Free Sex Kahani काला इश्क़!
01-10-2020, 01:00 PM,
RE: Free Sex Kahani काला इश्क़!
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शादी के बाद रितिका का कमरा उसके सास-ससुर के कमरे के सामने पहली मंजिल पर था पर उस हत्याकांड में उसके पति की मौत उसी कमरे के बाहर हुई थी| शायद उसी डर से रितिका अब पहली मंजिल पर भटकती नहीं थी और उसने नीचे वाला कमरा जो की राहुल का स्टडी रूम था उसे ही अपना कमरा बना लिया था|


इधर कान्ता मुस्कुराती हुई गिलास में पानी ले आई, मैंने लगे हाथों उसकी तारीफों के पुल बाँध दिए जिससे मुझे उससे और बात करने का मौका मिल जाए| वो मुझसे मेरे बारे में पूछने लगी तो मैंने उसे झूठ-मूठ की कहानी सुना दी| बातों ही बातों में उसने मुझे काफी जानकारी दे दी, अब अगर मैं वहाँ और देर रुकता तो वो अपना घागरा उठा के दिखा देती! उससे शाम को आने का वादा कर मैन वहाँ से निकल आया और कुछ दूर आ कर अपने कपडे ठीक करके घर लौट आया|



मेरी रेकी का काम पूरा नहीं हुआ था, अब भी एक बहुत जर्रूरी मोहरा हाथ लगना रह गया था| पर किस्मत ने मुझे उससे भी मिलवा दिया, हमेशा की तरह मैं उस पनवाड़ी से सिगरेट ले कर पी रहा था और अखबार पढ़ रहा था की एक आदमी पनवाड़ी के पास आया और उससे बात करने लगा; "अरे राम खिलावन भैया, कइसन बा!" वो आदमी बोला|



"अरे हम ठीक हैं, तुम कहो सरजू भैया कितना दिन भय आजकल हिआँ दिखातो नहीं?" पनवाड़ी बोला|



"अरे ऊ हमार साहब, सेक्रेटरीवा ...ससर हम का काम से दिल्ली भेज दिया रहा! कल ही आये हैं और आज रितिका मेमसाब के फाइल पहुँचाय खतिर भेज दीस!" सरजू बोला|



"अरे बताओ तोहार छमिया कान्ता कैसी है?" पनवाड़ी बोला|



"अरे ऊ ससुरी हमार 'लिए' खातिर पियासी है! होली का अइबे तब ऊ का दबा कर पेलब!" इतना कह कर सरजू चला गया| यानी कान्ता और सरजू का चक्कर चल रहा है!



खेर मुझे मेरा स्वर्णिम मौका मिल गया था, अब बस मुझे होली के दिन का इंतजार था| वहाँ से मैं सीधा अपने घर के लिए पैदल निकला और एक आखरी बार अपने सारे पत्ते जाँचने लगा|



घर का layout - चेक

घर के नौकर के नाम - चेक

घर घुसने का कारन- चेक

हथियार - X



नहीं हथियार का इंतजाम अभी नहीं हुआ था| मैंने वापस अपने चेहरे पर दादी-मूछ लगाई और बजार की तरफ घूम गया, वहाँ काफी घूमने के बाद मैंने एक रामपुरी चाक़ू खरीदा| इतनी आसानी से उसे मारना नहीं चाहता था, मरने के टाइम उस्की आँखों में वही दर्द देखना चाहता था जो मेरी पत्नी की आँखों में थी जब उसने मुझे हॉस्पिटल में पड़ा हुआ देखा था| मैंने बजार से कुछ साड़ियाँ भी खरीदीं जिन्हें मैंने गिफ्ट wrap करवा लिया| चूँकि हमारा गाँव इतना आधुनिक नहीं था तो वहाँ अभी भी CCTV नहीं लगा था जो मेरे लिए बहुत कामगर साबित होना था| अब बस होली का इंतजार था जो 2 दिन बाद थी| पर कल होलिका दहन था और गाँव के चौपाल पर इसकी सारी तैयारी की जा चुकी थी| सभी बरी परिक्रम कर रहे थे और अग्नि को नमस्कार कर रहे थे| मुझे और अनु को भी साथ परिक्रमा करनी थी, जिसके बाद अनु ने मुझसे कहा; "कहते हैं होलिका दहन बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है!"



"हाँ" मैंने बस इतना ही कहा क्योंकि मैं अनु की बात का मतलब समझ गया था| उसी रात को मम्मी-डैडी जी भी आ गए हमारे साथ होली मनाने| पिछले 20 दिनों में अनु ने मुझसे मेरी प्लानिंग के बारे में कुछ नहीं पुछा था, हम बात भी कम करते थे| घर वालों के सामने हम खुश रहने का नाटक करते रहते पर अकेले में हम दोनों जानते थे की मैं कौन सा बड़ा कदम उठाने जा रहा हूँ| उस रात मैंने अनु से बात शुरू की; "कल आपको मेरे लिए cover करना होगा, याद रहे किसी को भी भनक नहीं होनी चाहिए की मैं घर पर मौजूद नहीं हूँ| घर पर बहुत सारे लोग होंगे तो किसी को जल्दी पता नहीं चलेगा!" मैंने अनु से इतना कहा और फिर मैं जल्दी सो गया| लेट तो मैं गया पर नींद बिलकुल नहीं आई, कारन दो, पहला ये की कल मेरी जिंदगी का बहुत बड़ा दिन था| मैं कुछ ऐसा करने जा रहा था जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी नहीं था, एक सीधा-साधा सा इंसान किसी का कत्ल करने जा रहा था! दूसरा कारन था मेरा बायाँ हाथ, अपने प्लान के तहत मैंने बहाना कर के आज अपना प्लास्टर कटवा दिया था| इस बहाने के लिए मुझे किशोर का सहारा लेना पड़ा था, मैंने जानबूझ कर उसका सुसु अपने बाएं हाथ पर करवाया ताकि मुझे प्लास्टर कटवाने का अच्छा बहाना मिल जाये| हालाँकि इस हरकत पर सब ने खूब जोर से ठहाका लगाया था की भतीजे ने आखिर अपने चाचा के ऊपर सुसु कर ही दिया| प्लास्टर कटने के बाद मेरे हाथ में दर्द होने लगा था|





खैर सुबह हुई और मैं जल्दी से उठा और सबका आशीर्वाद लिया, अपने बाएँ हाथ पर मैंने दो गर्म पट्टियां लपेटीं ताकि दर्द कम हो| जोरदार म्यूजिक बज रहा था और घर के सारे लोग चौपाल पर आ गए थे| घर पर सिर्फ औरतें रह गईं थीं, सब ने होली खेलना शुरू कर दिया था| शुरू-शुरू में ताऊ जी ने इस आयोजन के लिए मना कर दिया था कारन था मुझ पर हुआ हमला| पर मुझे कैसे भी कर के ये आयोजन खूब धूम-धाम से करना था ताकि मुझे घर से निकलने का मौका मिल जाये इसीलिए मैंने ये आयोजन सुबह जल्दी रखवाया था, मुझे बस इसके लिए ताऊ जी के सामने अनु की पहली होली का बहाना रखना पड़ा था| सारे लोग खूब मजे से होली खेल रहे थे और मैं इसी का फायदा उठा के वहाँ से सरक गया| चेहरे और कपड़ों पर खूब सारा रंग पोत रखा था जिससे मुझे कोई पहचान ना पाए| मैं संकेत की बाइक ढूंढते हुए पहुँचा, सुबह मैं उसी की बाइक पर यहाँ आया था और उसे ईस कदर बातों में उलझाया की वो अपनी बाइक लॉक करना ही भूल गया| मैंने धीरे से बाइक को धक्का दे कर कुछ दूर तक ले गया और फिर स्टार्ट कर के सीधा संकेत के खेतों की तरफ चल दिया| उसके खेतों में जो कमरा था, जिस में मैंने वो साड़ियाँ गिफ्ट wrap कर के छुपाई थीं| उन्हें ले कर मैं सीधा रितिका के घर पहुँच गया| अभी सुबह के 7 बजे थे, मैंने संकेत की बाइक दूर एक झाडी में छुपा दी और वो गिफ्ट्स ले कर सीधा रितिका के घर पर दस्तक की| मेरी इनफार्मेशन के हिसाब से वो घर पर ही थी और सिवाए कान्ता के वहाँ और कोई नहीं था| दरवाजा कान्ता ने ही खोला और मेरे मुँह पर पुते हुए रंग को देख वो समझ नहीं पाई की कौन है| "आरी छम्मक छल्लो ई टुकुर-टुकुर का देखत है?" मैंने आवाज बदलने की कोशिश की पर ठीक से बदल नहीं पाया था पर उसे फिर भी शक नहीं हुआ क्योंकि मेरे मुँह में पान था! "सरजू तू?!" कान्ता ने चौंकते हुए कहा| मेरी और सरजू की कद-काठी कुछ-कुछ मिलती थी इसलिए उसे ज्यादा शक नहीं हुआ| "काहे? कोई और आने वाला है का?" मैंने कहा तो वो शर्मा गई और पूछने लगी की मैं इतनी जल्दी क्यों आ गया; "अरे ऊ सेक्रेटरीवा कहिस की जा कर एही लागे ई गिफट रितिका मेमसाब को दे कर आ तो हम इहाँ परकट होइ गए! फिर तोहरे से आजका वादा भी तो किये रहे!" मैंने कहा तो वो हँस दी और वो gift ले लिए और उसे सामने के टेबल पर रख दिए| "अरे मरी ई तो बता की मेमसाब घर पर हैं या नहीं?" मैंने पुछा तो उसने बताया की रितिका नहा रही है| अब मुझे उसे वहाँ से भेजना था सो मैंने कहा; "कछु पकोड़े-वकोडे हैं का?" तो वो बोली की मैं उसके क्वार्टर में जाऊँ और उसका इंतजार करूँ, वो गरमा-गर्म बना कर लाएगी| उसके जाते ही मैंने surgical gloves पहने और मैन गेट लॉक अंदर से लॉक कर दिया और क्वार्टर की तरफ खुलने वाला दरवाज खोल दिया ताकि उसे लगे की मैं बाहर हूँ| मैंने जेब से चाक़ू निकाला और उसे खोल कर बाएँ हाथ में पकड़ लिया| इसका कारन ये था की पुलिस को लगे की खुनी लेफ्टी है, चूँकि मेरे बाएँ हाथ में फ्रैक्चर है तो मुझ पर शक जाने का सवाल ही नहीं होता| सुबह की टाइट बाँधी हुई पट्टियां काम कर गईं, मैंने गिफ्ट्स पर से भी अपनी उँगलियों के निशान मिटा दिए| मेरा दिल अब बहुत जोरों से धड़क रहा था, सांसें भारी हो चली थीं और मन पूरी कोशिश कर रहा था की मैं ये हत्या न करूँ पर मेरा दिमाग गुस्से से पागल हो गया था| इधर बाहर ढोल-बगाडे और लाउड म्यूजिक बजना शुरू हो चूका था| 'रंग बरसे' वाला गाना खूब जोर से बज रहा था| मैंने रितिका के कमरे का दरवाजा जोर से खटखटाया, तो वो गुस्से में बड़बड़ाती हुई बाथरूम से निकली और एकदम से दरवाजा खोला|



अपने सामने एक गुलाल से रंगे आदमी को देख वो चौंक गई और इससे पहले वो कुछ बोल पाती या चिल्लाती मैंने अपने दाएँ हाथ से उसका मुँह बंद कर दिया और बाएँ हाथ में जो चाक़ू था उससे जोर दार हमला उसके पेट पर किया| चाक़ू एक ही बार में उसकी पेट की मांस-पेशियाँ चीरता हुआ अंदर चला गया| रितिका की चीख तो तब भी निकली पर बाहर से आ रहे शोर में दब गई, मैंने चाक़ू को उसके पेट में डाले हुए एक बार जोर से बायीँ तरफ घुमा दिया जिससे वो और बिलबिला उठी और अपने खून भरे हाथों से मेरा कालर पकड़ लिया| उसकी आँखें फटने की कगार तक खुली थीं पर अभी उसे ये बताना जर्रूरी था की उसका कातिल आखिर है कौन; "I loved you once! But you had to fuck all this up! You made me do this!" मेरी आवाज सुनते ही वो समझ गई की उसका कातिल कोई और नहीं बल्कि मानु ही है| वो कुछ बोलना चाहती थी पर उसे उसका मौका नहीं मिला और वो पीछे की ओर झुक गई| उसका सारा वजन मेरे बाएँ हाथ पर आ गया जिसका दर्द से बुरा हाल हो गया था| मैंने उसे छोड़ दिया और एक नजर कमरे में दौड़ाई तो पाया की मेरी नन्ही सी पारी नेहा चैन की नींद सो रही थी| उसे सोते हुए देख मेरा मन उसे छूने को किया पर दिमाग ने मुझे बुरी तरह लताड़ा की मैं भला अपने खून से रंगे हाथों से उसे कैसे छू सकता हूँ?! इसलिए मैं वहाँ से भाग आया और वो गिफ्ट्स ले कर घर से भाग आया, फ़ौरन बाइक स्टार्ट की ओर घर की तरफ बढ़ा दी| बहुत दूर आ कर मैंने वो साड़ियाँ और ग्लव्स जला दिए, उस रामपुरी चाक़ू को मैंने एक जगह गाड़ दिया जिससे कोई सबूत न बचे और चुपचाप होली के समारोह में शामिल हो गया और अपने ऊपर और रंग डाल लिया| किसी को भनक तक नहीं लगी थी की मैं गया था, पर मेरा मन अब अंदर ही अंदर टूटने लगा था| मैंने अपने परिवार को बचा लिया था पर अपने द्वारा किये गुनाह से बहुत दुखी था| मुझे अपने आप से घिन्न आने लगी थी, मुझे अपने सर से ये पाप का बोझ उतारना था| पर ये पाप पानी से धुलने वाला नहीं था इसे धोने के लिए मुझे किसी पवित्र नदी में नहाना था| हमारे गाँव के पास बस एक ही नदी थी वो थी सरयू जी! मैंने संकेत से कहा की चल कर सरयू जी नहा कर आते हैं, वो ये सुन कर हैरान हुआ पर जब मैंने जबरदस्ती की तो वो मान गया| हम सब को बता कर सरयू जी निकले, हमारे साथ ही कुछ और लोग जुड़ गए जिन्हें मेरी बात सही लगी थी| पहले हमने घर से अपने कपडे लेने थे पर मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं अंदर घुसून इसलिए मैंने भाभी को आवाज दे कर उनसे मेरे कपडे लाने को कहा| भाभी ने एक अंगोछा और कपडे ले कर बाहर आईं, फिर वहाँ से हम संकेत के घर गए ताकि वो भी अपने कपडे ले ले| आखिर हम सरयू जी पहुँचे, मैंने उन्हें प्रणाम किया और मन ही मन अपने किये पाप के लिए उनसे माफ़ी माँगी| जाने क्यों पर मेरा दिल कहने लगा था की जिस प्रकार भगवान राम चन्दर जी ने रावण का वद्ध किया था और फिर ब्रह्महत्या के पाप से निवारण हेतु उन्होंने स्नान और पूजा-पाठ इत्यादि किया था उसी तरह आज मैं भी रितिका की हत्या करने के बाद इस पवित्र जल से अपने पाप धोने आया हूँ| मैं खुद की तुलना भगवान राम चंद्र जी से नहीं कर रहा था बस हालत को समान मान रहा था!



सरयू जी में प्रवेश करते हुए मुझे वो सारे पल याद आ रहे थे जो मैंने ऋतू के साथ बिताये थे! वो उसका मेरे सीने से लग कर खुद को पूर्ण समझना, उसकी छोटी-छोटी नादानियाँ, मेरा उसे पीछे से अपने हाथों से जकड़ लेना, उसका ख्याल रखना वो सब याद कर के मैं रो पड़ा| बहुत प्यार करता था मैं उससे, पर अगर उसके सर पर बदला लेने का भूत ना चढ़ा होता तो आज मुझे ये नहीं करना पड़ता| ये सब सोचते हुए मैं अच्छे से रगड़-रगड़ कर नहाया, मानो जैसे उसका खून मेरे जिस्म से पेंट की भाँती चिपक गया हो! नहाने के बाद मैं बाहर निकला और किनारे पर सर झुका कर बैठ गया| सूरज की किरणे जिस्म पर पड़ रही थीं और ऐसा लगा मानो जैसे मेरी मरी हुई आत्मा फिर से जीवित हो रही हो! कुछ देर बाद हम घर के लिए निकल पड़े और जैसे ही संकेत ने मुझे घर छोड़ा तो ताऊ जी और पिताजी बाहर मेरी ही राह देख रहे थे| मैं बाइक से उतरा तो ताऊ जी ने रितिका का खून होने की खबर दी, मैं कुछ react ही नहीं कर पाया और मेरे मुँह से बस नेहा के लिए चिंता बाहर आई; "नेहा कहाँ है?" इतने में डैडी जी गाडी की चाभी ले कर आये और हम उनकी गाडी से रितिका के घर पहुँचे| पुलिस की जबरदस्त घेराबंदी थी पर चूँकि वो दरोगा ताऊ जी को जानता था सो उसने हमें आगे आने दिया और सरे हालत के बारे में बताया| दरवाजे के पास एक महिला पुलिस कर्मी कान्ता का ब्यान लिख रही थी और एक दूसरी पुलिस कर्मी रोती हुई नेहा को गोद में लिए हुए ताऊ जी के पास आई और उन्हें नेहा को गोद में देने लगी पर ताऊ जी चूँकि दरोगा से बात कर रहे थे सो मैंने फ़ौरन नेहा को गोद में ले लिया और उसे अपनी छाती से लगा लिया| नेहा को जैसे ही उसके पापा के जिस्म का एहसास हुआ वो एकदम से चुप हो गई और आँखें बड़ी करके मुझे देखने लगी| मैंने उसके माथे को चूमा और उसे फिरसे अपने गले लगा लिया| मेरा दिल जो उसके कान के पास था वो अपनी बेटी से उसके बाप द्वारा किये हुए पाप की माफ़ी माँगने लगा था| मेरी आँखें एक बार फिर भीग गईं, पीछे खड़े डैडी जी ने मेरी पीठ सहलाई और मुझे हौंसला रखने को कहा| थोड़ी बहुत पूछ-ताछ के बाद हम घर लौट आये, जैसे ही मैं नेहा को गोद में लिए हुए आंगन में आया की अनु दौड़ती हुई मेरे पास आई| मेरी आँखों में देखते हुए उसने नेहा को गोद में ले लिया, मैंने उससे नजरें फेर लीं क्योंकि मुझ में अब हिम्मत नहीं हो रही थी की मैं उसका सामना कर सकूँ| रितिका की मौत का किसी को उतना अफ़सोस नहीं हुआ जितना होना चाहिए, कारन आफ था की जो उसने मेरे और परिवार के साथ किया| अगले दिन मम्मी-डैडी जाने वाले थे की पुलिस आ धमकी और सबसे सवाल-जवाब करने लगी| चूँकि हमने रितिका पर आरोप लगाया था की उसने मुझ पर हमला करवाया था इसलिए ये कार्यवाही लाजमी थी| मुझे इसका पहले से ही अंदेशा था इसलिए मैंने इसकी तैयारी पहले ही कर रखी थी| जब दरोगा ने मुझसे पुछा की मैं कत्ल के समय कहाँ था तो मैंने उसे अपनी कहानी सुना दी; "जी मैं अपने परिवार के साथ होली खेल रहा था, उसके बाद हम दोस्त लोग नहाने के लिए गए थे| जब वापस आये तो मुझे ये सब पता चला|"



"तुम्हारे ऊपर जब हमला हुआ तो तुम्हें रितिका पर गुस्सा नहीं आया?" दरोगा ने पुछा|



"आया था पर मैं अपाहिज कर भी क्या सकता था?!" मैंने अपनी टूटी-फूटी हालत दिखाते हुए कहा| पर उसे मुझ पर शक था सो उसने मेरी बातों को चेक करना शुरू कर दिया| अपना शक मिटाते-मिटाते वो उस physiotherapy क्लिनिक जा पहुँचा जहाँ मैं जाय करता था| उन लोगों ने भी मेरी बात को सही ठहराया, चूँकि वो क्लिनिक रितिका के घर से अपोजिट पड़ता था इसलिए अब उसे मेरी बात पर इत्मीनान हो गया था और उसने मुझे अपने शक के दायरे से बाहर कर दिया था| सारी बात आखिर कार घूम कर 'राघव' पर आ कर अटक गई, उसी को main accused बना कर केस बंद कर दिया गया| इधर अनु मेरे बर्ताव से परेशान थी, मैं उसके पास हो कर भी नहीं था| होली के तीसरे दिन घर के सारे बड़े मंदिर गए थे, अनु जानबूझ कर घर रुकी हुई थी| मैं जैसे ही निकलने को हुआ की अनु ने मेरा दायाँ हाथ कस कर पकड़ लिया और मुझे खींच कर ऊपर ले आई और दरवाजा बंद कर दिया| "क्या हो गया है आपको? किस बात की सजा दे रहे हो खुद को? ना ठीक से खाते हो ना ठीक से सोते हो?! रातबेरात उठ जाते हो और सिसकते रहते हो?! मुझसे नजरें चुराए घुमते हो, मेरे पास बैठना तो छोडो मुझे छूते तक नहीं! और मुझे तो छोड़ो आप नेहा को भी प्यार से गले नहीं लगाते, वो सारा-सारा दिन रोती रहती है अपने पापा के प्यार के लिए!" अनु रोते हुए बोली| मैं सर झुकाये उसके सारे आरोप सुनता रहा, वो चल कर मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर ऊपर की; "जानते हो न की अगर आप ये कदम नहीं उठाते तो क्या होता? आप नहीं होते, मैं नहीं होती, हमारा बच्चा नहीं होता, माँ-पिताजी....सब कुछ खत्म हो जाता! मैं समझ सकती हूँ की आपको कैसा लग रहा है?! पर आपने जो किया वो गलत नहीं था, पाप नहीं था! आप ही ने कहा था ना की जब घर में कोई जंगली-जानवर घुसा आता है तो आदमी पहले अपने परिवार को बचाता है, फिर क्यों आप खुद को कसूरवार ठहराए बैठे हो?!" अनु मेरी आँखों में देखते हुए बोली| उसकी बात सुन कर मुझे एहसास हुआ की वो सच ही कह रही है और मेरा यूँ सबसे दूर रहना और खुद को दोषी मानना गलत है! मैंने आज तीन दिन बाद अनु को कस कर अपने सेने से लगा लिया, अंदर जो भी बुरे विचार थे वो अनु के प्यार से धुल गए| मैंने उसके माथे को चूमा और मुझे इस काली कोठरी से आजाद कराने के लिए शुक्रिया कहा| "हर बार जब मैं खुद को अंतहीन अँधेरे में घिरा पाता हूँ तो तुम अपने प्यार की रौशनी से मुझे उजाले में ले आती हो!" मैंने कहा और अनु के माथे को एक बार फिर चूम लिया|





चूँकि रितिका का हमारे अलावा कोई परिवार नहीं था तो चौथे दिन हमें रितिका की body सौंपी जानी थी| परिवार में किसी को भी इससे कतई फर्क नहीं पड़ रहा था| आखरी बार जब मैंने ऋतू का चेहरा देखा तो मुझसे खुद को संभाला नहीं गया और मैं घुटनों पर गिर कर रोने लगा| अनु जो मेरे पीछे थी उसने मुझे संभाला और बड़ी मुश्किल से संभाला| एक ऐसी लड़की जिसे मैं इतना प्यार करता था उसने मुझे उसी का खून करने पर मजबूर कर दिया था! ये दर्द मेरे लिए सहना बहुत मुश्किल था| "तेरे साथ जो उसने किया, उसके बाद भी तू उसके लिए आँसू बहा रहा है?" ताऊ जी बोले|



"मैंने कभी उससे कोई दुश्मनी नहीं की, वो बस पैसों की चका-चौंध से अंधी हो गई थी पर अब तो रही नहीं तो कैसी दुश्मनी!" मैंने जवाब दिया और खुद को किसी तरह संभाला| बड़े बेमन से ताऊ जी ने सारी क्रियाएँ करनी शुरू कीं, पर ऋतू को आज मुखाग्नि दी जानी थी| अनु मुझे एक तरफ ले गई और बोली; "मुखाग्नि आप दोगे ना?" मैंने हाँ में सर हिलाया|



भले ही मेरी और ऋतू की शादी नहीं हुई पर उसे मंगलसूत्र सबसे पहले मैंने बाँधा था, उन कुछ महीनों में हमने एक पति-पत्नी की तरह जीवन व्यतीत किया था और अनु ये सब जानती थी इसलिए उसने ये बात कही थी| जब मुखाग्नि का समय आया तो मैं आगे आया; "ताऊ जी सबसे ज्यादा ऋतू को प्यार मैंने ही किया था, इसलिए कृपया मुझे ही मुखाग्नि देने दीजिये!" मैंने कहा और ताऊ जी को लगा की मैं चाचा-भतीजी वाले प्यार की बात कर रहा हूँ इसलिए उन्होंने इसका कोई विरोध नहीं किया| रितिका को मुखाग्नि देते समय मैं मन ही मन बोला; "आज हमारे सारे रिश्ते खत्म होते हैं! मैं भगवान से दुआ करूँगा की वो तेरी आत्मा को शान्ति दें!" आग की लपटों ने ऋतू की जिस्म को अपनी आगोश में ले लिया और उसे इस दुनिया से आज मुक्ति मिल गई! अगले कुछ दिनों में जो भी जर्रूरी पूजा और दान होते हैं वो सब किये गए और मैं उनमें आगे रहा|





आखिर अब हमारा परिवार एक जुट हो कर खड़ा था और फलने-फूलने लगा था| खुशियाँ अब permanently हमारे घर आ आकर अपना घर बसाने लगीं थी| नेहा को उसके बाप और माँ दोनों का लाड-प्यार मिलने लगा था| अनु उसे हमेशा अपने से चिपकाए रखती और कभी-कभी तो मेरे और अनु के बीच मीठी-मीठी नोक-झोक हो जाती की नेहा को प्यार करने का मौका बराबर मिलना चाहिए! मई का महीना लगा और अनु का नौवां महीना शुरू हो गया, अनु ने मुझसे कहा की मैं घर में नेहा को कानूनी रूप से गोद लेने की बात करूँ| दोपहर को जब सब का खाना हो गया तो मैंने बात शुरू की; "पिताजी....मैं और अनु नेहा को कानूनी रूप से गोद लेना चाहते हैं!" ये सुन कर पिताजी और ताऊजी समेत सारे लोग मुझे देखने लगे| "पर बेटा इसकी क्या जर्रूरत है तुझे? घर तो एक ही है!" पिताजी बोले|



"जर्रूरत है पिताजी... नेहा के साथ भी कुछ वैसे ही हो रहा है जो उसकी माँ ऋतू के साथ हुआ| अनु की डिलीवरी के बाद मुझे और अनु को शहर वापस जाना होगा और फिर यहाँ नेहा अकेली हो जाएगी| अगर मैं उसे साथ ले भी जाऊँ तो वहाँ लोग पूछेंगे की हमारा रिश्ता क्या है? कानूनी तौर पर गोद ले कर मैं उसे अपना नाम दे पाउँगा और वो मुझे और अनु को अपने माँ-बाप कह सकेगी| समय के साथ ये बात दब जाएगी की वो अनु की बेटी नहीं है!" मैंने बात घुमा-फिर कर कही| थोड़ी बहुत न-नुकूर होने के बाद आखिर ताऊ जी और पिताजी मान गए| मैंने अगले ही दिन ये कानूनी प्रक्रिया शुरू कर दी और चूँकि अनु की कुछ जान-पहचान थी सो ये काम जल्दी से हो भी गया| मंत्री की जायदाद का सारा क्लेम मैंने कानूनी रूप से ठुकरा दिया और साडी जायदाद बूढ़े माँ-बाप की देख रेख करने वाले ट्रस्ट को दे दी गई|



अनु की डिलीवरी से ठीक एक दिन पहले हमें नेहा के एडॉप्शन पेपर्स मिल गए और अब नेहा कानूनी तौर पर मेरी बेटी बन गई थी| मैं ये खुशखबरी ले कर घर आया, अनु को पेपर्स दिए और उसे जोर-जोर से पढ़ के सुनाने को कहा| इधर मैंने नेहा को अपनी गोद में उठा लिया और उसे चूमने लगा| अनु जैसे-जैसे पेपर्स के शब्द पढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे उसकी ख़ुशी बढ़ती जा रही थी| जब उसका पढ़ना पूरा हो गया तब मैंने नेहा से सबके सामने कहा; "आज से मेरी बच्ची मुझे सब के सामने पाप कहेगी!" ये सुन कर नेहा मुस्कुराने लगी और उसके मुँह से आवाज आने लगी; 'डा...ड....' इन्हें सुन कर मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और मैंने नेहा को कस कर अपने गले लगा लिया| "मुझे भी मेरी बेटी के मुँह से मम्मी सुनना है!" अनु बोली और मैंने नेहा को उसकी गोद में दे दिया, अनु ने नेहा को गले लगाया और फिर उसके माथे को चूमते हुए बोली; "बेटा एक बार मम्मी बोलो!" पर नेहा के मुँह से डा..ड...ही निकल रहा था जिसे सुन सब हँसने लगे| वो रात बड़ी खुशियों भरी निकली और इस ख़ुशी को देख ताऊ जी बैठे प्रार्थना करने लगे की अब कभी भी किसी की गन्दी नजर इस परिवार को ना लगे|



अगले दिन सब कुछ हँसी-ख़ुशी चल रहा था की दोपहर को खाने के बाद अनु ने मुझे अपने पास बुलाया और uncomfortable होने की शिकायत की| मैं उसे और भाभी को ले कर तुरंत हॉस्पिटल पहुँचा, डॉक्टर ने बताया की घबराने की कोई बात नहीं है, अनु जल्द ही लेबर में जाने वाली है| ठीक शाम को 4 बजे डॉक्टर ने उसे लेबर रूम में शिफ्ट किया, मैं थोड़ा घबराया हुआ था की जाने क्या होगा और उधर भाभी मेरा होंसला बढ़ाने लगी थी की सब ठीक ही होगा| पर मैं घबराया हुआ था तो भाभी ने घर फ़ोन कर के सब को बुला लिया| कुछ ही देर में पूरा घर हॉस्पिटल आ गया, भाभी ने माँ से कहा की वो नेहा को मुझे सौंप दें| नेहा जैसे ही मेरी गोद में आई मेरे दिल को कुछ चैन आया और ठीक उसी वक़्त नर्स बाहर आई और बोली; "मानु जी! मुबारक हो आपको जुड़वाँ बच्चे हुए हैं!" ये सुनते ही मैं ख़ुशी से उछल पड़ा और फ़ौरन अनु को मिलने कमरे में घुसा| अनु उस वक़्त बेहोश थी, मैंने डॉक्टर से पुछा तो उन्होंने बताया की अनु आराम कर रही है और घबराने की कोई बात नहीं है| ये सुन आकर मेरी जान में जान आई! कुछ मिनट बाद नर्स दोनों बच्चों को ले कर आई, एक लड़का और एक लड़की! दोनों को देख कर मेरी आंखें छलछला गईं| मैंने पहले नेहा को माँ की गोद में दिया और बड़ी एहतियात से दोनों बच्चों को गोद में उठाया| ये बड़ा ही अनोखा पल था जिसने मेरे अंदर बड़ा अजीब सा बदलाव किया था| दोनों बच्चे शांत थे और सो रहे थे, उनकी सांसें तेज चल रही थीं| मैंने एक-एक कर दोनों के माथे को चूमा, अगले ही पल मेरे चेहरे पर संतोष भरी मुस्कराहट आ गई| मेरी छोटी सी दुनिया आज पूरी हो गई थी! बारी-बारी से सब ने बच्चों को गोद में उठाया और उन्हें प्यार दिया| तब तक अनु भी जाग गई थी, मैं उसके पास पहुँचा और उसका दाहिना हाथ पकड़ कर उसके माथे को चूमा| "Baby .... twins!!!!" मैंने मुस्कुराते हुए कहा| अनु के चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई, इतने में भाभी मसखरी करते हुए बोलीं; "हाय राम! तुम दोनों सच्ची बेशर्म हो! हम सब के सामने ही ....!" भाभी बोलीं तो ताई जी ने उनके कान पकड़ लिए और बोलीं; "तो तू आँख बंद कर लेती!" ये सुन कर सारे हँस पड़े| "अच्छा बेटा कोई नाम सोचा है तुम दोनों ने?" ताऊ जी ने पुछा तो अनु मेरी तरफ देखने लगी; "आयुष" मैंने कहा और मेरे पीछे-पीछे अनु बोली; "स्तुति"! दोनों नाम सुन घरवाले खुश हो गए और ताऊ जी ने यही नाम रखने को कहा| कुछ देर बाद डॉक्टर साहिबा आईं और हमें मुबारकबाद दी| साथ ही उन्होंने मेरी तारीफ भी की कि मैंने अनु का इतना अच्छा ख्याल रखा की twins होने के बाद भी डिलीवरी में कोई complications नहीं हुई| शाम को मैं अनु और बच्चों को लेकर घर आया, तो सारे विधि-विधान से हम घर के भीतर आये| रात को सोने के समय मैंने अनु से बात की; "थैंक यू! मेरी ये छोटी सी दुनिया पूरी करने के लिए!" उस समय पलंग पर तीनों बच्चे एक साथ सो रहे थे और ये ही मेरी दुनिया थी! मेरे लिए तीनों बच्चों को संभालना एक चैलेंज था, जब एक रोता तो उसकी देखा देखि बाकी दो भी रोने लगते और तीनों को चुप कराते-कराते मेरा बैंड बज जाता| जब तीनों घुटनों पर चलने लायक हुए तब तो और गजब हुआ! तीनों घर भर में रेंगते हुए घूमते रहते! जब उन्हें तैयार करना होता तब तो और भी मजा आता क्योंकि एक को तैयार करने लगो बाकी दोनों भाग जाते| अनु मेरी मदद करती तब भी एक तो भाग ही जाता और जब तक उसे तैयार करते बाकी दोनों अपने कपडे गंदे कर लेते| मैं और अनु हँस-हँस के पागल हो जाते| मेरे दोस्त अरुण ने तो मुझे एक स्पेशल triplets carry bag ला कर दिया जिससे मैं तीनों को एक साथ गोद में उठा सकता था| दिन प्यार-मोहब्बत भरे बीतने लगे और बच्चे धीरे-धीरे बड़े होने लगे, मैं और अनु दोनों ही के बाल अब सफ़ेद हो गए थे पर हमारा प्यार अब भी वैसा का वैसा था| बच्चे बड़े ही फ़रमाबरदार निकले, कोई गलत काम या कोई बुरी आदत नहीं थी उनमें, ये अनु और मेरी परवरिश का ही नतीजा था| साल बीते और फिर जब नेहा शादी के लायक हुई तो मैंने उसे अपने पास बिठा कर सारा सच ब्यान कर दिया| वो चुप-चाप सुनती रही और उसकी आँखें भर आईं| वो उठी और मेरे गले लग कर रो पड़ी; "पापा... I still love you! आपने जो किया वो हालात के आगे मजबूर हो कर किया, अगर आपने वो नहीं किया होता तो शायद ाजे ये सब नहीं होता| आप कभी भी इसके लिए खुद को दोषी मत मानना, मुझे गर्व है की मैं आपकी बेटी हूँ! और माँ... आपने जितना प्यार मुझे दिया शायद उतना मेरी सगी माँ भी नहीं देती| मेरे लिए आप ही मेरे माता-पिता हो, वो (ऋतू) जैसी भी थी मेरा past थी... उनकी गलती ये थी की उन्होंने कभी पापा के प्यार को नहीं समझा अगर समझती तो इतनी बड़ी गलती कभी नहीं करती!" इतना कह कर नेहा ने हम दोनों को एक साथ अपने गले लगा लिया| नेहा के मुँह से इतनी बड़ी बात सुन कर हम दोनों ही खुद पर गर्व महसूस कर रहे थे| आज मुझे मेरे द्वारे किये गए पाप से मुक्ति मिल गई थी!





नेहा की शादी बड़े धूम-धाम से हुई और विदाई के समय वो हमारे गले लग कर बहुत रोई भी| कुछ समय बाद उसने अपने माँ बनने की खुश खबरी दी....



उसके माँ बनने के साल भर बाद आयुष की शादी हुई, उसे USA में एक अच्छी जॉब मिल गई और वो हमें अपने साथ ले जाना चाहता था पर अनु ने मना कर दिया और हमने हँसी-ख़ुशी उसे वहाँ सेटल कर दिया| कुछ महीने बाद स्तुति के लिए बड़ा अच्छा रिश्ता आया और सुकि शादी भी बड़े धूम-धाम से हुई| हमारे तीनों बच्चे सेटल हो गए थे और हम दोनों से खुशनसीब इंसान सहायद ही और कोई होता| एक दिन शाम को मैं और अनु चाय पी रहे थे की अनु बोली; "थैंक यू आपको की आपने इस प्यारी दुनिया को इतने प्यार से सींचा!" ये थैंक यू उस थैंक यू का जवाब था जो मैंने अनु को आयुष और स्तुति के पैदा होने के बाद दिया था| हम दोनों गाँव लौट आये और अपने जीवन के अंतिम दिन हाथों में हाथ लिए गुजारे| फिर एक सुबह हम दोनों के जीवन की शाम साबित हुई, रात को जो हाथ में हाथ ले कर सोये की फिर सुबह आँख ही नहीं खुली और दोनों ख़ुशी-ख़ुशी एक साथ इस दुनिया से विदा हुए!




Happy Ending !!!!
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