर रख दिए काफ़ी टाइम बाद मैने किसी औरत को इस तरह से छुआ था उनके नरम लबों का अहसास मेरी आत्मा मे घुलता सा चला गया

भाभी ने भी मना नही किया करीब 10 मिनिट तक हम लोग एक दूजे को चूमते ही रहे मैं अपना हाथ भाभी के घाघरे के अंदर ले गया और उनकी मखमली जाँघो को सहलाने लगा तो वो बोली अभी रूको दिन का टाइम है कोई आ निकलेगा अभी रहने देते है मैने कहा जी जैसा आप कहे फिर मैं कुछ देर के लिए वही पर ही सो गया करीब 5 बजे मुझे भाभी ने जगाया वो चाइ का प्याला लिए खड़ी थी चाइ पी कर मैं घर आया
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