Free Sex Kahani काला इश्क़!
10-10-2019, 06:31 PM,
#10
RE: काला इश्क़!
update 6

एक हफ्ता बीता और शुक्रवार के दिन माँ का फ़ोन आया और उन्होंने जो बताया वो सुन के मेरे पाँव-तले जमीन खिसक गई| मैंने बॉस से अर्जेंट छुट्टी माँगी ये कह के की माँ बीमार हैं और मैं वहाँ से धड़-धडाते हुए बाइक चलते हुए घर पहुँचा! भागता हुआ घर में घुसा और सीधा रितिका के कमरे में घुसा तो वो जैसे अध्-मरी वहाँ पड़ी थी| उसके कपड़ों से बू आ रही थी और जब मैंने उसे उठाने के लिए उसका हाथ पकड़ा तो पता चला की उसका पूरा जिस्म भट्टी की तरह तप रहा था| मैंने पानी की बूँदें उसके चहेरे पर छिडकी तो भी उसकी आँखें नहीं खुली| मैं भागता हुआ नीचे आया तो आँगन में माँ बेचैन खड़ी मिली| उन्होंने बताया की घर पर कोई नहीं है सिवाय उनके और रितिका के| सब किसी ने किसी काम से बहार गए हैं, बीते ६ दिन से रितिका ने कुछ खाया नहीं है, ना ही वो अपने कमरे से बहार निकली थी| १-२ दिन तो सबको लगा की बुखार है अपने आप उतर जायेगा पर उसने खाना-पीना भी छोड़ दिया! ये सुन के तो मेरी हालत और ख़राब हो गई और मैं घर से भागता हुआ निकला और बाइक स्टार्ट की और भगाते हुए बाजार पहुँचा और वहाँ जाके डॉक्टर से मिन्नत कर के उसे घर ले के आया| उसने रितिका का चेक-उप किया और मुझे तुरंत ड्रिप चढाने को कहा और अपने पैड पर बहुत सारी चीजें लिख दीं जिसे मैं दुबारा बाजार से ले के आया| मेरे सामने डॉक्टर ने रितिका को ड्रिप लगाईं और मुझे कड़ी हिदायत देते हुए समझाया की ड्रिप कैसे निकालना है| उनकी बातें सुन के तो मेरी और फ़ट गई की ये मैं कैसे करूँगा!                        
            पहली बोतल तो करीब डेढ़ घंटे में चढ़ी पर उसके बाद वाली चढ़ने में ३ घंटे लगे! मैं सारा टाइम रितिका के कमरे में बैठा था और मेरी नजरे उसके मुख पर टिकी थीं और मन कह रहा था की अब वो आँखें खोलेगी! माँ ने खाने के लिए मुझे नीचे बुलाया पर मैं खाना ऊपर ले के आगया और उसे ढक के रख दिया| रात के एक बजे रितिका की आँख खुली और मैंने तुरंत भाग के उसके बिस्तर के पास घुटने टेक कर उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा; "ये क्या हालत बन ली तूने?" उसके चेहरे पर एक प्यारी सी मुस्कराहट आई और उसने पानी पीने का इशारा किया| मैंने उसे सहारा देके बैठाया और पानी पिलाया फिर उससे खाने को कहा तो उसने ना में गर्दन हिला दी| "देख तू पहले खाना खा ले, उसके बाद हम इत्मीनान से बात करते हैं|" पर वो अब भी मना करने लगी| "अच्छा... तू जो कहेगी वो मैं करूँगा ... बस तू खाना खा ले! देख मैं तेरे आगे हाथ जोड़ता हूँ! मैं तुझे इस हालत में नहीं देख सकता!" ये सुन के वो फिर से मुस्कुराई और बैठने की लिए कोशिश करने लगी और मैंने उसे सहारा दे के बैठाया और फिर अपने हाथ से खाना खिलाया और फिर दवाई दे के लिटा दिया| मैं सारी रात उसी के सिरहाने बैठा रहा और जागता रहा| सुबह के ४ बजे उसका बुखार कम हुआ और उसने अपना हाथ मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया और सोने लगी| सुबह 8 बजे पिताजी और ताऊ जी शादी से लौटे और तब तक मैं रितिका के कमरे में बैठा ऊंघ रहा था| मुझे उसके सिरहाने बैठा देख वो दोनों बहुत गुस्सा हुए और जोर से गरजे; "उतरा नहीं इसका बुखार अभी तक?" ताऊ जी ने बहुत गुस्से में कहा| "ऐसा हुआ क्या था इसे? एक हफ्ते से खाना पीना बंद कर रखा है?" पिताजी ने गुस्से से कहा| "वो पिताजी.... दरअसल पेपर ... आखरी वाला अच्छा नहीं गया था! इसलिए डरी हुई है! कल मैं डॉक्टर को लेके आया था उन्होंने दवाई दी है, जल्दी अच्छी हो जाएगी|" मैंने रितिका का बचाव किया| थोड़ी देर बाद ताई जी और माँ भी ऊपर आ गए और मुझे रितिका के सिरहाने बैठे उसके सर पर हाथ फेरते हुए देख के ताई जी बोली; "तूने सर पर चढ़ा रखा है इसे! अब तू अपना काम धंधा छोड़ के इसके पास बैठा है! ये नौकरी आखिर तूने की ही क्यों थी?"

"नौकरी छूट गई तो अच्छा ही होगा, आखिर ताऊ जी भी तो ये ही चाहते हैं!" मैंने उनके ताने का जवाब देते हुए कहा| ताई जी ने मुझे घूर के देखा और फिर नीचे जाने लगीं| इधर माँ ने आके मेरे गाल पर एक चपत लगा दी और कहा; "बहुत जुबान निकल आई है तेरी!" इतना कह के वो भी नीचे चलीं गई| रितिका ये सब आंखें मीचे सुन रही थी| माँ के नीचे पहुँचते ही रितिका ने आँख खोली और कहा; "अब भी साबुत चाहिए आपको?" मैं उसकी बात समझ नहीं पाया| "मैं क्या कुछ समझा नहीं?"

रितिका: "मेरी बीमारी सुनते ही आप अपना सारा काम छोड़ के मेरे सिरहाने बैठे हो! सबसे मेरा बीच-बचाव कर रहे हो! दवा-दारू के लिए भाग दौड़ कर रहे हो, और तो और कल रात से एक पल के लिए भी सोये नहीं! अगर ये प्यार नहीं है तो क्या है?"

मैं: पगली! मैं तुझे कैसे समझाऊँ? मेरे मन में ऐसा कुछ नहीं है!
रितिका: आप चाहे कितनी भी कोशिश कर लो छुपाने की, पर मेरा दिल कहता है की आप मुझसे प्यार करते हो|
मैं:अच्छा ... चल एक पल को मैं ये मान भी लूँ की मैं तुझसे प्यार करता हूँ, पर आगे क्या?
रितिका: शादी!!! (उसकी आँखें चमक उठी थीं|)
मैं: इतना आसान नहीं है पागल! ये दुनिया... ये समाज ... ये नहीं हो सकता! ये नहीं हो सकता| (ये कहता हुए मेरी आँखें भीग आईं थीं और मैंने अपना सर झुका लिया|)
रितिका: कुछ भी नामुमकिन नहीं है! हम घर से भाग जायेंगे, किसी नई जगह अपना संसार बनाएंगे| (उसने मेरे सर को उठाते हुए आशावादी होते हुए कहा|)
मैं: नहीं... तू समझ नहीं रही.... ये सब लोग हम दोनों को मौत के घाट उतार देंगे| मैं अपनी चिंता तो नहीं करता पर तू……….. प्लीज मेरी बात मान और ये भूत अपने सर से उतार दे| (मैंने हाथ जोड़ते हुए कहा पर मेरी बात उस पर रत्ती भर भी असर नहीं दिखा रही थी|)
रितिका: ऐसा कुछ नहीं होगा! आप विश्वास करो मुझ पर, कोई भी हमें नहीं ढूंढ पायेगा|
मैं: ये नामुमकिन है! तेरी माँ को इन्होने ६ दिन में ढूंढ निकला था और तब ना तो मोबाइल फ़ोन थे ना ही इंटरनेट| आज के जमाने में मोबाइल, इंटरनेट, जीपीएस सब कुछ है और तो और वो मुखिया साला अब मंत्री है| इन्हें हमें ढूंढने में ज्यादा समय नहीं लगेगा|
रितिका: बस एक मौका .... एक मौका मुझे दे दो की मैं आपके मन में मेरे लिए प्यार पैदा कर सकूँ! वादा करती हूँ की अगर मैं नाकामयाब हुई तो फिर कभी आपको दुबारा नहीं कहूँगी की मैं आपसे प्यार करती हूँ और वही करुँगी जो आप कहोगे|
मैं: ठीक है ... पर अगर मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार पैदा नहीं हुआ तो तुम्हें मुझे भूलना होगा और समय आने पर एक अच्छे से लड़के से शादी करनी होगी!
रितिका: मंजूर है...... पर मेरी भी एक शर्त है! आप मुझसे झूठ नहीं बोलोगे!
मैं: कैसा झूठ?
रितिका: वो समय आने पर आपको पता चल जायेगा| पर अभी आपको मेरे सर पर हाथ रख के कसम खानी होगी|
मैं: मैं कसम खाता हूँ की मैं कभी भी तुमसे झूठ नहीं कहूँगा! अब तू आराम कर ... मैं थोड़ा नहा लेता हूँ|
 
ये कहते हुए मैंने एक जोरदार अंगड़ाई ली और फिर नीचे आके ठन्डे-ठन्डे पानी से नहाया और तब जा के मुझे तारो तजा महसूस हुआ| दोपहर के बारह बज गए थे और भाभी ने मुझे आवाज देके रसोई में बुलाया; "ये लो मानु जी, जा के अपनी चाहिती को खिला दो|" ये कहते हुए उन्होंने एक थाली में खाना भर के मेरी ओर बढ़ा दी! मैंने चुप-चाप थाली उठाई और बिना कुछ बोले वापस ऊपर आ गया| रितिका जाग चुकी थी और भाभी की बात सुन के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी| मैंने उसे उठा के बिठाया और वो दिवार से टेक लगा के बैठ गई पर वो प्यारी सी मुस्कान उसके होठों पर अब भी थी! "बड़ी हँसी आ रही है तुझे?" मैंने उसे छेड़ते हुए कहा| जवाब में उसने कुछ नहीं कहा और शर्माने लगी| मैंने दाल-चावल का एक कोर उसे खिलने के लिए अपनी उँगलियों को उसके होठों के सामने लाया तो उसने बड़ी नज़ाकत से अपने होठों को खोला और पहला कोर खाया| "आपके हाथ से खाना आज तो और भी स्वाद लग रहा है|"
            "अच्छा? पहली बार तो नहीं खिला रहा मैं तुझे खाना!" मैंने उसे उस के बचपन के वाक्य याद दिलाये! "याद है.... पर अब बात कुछ और है|" और ये कह के वो फिर से मुस्कुराने लगी| उसकी बात सुन के मैं झेंप गया और उससे नजरें चुराने लगा| अब आगे बढ़ के रितिका ने भी थाली से एक कोर लिया और मुझे खिलाने के लिए अपनी उँगलियाँ मेरी और बढ़ा दी| मैंने भी उसके हाथ से एक कोर खाया और उसे रोक दिया ये कह के; "बस! पहले तू खा ले फिर मैं खा लूँगा|"
"नहीं... आप मुझे एक कोर खिलाओ और मैं आपको एक कोर खिलाऊँगी!" उसने बड़े प्यार से मेरी बात का विरोध किया| "तू बहुत जिद्दी  हो गई है!" मैंने उसे उल्हना देते हुए कहा| "अब आपकी चहेती हूँ तो थोड़ा तो जिद्दी बन ही जाऊँगी|" उसने भाभी की बात प्यार से दोहराई| मैंने आगे कुछ नहीं कहा और हम एक दूसरे को इसी तरह खाना खिलाते रहे| खाने के बाद मैंने उसे दवाई दे के लिटा दिया और मैं नीचे जाने को हुआ तो वो बोली; "आप भी यहीं लेट जाओ|" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखा और थोड़ा गुस्से से कहा: "ऋतू..." बस वो मेरी बात समझ गई की ऐसा करने से घरवाले कुछ गलत सोचेंगे| रितिका के बगल वाला कमरा मेरा ही था तो मैं उसमें जा के अपने बिस्तर पर पड़ गया और सो गया| शाम पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैं आँखें मलता हुआ रितिका के कमरे में घुसा तो देखा वो वहाँ नहीं है| मैंने नीचे आँगन में झाँका तो वो वहाँ भी नहीं थी! तभी मुझे छत पर उसका दुपट्टा उड़ता हुआ नजर आया और मैं दौड़ता हुआ छत पर जा चढ़ा| वो मुंडेर पर बैठी दूर कहीं देख रही थी| "ऋतू यहाँ क्या कर रही है?" मेरी आवाज सुनके जब उसने मेरी तरफ देखा तो उसकी आँखें नम थी| मैं तुरंत ही आपने घुटनों पर आ गया और उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में ले के बोला; "क्या हुआ ऋतू? तू रो क्यों रही है? किसी ने कुछ कहा?" मेरे चेहरे पर शिकन की रेखा देख कर वो मेरे गले आ लगी और रोने लगी और रोते हुए कहा; "आप......आप....कल ......चले ......जाओगे!" "अरे पगली! मैं सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ! अब काम है तो जाना पड़ेगा ना? काम तो छोड़ नहीं सकता ना?! पर तू मुझे प्रॉमिस कर की तू अपना अच्छे से ख्याल रखेगी और दुबारा बीमार नहीं पड़ेगी|" मैंने उसके सर पर हाथ फेरते हुए कहा| "पहले आप वादा करो की आप अगले शुक्रवार आओगे!" उसने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा|  
"ऋतू.... सॉरी पर मैं नहीं आ पाउँगा! अगले शनिवार मेरी एक डेडलाइन है और बॉस भी इतनी छुट्टी नहीं देंगे| इस बार भी मैं ये झूठ बोल के आया की माँ बीमार हैं|" मैंने उसे समझाया| "तो मेरा..... मैं कैसे...." आगे कुछ बोलना छह रही थी पर उसके आँसूँ उसे कुछ कहने नहीं दे रहे थे| "देख... पहले तू रोना बंद कर फिर मैं तुझे एक तरीका बताता हूँ|" उसने तुरंत रोना बंद कर दिया और अपने आँसूँ पोछते हुए बोली; "बोलिये"| "ये देख मेरा नया मोबाइल! मंगलवार को ही लिया था मैंने और ये ले मेरा कार्ड, ये मुझे बॉस ने बनवा के दिया था| इसमें लिखे मोबाइल पर तू रोज १ बजे फ़ोन करना माँ के मोबाइल से| माँ हर रोज दोपहर को 1 बजे सो जाती है तो तेरे पास कम से कम एक घंटा होगा मुझसे बात करने का, ठीक है?" ये सुन के वो थोड़ा निश्चिन्त हुई फिर मैंने अपने मोबाइल से हम दोनों की एक सेल्फी खींची और उसी दिखाई  तो वो बहुत खुश हुई| घर में सिर्फ मेरे और चन्दर के पास ही स्मार्टफोन था बाकी सब अब भी वही बटन वाला फ़ोन इस्तेमाल करते थे| खेर रितिका का मन थोड़ा बहलाने के लिए मैं उसकी फोटो खींचता रहा और उसे स्मार्टफोन के बारे में कुछ बताने लगा और उसे एक-दो गेम भी खेलनी भी सीखा दी| जब तक रितिका छत पर गेम खेलने में बिजी थी तब तक मैं छत पर टहलने लगा और बीते ४८ घंटों में जो कुछ हुआ उसके बारे में सोचने लगा| तभी अचानक से रितिका ने फुल आवाज में एक गाना बजा दिया और मेरे ध्यान उसकी तरफ गया; "ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो, इत्र से हवा, काफ़िराना सा है इश्क है या क्या है|" उसने गाने की कुछ पंक्तियों में अपने दिल के जज्बात प्रकट किये| मैं कुछ नहीं बोला पर मुस्कुराता हुआ उसकी सामने मुंडेर पर बैठ गया| "ख़ामोशियों में बोली तुम्हारी कुछ इस तरह गूंजती है, कानो से मेरे होते हुए वो दिल का पता ढूंढती है|" रितिका ने फिर से कुछ पंक्तियों से मेरे मन को टटोला| मैं खड़ा हुआ और अपना बायाँ हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया और उसने उसे थाम लिया और हम धीरे-धीरे इसी तरह हाथ पकड़े छत पर टहलने लगे और तभी; "संग चल रहे हैं, संग चल रहे हैं, धुप के किनारे छाव की तरह..|" मैंने गाने की कुछ पंक्तियों को दोहराया| "हम्म.. ऐसे तुम मिले हो, ऐसे तुम मिले हो, जैसे मिल रही हो इत्र से हवा, काफ़िराना सा है, इश्क हैं या, क्या है??" मैंने इश्क़ है या क्या है उसकी आँखों में देखते हुए कहा और ये मेरा उससे सवाल था| उसने कोई जवाब नहीं दिया बस मुस्कुरा के नीचे चली गई और मैं कुछ देर के लिए चुप-चाप मुंडेर पर बैठ गया और उसे नीचे जाते हुए देखता रहा| थोड़ी देर बाद मैं भी नीचे आ गया और रितिका के कमरे में देखा तो वो अपने पलंग पर लेटी हुई थी और छत की ओर देख रही थी| मैं आगे अपने कमरे की तरफ जानेलगा तो वो मुझे देखते हुए बोली; "सुनिए"| उसकी आवाज सुनके मैं रुका और उसके कमरे की दहलीज पर से उसके कमरे में झांकते हुए बोला; "बोलिये'| ये सुनते ही उसके चेहरे पर फिर से मुस्कराहट आ गई और उसने इशारे से मुझे उसके पास पलंग पर बैठने को कहा| मैं अंदर आया और उसके पलंग पर बैठ गया| रितिका अभी भी लेटी दुइ थी और उसने लेटे-लेटे ही अपना हाथ आगे बढ़ा के मेरा दाहिना हाथ पकड़ लिया और बोली; "अगर मैं आपसे कुछ माँगू तो आप मुझे मना तो नहीं करोगे?" मैंने ना में सर हिला के उसे आश्वासन दिया| "मैं आपको kiss करना चाहती हूँ|" उसने बहुत प्यार से अपनी इच्छा व्यक्त की| पर मैं ये सुनके एकदम से हक्का-बक्का रह गया! मैंने ना में सर हिलाया और बिना कुछ कहे उठ के जाने लगा तो रितिका ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया| "अच्छा I'm Sorry!!!" वो ये समझ चुकी थी की मुझे उसकी ये बात पसंद नहीं आई| रितिका ने मेरा हाथ छोड़ा और मैं अपने कमरे में आ कर पलंग पर लेट गया और गहरी सोच में डूब गया| ये जो कुछ भी हो रहा था वो सही नहीं था! जिस रास्ते पर वो जा रही थी वो सिर्फ और सिर्फ मौत के पास खत्म होता था| मन में आया की मैं उसकी बातों को इसी तरह दर-गुजर करता रहूँ और शायद धीरे-धीरे वो हार मान ले, पर अगर वो उसका दिल टूट गया तो? उसने कोई ऐसी-वैसी हरकत की जिससे उसके जान पर बन आई तो? कुछ समझ नहीं आ रहा था .... अगर कहीं से माल मिल जाता तो दिमाग थोड़ा शांत हो जाता" इसलिए मैं एक दम से उठा और घर से बाहर निकल के तिवारी के घर जा पहुँचा| वो समझ चूका था तो वो एक कमरे में घुसा और कुछ अपनी जेब में डाल के चुप-चाप मेरे साथ चल दिया| उसके खेत पर आके हम चारपाई पर बैठ गए और फिर इधर-उधर की बातें हुई और माल फूँका! माल फूँकने के बाद मेरे दिमाग शांत हुआ और में आठ बजे तक उसी के खेत पर छपाई पर पड़ा रहा और आसमान में देखता रहा| तभी अचानक घड़ी पर नजर गई तो एकदम से उठा और घर की तरफ तेजी से चलने लगा| घर पहुँचा तो सभी मर्द आँगन में बैठे खाना खा रहे थे और मुझे देखते ही ताई जी बोली; "आ गया तू? खाने का समय हो गया है! ये ले खाना और दे आ उस महरानी को|" मैं रितिका का खाना ले कर उसके कमरे में पहुँचा तो वो सर झुकाये जमीन पर बैठी थी| मेरी आहट सुन के उसने दरवाजे की तरफ देखा और मेरे हाथ में खाने की थाली देख के वो उठ के पलंग पर बैठ गई| मैंने उसे खाना दिया और मुड़ के जाने लगा तो वो बोली; "आप भी मेरे साथ खाना खा लो|" मैंने बिना मुड़े ही जवाब दिया; "मेरा खाना नीचे है|" इतना कह के मैं नीचे आ गया और खाना खाने लगा| खाना खा के मैं ऊपर आया की चलो रितिका को दवाई दे दूँ तो वो दरवाजे पर नजरे बिछाये मेरा इंतजार कर रही थी|

     मैंने कमरे में प्रवेश किया और कोने पर रखे टेबल पर से उसकी दवाई उठाने लगा की तभी रितिका पीछे से बोली; "नाराज हो मुझसे?" मैंने जवाब में ना में सर हिलाया और फिर दवाई ले कर रितिका की तरफ मुड़ा| मेरे एक हाथ में दवाई और एक हाथ में पानी का गिलास था| ''पहले आप कहो की आप मुझसे नाराज नहीं हैं| तभी मैं दवाई लूँगी!" रितिका ने डरते हुए कहा| "हमारा रिश्ता अभी नया-नया है, और ऐसे में जल्दबाजी मुझे पसंद नहीं! अपनी शर्त याद है ना?" मैंने दवाई और पानी का गिलास रितिका के हाथ में देते हुए कहा| "मुझे माफ़ कर दीजिये! आगे से मैं ऐसा नहीं करुँगी|" उसने दुखी होते हुए कहा और दवाई ले ली और फिर चुप-चाप अपने पलंग पर लेट गई| मुझे बुरा लगा पर शायद ये उस समय के लिए सही था| अगले दिन मुझे जाना था तो मैं जल्दी उठा और नीचे आया तो देखा रितिका नहाके तैयार आंगन में बैठी मेरा इंतजार कर रही थी| मुझे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने भी उसकी मुस्कराहट का जवाब मुस्कराहट से दिया और नहाने घुस गया| जब बहार आया तो रितिका रसोई में बैठी पराठे सेक रही थी| "तुझे चैन नहीं है ना?" मैंने उसे थोड़ा डांटते हुए कहा| "अभी जरा सी ठीक हुई नहीं की लग गई काम में|" ये सुन के वो थोड़ा मायूस हो गई की तभी ताई जी बोल पड़ी; "हो गई जितना ठीक होना था इसे| इतने दिनों से खाट पकड़ रखी है और काम हमें करना पड़ रहा है|"

"क्यों भाभी कहाँ गई?" मैंने थोड़ा रितिका का बीच-बचाव किया| इतने में पीछे से भाभी कमरे से निकली और बोली; "ये रही भाभी! मुझसे सारे घर का काम-धाम नहीं होता! एक सहारा था की जब तक इसकी शादी नहीं होती तो कम से कम ये हाथ बंटा देगी पर तुम्हें तो इसे आगे और पढ़ाना है और तो और जब से आये हो तब से इसी की तीमारदारी में लगे हो| कभी बैठते हो हमारे पास?" भाभी ने अच्छे से खरी-खोटी सुनाई और मैं जवाब देने को बोलने ही वाला था की रितिका मेरे पास आ गई और बुदबुदाते हुए बोली; "छोड़ दो, आप ऊपर जा के नाश्ता करो|" मैं ऊपर आकर अपने कमरे में बैठ गया और प्लेट दूसरी तरफ रख दी| इधर रितिका भी ऊपर आ गई और प्लेट दूर देख के एकदम से अंदर आई और प्लेट उठाई और पराठे का एक कोर उसने अचार से लगा के मुझे खिलने को हाथ आगे बढ़ाया| "भाभी की वजह से ही तुम नीचे गई थी ना काम करने|" रितिका ने कोई जवाब नहीं दिया बस मूक भषा में मुझे खाने को कहा| मैंने उसके हाथ से एक निवाला खा लिया फिर उसके हाथ से प्लेट ले कर उसे नीचे जाने को कहा| वो भी सर झुकाये हुए नीचे चली गई और कुछ देर बाद मेरी लिए एक कप में चाय ले आई| "तुने नाश्ता किया?" उसने हाँ में सर हिला दिया और जाने लगी की मैंने दुबारा पूछा; "झूठ तो नहीं बोल रही ना?" तो वो मुड़ी और ना में सर हिलाया| "और दवाई?" तब जाके वो बोली; "अभी नहीं ली, थोड़ी देर में ले लूँगी|"
"रुक" इतना कह कर मैं उठा और उसके कमरे से दवाई ले आया और उसे दवाई निकाल के दी और अपनी चाय भी| उसने मेरे हाथ से दवाई ली और एक घूँट चाय पि कर कप मुझे वापस दे दिया| जैसे ही वो नीचे जाने को पलटी मैंने उसके कंधे पर हाथ रख के उसे रोका और उसे आँखें बंद करने को कहा| उसने धीरे-धीरे अपनी आँखें मीचली और सर नीचे झुका लिया| मैंने आगे बढ़ कर उसके मस्तक को चूमा! मेरा स्पर्श पाते ही वो आके मुझसे लिपट गई और उसकी आँखों में जो आंसुओं के कतरे छुपे थे वो बहार आ गए| मैंने भी उसे कस के अपने जिस्म से चिपका लिया और उसके सर पर बार-बार चूमने लगा|        
     "बस अब रोना नहीं.... और मेरे पीछे अपना ख़याल रखना| समय पर दवाई लेना और मुझे रोज फ़ोन करना|" इतना कह के मैंने रितिका को खुद से अलग किया और उसके आँसूं पोछे और मैं नीचे उतर आया| नीचे पिताजी और ताऊ जी भी आ चुके थे| मुझे नीचे उतरता देख वो समझ गए की मैं वापस जा रहा हूँ| मैंने सब के पाँव छुए की तभी रितिका भागती हुई मेरे पीछे जाने लगी तो मैं रुक गया और उसे फिर से चेतावनी देता हुआ बोला; "दुबारा अगर बीमार पड़ी ना तो बहुत मारूँगा|"  उसने मुस्कुरा के हाँ में सर हिलाया और मुझे हाथ उठा के 'बाए' कहने लगी| मैं बाइक स्टार्ट की और शहर लौट गया| ठीक एक बजे मुझे रितिका फ़ोन आया, उस समय मैं रास्ते में ही था तो मैंने बाइक एक किनारे खड़ी की और उससे बात करने लगा| इसी तरह दिन बीतने लगे और हम रोज एक से दो बजे तक बातें करते| वो मुझे हर एक दिन मुझे यही कहती की आप कैसे हो? आपने खाना खाया? आपकी बहुत याद आती है और आप कब आओगे? पर मैं हर बार उसकी बात को घुमा देता की उसका दिन कैसा था? घरवाले कैसे हैं आदि! वो भी मुझे आस-पड़ोस में होने वाली सभी घटनाएं बताती और कभी-कभी ये भी पूछती की ऑफिस में क्या चल रहा है? एक दिन की बात है की रितिका ने मुझे फ़ोन किया पर मैं उस समय मीटिंग में था तो उसका फ़ोन उठा नहीं सका| उसी रात उसने मुझे ग्यारह बजे फ़ोन किया| समय देखा तो मैं एक दम से घबरा गया की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं हो गई! पर रितिका को लगा की मैं उससे नाराज हूँ इसलिए मैंने उसका फ़ोन नहीं उठाया| खेर मैंने उसे समझा दिया की मैं मीटिंग में था इसलिए फ़ोन नहीं उठा पाया और आगे भी अगर मैं उसका फ़ोन न उठाऊँ तो वो परेशान ना हो! इधर मेरी छुटियों से बॉस बहुत परेशान थे इसलिए उन्होंने मुझे आखरी चेतावनी दे दी| इसलिए मेरा घर जाना दूभर हो गया और उधर रितिका ने मुझसे घर ना आने का कारन पुछा तो मैंने उसे सारी बात बता दी| वो थोड़ा मायूस हुई पर मैंने उसे ये कह के मना लिया की हम रोज फ़ोन पर तो बात करते ही हैं| वहाँ आने से तो हम खुल के बात भी नहीं कर पाएंगे| पर वो उदास रहने लगी और इधर मैं भी मजबूर था!    
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:46 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:36 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-13-2019, 11:43 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:28 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 01:14 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-15-2019, 06:12 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 06:56 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 07:45 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 07:51 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-16-2019, 10:35 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 11:39 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-17-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-19-2019, 07:49 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:52 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:50 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-20-2019, 07:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-21-2019, 06:15 PM
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