Free Sex Kahani काला इश्क़!
12-24-2019, 08:04 PM,
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
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नाश्ता होने के बाद ताऊ जी ने सब को आंगन में धुप में बैठने को कहा और बात शुरू की; "मैं तुम सबसे एक बात करना चाहता हूँ! भगवान् ने रितिका के साथ बड़ा अन्याय किया है, इतनी सी उम्र में उसके सर से उसका सुहाग छीन लिया! वो कैसे इतनी बड़ी उम्र अकेली काटेगी! इसलिए मैं सोच रहा हूँ की उसकी शादी कर दी जाए!" ताऊ जी की बात सुन कर सब हैरान हुए, पहला तो उनकी बात सुन कर और दूसरा की ताऊ जी आज सबसे उनकी राय लेना चाह रहे थे जबकि आज तक वो सिर्फ फैसला करते आये हैं!

update 72

"भैया आप जो कह रहे हैं वो सही है, अभी उम्र ही क्या है बच्ची की!" पिताजी बोले और घर में मौजूद सब ने ये बात मान ली| मैं अपनी इसमें कोई प्रतिक्रिया नहीं दी क्योंकि मैं तो नेहा के साथ खेलने में व्यस्त था| मेरा मन में बीएस यही था की मैं नेहा को खुद से दूर नहीं जाने दूँगा फिर चाहे मुझे जो करना पड़े| "मानु तू भी बता बेटा?" ताऊ जी ने मुझसे पुछा| "ताऊ जी आप का फैसला सही है! एक नै जिंदगी की शुरुआत करना ही सही होता है|" मैंने कहा| पर मेरा ये जवाब रितिका को जरा भी नहीं भाया, वो तेजी से मेरी तरफ आई और नेहा को मेरे हाथ से लेने लगी| नेहा ने मेरी ऊँगली पकड़ी हुई थी और वो मेरी गोद में खेल रही थी| "क्या कर रही है?" मैंने थोड़ा गुस्सा होते हुए कहा| "ये मेरी बेटी है!" रितिका ने गुस्से से कहा और उसका ये गुस्सा देख मैं अपने गुस्से पर काबू नहीं कर पाया| "जन्म देने से कोई माँ नहीं बन जाती| तेरी शादी हो रही है ना? जा के अपनी नै जिंदगी की शुरुरात कर| क्यों नेहा को उसका हिस्सा बना रही है?" मैंने नेहा को उससे दूर करते हुए कहा| "अच्छा? नेहा मेरी बेटी है, मैं चाहे जो करूँ उसके साथ तुम होते कौन हो कुछ बोलने वाले?" रितिका बोली और उसकी बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया| मैंने एक जोरदार तमाचा उसके गाल पर मारा दूसरा तमाचा भी उसके गाल पर पड़ता इसके पहले ही चन्दर भैया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और सिका फायदा उठा कर रितिका नेहा को मुझसे छीन कर ऊपर ले गई| अभी वो ऊपर की कुछ ही सीढ़ियां चढ़ी होगी की नेहा का रोना शुरू हो गया और उसका रोना सुन कर मेरा खून खोल गया| मैंने रितिका को रोकना चाहा पर सबने मुझे जकड़ लिया, मैं खुद को सबकी पकड़ से छुड़ाने लगा और छूट कर ऊपर भागना चाहता था ताकि आज रितिका की गत बिगाड़ दूँ! "छोड़ दो मुझे पिताजी! आज तो मैं इसे नहीं छोड़ूँगा!" पर किसी ने मुझे नहीं छोड़ा, सब के सब बस यही कह रहे थे की शांत हो जा मानु! पर मेरे जिस्म में तो आग लगी थी ऐसी आग जो आज रितिका को जला देना चाहती थी| जब मैं किसी के काबू में नहीं आया तो ताई जी ने नीचे से चिल्लाकर रितिका को आवाज मारी और उसे नीचे बुलाया| "मानु देख शांत हो जा...हम बात करते हैं!" ताई जी ने कहा पर मैं तो गुस्से से पागल हो चूका था और किसी की नहीं सुन रहा था| आखिर में माँ ही धीरे-धीरे उठीं और मेरे आगे हाथ जोड़ते हुए बोली; "बेटा....मान जा....शांत हो...जा...!" माँ ये कहते-कहते थोड़ा लडख़ड़ाईं तो मैंने एक जतके से खुद को छुड़ाया और उन्हें गिरने से थाम लिया| उन्हें सहारा दे कर बिठाया और गुस्से में उठा पर माँ ने मेरा हाथ पकड़ लिया; "तुझे मेरी कसम बेटा...बैठ यहाँ पे!" इतने में रितिका नीचे आ गई और मेरी तरफ देखने लगी| मेरी आँखों में गुस्से की ज्वाला उसे साफ़ नजर आ रही थी जिसे देख कर उसके मन में एक अजीब सी ख़ुशी मह्सूस हुई| वो अच्छे से जानती थी की मेरा दिल नेहा के बिना जल रहा है और वो इसी बात पर अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी| उसकी मुस्कराहट उसके चेहरे पर आ रही थी और मुझे न जाने क्यों नेहा को खो देने का डर सता रहा था! मेरा गुस्सा मरता जा रहा था और एक पिता का पानी बेटी के लिए प्रेम बाहर आ रहा था| आज चाहे रितिका मुझसे जो मांग ले मैं सब उसे दे दूँगा, बस बदले में मुझे मेरी बेटी दे दे! पर वो दिल की काली औरत आज मुझे ऐसा तड़पता देख कर खुश हो रही थी! आखिर एक बाप अपना गुस्सा पीते हुए, आँखों में आँसू लिए बोल पड़ा; "तु चाहती थी न मैं तुझे माफ़ कर दूँ? ठीक है...मैं तुझे दिल से माफ़ करता हूँ पर प्लीज मेरे साथ ऐसा मत कर! नेहा मेरी जान है, उसे मुझसे मत छीन!" मैंने मिन्नतें करते हुए कहा| "मुझे अब किसी की माफ़ी-वाफी नहीं चाहिए!" रितिका अकड़ कर बोली| "तो बोल तुझे क्या चाहिए? जो चाहिए वो सब दूँगा तुझे बस मुझे नेहा से अलग मत कर!" मैंने घुटनों पर आते हुए हाथ जोड़े पर रितिका का कोई फर्क नहीं पड़ा बल्कि वो क्रूरता भरी हँसी हँसने लगी! "अब पता चला की कैसा लगता है जब कोई आपसे आपकी प्यारी चीज छीन ले? You cursed me that day and I lost everything.... fucking everything! This was the payback! बहुत प्यार करते हो न नेहा से? अब तड़पो उसके लिए जैसे मैं तड़प रही हूँ अपने पति के लिए!" मैं हैरानी से उसकी तरफ देख रहा था, क्योंकि मेरा दिल कह रहा था की रितिका ने नेहा को मुझे अपने पाप के प्रायश्चित के रूप में सौंपा था पर ये तो....!!! मैं अभी अपने ख्याल को पूरा भी नहीं कर पाया की रितिका बोल पड़ी; "जो सोच रहे हो वो सही है! ये सब मेरा प्लान था.... मैंने ही आपको नेहा के इतना करीब धकेला और अब मैं ही उसे आप से दूर कर के ये यातना दे रही हूँ! जीयो अब साड़ी उम्र इस दर्द के साथ, वो सामने होते हुए भी आपकी नहीं हो सकती!" जैसे ही उसकी बात पूरी हुई चन्दर भैया ने उसे एक जोरदार तमाचा मारा| उसके सम्भलने से पहले ही भाभी ने भी एक करारा तमाचा उसे दे मारा| "हरामजादी! इतना मेल भरा हुआ है तेरे मन में? तू पैदा होते ही मर क्यों ना गई? इतनी मुश्किल से ये परिवार सम्भल रहा था पर तुझे सब कुछ जला कर राख करना है!" चन्दर भैया बोले! इस सच का खुलासा होते ही मेरे अंदर तो जैसे जान ही नहीं बची थी, सांसें जैसे थम गईं और मैं जमीन पर गिर पड़ा| उसके बाद मुझे कुछ होश नहीं रहा की क्या हुआ....


शाम को जब मेरी आँख खुली तो सब मुझे घेर कर बैठे थे, मैं उठ के बैठा तो माँ की जान में जान आई| पर मेरा मन मेरी बेटी के लिए व्याकुल था और मैं प्यासी नजरों से उसे ढूँढ रहा था| "नेहा....?" मेरे मुँह से निकला तो भाभी ऊपर नेहा को लेने गईं, पर रितिका ने उसे उन्हें सौंपने से मना कर दिया| वो चिल्लाते हुए बोली ताकि मैं भी सुन लूँ; "मेरे साथ जबरदस्ती मत करना वरना मैं पुलिस बुला लूँगी!" ये कहते हुए उसने भाभी को डराने के लिए अपना फ़ोन उठा लिया पर बहभी को कोई फर्क नहीं पड़ा, उन्होंने पहले तो उसके गाल पर एक झन्नाटे दार तमाचा मारा और फिर उसकी गोद से नेहा को छीनते हुए बोलीं; "जो करना है कर ले!" नीचे आ कर उन्होंने नेहा को मेरी गोद में दिया| नेहा रो रही थी और जैसे ही मैंने उसे अपनी छाती से लगाया तो मेरे जोरों से धड़कते हुए दिल को चैन मिला| मिनट भी नहीं लगा नेहा को चुप होने में, मैंने उसके छोटे से हाथों में अपनी ऊँगली थमाई और उसे ये इत्मीनान हो गाय की उसके पापा उसके पास हैं| पर रितिका का दिमाग सनक चूका था, उसने पुलिस कंप्लेंट कर दी और नीचे आकर दरवाजा खोल दिया| कुछ ही देर में वही थानेदार आ गया जो उस दिन आया था, पुलिस की जीप का साईरन सुन सब बाहर आ गए थे| मैं और माँ कमरे में अब भी बैठे थे, नेहा मेरी छाती से चिपकी किलकारियाँ निकाल रही थी, ऐसा लगता था जैसे मानो कह रही हो की प्लीज पापा मुझे अपने आप से दूर मत करो! पर मैं उस वक़्त खुद को बेबस महसूस कर रहा था!

              मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही एक महिला पुलिस कर्मी और उनके साथ एक हवलदार कमरे में घुस आये और मेरी गोद से नेहा को लेने को अपने हाथ खोल दिए| मैंने ना में सर हिलाया तो पीछे से थानेदार की आवाज आई; "ये रितिका की बेटी है और तुम जबरदस्ती इसे इसकी माँ से छीन कर रहे हो!" मैं उसी वक़्त बोलना चाहता था की ये मेरी भी बेटी है पर मेरे मन में नेहा को खो देने के डर ने मेरे होंठ सिल दिए थे! "थानेदार साहब ये रितिका का चाचा है!" ताऊ जी बोले| "मौर्या साहब आप रितिका को समझाइये, कंप्लेंट इसी ने की है और हमारा काम है करवाई करना!" थानेदार बोलै और उसने महिला पुलिस कर्मी को इशारा किया की वो नेहा को मुझसे छीन ले| वो पुलिस कर्मी भी समझ सकती थी की मैं नेहा से कितना प्यार करता हूँ, फिर भी उसने जबरदस्ती नेहा को मेरी गोद से ले लिया पर नेहा अब भी मेरी ऊँगली पकडे हुए थी जिसे उसने अपने दूसरे हाथ से छुड़वाया! उसने नेहा को रितिका को सौंप दिया और रितिका मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी और ऊपर चली गई| मैं बस आँखों में आँसू लिए घुट कर रह गया, मेरा दर्द वहाँ समझने वाला कोई नहीं था| नेहा के रोने की आवाज सुन मैं आज फिर से टूटने लगा था, जिस्म में जैसे जान ही नहीं बची थी! मैं सर दिवार से टिका कर चुप-चाप बैठा रहा और हिम्मत बटोरने लगा|     

             थानेदार के जाने के बाद भाभी ने नीचे से रितिका को गालियाँ देनी शुरू कर दी थीं| ताऊ जी भी गुस्से में भरे थे, घर का हर एक सदस्य रितिका के पागलपन के कारन सख्ते में था और उसे कोस रहा था| माँ मेरे सर पर हाथ फेर रहीं थीं पर मेरा दिमाग सुन्न हो गया था उसे सिवाए नेहा के रोने के और कुछ सुनाई नहीं दे रहा था| "भाभी मुझे समझ नहीं आता की आखिर हो क्या रहा है? क्यों मानु ऐसी हरकतें कर रहा है? नेहा उसकी बेटी नहीं है फिर भी वो इतना मोह में क्यों बहे जा रहा है?" मेरे पिताजी ताई जी से बोले| पर ताऊ जी मेरे इस मोह को कुछ और ही समझ रहे थे; "तुम सब जानते हो की मानु रितिका से कितना प्यार कृते आया है! बचपन से एक वही है जो उसकी हर फरमाइश पूरी करता था इतना सब कुछ करने के बाद जब रितिका ने उसे बिना बताये शादी की तो वो बहुत गुस्सा हुआ और फिर उस दिन हमने उसे घर से निकाल दिया वो बेचारा टूट गया था! इस कुलटा (रितिका) ने नेहा को जानबूझ कर आगे किया और जबरदस्ती मानु के मन में उसके लिए प्यार पैदा किया और जब मानु का लगाव उससे बढ़ गया तो जानबूझ कर नेहा को उससे दूर कर दिया| सब कुछ इसने जानबूझ कर किया, हमारे लड़के को इसी ने बरगलाया है! अँधा-लूला जो कोई भी मिलता है बांधो इसे उसके गले और छुट्टी पाओ इस मनहूस से! रही मानु की बात तो उसे कुछ टाइम लगेगा पर वो ठीक हो जाएगा|" ताऊ जी ये कहते हुए कमरे के अंदर आये और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए बोले; "बेटा...तू चिंता ना कर! हम सब यहाँ हैं तेरे लिए! और सुनो कोई भी उसे इसके आस-पास भटकने मत देना|" ताऊ जी ने सबको आगाह किया और भाभी से कहा की वो खाना परोसें| भाभी खाना परोस कर लाइन पर मैं बस सामने की दिवार को घूर रहा था, मुझे उसमें नेहा का अक्स दिख रहा था| भाभी ने मेरा हाथ पकड़ कर झिंझोड़ा तो मैं अपने ख़्वाबों की दुनिया से बाहर आया| आँखें आँसू बहने से लाल हो चुकी थीं, भाभी के हाथ में खाना देख कर समझ ही नहीं आया की क्या कहूं? पर फिर माँ की तरफ देखा जो आस कर रहीं थीं की मैं खाना खाऊँ, मैंने एक नकली मुस्कान अपने चेहरे पर चिपकाई और माँ की तरफ थाली ले कर घूम गया| मैंने उसी नकली मुस्कराहट से माँ को खाना खिलाया, माँ बार-बार मना कर रही थीं की पहले मैं खाऊँ पर मैंने जबरस्ती करते हुए उन्हें खिलाने लगा| उनके खाने के बाद मैं थाली ले कर बाहर आया, सब को लगा की मैंने खा लिया पर भाभी जानती थी की मैंने माँ को खिला दिया है, उन्होंने मेरे लिए दूसरी थाली में खाना परोसा पर मैंने गर्दन हिला कर मना कर दिया| "मानु ऐसे मत करो! क्यों उस हरामजादी के लिए खाना छोड़ रहे हो? उसने तो पेट भर के धकेल लिया, तुम क्यों...." भाभी खुसफुसाती हुए बोलीं| "भाभी बिलकुल इच्छा नहीं है..... आप बस किसी को कुछ मत कहना!" इतना कह कर मैं घर के बाहर आया और कुछ दूर तक जेब में हाथ डाले चल दिया| मैं जान बुझ कर घर से निकला था ताकि थोड़ी देर बाद जब मैं घर में घुसूँ तो माँ को लगे की मैं खाना खा रहा था| अकेले चलते हुए मुझे मेरी बेबसी का एहसास कचोटे जा रहा था! नेहा मेरी बेटी है और जो रितिका ने आजतक मेरे साथ किया उससे उसका नेहा पर कोई हक़ नहीं बनता! नेहा को उसने एक हथियार की तरह इस्तेमाल कर के मेरे कलेजे को छलनी किया था, उसका बदला तो हो चूका था पर मेरा अभी बाकी था! मेरी बेबसी अब गुस्से में तब्दील हो गई थी| मुझे उसे जवाब देना था.....पर अभी नहीं!   


कुछ देर बाद मैं घर लौटा और माँ के सामने ऐसे जताया जैसे मैंने खाना खा लिया हो! माँ को दवाई दी और सोने ऊपर जाने लगा, पर पिताजी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे रोक लिया; "तू आज अपनी माँ के पास सो जा, वो बहुत उदास थी पूरा दिन|" मैंने पिताजी की बात मान ली और माँ के पास लेट गया| रात के 1 बजे मैं उठा, अपने गुस्से को निकालने का यही सही समय था| मैं दबे पाँव ऊपर गया और देखा की रितिका के कमरे का दरवाजा खुला है, मैंने धीरे से उसे खोला और अंदर पहुँचा| दरवाजे की आहट से रितिका उठ गई और उसने लाइट जला दी; "अब क्यों आये हो यहाँ?" रितिका अकड़ते हुए बोली| मैंने उसके बाल उसकी गुद्दी से पकडे और उसकी आँखों में झांकते हुए गुस्से से  बोला; "बहुत शौक है ना तुझे बदला लेने का? अब देख तू मैं क्या करता हूँ! याद है माने तुझे क्या curse किया था? 'Every fucking day will be like hell for you!' याद राख इस बात को!" इतना कह कर मैंने उसके बाल झटके से छोड़े और अपने कमरे से फ़ोन का चार्जर ले कर मैं नीचे उतर आया| फ़ोन चार्जिंग पर लगाया और लेट गया, पर नींद नहीं आई! मन में बस नेहा को पाने की ललक लिए पूरी रात जागते हुए काटी| सुबह उठ कर मैंने अपना फ़ोन देखा जो पूरा चार्ज हो चूका था| जैसे ही फ़ोन ऑन हुआ उसमें अनु की 50 मिस्ड कॉल्स दिखीं, ये देखते ही मेरी हवा टाइट हो गई! मैं नेहा को तो लघभग खू ही चूका था, अनु को नहीं खो सकता था| मैंने तुरंत उसके नंबर पर कॉल करना शुरू किया पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ था! मैंने ढ़ढ़ढ़ कॉल करने जारी रखे और उम्मीद करता रहा की वो उठा लेगी, पर उसका फ़ोन स्विच ऑफ ही रहा| माँ मुझे ऐसे कॉल करता देख परेशान हो रही थी, मैंने उन्हें कुछ नहीं कहा बस चुपचाप टिकट बुक करने लगा| इतने में डैडी जी (अनु के डैडी) का फ़ोन आ गया| मैं फ़ोन उठा कर आंगन में एक कोने में खड़ा हो गया; "मानु बेटा सब ठीक तो है? तुम्हारी अनु से कोई लड़ाई हुई? परसों जब से आई है बस रोये जा रही है?" ये सुनते ही मेरी हालत खराब हो गई; "डैडी जी....मैं आ रहा हूँ...3-4 घंटे में पहुँच रहा हूँ!" इतना कहते हुए मैंने फ़ोन काटा और अपना पर्स उठाने भागा; "क्या हुआ? इतना परेशान क्यों है?" पिताजी ने पुछा| "वो मेरा बिज़नेस पार्टनर यहाँ है....मुझे जल्दी जाना होगा ....!" इतना कहते हुए मैं बिना मुँह-हाथ धोये घर से निकल गया| दाढ़ी बढ़ी हुई, बाल खड़े, रात के टी-शर्ट और पजामा पहने ही मैं निकल गया| मन में बुरे विचार आ रहे थे की कहीं अनु कुछ कर ना ले?! अगर उसे कुछ हो गया तो मैं भी मर जाऊँगा! ये सोचते हुए मैं बस में चढ़ा| पूरे रास्ते उसका नंबर मिलाता रहा पर अब भी उसका नंबर बंद था|


कॉलोनी के गेट से अनु के घर तक दौड़ता हुआ पहुँचा और घंटी बजाई, दरवाजा मम्मी जी ने खोला और मेरी हालत देख कर वो हैरान थीं| मैंने अपनी साँसों को काबू किये बिना ही हाँफते हुए कहा; "अनु.....कहा...?" मम्मी जी ने मुझे अंदर की तरफ इशारा किया| मैं तेजी से अंदर पहुँचा और देखा तो अनु दूसरी तरफ मुँह कर के लेटी है और अब भी रो रही थी| उसकी पीठ मेरी तरफ थी इसलिए वो मुझे नहीं देख पाई| उसे जिन्दा देख आकर मुझे चैन मिला, मैंने अपनी सांसें काबू की और उसके पास पहुँचा और उसे पुकारा; "अनु'| ये सुनते ही अनु बिजली की रफ्तार से उठ बैठी और मेरे गले लग गई| मुझे उसकी शक्ल देखना का भी मौका नहीं मिला| अनु का रोना और भी तेज हो गया था और मैं बस उसके सर पर हाथ फेर कर उसे चुप कराना चाह रहा था| "बस-बस...मेरा बच्चा....बस!" मैंने खुद को तो रोने से रोक लिया था पर अनु को रोक पाना मुश्किल था| "मुझे.....लगा.....आप.... अब....कभी नहीं....आओगे!" अनु ने रोते-रोते कहा| "पागल! ऐसे मत बोलो! I love you!  ऐसे कैसे तुम्हें छोड़ दूँगा?" ये सुनने के बाद ही अनु ने रोना बंद किया| पीछे डैडी जी और मम्मी जी ने सब सुना और बोले; "देखा? मैं कहता था न मानु अनु से बहुत प्यार करता है!" डैडी जी बोले और हमने पलट कर देखा तो वो हमें इस तरह लिपटे हुए देख कर मुस्कुरा रहे थे| जब अनु ने मुझे ठीक से देखा तो उसकी आँखें फिर से भर आईं; "ये क्या हालत बना ली है 'आपने'? " अनु बोली| मैं चुप रहा क्योंकि मैं मम्मी जी और डैडी जी के सामने कुछ कहना नहीं चाहता था| उन्हें भी इस बात का एहसास हुआ और दोनों बाहर चले गए| "मेरी छोड़ो और ये बताओ तुमने कैसे सोच लिया की मैं तुम्हें छोड़ कर हमेशा के लिए गाँव रहूँगा? मैंने तुम्हें प्रॉमिस किया था ना की मैं वापस आऊँगा... फिर?" मैंने अनु के आँसू पोछते हुए कहा|

"मैं यहाँ आपको सरप्राइज देने के लिए आई थी, मैंने आपको कितने काल किये पर आपने एक भी कॉल नहीं उठाया! फिर फ़ोन स्विच ऑफ हुआ....मुझे लगा आपने मुझे ब्लॉक कर दिया और अब आप मुझसे शादी करने अब कभी नहीं आओगे!"

"It was a rough day .... very bad ....." मैंने सर झुकाते हुए कहा|

"क्या हुआ? Tell me?" अनु बोली पर यहाँ कुछ भी कहना मुझे ठीक नहीं लगा और अनु ये समझ भी गई| इतने में मम्मी जी चाय ले कर आ गईं और डैडी जी भी आ गए और वहाँ बैठ गए| "बेटा ये क्या हालत बना रखी है तुमने?" डैडी जी ने पुछा|

"वो दरअसल डैडी जी घर से फ़ोन आया था, सब ने मुझे वापस बुलाया और वहाँ जा कर पता चला की मेरा परिवार बड़े बुरे हाल से गुजर रहा था| मेरी भतीजी के ससुराल वालों को दुश्मनी के चलते किसी ने सब को जान से मार दिया! बस मेरी भतीजी जैसे-कैसे बच गई| तो अभी पूरा घर बहुत परेशान है!" ये सुनते ही मम्मी और डैडी जी को बहुत दुःख हुआ और उन्होंने सब से मिलने की इच्छा जाहिर की; "जी मैं पहले अनु को सबसे मिलवाना चाहता हूँ!" मैंने कहा पर उन्हें एक डर सता रहा था की कहीं मेरे घरवालों ने शादी के लिए मना कर दिया तो? "ऐसा कुछ नहीं होगा डैडी जी! वो मान जाएंगे!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा पर ये तो मैं ही जानता था की ये कितनी बड़ी टेढ़ी खीर है! इधर अनु मुझसे मेरी हालत का कारण जानने को बेकरार थी, पर यहाँ तो मैं उसे कुछ बताने से रहा इसलिए वो उठ कर खड़ी हुई और मेरी तरफ अपने बैग से निकाल कर एक तौलिया फेंका; "Get ready!" मैं तथा मम्मी-डैडी उसकी तरफ हैरानी से देखने लगे क्योंकि जो इंसान पिछले 48 घंटों से बस रोये जा रहा था उसमें अचानक इतनी शक्ति कैसे आ गई? हम सब को हैरानी से उसे देखते हुए वो हँसते हुए बोली; "क्या? हम दोनों घूमने जा रहे हैं!" ये सुन कर मम्मी-डैडी हंस पड़े और मई भी मुस्कुरा दिया| अनु के इसी बचपने का तो मैं दीवाना था! मैं उठा और तभी मेरा फ़ोन आ गया, "जी पिताजी! नहीं सब ठीक है... जी ...नहीं कोई घबराने की बात नहीं है! मैं परसों आऊँगा? हांजी...कुछ जर्रूरी काम है!" मैंने जर्रूरी काम है बहुत धीरे से बोला जिसे कोई सुन नहीं पाया| उसके बाद मैं नहाया और अनु मेरे कुछ कपडे ले आई थी वो पहने और हम घूमने निकले| अनु जानती थी की मैंने कुछ नहीं खाया होगा इसलिए पहले उसने जबरदस्ती मुझे कुछ खिलाया और फिर आंबेडकर पार्क ले आई| वहाँ एक शांत जगह देख कर हम बैठे और अनु ने मेरा दायाँ हाथ अपने हाथ में लिया और सारी बात पूछी| मैंने रोते-रोते उसे सारी बात बताई और ये सब सुन कर उसका पारा चढ़ गया| वो एकदम से उठ खड़ी हुई और मेरा हाथ पकड़ कर खींचते हुए मुझे खड़ा किया और बोली; "चलो घर, आज इसे मैं जिन्दा नहीं छोडूँगी!" मैंने अनु के दूसरे हाथ को पकड़ लिया और उसे अपने गले लगा लिया| "आप क्यों..... मार दो उसे जान से! बाकी सब मुझ पर छोड़ दो!" अनु ने कहा|

"मन तो मेरा भी यही किया था पर उसकी जान ले कर मैं तुम्हें भी खो दूँगा!" मैंने अनु से अलग होते हुए कहा| ये बात सच भी थी क्योंकि फिर मुझे जेल हो जाती और हम दोनों हमेशा-हमेशा के लिए जुदा हो जाते| "तो फिर क्या करें? हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे?" अनु ने गुस्से से कहा|

"शादी करेंगे!" मैंने कहा और अनु कुछ सोचते हुए बोली; "ठीक है! चलो आज ही घर चलते हैं!"

"नहीं...आज नहीं.... कल पहले तुम्हारा बर्थडे सेलिब्रेट करते हैं|" मैंने कहा|

"पर क्यों? वहाँ जा कर सेलिब्रेट करेंगे!" अनु ने कहा|

"घरवाले इतनी आसानी से हमारी शादी के लिए नहीं मानेंगे और मैं नहीं चाहता की तुम्हारा जन्मदिन खराब हो!" मैंने अनु को फिर से अपने सीने से लगा लिया| अनु मेरी बात समझ गई थी और उसने कल के लिए सारा प्लान भी बना लिया था| पर मैं तो बस उसे अपने सीने से चिपकाए नेहा की कमी को पूरा करना चाह रहा था| पर जो गर्म एहसास मुझे नेहा को गले लगाने से मिलता था वो मुझे अनु को गले लगाने से नहीं मिल रहा था| नेहा की कमी कोई पूरी नहीं कर सकता था!
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RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:24 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:26 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:30 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:31 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 06:46 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-10-2019, 10:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:33 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:36 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-11-2019, 05:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-13-2019, 11:43 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-14-2019, 08:59 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-14-2019, 10:28 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-15-2019, 11:56 AM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 01:14 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-15-2019, 06:12 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 06:56 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-15-2019, 07:45 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 07:51 PM
RE: काला इश्क़! - by sexstories - 10-16-2019, 10:35 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-16-2019, 11:39 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-17-2019, 10:18 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-18-2019, 05:00 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-18-2019, 05:28 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-19-2019, 07:49 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:52 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-19-2019, 07:50 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-20-2019, 07:38 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-21-2019, 06:15 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-22-2019, 09:21 PM
RE: काला इश्क़! - by Game888 - 10-22-2019, 11:29 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 12:19 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-23-2019, 10:13 PM
RE: काला इश्क़! - by kw8890 - 10-24-2019, 10:26 PM
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़! - by kw8890 - 12-24-2019, 08:04 PM

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