Free Sex Kahani काला इश्क़!
12-13-2019, 08:02 PM,
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
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अगली सुबह जब मेरी नींद खुली तो मेरी आँखों के सामने छत थी और मैंने खुद को एक कमरे में बिस्तर पर लेटा हुआ पाया| मैं जैसे ही उठा वो शक़्स जो मुझे उठा कर लाया था वो मेरे सामने था| "आप?" मेरे मुँह से इतना निकला की उन्होंने मेरी तरफ एक कॉफ़ी का मग बढ़ा दिया| ये शक़्स कोई और नहीं बल्कि अनु मैडम थीं|

update 63

"क्या हालत बना रखी है अपनी?" उन्होंने मुझे डाँटते हुए पुछा| पर मैं उन्हें अपने पास देख कर थोड़ा सकपका गया था, मेरा इस वक़्त उनके घर में होना ठीक नहीं था, इसलिए मैं उठा और कॉफ़ी का मग साइड में रखा और जाने लगा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और बोलीं; "कहाँ जा रहे हो? बैठो यहाँ और कॉफ़ी पियो!"

"Mam मेरा आपके घर रुकना सही नहीं है| आपके Parents क्या सोचेंगे?" इतना कह कर मैं फिर उठने लगा तो उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और बोलीं; "ये मेरी फ्रेंड का घर है| तुम जरा भी नहीं बदले अब भी बिलकुल जेंटलमैन हो!" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा और कॉफ़ी वाला मग मुझे दुबारा पकड़ा दिया| मैं चुप-चाप कॉफ़ी पीने लगा और इधर वो कुछ सोचने लगीं की कुछ तो माजरा है जो मेरी ये हालत हो गई है!

  'अच्छा अब बताओ क्या बात है? क्यों इस तरह अपनी हालत बना रखी है?" पर मैं खामोश रहा और कॉफ़ी पीने लगा| "ओह! Silent Treatment!!!! नाराज हो मुझसे?" Mam ने फिर से पुछा और मैंने ना में गर्दन हिला दी| फिर मैंने अपना फ़ोन ढूंढ़ने के लिए हाथ मारा तो उन्होंने मेरा 'Charged' फ़ोन मुझे दिया| "कभी फ़ोन भी charge कर लिया करो! या काम में इतने मशरूफ रहते हो की चार्ज करने का टाइम नहीं मिलता|" उन्होंने कहा और अचानक ही मेरे मुँह से निकला; "जॉब छोड़ दी मैंने!" ये सुनते ही वो चौंक गईं और मुझसे पूछने लगीं; "क्यों?" मैं जाने के लिए उठ के खड़ा हुआ तो उन्होंने एक बार फिर मुझे जबरदस्ती बिठा दिया; "जॉब क्यों छोड़ी?" अब मैं उन्हें कुछ भी नहीं कहना चाहता था क्योंकि मेरी बात सुन कर वो मुझे अपनी हमदर्दी देना चाहती जो में कतई नहीं चाहता था| "मन नहीं था! ... बोर हो गया था!" मैंने झूठ बोला पर उन्हें मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ, वो मेरे अंदर की झुंझलाहट समझ चुकीं थीं की अगर वो कुछ और पूछेंगी तो मैं उन्हीं पर बरस पडूँगा| इसलिए वो कुछ देर खामोश रहीं| मैं फिर उठा और जाने के लिए बाहर आया ही था की उन्होंने पीछे से कहा; "मुझे कॉल क्यों नहीं किया?" अब ये ऐसा सवाल था जिसके कारन मेरा गुस्सा बाहर आने को उबल पड़ा और मैं बड़ी तेजी से उनकी तरफ पलटा और चिल्लाने को हुआ ही था की मैंने अपने दाहिने हाथ की मुट्ठी तेज बंद की और खुद को चिल्लाने से रोका और दाँत पीसते हुए कहा; "आपने कॉल किया मुझे बैंगलोर जा कर?" ये सुन कर अनु mam का सर झुक गया| "और मैं कॉल करता भी तो किस नंबर पर?" ये कहते हुए मैंने उन्हें अपना व्हाटस अप्प खोल कर दिखाया जिस पर मेरे आखरी के दो happy Birthday वाले मैसेज अब भी उन्हें रिसीव नहीं हुए थे क्योंकि उन्होंने वहाँ जा कर अपना नंबर बदल लिया था| जब mam ने ये मैसेज देखे तो उनकी आँखों में आँसू छलक आये और उन्हें एहसास हुआ की उन्होंने मुझे मेरे बर्थडे तक पर wish नहीं किया था| दरअसल जब मैं उनके पति कुमार के ऑफिस में काम करता था तो मैं और राखी उन्हें उनके जन्मदिन पर Happy Birthday बोला करते थे और उनके बैंगलोर जाने के बाद भले ही मैंने उन्हें कोई कॉल करने की कोशिश नहीं की पर उनके बर्थडे वाले दिन उन्हें मैसेज जर्रूर कर दिया करता था| पहली बार जब मैसेज भेजा तो काफी दिन तक वो उन्होंने read नहीं किया| मैंने सोचा की शायद वो बिजी होंगी या नंबर चेंज कर लिया होगा| फिर भी मैंने उन्हें वो दूसरा मैसेज उन्हें भेजा था ये सोच कर की इतनी दोस्ती तो निभानी चाहिए|

"I’m sorry मानु! मैं वहाँ जा कर अपनी दुनिया में खो गई और तुम्हें कॉल करना ही भूल गई|" Mam ने सर झुकाये हुए कहा|

"Its okay mam...anyway thanks for ... what you did last night ......I hope I didn't misbehave last night." मैंने झूठी मुस्कराहट का नक़ाब पहन कर कहा और दरवाजे के पास जाने लगा तो mam ने आ कर मेरे कंधे पर हाथ रख कर फिर से रोक लिया| "ये mam - mam क्या लगा रखा है? पिछली बार मैंने तुम्हें कहा था न की मुझे अनु बोला करो!" mam ने मुस्कुराते हुए कहा|

"Mam दो साल में तो लोग शक़्लें भूल जाते हैं, मैं तो फिर भी आपको इज्जत दे कर mam बुला रहा हूँ!" मेरे तीर से पैने शब्द mam को आघात कर गए पर वो सर झुकाये सुनती रही| उन्हें ऐसे सर झुकाये देखा तो मुझे भी एहसास हुआ की मैंने उन्हें ज्यादा बोल दिया; "sorry!!!" इतना बोल कर मैं वपस जाने को निकला तो वो बोलीं; "चलो मैं तुम्हें drop कर देती हूँ|" इस बार उनके चेहरे पर वही मुस्कान थी जो अभी कुछ देर पहले थी|

"Its okay mam ... मैं चला जाऊँगा|"

"कैसे जाओगे? ऑटो करोगे ना?"

"हाँ"

"तो ऐसा करो वो पैसे मुझे दे देना|" mam ने फिर से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने मजबूरन उनकी बात मान ली और उनके साथ गाडी में चल दिया| "दो दिन पहले मैं यहाँ अपने मम्मी-डैडी से मिलने आई थी, पर उन्होंने तो मुझे घर से ही निकाल दिया! अब कहाँ जाती, तो अपनी दोस्त को फ़ोन किया और उससे मदद मांगी| वो बोली की वो कुछ दिनों के लिए बाहर जा रही है और मैं उसकी गैरहाजरी में रह सकती हूँ| कल रात उसे एयरपोर्ट चूड कर आ रही थी जब तुम मुझे उस टूटे-फूटे बस स्टैंड पर बैठे नजर आये| पहले तो मुझे यक़ीन नहीं हुआ की ये तुम हो इसलिए मैंने दो-तीन बार गाडी की हेडलाइट तुम्हारे ऊपर मारी पर तुमने कोई रियेक्ट ही नहीं किया| हिम्मत जुटा कर तुम्हारे पास आई और तुम्हारा नाम लिया पर तुम तब भी कुछ नहीं बोले, फिर फ़ोन की flash light से चेक करने लगी की ये तुम ही हो या कोई और है! 5 मिनट लगा मुझे तुम्हारी इन घनी दाढ़ी और बालों के जंगल के बीच शक्ल पहचानने में, फिर बड़ी मुश्किल से तुम्हें गाडी तक लाई और फिर हम घर पहुँचे|"

"आपको इतना बड़ा रिस्क नहीं लेना चाहिए था|" मैंने कहा|

"कोई और होता तो नहीं लेती, पर वहाँ तुम थे और तुम्हें इस तरह छोड़ कर जाने को मन नहीं हुआ| " Mam ने नजरें चुराते हुए अपने मन की बात कह डाली थी| पर मेरा दिमाग उस टाइम जल्द से जल्द घर पहुँचना चाहता था ताकि मैं फिर से अपनी मेहबूबा को अपने होठों से लगा सकूँ! लगत-राइट करते हुए हम आखिर सोसाइटी के मैन गेट पर पहुँचे और मैन सीट बेल्ट निकाल कर जाने लगा तो mam बोलीं; "अरे! घर के नीचे से ही रफा-दफा करोगे?" अब ये सुन कर मैं फिर से बैठ गया और उनकी गाडी पार्क करवा कर घर ले आया| घर का दरवाजा खुलते ही उसमें बसी गांजे और दारु की महक mam को आई और उन्होंने जल्दी से बालकनी ढूँढी और दरवाजा खोल दिया ताकि फ्रेश हवा अंदर आये| मैन खड़ा हुआ उन्हें ऐसा करते हुए देख रहा था और मुझे इसका जरा भी अंदाजा नहीं था की घर में ऐसी महक भरी हुई है, क्योंकि मेरे लिए तो ये महक किसी इत्र की सुगंध के समान थी| जब mam ने मुझे अपनी तरफ देखते हुए पाया तो मैंने उनसे नजर बचा कर अपना सर खुजलाना शुरू कर दिया| "यार! सच्ची तुम तो बड़े बेगैरत हो! मेहमान पहली बार घर आया है और तुम उसे चाय तक नहीं पूछते!" Mam ने प्यार भरी शिकायत की| मैन सर खुजलाता हुआ बाथरूम में गया और हाथ-मुँह धो कर उनके लिए चाय बनाने लग गया| इसी बीच mam ने घर का मोआईना करना शुरू कर दिया और मोआईना करते-करते वो मेरे कमरे में जा पहुँची जहाँ उन्हें मेरी मेडिकल रिपोर्ट सामने ही पड़ी मिली| उन्होंने वो सारी रिपोर्ट पढ़ डाली और उनकी आँखें नम हो गईं, तभी मैंने उन्हें किचन से आवाज दी; "mam चाय!" अनु mam ने अपने आँसू पोछे और वो बाहर आ गईं और अपने चेहरे पर हँसी का मुखौटा पहन कर बैठ गईं| "चाय तो बढ़िया बनाई है?" उन्होंने मेरी झूठी तारीफ की|

"बुराइयाँ कितनी भी बुरी हों, सच्ची होती हैं...

झूठी तारीफों से तो सच्ची होती हैं!" मेरे मुँह से ये सुन कर mam मेरी तरफ देखने लगीं और अपने दर्द को छुपाने के लिए बोलीं; "क्या मतलब?"

"मतलब ये की चाय में दूध तक नहीं और आप चाय अच्छी होने की तारीफ कर रही हैं!"

"चाय, शायरी, और तुम्हारी यादें

भाते बहुत हो, दिल जलाते बहुत हो" Mam के मुँह से ये सुन कर मैन आँखें फाड़े उन्हें देखने लगा की तभी उन्होंने बात घुमा दी; "अच्छा… एक अरसा हुआ लखनऊ घूमे हुए! चलो आज घूमते हैं!"

"Mam मैं तो यहीं रहता हूँ, बाहर से तो आप आये हो! आप घूमिये मैं तो यहाँ सब देख चूका हूँ, यहाँ के हर रंग से वाक़िफ़ हूँ!"

"Oh come on यार! मैं अकेली कहाँ जाऊँगी? तुम सब जगह जानते हो तो आज मेरे guide बन जाओ, घर बैठ कर ऊबने से तो बेहतर है|"

"Mam मेरा जरा भी मन नहीं है, मुझे बस सोना है!" मैंने मुँह बनाते हुए कहा पर वो मानने वाली तो थी नहीं!

"जब तक यहाँ हूँ तब तक तो मेरे साथ घूम लो, मेरे जाने के बाद जो मन करे वो करना|" मैंने मना करने के लिए जैसे ही मुँह खोला की वो जिद्द करते हुए बोली; "प्लीज...प्लीज...प्लीज....प्लीज...प्लीज....प्लीज!!!" मैं सोच में पड़ गया क्योंकि मन मेरा शराब पीना चाहता था और दिमाग कह रहा था की बाहर चलते हैं| एक बार तो मन ने कहा की एक पेग पी और फिर mam के साथ चला जा पर दिमाग कह रहा था की ये ठीक नहीं होगा! आखिर बेमन से मैंने mam को बाहर बैठने को कहा और मैं नहाने चला गया| ठन्डे-ठन्डे पानी की बूँदें जब जिस्म पर पड़ी तो जिस्म में अजीब सी ऊर्जा का संचार हुआ एक पल के लिए लगा जैसे वही पुराना मानु ने जागने के लिए आँख खोली हैं पर दर्द ने उसे पिंजरे में कैद कर रखा था और उसे बाहर नहीं जाने देना चाहता था| मैं आज रगड़-रगड़ कर नहाया और आज फेस-वाश भी लगाया, साबुन की खुशबु से नहाया हुआ मैं बाहर निकला| मैंने बनियान और नीचे टॉवल लपेटा हुआ था और मेरे सामने Mam शर्ट-जीन्स ले कर खड़ी थीं| मुझे ये देख कर थोड़ी हैरानी हुई की mam ने मेरे लिए खुद कपडे निकाले थे पर मैंने उस बात पर जयदा ध्यान नहीं दिया क्योंकि मुझे अब जयदा चीजें affect नहीं करती थीं! मैं तैयार हुआ, दाढ़ी में कंघी मार कर उसे सीधा किया और बाल चूँकि बहुत लम्बे थे तो उन्हें पीछे की तरफ किया| जैसे ही बाहर आया तो Mam मुझे बड़े गौर से देख रहीं थी, उनका मुझे इस तरह देखने से पता नहीं कैसे मेरे चेहरे पर मुस्कराहट ले आया;

“My eyes were on him, when his shiny black hairs, thick black beard, beautiful brown eyes, red cheeks and the pleasant smile made me realize how colorful he was!”                

  Mam के मुँह से अपनी ये तारीफ सुन कर मैं चौंक गया था क्योंकि मेरी नजर में मैं अब वो मानु नहीं रहा था जो पहले हुआ करता था|

"धीरे-धीरे ज़रा ज़रा सा निखरने लगा हूँ मैं

लगता हैं उस बेवफ़ा के जख्मों से उबरने लगा हूँ मैं" मुझे नहीं पता उस समय क्या हुआ की ये शब्द मेरे मुँह से अपने आप ही निकले| Mam ने इन शब्दों को बड़े घ्यान से सुना था पर उन्होंने इसे कुरेदा नहीं, क्योंकि वो जानती थी की मैं उदास हो कर बैठ जाऊँगा और फिर कहीं नहीं जाऊँगा| उन्होंने ऐसे जताया जैसे की कुछ सुना ही ना हो और बोली; "चलो जल्दी!" मैंने भी उनकी बात का विश्वास कर लिया और उनके साथ चल दिया| "तो पहले थोड़ा नाश्ता हो जाए?" Mam ने कहा, पर मुझे भूख नहीं थी इसलिए मैंने सोचा वहाँ जा कर मैं खाने से मना कर दूँगा| Mam ने सीधा अमीनाबाद का रुख किया, गाडी पार्क की और टुंडे कबाबी खाने के लिए चल दीं| पूरे रस्ते वो पटर-पटर बोलती जा रही थीं, मेरा ध्यान आस-पास की दुकानों और लोगों पर बंट गया था| दूकान पहुँच कर मैं उनके लिए एक प्लेट टुंडे कबाबी और रुमाली रोटी लाया तो वो मेरी तरफ हैरानी से देखने लगीं और बोलीं: "ये तो मैं अकेली खा जाऊँगी! तुम्हारी प्लेट कहाँ है?"

"मेरा मन नहीं है...आप खाओ|" मैंने मना करते हुए कहा|

"ठीक है.... मैं भी नहीं खाऊँगी!" ऐसा कहते हुए उन्होंने एकदम से मुँह बना लिया|

"Mam प्लीज मत कीजिये ऐसा!" मैंने रिक्वेस्ट करते हुए कहा|

"अगर मुझे अकेले खाने होते तो मैं तुम्हें क्याहैं क्यों लाती? इंसान को कभी-कभी दूसरों की ख़ुशी के लिए भी कुछ करना चाहिए!" Mam ने उदास होते हुए कहा| "अच्छा एक बाईट तो ले लो|" इतना कहते हुए Mam ने अपनी प्लेट मेरी तरफ बढ़ा दी| मैंने हार मानते हुए एक बाईट ली और बाकी का उन्होंने ख़ुशी-ख़ुशी खाया|

"नेक्स्ट स्टॉप रेजीडेंसी!"  ये कहते हुए Mam ने गाडी स्टार्ट की, पूरी ड्राइव के समय मैं बस इधर-उधर देखता रहा क्यों की मन में शराब की ललक भड़कने लगी थी| जब भी कोई ठेका दिखता तो मन करता की यहीं उतर जा और शराब ले आ, पर Mam के साथ होने की वजह से मैं खामोश रहा और अपनी ललक को पकड़ के उसे शांत करने लगा| शायद Mam भी मेरी बेचैनी भाँप गई थी इसलिए अब जब भी मेरी गर्दन ठेके की तरफ घूमती तो वो मेरा ध्यान भंग करने के लिए कुछ न कुछ बात शुरू कर देतीं| किसी तरह से हम रेजीडेंसी पहुँचे और वहाँ घूमने लगे और वहाँ भी mam चुप नहीं हुईं और मुझे अपने बैंगलोर के घर के बारे में बताने लगी| बैंगलोर का नाम सुनते ही मेरा मन दुखने लगा और एक बार फिर अनायास ही मेरे मुँह से कुछ शब्द निकले;

"इन अंधेरों से मुझे कहीं दूर जाना था...

तुम्हारे साथ मुझे अपना एक सुन्दर आशियाना बसना था..."


ये सुन कर mam एक दम से चुप हो गईं और मुझे भी एहसास हुआ की मुझे ये सब नहीं कहना चाहिए था| माने इधर-उधर देखना शुरू किया और मजबूरन बहाना बनाना पड़ा; "Mam ... भूख लगी है!" ये सुनते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी आ गई; "नेक्स्ट स्टॉप इदरीस की बिरयानी!!!" दोपहर के दो बजे हम बिरयानी खाने पहुँचे और मैंने अपने लिए हाफ और मम के लिए फुल प्लेट बिरयानी ली| मेरा तो फटाफट खाना हो गया पर mam अभी भी खा रही थीं| मैं पानी की बोतल लेने गया और मेरे जाते ही वहाँ सिद्धार्थ अपने ऑफिस के colleague के साथ वहाँ आ गया|

सिद्धार्थ: Hi mam!!!

अनु Mam: Hi सिद्धार्थ, so good to see you! यहाँ लंच करने आये हो?

सिद्धार्थ: जी mam!!!

अनु Mam: और अब भी वहीँ काम कर रहे हो?

सिद्धार्थ: नहीं mam ...सर ने काम बंद कर दिया था, मैंने दूसरी जगह ज्वाइन कर लिया और मानु ने अपने ही ऑफिस में अरुण को लगा लिया|

अब तक सिद्धार्थ का colleague आर्डर करने जा चूका था और mam को उससे बात करने का समय मिल गया|

अनु Mam: सिद्धार्थ ... If you don’t ind me asking, मानु को क्या हुआ है? मैं उससे कल रात मिली और उसकी हालत मुझसे देखि नहीं जाती! वो बहुत बीमार है, Fatty liver, Depression, Abdomen pain, loss of appetite...I hope तुमने उसे देखा होगा? वो बहुत कमजोर हो चूका है!

सिद्धार्थ: Mam वो चूतिया हो गया है!

सिद्धार्थ ने गुस्से में कहा और फिर उसे एहसास हुआ की उसने mam के सामने ऐसा बोला इसलिए उसने उनसे माफ़ी मांगते हुए बात जारी रखी;

सिद्धार्थ: सॉरी mam .... मुझे ऐसा...

अनु Mam: Its okay सिद्धार्थ, I can understand! (mam ने सिद्धार्थ की बात काटते हुए कहा|)

सिद्धार्थ: He was in love with Ritika, अब पता नहीं दोनों के बीच में क्या हुआ? ये साला देवदास बन गया! मैंने और अरुण ने इसे बहुत समझाया पर किसी की नहीं सुनता, सारा दिन बस शराब पीटा रहता है, अच्छी खासी जॉब थी वो भी छोड़ दी! अब आप बता रहे हो की ये इतना बीमार है, अब ये किसी की नहीं सुनेगा तो पक्का मर जायेगा|

अनु Mam: तो उसके घर वाले?

सिद्धार्थ: उन्हें कुछ नहीं पता, ये घर ही नहीं जाता बस उनसे फ़ोन पर बात करता है| अरुण बता रह था की बीच में दो दिन ये बहुत खुश था पर उसके बाद फिर से वापस दारु, गाँजा!

इतने में मैं पानी की बोतल ले कर आ गया|

सिद्धार्थ: और देवदास?

ये सुनते ही मैं उसे आँखें दिखने लगा की mam के सामने तो मत बोल ऐसा| पर वो मेरे बहुत मजे लेता था;

सिद्धार्थ: तू mam के साथ आया है?

मैं: हाँ... आजकल मैं गाइड की नौकरी कर ली है|

मैंने माहौल को हल्का करते हुए कहा, पर वो तो mam के सामने मेरी पोल-पट्टी खोलने को उतारू था;

सिद्धार्थ: चलो अच्छा है, कम से कम तू अपने जेलखाने से तो बाहर निकला|

मैंने उसे फिर से आँख दिखाई तो वो चुप हो गया|

मैं: चलें mam?!

अनु mam: चलते हैं.... पहले जरा तुम्हारी रिपोर्ट तो ले लूँ सिद्धार्थ से!

पर तभी उसका colleague आ गया और सिद्धार्थ ने मुझे उससे introduce कराया;

सिद्धार्थ: ये है मेरा भाई जो साला इतना ढीढ है की मेरी एक नहीं सुनता!

ये सुन कर सारे हंस पड़े पर अभी उसका मुझे धमकाना खत्म नहीं हुआ था;

सिद्धार्थ: बेटा सुधर जा वरना अब तक मुँह से समझाता था, अब मार-मार के समझाऊँगा?"

मैं: छोटे भाई पर हाथ उठाएगा?

और फिर सारे हँस पड़े| Mam का खाना खत्म होने तक हँसी-मजाक चलता रहा और मैं भी उस हँसी-मजाक में हँसता रहा| काफी दिनों बाद मेरे चेहरे पर ख़ुशी दिखाई दे रही थी जिसे देख Mam और सिद्धार्थ दोनों खुश दिखे|


विदा ले कर मैं और mam चलने को हुए तो सिद्धार्थ ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और अचानक से मेरे गले लग गया| भावुक हो कर वो कुछ बोलने ही वाला था की mam ने पीछे से अपने होठों पर ऊँगली रख कर उसे चुप होने को कहा| सिद्धार्थ ने बात समझते हुए धीरे से मेरे कान में बुदबुदाते हुए कहा; "भाई ऐसे ही मुस्कुराता रहा कर! तेरी हँसी देखने को तरस गया था!" उसकी बात दिल को छू गई और मैं भी थोड़ा रुनवासा हो गया; "कोशिश करता हूँ यार!" फिर हम अलग हुए और वो ऑफिस की तरफ चल दिया और मैं अपने आँसुओं को पूछने के लिए रुम्मल ढूँढने लगा, तो एहसास हुआ की मेरी आँखों का पानी मर चूका है| दर्द तो होता है बस वो बाहर नहीं आता और अंदर ही अंदर मुझे खाता जा रहा है|

Mam ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे बिना कुछ बोले पार्किंग की तरफ ले जाने लगीं| मैं भी बिना कुछ बोले अपने जज्बातों को फिर से अपने सीने में दफन कर उनके साथ चल दिया| अब mam भी चुप और  मैं भी चुप तो मुझे कुछ कर के उन्हें बुलवाना था ताकि मेरे कारन उनका मन खराब न हो| "तो नेक्स्ट स्टॉप कहाँ का है mam?" मैंने पुछा तो वो कुछ सोचने लगी और बोलीं; "हज़रतगंज मार्किट!!!"

                                                                                                ............और इस तरह हम शाम तक टहलते रहे, रात हुई और Mam ने जबरदस्ती डिनर भी करवाया और फिर हम वापस गाडी के पास आ रहे थे की मेरे पूरे जिस्म में बगावत छिड़ गई! मेरे हाथ-पेअर कांपने लगे थे और उन्हें बस अपनी दवा यानी की दारु चाहिए थी| मैं mam से अपनी ये हालत छुपाते हुए चल रहा था, गाडी में बैठ कर अभी कुछ दूर ही गए होंगे की mam को शक हो गया; "Are you alright?" उन्होंने पुछा तो मैंने ये कह कर टाल दिया की मैं बहुत थका हुआ हूँ| फिर आगे उन्होंने और कुछ कहा नहीं और मुझे सोसाइटी के गेट पर छोड़ा; "अच्छा मैं तो तुम्हें एक बात बताना ही भूल गई, Palmer Infotech याद है ना?”

मैंने हाँ में सर हिलाया| "मेरी उनसे एक प्रोजेक्ट पर बात चल रही थी जिसके सिलसिले में 'हमें' New York जाना है|"

"हम?" मैंने चौंकते हुए कहा|

"हाँ जी... हम! लास्ट प्रोजेक्ट पर तुमने ही तो सारा काम संभाला था!"

"पर mam...." मेरे आगे कुछ कहने से पहले ही उन्होंने मेरे सामने हाथ जोड़ दिए;

"मानु प्लीज मान जाओ! देखो मैं इतना बड़ा प्रोजेक्ट नहीं संभाल सकती!"

"mam .... मैं सोच कर कल बताता हूँ|"

"ok ... तो कल सुबह 10 बजे तैयार रहना!"

"क्यों?" मैंने फिर से चौंकते हुए पुछा|

"अरे यार! लखनऊ घुमाना है ना तुमने!" इतना कह कर वो हँसने लगी, मैं भी उनके इस बचपने पर हँस दिया और Good Night बोल कर घर आ गया| घर घुसते ही मैंने सबसे पहले बोतल खोली और उसे अपने मुँह से लगा कर पानी की तरह पीने लगा, आधी बोतल खींचने के बाद मैं अपनी पसंदीदा जगह, बालकनी में बैठ गया| अब मेरा जिस्म कांपना बंद हो चूका था और अब समय था अभी जो mam ने कहा उसके बारे में सोचने की| आज 31 अक्टूबर था, 25 नवंबर को दिवाली और 27 नवंबर को रितिका की शादी थी, मुझे कैसे न कैसे इस शादी में शरीक नहीं होना था! तो अगर मैं mam की बात मान लूँ तो मुझे विदेश जाना पड़ेगा और मैं इस शादी से बच जाऊँगा! ...... पर घर वाले मानेंगे? ये ख़याल आते ही मैं सोच में पड़ गया| इस बहाने के अलावा मेरे जहन में कोई और बहाना नहीं था, जो भी हो मुझे इसी बहाने को ढाल बना कर ये लड़ाई लड़नी थी| मन को अब थोड़ा चैन मिला था की अब मुझे इस शादी में तो शरीक नहीं होना होगा इसलिए उस रात मैंने कुछ ज्यादा ही पी| अगली सुबह किसी ने ताबड़तोड़ घंटियां बजा कर मेरी नींद तोड़ी! मैं गुस्से में उठा और दरवाजे पर पहुँचा तो वहाँ मैंने अनु mam को खड़ा पाया| उनके हाथों में एक सूटकेस था और कंधे पर उनका बैग, मुझे साइड करते हुए वो सीधा अंदर आ गईं और मैं इधर हैरानी से आँखें फाड़े उन्हें और उनके बैग को देख रहा था| "मेरी फ्रेंड और उसके हस्बैंड आज सुबह वापस आ गए तो मुझे मजबूरन वहाँ से निकलना पड़ा| अब यहाँ मैं तुम्हारे सिवा किसी को नहीं जानती तो अपना समान ले कर मैं यहीं आ गई|" मैं अब भी हैरान खड़ा था क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरे इस place of solitude में फिर कोई आ कर अपना घोंसला बनाये और जाते-जाते फिर मुझे अकेला छोड़ जाए| "क्या देख रहे हो? मैंने तो पहले ही बोला था न की If I ever need a place to crash, I'll let you know! ओह! शायद मेरा यहाँ आना तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" इतना कह कर वो जाने लगीं तो मैंने उनके सूटकेस का हैंडल पकड़ लिया| "आप मेरे वाले कमरे में रुक जाइये मैं दूसरे वाले में सो जाऊँगा|" फिर मैंने उनके हाथ से सूटकेस लिया और अपने कमरे में रखने चल दिया| मुझे जाते हुए देख कर mam पीछे से अपनी चतुराई पर हँस दीं उन्होंने बड़ी चालाकी से जूठ जो बोला था!
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:46 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:36 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-13-2019, 11:43 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:28 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 01:14 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-15-2019, 06:12 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 06:56 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 07:45 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 07:51 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-16-2019, 10:35 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 11:39 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-17-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-19-2019, 07:49 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:52 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:50 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-20-2019, 07:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-21-2019, 06:15 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-22-2019, 09:21 PM
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