Free Sex Kahani काला इश्क़!
10-23-2019, 10:13 PM,
#44
RE: काला इश्क़!
update 21 

ऋतू बहुत घबराई हुई थी और मुझे उसकी घबराहट दूर करनी थी; "जान!" इतना सुनना था की वो भागती हुई आई और मेरे सीने से लग गई और फफक का करो पड़ी| "कान तरस गए थे आपके मुँह से ये सुनने को|" उसने रोते हुए कहा| "आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं करती| प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" मैंने उसके सर को चूमा और उसे कस के अपनी छाती से चिपका लिया, तब जा कर उसका रोना कम हुआ| तभी अनु मैडम का फ़ोन बज उठा और फ़ोन ऋतू के हाथ के पास था और उसी ने मुझे फ़ोन उठा कर दिया| पर इस बार उसके मुँह पर जलन या कोई दुःख नहीं था| मैडम ने मेरा हालचाल पूछा पर मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैं यहीं शहर में हूँ वरना वो घर आती और फिर ऋतू को देख के हजार सवाल पूछती| जब उन्हें पता चला की मुझे डेंगू होने के चांस हैं तो वो भी घबरा गईं पर मैंने उन्हें ये झूठ बोल दिया की यहाँ सब परिवार वाले हैं मेरी देख-रेख करने को! ऋतू ये सब बड़ी गौर से सुन रही थी और जैसे ही मेरी बात खत्म हुई तो उसने पूछा की मैंने झूठ क्यों बोला; "mam यहाँ आ जाती तो तुम कहाँ छुपती?" ये सुन कर ऋतू को समझ आ गया और वो कुछ खाने के लिए बनाने लगी| फिर आस-पडोसी भी आये और मेरा हाल-चाल पूछने लगे| सुभाष जी तो ऋतू की तारीफ करते नहीं थक रहे थे! 

भाई ऐसा जीवन साथी तो बड़ी मुश्किल से मिलता है, जो लड़की शादी से पहले इतना ख्याल रखती हो वो भला शादी के बाद कितना ख्याल रखेगी?! ये सुन ऋतू के गाल शर्म से लाल हो गए|

"तुम दोनों जल्दी से शादी कर लो इसी बहाने बिल्डिंग में थोड़ी रौनक बनी रहेगी|" पांडेय जी ने कहा|

"जी अभी पहले ये अपनी पढ़ाई तो पूरी कर ले!" माने मुस्कुरा कर जवाब दिया तो ऋतू ने भाभी के कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया, ये देख सब हँस पड़े| चाय पी कर सब गए तो ऋतू ने खाना बनाया और खुद अपने हाथ से मुझे खिलाया और आज तो मैंने भी उसे अपने हाथ से खिलाया| खाना खा कर ऋतू ने मुझे अपना सर उसकी गोद में रख कर लेटने को कहा| थोड़ी देर बाद दोनों की आँख लग गई और फिर जब मैं उठा तो ऋतू चाय बना के लाइ| चाय की चुस्की लेते हुए मैंने अपनी चिंता उस पर जाहिर की;

मैं: ऋतू....चीजें वैसे नहीं हो रही जैसी होनी चाहिए!

ऋतू: क्यों?? क्या हुआ?

मैं: मैं चाहता था की हमारा प्यार एक राज़ रहे तब तक जब तक की तुम अपने फाइनल ईयर के पेपर नहीं दे देती| पर यहाँ तो सबको पता चल चूका है!

ऋतू: कल जब मैं आपसे मिलने आई तो मैं 20 मिनट तक आपका दरवाजा खटखटाती रही, आपको दसियों दफा कॉल किया पर आप ने कोई जवाब ही नहीं दिया| मेरा मन अंदर से कितना घबरा रहा था ये आप सोच भी नहीं सकते! कलेजा मुँह को आ गया था, लगता था की हमारा साथ छूट गया और वो भी सिर्फ मेरी वजह से! मैंने हार कर पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने कहा की मकान मालिक के पास डुप्लीकेट चाभी है| मैंने उनसे ये कहा की मैं आपकी मंगेतर हूँ और आपसे मिलने आई हूँ, तब जा कर उन्हें मेरी बात का भरोसा हुआ| कॉलेज में मेरी सिर्फ और सिर्फ एक दोस्त है काम्या, वो भी आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती| मैंने उसे बीएस इतना बताया की आप एक ऑफिस में जॉब करते हो, इससे ज्यादा जब भी वो पूछती है तो मैं बात टाल जाती हूँ| उस दिन सूमो भय भी शायद जान या समझ चुके हों, क्योंकि उनका भाई तो अब हमारे कॉलेज में नहीं पढता| हॉस्टल में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती, जी लगा कर पढ़ती हूँ तो इसलिए किसी को हमारे रिश्ते के बारे में भनक तक नहीं|  हम एक समाज में रहते हैं, अब मिलेंगे तो लोग देखेंगे ही और बिना मिले तो मैं आपसे रह नहीं सकती!

मैं: और तुम्हारी पढ़ाई का क्या?

ऋतू: आपसे किया वादा मुझे याद है!

ये सुन कर मैं थोड़ा निश्चिन्त हुआ पर फिर भी एक डर तो था की अगर बात खुल गई तो ऋतू की पढ़ाई ख़राब हो जाएगी, पर फिर सोचा की जो होगा देखा जायेगा! वो रात बड़े प्यार से बीती, सोने के समय आज भी ऋतू ने मुझे कल की तरह अपने सीने से चिपका लिया और गहरी सांसें लेते हुए सो गई| मैं समझ रहा था की मेरे इतने करीब होने से उसके जिस्म में क्या उथल-पुथल मची हुई है पर मैं अभी इतना स्वस्थ नहीं हुआ था की उसके साथ सेक्स कर सकूँ! आज दो बार दवाई लेने से ये फायदा हुआ था की अब बुखार नहीं था, बॉडी अब भी रिकवर कर रही थी| अगले दिन रिपोर्ट आई और हुआ भी वही जो डॉक्टर ने कहा था| डेंगू! डॉक्टर ने खूब साड़ी दवाइयाँ लिख दी, बुखार रोकने से ले कर मल्टी विटामिन तक! गोलियां भी रिवाल्वर के कारतूस के साइज की! अगले तीन दिन तक ऋतू ने मेरी बहुत देखभाल की और मेरे कई बार उसे हॉस्टल जाने के आग्रह करने के बाद भी उसने मेरी बात नहीं मानी| बुखार अब नहीं था पर कमजोरी बहुत थी मेरा प्लेटलेट काउंट काफी गिर चूका था, ये तो ऋतू 4 टाइम खाना बना कर मुझे खिला रही थी तो ज्यादा घबराने वाली बात नहीं थी| रात में सोने के समय रोज ऋतू मुझे अपने सीने से चिपका कर सोती, रोज रात को मेरी आँखों के सामने उसके स्तनों की घाटी होती और सुबह आँख खुलते ही मुझे फिर वही घाटी दिखती|
मोहिनी भी मुझे से मिलने रोज आई और अपने साथ फ्रूट्स लाती और वही हँसी-मज़ाक चलता रहा| तीसरे दिन तो आंटी जी भी आ गईं और उन्होंने भी ऋतू की बहुत तारीफ की; "भाई भतीजी हो तो ऋतू जैसी की अपने चाचा का इतना ख़याल रखती है|" ये सुन कर ऋतू को उतना अच्छा नहीं लगा जितना सुभाष अंकल की तारीफ करने से हुई थी| अब उन्होंने तो ऋतू को मेरी मंगेतर माना था और आंटी जी ने उसे भतीजी! "माँ सेवा करेगी ही, इसके चाचू ने भी इसका कम ख्याल रखा है? स्कूल से लेकर एक ये ही तो हैं जो इसे पढ़ा रहे हैं|" मोहिनी की बात सुन कर ऋतू खुद को बोलने से नहीं रोक पाई; "आंटी जी घर में सिर्फ और सिर्फ ये ही हैं जिन्होंने मुझे बचपन से लेकर अब तक पढ़ाया है| दसवीं और बारहवीं मैं इन्हीं की वजह से पढ़ पाई वरना घरवाले तो सब पीछे पड़े थे की ब्याह कर ले|"


नोट करने वाली बात ये थी की ऋतू ने मुझे एक बार भी 'चाचू' नहीं बोला था और मैं ये बात समझ चूका था पर डर रहा था की आंटी ये बात पकड़ न लें| शुक्र है की उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया! उनके जाने के बाद मुझे ध्यान आया की घर में मेरी तबियत के बारे में किसी को पता है या नहीं? क्या ऋतू ने किसी को बताया?

"ऋतू, तूने घर में फ़ोन किया था?" मैंने ऋतू से घबराते हुए पूछा|

"नहीं... मुझे याद नहीं रहा|" ऋतू का जवाब सुन कर मैं गंभीर हो गया| मैंने तुरंत फ़ोन घर मिला दिया ये जानने के लिए की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है? पर शुक्र है की कोई घबराने की बात नहीं थी| मैं ने राहत की साँस ली और ऋतू को बताया की आगे से ये बात कभी मत भूलना| मुझे जर्रूर याद दिला देना वरना वो लोग अगर हॉस्टल पहुँच गए तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा| उसने हाँ में सर हिलाया उसने भी चैन की साँस ली| आज रात सोने के समय भी उसने ठीक वही किया, मेरा सर अपने सीने से लगा कर वो लेट गई| मैं इतने दिनों से उसके जिस्म की गर्मी को महसूस कर पा रहा था, पर मजबूर था की कुछ कर नहीं सकता था| आज मैंने ठान लिया था की इतने दिनों से ऋतू मेरी तीमारदारी में लगी है तो उसे थोड़ा खुश करना तो बनता है| मैंने ऋतू के स्तनों की घाटी को अपने होठों से चूमा तो उसकी सिसकारी फुट पड़ी; "ससससस...अ..ह...हह" और वो हैरत से मेरी तरफ देखने लगी| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे मिन्नत कर रही हो की मैं उसकी इस आग का कुछ करूँ| मैंने थोड़ा ऊपर आते हुए उसके गुलाबी होठों को चूम लिया, आगे मेरे कुछ करने से पहले ही ऋतू के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी| उसने गप्प से अपने होठों और जीभ के साथ मेरे होठों पर हमला कर दिया| उसकी जीभ अपने आप ही मेरे मुँह में घुस गई और मेरी जीभ से लड़ने लगी| मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा और अपने होठों से उसके निचले होंठ को मुँह में भर चूसने लगा| ये मेरा सबसे मन पसंद होंठ था और मैं हमेशा उसके नीचले होंठ को ही सबसे ज्यादा चूसता था| दो मिनट तक मैं बीएस उसके निचले होंठ को चुस्त रहा और जब जी भर गया तो अपनी जीभ और निचले होठ की मदद से उसके ऊपर वाले होंठ को मुँह में भर के चूसने लगा| जीभ से मैं उसके ऊपर वाले मसूड़ों को भी छेड़ दिया करता| इधर ऋतू के हाथों ने अपनी हरकतें शुरू कर दी, सबसे पहले तो वो मेरी टी-शर्ट को उतारने की जद्दोजहद करने लगे| पर मैंने अपने हाथों से उसे रोक दिया और वापस उसके चेहरे को थाम लिया और अपनी जीभ और होठों से उसके होठों को बारी-बारी चुस्त रहा| ऋतू को इसमें बहुत मजा आ रहा था पर उसे चाहिए था मेरा लंड, जो मैं उसे दे नहीं सकता था! मैंने उसके होठों को चूसना रोका और उसके चेहरे को थामे हुए ही कहा; "अपना पाजामा निकाल और जो मैं कह रहा हूँ वो करती जा|" मेरी बात सुन उसने लेटे-लेटे अपनी पजामी का नाडा खोल दिया और उसे अपनी गांड से नीचे करते हुए उतार फेंक दिया और बेसब्री से मेरे अगले आदेश का इंतजार करने लगी| मैं सीधा लेट गया, पीठ के बल उसे और मेरे दोनों तरफ टांग कर के मेरे पेट पर बैठने को कहा| ऋतू तुरंत उठ कर वैसे ही बैठ गई, फिर मैंने उसके कूल्हों पर अपना हाथ रखा और उसे धीरे-धीरे सरक कर मेरे सर की तरफ आने को कहा| वो भी धीरे-धीरे कर के ठीक मेरे मुँह के ऊपर आ कर उकडून हो कर बैठ गई| कमरे में अँधेरा था इसलिए न तो मैं और न वो मेरी शक्ल और भावों को देख पा रही थे| जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी बुर के कपालों को छुआ तो वो चिंहुँक उठी और ऊपर की ओर हवा में उचक गई| 
मैंने उसकी जनघ पर हाथ रख कर उसे मेरे मुँह पर बैठने को कहा और तब जा कर वो नीचे वापस मेरे मुँह पर बैठ गई| मैंने अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ लिया ताकि वो और न उचक जाए| मैंने फिर से ऋतू के बुर के कपालों को जीभ से छेड़ा पर इस बार वो ऊपर नहीं उचकी| अब मैंने अपने होठों से उन कपालों को पकड़ लिया और नीचे की तरफ खींचने लगा, ऋतू को हो रहे मीठे दर्द के कारन उसके मुँह से 'आह' निकल गई| उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को थाम लिया और दबाव देकर अपने बुर को मेरे मुँह पर रगड़ना चाहा" पर मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया, अपने दोनों हाथों को मैं उसकी जांघ से हटा कर उसके बुर के इर्द-गिर्द इस कदर सेट किया की मेरे दोनों हाथों के बीच उसकी बुर थी| ऋतू का उतावलापन बढ़ने लगा था और मैं उसे रो रहा था ताकि वो ज्यादा से ज्यादा मजा ले सके| मैंने ऋतू के कपालों को होठ से चूसना शुरू कर दिया था और इधर ऋतू अपनी कमर मटका रही थी ताकि वो अपनी बुर को और अंदर मेरे मुँह में घुसा दे!



मैंने जितना हो सके उतना अपना मुँह खोला, ऋतू की बुर को जितना मुँह में भर सकता था उतना मुँह में भरा और अपनी जीभ उसके बुर में घुसा दी| मेरी जीभ उसके बुर के कपालों के बीच से अपना रास्ता बना कर जितना अंदर जा सकती थी उतना चली गई| "स्स्स्सस्स्स्स...आअह्ह्ह्हह" इस आवाज के साथ ऋतू ने मेरी जीभ का अपनी बुर में स्वागत किया| मैंने अपनी जीभ अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी और इधर ऋतू बेकाबू होने लगी| उसने अपनी कमर इधर-उधर मटकाना शुरू कर दी और अपने हाथों से  मेरे सर के बाल पकड़ के खींचने लगी| इधर मेरी जीभ अंदर-बहार हो रही थी और उधर ऋतू ने अपनी कमर को आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया| हम दोनों एक ऐसे पॉइंट पर पहुँच गए जहाँ मेरी जीभ और ऋतू की कमर लय बद्ध तर्रेके से आगे-पीछे हो रहे थे| 5-7 मिनट और ऋतू की बुर से रस निकल पड़ा जो मेरे मुँह में भरने लगा| ऋतू ने अपनी दोनों टांगें चौड़ी की और अपने बुर को मेरे मुँह पर दबा दिया और सारा रस मेरे मुँह में उतर गया| अपना सारा रस मुझे पिला कर वो नीचे खिसकी और अपनी बुर को ठीक मेरे लंड पर रख कर वो मेरे ऊपर लुढ़क गई| उसकी सांसें तेज हो चुकी थी और पसीनों की बूंदों ने उसके मस्तक पर बहना शुरू कर दिया था| दस मिनट बाद जब उसकी सांसें नार्मल हुई तो वो बोली; "Thank You!!!" मैंने उसके मस्तक को चूम लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया| उसके बाद तो ऋतू को बड़ी चैन की नींद आई, ऐसी नींद की वो सारी रात मेरी छाती पर सर रख कर ही सोई| सुबह मैंने ही उसे जगाया वो भी उसके सर को चूम कर|
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
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RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
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RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
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RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 12:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 10:13 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-24-2019, 10:26 PM

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