Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:20 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
तभी साइड वाले कमरे का दरवाजा खुला और चाची अंगड़ाई लेते हुए बाहर आई और मुझे देख कर बोली बड़ी सुबह उठ गये रात को नींद नही आई क्या अच्छे से मैने कहा हाँ उठ गया वो बोली चाइ बनाती हूँ थोड़ी देर मे मैने उनका हाथ पकड़ा और उनको अपनी बाहों मे खीच लिया और बोला चाइ ही पिलाओगी या कुछ और भी तो वो बोली अब तो दुल्हन ले आए हो अब मुझ बूढ़ी मे क्या रखा है तो मैने कहा दारू तो पुरानी ही ज़्यादा नशा देती है तो वो बोली दिन मे देखती हूँ कुछ

मैं कमरे मे गया तो निशा अभी भी सोई पड़ी थी उसके माथे पर किस किया मैने पर उसको जगाना नही चाहता था तो मैं नीचे आ गया , पुराने कमरे मे कुछ समान पड़ा था तो उसको ही देखने लगा तो आर्मी ड्रेस हाथ लग गयी वो एनडीए के दिन वो देहरादून की शामे, कश्मीर की पोस्टिंग सबकुछ जैसे कल ही की तो बात लगती थी पर ज़िंदगी मे बहुत आगे बढ़ गया था

मैने उस ड्रेस पर ज्यो ही मैने अपना हाथ फेरा, होटो पर एक मुस्कान सी आ गयी, नहाने का मूड नही था मेरा सुबह सुबह थोड़ी सी ठंड भी लग रही थी तो एक जॅकेट सी डाल ली और बाइक लेकर निकल गया मैं अपने स्कूल की ओर सहर कब आ गया पता ही नही चला अभी टाइम नही हुवा था स्कूल लगने कर चौकीदार जानता था तो एंट्री मे कोई प्राब्लम नही थी अपनी उसी 12थ बी क्लास मे जाकर बैठ गया लगा कि जैसे आज भी वही का स्टूडेंट हूँ

ये कहने को तो स्कूल था पर मेरी ज़िंदगी मे इसका बहुत बड़ा रोल था यहा पर ही मैने अपनी आने वाली जिंदगी को सजाने की नीव रखी थी यही पर मेरी ज़िंदगी ने एक ऐसा मोड़ लिया था यही पर मेरी हसरते जवान हुई थी होश जब आया जब निशा का फोन आया पूछा कहाँ हो तुम तो मैने कहा आता हूँ जल्दी ही वैसे भी आज का ही तो दिन था बस अगले दिन मिशन के लिए निकल जाना था

ये शायद पहली बार था जब मेरा जाने का मन नही कर रहा था पर मेरे चाहने ना चाहने से क्या होना था, निशा कुछ दिन घर पर ही रुकने वाली थी मैने उसे और घरवालो को अच्छी तरह से समझा दिया था कि अगर निशा के घरवाले या गाँव का कोई भी व्यक्ति मेरी और निशा की शादी के बारे मे कोई भी हंगामा करे तो सीधा पोलीस बुला ले किसी से दबने या डरने की कोई ज़रूरत नही

वो दिन पता नही कैसी बेचैनी मे गुजरा मेरा, वैसे तो हर दिन ही मेरा बेचैनी मे गुज़रता है पल पल मैं बस डर के ही तो जीता रहता हूँ, खुद की परवाह ना भी करू तो घरवाले है जो दूर होकर भी हर पल अपने पास ही लगते है मैं एक बहुत ही डरपोक इंसान हूँ, एक नाकाम इंसान जी ज़िंदगी मे कभी कुछ साबित नही कर पाया सिवाय हारने के मैने कुछ किया ही नही

आज भी जब मैं ये अपडेट लिख रहा हूँ, उलझा हूँ मैं अपने ही ख्यालो मे बड़ी शिद्दत से रोने को जी कर रहा है पर क्या करू ये साले आँसू भी आँखो से सूख चुके है, बाहर खिड़की से देखता हूँ तो हल्की हल्की सी बरफ गिर रही है उपरवाला भी पता नही कब सुख की सांस लेने का मौका देगा,इस छोटी सी ज़िंदगी ने ना जाने कैसा खेल दिखाया है कि डरने लगा हूँ मैं कि कही अब किसी और अपने को ना खो दूं

इतनी बड़ी दुनिया मे जब नज़र उठा कर देखता हूँ तो पता चलता है ज़िंदगी मे आए तो कई लोग पर फिर भी ये मुसाफिर हर मोड़ पा अकेला ही खड़ा रहता है ये मेरी ख़ानाबदोश ज़िंदगी ना जाने कब वो बरसात लाएगी जो मेरी प्यासी रूह पर इस कदर बरश जाएगी कि सदियो की मेरी प्यास बुझ जाएगी हम सब अपने अपने अंदाज से ज़िंदगी जीते है कभी हँसते है कभी रोते है पर मैं ना जाने किस तरह से जीता हूँ

जिस्म पर पड़े ये ज़ख़्मो के निशान अपने आप मे एक इबारत सी लिख ते है जिन्हे बस मैं ही समझता हूँ, और फिर एक पालतू कुत्ते से ज़्यादा औकात भी नही मेरी दिल मे बहुत सी बाते है जो मैं बताना चाहता हूँ पर कोई है ही नही जिस से मन की बात कह सकूँ जब भी दिल का बोझ बढ़ जाता है बैठ जाता हूँ किसी नदी किनारे या किसी पेड़ के नीचे निकालना चाहता हूँ अपनी भडास पर किस्पर कोई है ही नही

ये ज़िंदगी है और मैं हूँ, ऐसे ऐसे लोगो को देखा है जो हैवानियत की हद को पार कर गये है पर फिर भी सुख से जीते है कोई परेशानी नही कुछ नही और एक मैं हूँ जहा भी कोई मंदिर-मस्जिद मिला वही पर सर झुका लिया उसका हर एक करम किया लोग कहते है सबकी दुआ उसके यहा पर जाकर कबूल होती है सबको वो ही देता है फिर मुझसे ये कैसी नाराज़गी , आख़िर ऐसा कॉन सा पाप कर दिया मैने जिसका प्रायश्चित की किस्ते चुकाता फिर रहा हूँ मैं

दिन पे दिन बीत ते चले जाते है पर मुझे मेरी रूह को कभी चैन नही मिलता है आज घर पे ये हो गया आज ये हो गया इन हालत से अब हारने लगा हूँ मैं कैसे समझाऊ खुद को कितनी मन्नते माँगी उसके दर पर , हर एक चोखट पर नाक रगडी पर उसका दिल कभी पासीजता ही नही, आज मेरा दिल इतना भरा है कि बस समझो फटने को बेताब हूँ मैं पर करूँ क्या कुछ समझ ही नही आता है

जब अपने हिस्से की खुशियो को दूसरो की झोली मे देखता हूँ तो दिल करता है कि बंदूक लूँ और सब कुछ मिटा दूं दो पल मे ही पर फिर खुद को रोक लेता हूँ पहले मैं कहता था कि ले ले जितनी परीक्षा लेनी है मेरी ले ले कभी तो तेरी मेहर होगी ही मुझ पर , पर अब मैं हारने लगा हूँ, उसके आगे सर झुकाता हूँ तो श्रद्धा से नही बल्कि डर से अपने आप से भागने की नाकाम सी कोशिश करता हूँ

पर भाग नही पाता हू आख़िर सच्चाई से कभी कोई भाग कहाँ पाया है, उपर से कभी कभी ये यादे इतनी हावी हो जाती है कि बस फिर शराब ही सहारा होती है पर फिर ये भी उस आग को ऐसे भड़काती है की तिल तिल करके जलता हूँ , दो महीने पहले की बात है बहुत खुश था डॉक्टर ने कह दिया था कि बच्चे की डेलिवरी होते ही वाइफ की तबीयत भी ठीक हो जाएगी खुश था मैं घरवाले भी खुश थे सब लोग तैयारिया कर रहे थे एक नन्हे से मेहमान के आने का

बॉस को 15 दिन की छुट्टी के लिए बोल दिया था बस एक दो रोज मे इस्तांबुल से वापिस अपने घर को चले जाना था , दिल मे हज़ारो उमंग थी कि ये करूँगा वो करूँगा आख़िर पहली बार पिता बन ने का सुख ही अलग होता है पर उस उपरवाले से ये देखा ना गया , काम कर रहा था मैं कि मेरा फोन बजा घर का नंबर देखते ही मैं समझ गया था कि खूसखबरी ही होगी पर मुझे क्या पता था कि वो एक मनहूस दिन था जब मेरे कानो ने वो खबर सुनी

बच्चा पेट मे ही मर गया था और निशा भी थोड़ी देर बाद …………….. ………………………………… थोड़ी देर बाद मुझे छोड़ कर इस दुनिया से रुखसत हो ली थी, समझ ही नही आया कि कैसे बोलू , कैसे रिएक्ट करू आसान नही था मेरे लिए खुद को संभालना और सच कहूँ तो संभाल नही पाया जैसे तैसे करके घर आया जिस घर मे कहाँ खुशियो की तैयारिया हो रही थी और अब वहाँ पर मातम पसरा पड़ा था, वाइफ के अंतिम संस्कार के बाद जब उस छोटू को मिट्टी देने के लिए गया तो गड्ढा खोदते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे उसको दफ़नाने के पहले उसकी सूरत को देखा मैने उसको अपने सीने से लगाया मैने बिल्कुल मुझ जैसा ही था वो छोटा सा नाज़ुक सा लगता था जैसे की अभी बोल पड़ेगा पर ये भी एक सितम था उसका लोग कहते है कि उपरवाला जो करता है अच्छे के लिए करता है पर सिर्फ़ मैं ही क्यो जो हर बार पे करता है इसका जवाब दे कोई मुझे हर बाज़ी को बस मैं ही क्यो हारता हूँ

जब भी किसी छोटे बच्चे को देखता हूँ तो बड़ी याद आती है अपने बच्चे की, बड़ी मुस्किल से रोकता हूँ खुद को

वो दिन बड़ा ही अजीब सा था मेरे लिए जाना था मुझे समझता था पर दिल कर रहा था कि रुक जाउ वही पर, पर इस मुसाफिर का सफ़र थम जाए ये अब कहाँ मुमकिन था वो शाम बड़ी ही भारी थी मुझ पर निशा नीचे घरवालो के साथ बैठी थी मैं छत पर गुम्सुम गुम्सुम सा बॅग मे कपड़े डाल रहा था तभी भाभी आ गयी बॅग को देख कर बोली कहीं जाने की तैयारी हो रही है क्या तो मैने कहा हाँ जान जाना है अर्जेंट काम है दो दिन की ही छुट्टी थी

भाभी ने कहा आओ बैठो मेरे पास ज़रा बाते करते है मैनी कहा कुछ कहना है भाभी तो वो बोली मनीष मैं तुमको जब से जानती हूँ जब तुम बच्चे थे और फिर मैं तुम्हारी भाभी से ज़्यादा तुम्हारी दोस्त भी हूँ तुम्हारा कुछ भी मुझसे कहाँ छुपा है पर मुझे लगता है कि तुम खुश नही हो कुछ ना कुछ चल रहा है तुम्हारे अंदर ही अंदर देखो ये बात तुम भी अच्छे से जानते हो कि जो बीत गया है हम लाख कोशिस कर ले वो कभी वापिस नही आएगा

तुम खुशनसीब हो जो तुम्हारे पास निशा जैसी लड़की है जी हर कदम पर गिरने से पहले ही तुमको संभाल लेगी फिर क्या बात है अब तो काकी जी और तुम्हारे बीच की दूरिया भी नही रही है, कम से कम मुझे तो बता दो कि क्या बात है क्या है देखो तुम्हारी इस झूठी मुस्कान के पीछे जो दर्द छिपा है वो मैं महसूस करती हूँ मैं अपने देवर को यू टूट कर जीता नही देख सकती किसी को कोई फरक पड़े या ना पड़े पर मुझे तकलीफ़ होती है

दिन रात दिल मे बस एक आस के सहारे ही जिया कि बस कुछ दिनो की बात है फिर शादी करलूंगा जब भी देखा उसको दुल्हन के जोड़े मे देखा हर इंसान की यही आरजू होती है दुनिया प्यार करती है बस मुझे ही ना मिला मेरे हिस्से का प्यार ठीक है मेरे पास निशा है आप हो पर फिर भी मेरे दिल मे कुछ कमी सी है एक खाली पन सा है जिसे महसूस तो सभी करती है पर कोई बता ता नही कि कैसे भरूं इसको जानती हो रातो को नींद नही आती है दिल रोता है पर आँसुओ को नही आने देता मैं आप ही बताओ मैं करूँ तो क्या करूँ

हर रोज मैं अपने सीनियर ऑफिसर्स को बोलता हूँ कि मुझ वापिस मेरी यूनिट भेज तो पर कोई नही सुनता मेरी जी करता है कि लात मार दूं नोकरी को पर इसके बिना गुज़ारा भी तो नही आम आदमी का अब कल सुबह की फ्लाइट है फिर ना जाने कब आना हो या ना भी आ पाऊ तो भाभी बोली ऐसा ना कहो हमारा तुम ही तो सहारा हो इस घर को देखो तरस गया है तुम्हारी वो मस्ती देखने को पहले जैसा कुछ भी तो नही है देखो तुम खुश नही रहोगे तो हम सब भी कैसे खुश रह पाएँगे

मैने कहा भाभी मैं बहुत कोशिश करता हूँ हर रोज एक नया रास्ता चुनता हूँ पर घूम फिर कर उसी जगह पर आकर रुक जाता हूँ हम बात कर ही रहे थे कि तभी मम्मी ने भाभी को आवाज़ लगाई तो वो नीचे चली गयी और मैं अपना सामान डालने लगा इस मुसाफिर को तो अपना सफ़र जारी रखना था क्या हुवा जो दोपल रुक गये पर अपनी मंज़िल तो जैसे थी ही नही



मैने कहा भाभी , पता नही क्यो पर ऐसा लगता है कि कभी मैं वो ज़िंदगी जी ही नही पाया जो मैं जीना चाहता था शुरू शुरू मे सब अच्छा लगता था पर भाभी अब लगता है कि सबकुछ एक पल मे ठहर जाए सच कहूँ तो मुझे कुछ भी अच्छा नही लगता है मैं परेशान हूँ हर पल पर मुझे नही पता क्यो मैं भी इस बात को समझता हूँ कि मिथ्लेश अब कभी नही आ पाएगी पर भाबी ये भी सच है कि हर पल मेरी रूह मे जी रही है वो कही ना कही


रात आधी से ज़्यादा गुजर गयी थी अब जाना था मैने सोचा कि चुपके से निकल जाता हूँ तो धीरे से अपने बॅग को उठाया और किवाड़ को खोल कर चला ही था कि पीछे से उसने पुकारा जा रहे हो बिना बताए निशा भी शायद सोई नही थी मैने बिना पीछे मुड़े कहा जाना तो है ही फिर क्यो रोकती हो उसने कहा सड़क तक चलूं साथ मैने कहा रात बहुत है यही पर रहो उसने कहा एक बार गले नही लगोगे मैने कहा जाने दे यार और मैने अपने कदम आगे को बढ़ा दिए ना जाने क्यो नही देखा मैने पीछे मूड कर
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