Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
10-07-2019, 01:28 PM,
RE: Desi Porn Kahani ज़िंदगी भी अजीब होती है
प्रीतम मेरी बाहों मे सिमटने लगी कुछ सर्द मौसम और कुछ दिल मे भावनाओं का ज्वर बेशक प्रीतम मेरी मंज़िल नही थी पर सफ़र मे हमसफर ज़रूर थी . मैने उसे सीने से चिपका लिया और अपनी आँखो को मूंद लिया.

प्रीतम- ये सुकून पहले क्यो ना मिला.

मैं- सच कहूँ तो सुकून पहले ही था. आज तो बस हम भाग रहे है दौड़ रहे है पता नही किसके पीछे और किसलिए. सब रूठ गया अब ना घर है ना परिवार बस मुसाफिर बनके रह गये है भटक रहे है अपने आप को तलाश करते हुए, जानती है इस नौकरी ने मुझे रुतबा तो दिया पर मैं इसे अपना नही पाया हूँ. चाहे मेरी ड्यूटी घने जंगलों मे रही या बर्फ़ीली वादियो मे, देश मे या बाहर बस इस नौकरी के बोझ को कंधो पर महसूस किया है मैने. दुनिया नौकरी के लिए तरसती है पर मैं वापिस अपनी बेफिक्री को जीना चाहता हूँ.

प्रीतम- मुमकिन नही अब, समय आगे बढ़ गया है तुमको भी आगे बढ़ना होगा.

मैं- जानती हो अनिता भाभी के बहुत अहसान है मुझ पर उन्होने बहुत किया मेरे लिए . बेशक हमारे बीच शारीरिक संबंध थे पर एक दोस्त से बढ़कर, मैं बता ही नही सकता कि वो क्या थी और क्या है मेरे लिए, पर तुम्हारी बात को ले लो, समय बदल गया है भाभी को समझना चाहिए इस बात को कुछ चीज़े अब पहले सी नही रही. और जो बाते उन्होने निशा के लिए बोली दिल मे तीर की तरह चुभ रही है.

प्रीतम- बुरा मत मानियो पर अनिता को अभी काबू कर ले वरना ये आग जो वो लगा रही है सारा कुनबा जलेगा इसमे. कल को जब निशा के आगे तुम्हारे इन संबंधो की बात आएगी तो चाहे वो कितना भी विश्वास करती हो तुम पर , उसका दिल तो टूट ही जाएगा ना तब तुम क्या करोगे याद रखना औरत की नज़र मे एक बार गिरे तो उठ नही पाओगे. तुम्हे सदा ही अपना माना है इसलिए कहती हूँ अनिता को समझा लो .

मैं- सोचा तो है भाभी से बात करके कोई रास्ता निकालूँगा.

प्रीतम- बेहतर रहेगा यार.

प्रीतम ने अपना हाथ मेरी जॅकेट मे डाल दिया और मेरे सीने को सहलाने लगी.

मैं- याद है कैसे तेरे जिस्म को चाशनी मे भिगो कर खाया करता था मैं .

प्रीतम- नादानियाँ थी वो सब, पर आज मीठी यादे है .

मैं- पर उस टाइम तू टॉप थी गाँव की, हर कोई बस तेरे आगे पीछे ही घूमता था .

प्रीतम- चढ़ती जवानी की नादानियाँ, आज सोचो तो हँसी आ जाती है. याद है एक बार मेरी माँ ने बस पकड़ ही लिया था अपने को.

मैं- काश पकड़ ही लेती तो ठीक रहता ना.

प्रीतम- अच्छा जी तब तो सिट्टी – पिटी गुम हो गयी थी.

मैं- तब आज जितना हौंसला कहाँ था .

प्रीतम- क्या फ़ायदा इस हौंसले का , अब हम नही है.

मैने अपनी छाती पर उसका रेंगता हाथ पकड़ लिया और थोड़ा सा और उसको अपने करीब कर लिया.

प्रीतम- निशा को भी ऐसे ही पकाते हो क्या तुम

मैं- ये तो निशा ही जाने, कभी कहती नही कुछ ऐसा वो.

प्रीतम- समझदार लड़की है मुझे खुशी है कोई तो मिला जो तुमको थाम सकेगा.

मैं- अभी तो तुम ही थाम लो ना मुझे.

प्रीतम- मैं तो हमेशा ही महकती हूँ तुम्हारे अंदर कही ना कही.

प्रीतम ने करवट ली और मेरे उपर आ गयी अगले ही पल मेरे होंठ उसके होंठो की क़ैद मे थे मैने बस उसकी पीठ पर अपनी बाहे कस दी और खुद को उसके हवाले कर दिया. उसका चूमना कुछ ऐसे था जैसे चूल्हेस की दहक्ति लौ. उसके किस करने मे कुछ तो बात थी मेरे हाथ उसकी मांसल गान्ड को सहलाने लगे थे और आवेश मे मैने उसकी पाजामी को नीचे सरका दिया.

मेरे अंदर महकती उसकी सांसो ने मुझे उत्तेजित करना शुरू कर दिया था.कुछ ही देर मे हम दोनो के कपड़े चारपाई के नीचे पड़े थे और हम दोनो के दूसरे के जिस्म को रगड़ते हुए किस करने मे खोए हुए थे. प्रीतम के बदन पर बढ़ती हुई उमर के साथ जो निखार आया था उसने उसको और भी मादक बना दिया था . प्रीतम का हाथ मेरे लंड को अपनी मुट्ठी मे भर चुका था जिसे वो अपनी चूत पर तेज तेज रगड़ रही थी. उसकी बेहद गीली चूत पर बस एक हल्के से धक्के की ज़रूरत थी और मेरा लंड सीधा उन गहरी वादियो मे खो जाता जिसकी गहराई को शायद ही कभी कोई नाप पाया हो.

भयंकर सर्दी के मौसम मे एक रज़ाई मे मचलते दो जवान जिस्म एक दूसरे मे समा जाने को बेताब हो रहे थे. और जैसे ही प्रीतम का इशारा मिला मैने अपने लंड पर ज़ोर लगा दिया प्रीतम की चूत ने अपने पुराने साथी का मुस्कुराते हुए स्वागत किया और मैं पूरी तरह से उ पर छा गया .

“आह, आराम से क्यो नही डालता तू हमेशा आडा टेढ़ा ही जाता है ” प्रीतम ने कहा.

मैं- ज़ोर लग ही जाता है जानेमन.

प्रीतम- ज़ोर लग ही गया है तो अब पूरा लगाना .

प्रीतम का यही बेबाकपन मुझे बहुत पसंद था उसके इन्ही लटको झटको पर तो मैं फिदा था पहले भी और आज भी उसके नखरे जानलेवा ही थे. उसने अपनी टाँगे उठा कर मेरे कंधो पर रख दी और मैं उसकी छाती को मसल्ते हुए उसकी चूत मारने लगा. खाट चरमराने लगी .

प्रीतम- ये भी जाएगी क्या.

मैं- पता नही पर आज तू खूब चुदेगि ये पक्का है .

प्रीतम- सच मे

मैं- देख लियो.

प्रीतम- चल दिखा फिर.

मैं- आज तू देख ही ले, आज जब तक तेरे पुर्ज़े ना हिला दूं उतरूँगा नही तेरे उपर से.

प्रीतम- कसम है तुझे अगर उतरा तो जब तक मैं ना चीखू, ना चिल्लाऊ उतरना नही.

मैं- नही उतरूँगा. आज पुरानी यादो को ताज़ा कर ही लेते है जानेमन .

प्रीतम ने अपनी टाँगे उतारी और अपने होंठो को किस के लिए खोल दिया.
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