Free Sex Kahani काला इश्क़!
12-23-2019, 09:36 PM,
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
update 71

अगले दिन की बात है, सुबह मैं अपनी बेटी के साथ माँ के पास बैठा था की ताऊ जी आये और मुझे एक काम सौंपा| "ताऊ जी मैं थोड़ी देर बाद चला जाऊँ? अभी नेहा सोइ नहीं है, मैं नहीं हूँगा तो ये फिर से रोने लगेगी! इसे सुला कर चला जाता हूँ!" मैंने कहा तो ताऊ जी मुस्कुरा दिए और ठीक है कहा| कुछ देर बाद नेहा सो गई तो मैंने सोचा की मैं उसे रितिका को दे दूँ पर वो मुझे घर में कहीं नहीं मिली| मैंने नेहा को माँ की बगल में लिटाया और उन्हें बता कर ताऊ जी का कहा काम करने चल दिया| हमारे गाँव में एक कुँआ है जिसका लोग अब इस्तेमाल नहीं करते और ना ही वहाँ कोई आता-जाता है क्योंकि सब ने हैंडपंप लगवा लिया है| मैं उसी के पास से गुजर रहा था की मेरी नजर वहाँ एक लड़की पर पड़ी जो बड़ी तेजी से उसकी तरफ जा रही थी| साडी का रंग देख मुझे समझते देर ना लगी की ये रितिका ही है, मैं तुरंत उसके पीछे भागा| वो अंदर कूदने के लिए अपना एक पाँव बढ़ा चुकी थी की मैंने उसका हाथ पीछे से पकड़ा और जोर से पीछे जमीन पर गिरा दिया| "मरने का इतना शौक है तो किसी ऐसे कुँए में कूद जिसमें पानी हो! इसमें मुश्किल से 4 फुट पानी होगा और उसमें तू डूब के नहीं मारेगी! जान देने के लिए कलेजा चाहिए होता है, एक चाक़ू ले और अपनी कलाई पर vertically ऊपर की तरफ काट और गहरा काट! है हिम्मत?" मैंने रितिका पर चिल्लाते हुए कहा| "तुझे क्या लगता है तेरे जान देने से तेरे पाप कम हो जाएंगे?" मैंने उसे डाँटते हुए कहा|

"कम नहीं होंगे पर मुझसे आपकी ये बेरुखी नहीं देखि जाती!" रितिका ने रोते हुए कहा|

"मेरी ये बेरुखी कभी खत्म नहीं होगी! कम से कम मेरे जीते जी तो नहीं!  और तुझे क्या पड़ी है मेरी बेरुखी की? अभी तेरा परिवार होता तो तुझे घंटा कोई फर्क नहीं पड़ता! ना ही कोई मुझे यहाँ बुलाता, तुझे क्या लगता है की मैं नहीं जानता की मुझे यहाँ क्यों बुलाया गया है? आखिर अचानक से कैसे सब के मन में मेरे लिए प्यार जाग गया| जहाँ कुछ महीनों पहले तक सब मेरे बिना त्यौहार मना रहे थे और मैं वहाँ सब को याद कर के मरा जा रहा था| जब दूसरों को उनके परिवार से मिलते देखता था तो टीस उठती थी मन में! बुरा लगता था की परिवार होते हुए भी मैं एक अनाथ की जिंदगी जी रहा था, मेरा मन मेरे परिवार से दूर नहीं रहना चाहता| अपना परिवार ...उसके प्यार के लिए स्वार्थी बन गया हूँ!" इतना कह कर मैं वहाँ से चल दिया| शाम को जब मैं वापस पहुँचा तो रितिका आंगन में सर झुकाये बैठी सब्जी काट रही थी| मैं माँ के पास पहुँचा और नेहा को अपनी छाती से लगा लिया और उसके माथे पर चुम्मियों की झड़ी लगा दी| "बड़ी मुस्किल से चुप हुई है!" माँ ने कहा| मैंने नेहा को गोदी में ऊपर उठाया, उसका मुँह मेरी तरफ था, मैं तुतलाती हुई जुबान में उससे बोला; "मेला बेटा दादी को तंग करता है! उनकी बात नहीं सुनता?" ये सुन कर नेहा की किलकारी गूंजने लगी| 


        मैंने उसे फिर से अपने सीने से लगाया और माँ के पास बैठ गया| माँ की तबियत में अब सुधार था पर अभी तक वो कमरे से बाहर नहीं आईं थी| कमजोरी अब भी थी, पर चूँकि मैं उनके पास रहता था और उन्हें समय पर दवाई देता था अपने हाथ से खाना खिलाता था इसलिए उनकी तबियत में अब सुधार था| रितिका जब घर आई तो मुझसे नजरें चुराती फिर रही थी, उसे डर था की कहीं मैं सबका ना बोल दूँ की वो खुदखुशी करने गई थी! खेर रात हुई और खाना खाने के बाद मैं और नेहा ऊपर मेरे कमरे में थे| नेहा को नींद नहीं आ रही थी, तो मैंने उसे अपनी जाँघों के सहारे बिठाया और उससे बात करने लगा| मुझे उस छोटी सी बच्ची से बात करना बहुत अच्छा लगता था? भले ही वो मेरी बात नहीं समझती थी पर जब वो किलकारियाँ मैं सुनता था तो दिल को एक अजीब सुकून मिलता था| रितिका का कमरा मेरे बगल में ही था तो वो चुप-चाप मेरी बातें सुना करती| जब काफी देर बात करने के बाद भी नेहा नहीं सोइ तो मैंने सोचा की उसे लोरी सूना दूँ|

"चंदनिया छुप जाना रे
छन भर को लुक जाना रे
निंदिया आँखों में आए
बिटिया मेरी मेरी सो जाए
हुम्म…निंदिया आँखों में आए
बिटिया मेरी मेरी सो जाए
लेके गोद में सुलाऊँ
गाउँ रात भर सुनाऊँ
लोरी लोरी लोरी लोरी लोरी...."     

लोरी सुनते-सुनते ही मेरी बेटी नींद की आगोश में चली गई! मैंने खुद को कंबल से लपेट लिया ताकि मेरी बेटी ठंड से ना उठ जाए! सुबह हुई और धुप अच्छी थी, मैं नेहा को ले कर छत पर आ गया और पीठ टिका कर नीचे बैठ गया| नेहा अंगड़ाई लेते हुए उठी और मुझे अपने सामने देख कर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उसके माथे को चूम कर Good Morning कहा! तभी रितिका ऊपर आ गई, उसके हाथ में कपड़ों से भरी एक बाल्टी थी| रितिका कपड़े सुखाने के लिए डाल रही थी और मैं नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| "सॉरी कल जो भी मैं करने जा रही थी! पागल हो गई थी, दिमाग काम नहीं कर रहा था!" रितिका बोली पर मैंने उसका कोई जवाब नहीं दिया और नेहा को गोद में ले कर नीचे जाने लगा| तभी रितिका ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर मुझे रोक दिया! "इन कुछ दिनों में मैं सपने सजाने लगी थी, वो सपने जिसमें सिर्फ हम दोनों और नेहा थे! क्या हम दोनों फिर से एक नहीं हो सकते? प्यार तो आप अब भी मुझसे करते हो, तो क्या हम इस बार घर से नहीं भाग सकते?" आँखों में आँसू लिए रितिका बोली|

"प्यार और तुझसे? 'बेवकूफ' समझा है मुझे? एक बार 'गलती' कर चूका हूँ तुझ पर भरोसा करने की, दुबारा नहीं करने वाला! तब तुझे ऐशों-आराम की जिंदगी चाहिए थी, अब मुझे चैन की जिंदगी चाहिए!" इतना कह कर मैंने रितिका का हाथ जतक दिया और नीचे आने लगा|

"तो आप ही बोलो की आपकी माफ़ी पाने के लिए, भरोसा वापस पाने के लिए क्या करूँ?" रितिका ने चीखते हुए कहा| उसकी आवाज नीचे तक गई और आंगन में बैठी ताईजी और भाभी ने साफ़ सुन लिया| मैं भी चिल्लाते हुए बोला; "Just leave me alone!" मेरे चिल्लाने से नेहा रोने लगी तो मैं उसे प्यार से पुचकारने लगा और बिना किसी को कुछ बोले घर से निकल गया| कुछ दूर तक पहुँचते-पहुँचते नेहा चुप हो गई; "सॉरी बेटा मैं इतनी जोर से चिल्लाया, पर आपकी मम्मी जबरदस्ती मेरे नजदीक आना चाहती है और मैं उसे जरा भी पसंद नहीं करता|" नेहा बड़ी मासूमियत से मेरी तरफ देखने लगी जैसे पूछ रही हो की क्या मैं उससे भी नफरत करता हूँ; "आप तो मेरी प्याली-प्याली राजकुमारी हो, आप में तो मेरी जान बस्ती है! मैं आपसे बहुत-बहुत प्याल करता हूँ!" ये सुन कर नेहा का चेहरा फिर से मुस्कुराने लगा| कुछ देर बाद मैं घर आया और माँ को दवाई दी और उनके पास बैठ गया| "बेटा माफ़ कर दे उसे! उसने बहुत कुछ भोगा है!" ताई जी पीछे से आईं और बोलीं| मैंने बस ना में गर्दन हिलाई और नेहा को लेके एक बार फिर से घर से बाहर आ गया| नेहा को गोद में लिए मैं ऐसे ही टहल रहा था की पिताजी का फ़ोन आया और उन्होंने मुझे जल्दी से घर बुलाया| मैं घर पहुंचा तो देखा बाहर एक पुलिस की जीप खड़ी है| अंदर पहुँच कर देखा तो थानेदार और काला कोट पहने वकील एक चारपाई पर बैठे थे और बाकी सब उनके सामने दूसरी चारपाई पर बैठे थे| पिताजी ने मुझे अपने पास बैठने को कहा, थानेदार कुछ बोल रहा था पर मुझे देखते ही चुप हो गया| "थानेदार साहब ये मेरा बेटा है, कुछ दिन पहले ही आया है|" पिताजी बोले और थानेदार ने अपनी बात आगे बढ़ाई; "काफी मशक्कत के बाद हमें वो लोग हाथ लगे जिन्होंने मंत्री साहब के घर पर हमला किया था! हमारी अच्छी खासी खातिरदारी के बाद उन्होंने सब कबूल कर लिया है| इस सब का मास्टरमाइंड राघव नाम का आदमी है जिससे मंत्री साहब की पुरानी दुश्मनी थी! उसी ने वो आदमी भेजे थे मंत्री साहब के पूरे परिवार को मरने के लिए! फिलहाल उसकी तलाश जारी है, हमे लगता है कि या तो वो सरहद पार कर नेपाल निकल गया है या फिर कहीं अंडरग्राउंड हो गया है| जैसे ही कुछ पता चलेगा हम आपको खबर कर देंगे|"

"पर साहब हमारे परिवार को तो कोई खतरा नहीं है?" ताऊ जी ने पुछा|

"नहीं कोई घबराने की बात नहीं है! राघव की दुश्मनी सिर्फ मंत्री जी से थी, हमें नहीं लगता की वो आप पर या रितिका पर कोई जानलेवा हमला करेगा|!" थानेदार ने आश्वसन दिया| अब बारी थी वकील साहब के बोलने की, पर उनके कुछ कहने से पहले ही मेरा फ़ोन बज उठा| कॉल अनु का था और मैं उस वक़्त बात नहीं कर सकता था इसलिए मैंने; "थोड़ी देर में बात करता हूँ" कह कर काट दिया| 

 "देखिये अब जो मैं कहने जा रहा हूँ वो आप सभी के फायदे की है! मंत्री जी तो अब रहे नहीं, नाही उनके खानदान का अब कोई बचा, ले दे कर एक रितिका उनकी बहु और उसकी बेटी बची है| ऐसे में उनकी सारी जायदाद पर रितिका का हक़ बनता है, मुझे आपकी आज्ञा की जर्रूरत है और मैं कोर्ट में claim का केस बना देता हूँ...." आगे वकील साहब कुछ भी कहते उसके पहले ही ताऊ जी बोल पड़े; "नहीं वकील साहब हमें कुछ नहीं चाहिए! मुझे और मेरे परिवार को इन कानूनी पचड़ों से दूर रखो|"   

"भाई साहब आप दिल से नहीं दिमाग से सोचिये, कल को रितिका की बेटी बड़ी होगी उसकी पढ़ाई-लिखाई, शादी-दहेज़ का खर्चा और आप लोग जो अभी इस चार कमरों के घर में रह रहे हो उसकी जगह आलिशान महल में रहोगे! आप claim नहीं करोगे तो इसे पार्टी वाले खा जाएन्गे? फिर आपको क्या मिलेगा? कम से कम ये तो सोचिये की रितिका का सुहाग उजड़ा है!" वकील साहब ने अपनी तरफ से सारे तर्क एक थाली में परोस कर हमारे आगे रख दिए पर ताऊ जी का निर्णय अडिग था; "वकील साहब मेरा जवाब अब भी ना है, नेहा की परवरिश मैं और मेरा परिवार अच्छे से कर सकता है| उसके लिए हमें किसी की सहायता नहीं चाहिए! इसी दौलत के चलते ये हत्याकांड हुआ है और अब हम इसमें दुबारा पड़ कर फिर से कोई खतरा नहीं उठाना चाहते!" ताऊ जी ने हाथ जोड़ दिए और वकील साहब आगे कुछ न बोल पाए| ताऊ जी कहना सही था क्योंकि ये दौलत मंत्री ने खून से कमाई थी और अब इसे अपना लेना ऐसा था की गरीबों की हाय लेना! वकील साहब और थानेदार के जाने के बाद सब आंगन में बैठ गए|

             भाभी ने सब के लिए चाय बनाई और सब कौरा तापने लगे| (कौरा = bonfire) रितिका सब को चाय देने लगी और ताऊ जी ने उसे वहीं बैठने को कहा| "देख बेटी तुझे चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं है| हम सब हैं यहाँ तेरे लिए!" ताऊ जी ने रितिका के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| इतने में उसका रोना छूट गया और चन्दर भैया ने उसे अपने पास बिठाया और उसके आँसू पोछे| सब उसे दिलासा देने लगे और मैं नेहा को अपनी छाती से चिपकाए खामोश बैठा रहा| ताऊ जी ने जब मुझे खामोश देखा तो वो बोले; "बेटा माफ़ कर दे इसे! तू तो इसका बचपन से इसका ख्याल रखता आया है, तूने इसकी ख़ुशी के लिए हर वो चीज की जो तू कर सकता था और अब देख इसकी आँखें हमेशा नम रहती हैं! इतनी जिद्द ठीक नहीं!"

"माफ़ करना ताऊ जी, पर मैं इसे माफ़ नहीं कर सकता! इसने मुझे पुछा-नहीं, बताया नहीं और उस लड़के से प्यार करने लगी! मैं शहर में ही रहता था ना, क्या इसने मुझे बताया की ये किसी से प्यार कर रही है? आप ही कह रहे हो की मैं इसका सबसे बड़ा हिमायती था तो इसे तब मेरी याद नहीं आई? चुप-चाप इसने सब कुछ तय कर लिया! ये सब जानती थी, उस मंत्री के बारे में अपनी माँ के बारे में और फिर भी इसने वो कदम उठाया| इसे नहीं पता की उस मंत्री के घर में इसे खून में डूबी रोटियाँ खानी पड़ेंगी? पर नहीं तब तो मैडम जी को इश्क़ का भूत सवार था! जब आप सब मुझे घर से निकाल रहे थे तब ये कहाँ थी? तब बोली ये कुछ आपसे? इसने एक बार भी कहा की 'मानु चाचा' को मत निकालो? मैं आप सब के सामने झूठा बना ताकि इसे पढ़ने को मिले और इसे इश्क़ लड़ाना था तो लड़ाओ भाई!" मैंने आग बबूला होते हुए कहा|

"बेटा जो हुआ उसे छोड़ दे...." पिताजी बोले पर उनकी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही मेरा गुस्सा फिर फूटा;

"छोड़ दूँ? आप सब मुझे एक बात बताओ अगर ये हादसा नहीं हुआ होता, ये अपनी जिंदगी सुख से गुजार रही होती तो क्या मैं आज यहाँ बैठा होता? क्या जर्रूरत रहती इस घर को मेरी! मुझे माफ़ करना ताऊजी, पिताजी, ताई जी और माँ (जो अंदर बैठीं सब देख और सुन रहीं थीं!) पर आप सब तो मुझे घर निकला दे कर 'इसकी' खुशियों में लग गए, आप सब ने त्यौहार भी बड़े अच्छे से मनाये पर आप में से किसी ने भी मेरे बारे में सोचा? मानता हूँ की मैं इसे idiot की शादी मैं काम करने की बजाए अपनी जॉब और विदेश जाने के बारे में सोचा जो गलत था पर क्या इसकी इतनी बड़ी सजा होती है? आप सब को इसका गम दिखता है मेरा नहीं? पूरा एक साल मैंने आप सब को याद कर के कैसे गुजारा ये मैं जानता हूँ! दिवाली पर मैं रो रहा था की मेरा परिवार मुझसे दूर है! नए साल में मैं अपने माँ-बाप के पाँव छूना चाहता था, उनका आशीर्वाद लेना चाहता था पर मेरे परिवार ने तो जिन्दा होते हुए भी मुझे अनाथ बना दिया था! ऐसी भी क्या बेरुखी थी की आप सब ने मुझे इस कदर काट के खुद से अलग कर दिया जैसे मेरी आपको कोई जर्रूरत ही नहीं थी! आपको क्या लगा की संकेत आपके पास क्यों आया था? क्यों वो शादी ब्याह का काम देख रहा था? उसे पड़ी ही क्या थी पर उसने सिर्फ मेरे कहने पर ये सब किया! मैं तो ना रहते हुए भी आपको सहारा दे गया और मुझे क्या मिला? ताऊ जी के मुँह से बीएस चार शब्द सुन कर लौट आया क्यों? क्योंकि मुझे मेरा परिवार प्यारा है!" मैंने कहा तो सब के सर झुक गए| अब मैं क्या कहता इसलिए उठ कर ऊपर अपने कमरे में जाने लगा तो माँ ने अंदर से मुझे इशारे से अपने पास बुलाया, मैं नेहा को ले कर उनके पास आया तो उन्होंने मुझे अपने गले लगा लिया और रोने लगीं; "मुझे माफ़ कर दे बेटा! मैं तेरी गुनहगार हूँ...सब की तरह मैं भी स्वार्थी हो गई और अपने ही खून से मुँह मोड़ लिया| मैं तेरे पाँव पड़ती हूँ!" माँ ने मेरे पाँव छूने चाहे तो मैंने उन्हें रोक दिया; "क्यों मुझे पाप का भागी बना रहे हो माँ! जो कुछ भी हुआ मैं उसे भूलना चाहता हूँ पर मुझे जब जबरदति रितिका से बात करने को कहा जाता है तो ये सब बाहर आ जाता है! इस घर में मेरे अलावा और 6 लोग हैं जो 'अब' उसे प्यार करते हैं तो फिर मेरे प्यार की उसे क्या जर्रूरत है?" मैंने कहा तो पीछे से ताई जी आ गईं और बोलीं; "ठीक है बेटा! आज के बाद तुझे उससे बात नहीं करनी ना कर पर हम सब को माफ़ कर दे! हम सब ने बहुत बड़ी गलती की, बल्कि पाप किया है!" ताई जी ने हाथ जोड़ते हुए कहा| माँ और मेरी बात सब बाहर सुन रहे थे और मैं अब किसी को शर्मिंदा नहीं करना चाहता था इसलिए मैंने ताई जी के गले लग कर उन्हें माफ़ कर दिया| एक-एक कर सारे मेरे गले लगे और दुबारा माफ़ी मांगी, अब मैं क्या करता वो मेरा परिवार था और दिल से माफ़ी मांग रहा था| बदला तो ले नहीं सकता था इसलिए उन्हें माफ़ कर दिया! रात में अनु से बात हुई और उसे सब कुछ बताया तो वो मेरे दिल का हाल समझ गई और कोशिश करती रही के मैं उन बातों को दिल से लगा कर फिर गलत रास्ते पर ना भटक जाऊँ|

                                  अगली सुबह फिर रितिका ने काण्ड किया! नेहा को दूध पिला कर उसने मुझे दिया और बोली; "अब से ये आपकी जिम्मेदारी है!" उसकी ये बात ताई जी, भाभी, माँ, चन्दर भैया और पिताजी ने सुन ली| ताऊ जी उस टाइम घर पर नहीं थे, इतना कह कर रितिका दौड़ती हुई बाहर चली गई| "मानु रोक उसे कहीं कुछ गलत ना कर ले!" पिताजी चिल्लाये मैंने नेहा को माँ के पास लिटाया और मैं उसके पीछे दौड़ा| पिताजी और सब लोग जल्दी से बाहर आये, मैंने करीब 100 मीटर की दूरी पर जा कर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींच कर नीचे पटक दिया| मैंने रितिका को कंधे पर उठाया और वो रोते हुए छटपटाने लगी| मैं बस अपने आपको उसे मारने से रोकता रहा वर्ण मन तो किया अभी उसे एक झापड़ रसीद करूँ! सब ने मुझे उसे कंधे पर लाते हुए देखा तो सब अंदर चल दिए| एक-दो जन मुझे रितिका को ऐसे ले जाते हुए देखने लगे तो घर की इज्जत बचने के लिए मैंने हँसता हुआ चेहरा बना लिया ताकि उन्हें लगे की यहाँ मजाक चल रहा है| शुक्र है किसी ने कुछ कहा नहीं और वो अपने-अपने रस्ते चले गए| अंदर आंगन में आते ही मैंने उसे जमीन पर पटक दिया और उस पर जोर से चिल्लाया; "खत्म नहीं हुआ तेरा ड्रामा?" फिर मैं इधर-उधर डंडा ढूँढने लगा, रसोई में मुझे एक पतली सी लकड़ी मिली तो मैं उससे रितिका की छिताई करने को उठा लाया| मेरे हाथ में डंडा देख कर पिताजी बीच में आ गए और मेरा हाथ पकड़ लिया; "छोड़ दो पिताजी, आज तो मैं इसके सर से ये खुदखुशी का भूत उतार देता हूँ! आपको बताया नहीं पर कुछ दिन पहले ये कुँए में कूदने गई थी, वो तो मैं सही समय पर पहुँच गया और इसे रोक लिया और आज फिर इसने वही ड्रामा किया|" मैं गरजते हुए बोला| "पागल मत बन! वो दुखी है...." पिताजी बोले पर उनकी बात पूरी होने से पहले ही मैं चिल्लाया; "कुछ दुखी-वुखी नहीं है ये! इतना ही दुखी होती और सच में मरना चाहती तो उस दिन उस सूखे कुँए में कूदने ना जाती और आज भी मुझे बता कर, ढिंढोरा पीट कर जाने की क्या जर्रूरत पड़ी इसे?" माने रसोई से चाक़ू उठाया और रितिका को दिखाते हुए बताया की कैसे करते हैं खुदखुशी| "उस दिन बोला था न, ऐसे चाक़ू ले, यहाँ कलाई में घुसा और चीरते हुए ऊपर की तरफ ले जा!" मैं उस टाइम बहुत गुस्से में था और नहीं जानता था की क्या बोल रहा हूँ, तभी पिताजी ने मुझे एक थप्पड़ मारा और मेरा होश ठिकाने लगाया| रितिका जमीन पर पड़ी रोटी जा रही थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हो रहा था सो मैं नेहा को ले कर बाहर चला गया| दोपहर को खाने के समय आया, तब तक ताऊ जी भी आ चुके थे और सब आंगन में ही बैठे थे| मैंने नेहा को माँ के पास लिटाया और पिताजी से हथजोड़ कर अपने व्यवहार के लिए माफी मांगी| ताऊ जी ने मुझे अपने पास बिठाया और प्यार से समझाया की मैं अपने गुस्से पर काबू रखूँ पर जब मैंने उन्हें सारी बात बताई तो सब को समझ आ गया की ये सब रितिका का ड्रामा है! वरना अगर उसे मरना ही होता तो 36 तरीके हैं जान देने के, वो बस सब का ध्यान अपनी तरफ खींचना चाहती थी| सबसे जर्रूरी बात जो केवल मैं जानता था वो ये की रितिका मुझ पर मानसिक दबाव बना रहे थी ताकि मैं उसके बहकावे में आ जाऊँ और फिर से उससे प्यार करने लग जाऊँ| पर अब सबकुछ साफ़ हो चूका था और वो ये नहीं जानती थी की ताऊ जी के मन में क्या चल रहा है! वो पूरा दिन सभी उदास थे और चिंतित थे क्योंकि किसी के पास इसका कोई इलाज नहीं था पर ताऊ जी कुछ और सोच रहे थे| दोपहर को सब ने चुप-चाप खाना खाया और मैं माँ के पास बैठा हुआ था और उनके पाँव दबा रहा था| नेहा सो रही थी और पूरे घर में एक दम सनाटा पसरा हुआ था| मेरा फ़ोन साइलेंट था और उसमें एक के बाद एक अनु के फ़ोन आने लगे थे| फ़ोन कब switched off हुआ ये तक नहीं पता चला मुझे! रात में ताऊ जी ने भाभी को रितिका के पास सोने को कहा ताकि वो फिर से कुछ ना करे!                  


अगली सुबह चाय पीने के बाद सब आंगन में बैठे थे, मैंने भी सोचा की मुझे आये हुए डेढ़ महीना हो गया है और माँ अब तक उसी कमरे में हैं| मैंने आज उन्हें बाहर सब के साथ बैठने की सोची| पिछले कुछ दिनों से मैं माँ की रोज मालिश कर रहा था जिसका असर दिखा और माँ मेरा सहारा लेते हुए बाहर आंगन में आईं| माँ ने सबसे पहले सूरज भगवान को नमस्कार किया और फिर चारपाई पर बैठ गईं| नाश्ता होने के बाद ताऊ जी ने सब को आंगन में धुप में बैठने को कहा और बात शुरू की; "मैं तुम सबसे एक बात करना चाहता हूँ! भगवान् ने रितिका के साथ बड़ा अन्याय किया है, इतनी सी उम्र में उसके सर से उसका सुहाग छीन लिया! वो कैसे इतनी बड़ी उम्र अकेली काटेगी! इसलिए मैं सोच रहा हूँ की उसकी शादी कर दी जाए!" ताऊ जी की बात सुन कर सब हैरान हुए, पहला तो उनकी बात सुन कर और दूसरा की ताऊ जी आज सबसे उनकी राय लेना चाह रहे थे जबकि आज तक वो सिर्फ फैसला करते आये हैं!
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:46 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:36 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-13-2019, 11:43 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:28 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 01:14 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-15-2019, 06:12 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 06:56 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 07:45 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 07:51 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-16-2019, 10:35 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 11:39 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-17-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-19-2019, 07:49 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:52 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:50 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-20-2019, 07:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-21-2019, 06:15 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-22-2019, 09:21 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-22-2019, 11:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 12:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 10:13 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-24-2019, 10:26 PM
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़! - by kw8890 - 12-23-2019, 09:36 PM

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