RE: Kamvasna दोहरी ज़िंदगी
रास्ते में एक केमिस्ट की दुकान के करीब कार रोक के एक लड़का उतर कर जल्दी से मेरे लिये 'आई-पिल' की गोली ले आया और बोला कि घर जाते ही मैं वो गोली ले लूँ ताकि प्रेगनन्सी की कोई गुंजाईश ना रहे। उन्होंने मेरे घर से थोड़ी दूर पे कार रोकी और सलवार-कमीज़ पहनने में मेरी मदद की। लेकिन उन नामाकूलों ने मेरी ब्रा और पैंटी नहीं लौटायी। उनमें से एक लड़का बोला, "अरे तब़्बू मैडम जी! ये तो हमारे पास निशानी रहेगी कि हमने हमारी ज़िंदगी की सबसे खूबसूरत, गोरी-चिट्टी और हमारे स्कूल की सबसे स्ट्रिक्ट टीचर तब़स्सुमअख़तर मैडम को जमकर चोदा था! उसकी बात सुनकर मैं मुस्कुरा दी और फिर अपना दुपट्टा और पर्स लेकर बड़ी बेदिली से कार से उतरी क्योंकि उनके चूमने चाटने और मसलने की वजह से मैं एक दफ़ा फिर बेहद गरम हो चुकी थी।
नशे की हालत में झूमती हुई बड़ी मुश्किल से ऊँची ऐड़ी की सैंडल में चलती हुई मैं घर तक पहुँची। अगर अंधेरा ना हुआ होता और कोई मुझे इस तरह चलते हुए देख लेता तो झट सारा माजरा समझ जाता। हमारे घर 'आख्तर-हाऊज़' के गेट पे एक सिक्युरिटी गार्ड अपनी चौंकी में मौजूद होता है लेकिन किस्मत से उस वक़्त वो शायद खाना खाने चला गया था। घर के अंदर भी एक नौकरानी के अलावा कोई नहीं था और वो भी अपने कमरे में मौजूद थी। घर आते ही मैं एक दफ़ा फिर नहाने के लिये बाथरूम में घुस गयी और फिर कपड़े बदल कर उसे खाना लगाने के लिये आवाज़ दी। खाना खा कर मैंने वो आई-पिल की गोली भी ली। बाद में अपने बेडरूम में लेटी हुई मैं सोचने लगी कि कैसे मेरे लुच्चे कमीने स्टूडेंट्स ने अपनी पिटाई का बदला लेने के लिये अपनी टीचर ही चोद डाली। उनका भी क्या कसूर... जब मैं खुद भी तो अपनी हवस की आग की चपेत में अपने तमाम इखलाक़ भूल कर अपनी इज़्ज़त-आबरू और स्टेटस की भी परवाह किये बिना एक ही दिन में एक साथ कितनी ही हरामकारियों में शामिल हो गयी। मुझे तो ज़िनाकारी और शराब के नाम से भी नफ़रत थी और आज मैंने खुद अपनी रज़ामंदी से शराब के नशे में मस्त हो कर चार-चार नौजवान स्टूडेंट्स के साथ हर किस्म की चुदाई का लुत्फ़ उठाया। लेकिन फिर भी मुझे गुनाह या गिल्ट का ज़रा भी एहसास नहीं हो रहा था बल्कि निहायत सुकून और खुशनुदी महसूस हो रही थी। यही सब सोचते-सोचते मेरी आँख लग गयी। उस रात जैसी गहरी और अच्छी नींद मुझे पहले कभी नही आयी।
उस दिन के बाद तो मेरी ज़िंदगी का रुख ही बदल गया... मेरा जीने का अंदाज़... मेरा नज़रिया बिल्कुल बदल गया और मेरे कदम बस बहकते ही चले गये और मैं निहायत ही चुदक्कड़ और ऐय्याश बन गयी। शराब और सिगरेट भी मामूलन पीने लगी। अगले सात दिन मैं घर में अकेली थी क्योंकि अम्मी और अब्बू अजमेर गये हुए थे। उनकी गैर-मौजूदगी का फ़ायदा उठा कर मैं हर रोज़ स्कूल के बाद शाम के वक़्त चारों स्टूडेंट्स को अपने ही घर पे बुला लेती और कईं घंटों तक उनके साथ शराब के नशे में दिल खोल कर ऐयाशी करती। चारों मिलकर मेरी चूत और जिस्म चूमते चाटते और मुझे खूब मसलते। मैं भी उनके लौड़े मुँह में ले कर चूसती और कभी वो एक-एक करके मेरी चूत चोदते या गाँड मारते और कभी एक साथ दो तो कभी तीन लड़के मेरी चूत और गाँड और मुँह में एक साथ अपने लौड़े डाल कर चोदते। मुझे भी सबसे ज्यादा मज़ा अपनी गाँड और चूत एक साथ दो लौड़ों से चुदवाने में आने लगा। प्रेग्नेन्सी से बचने के लिये मैंने कान्ट्रासेप्टिव पिल्स लेना भी शुरू कर दिया।
वो एक हफ़्ता तो रोज़ शाम को खूब दिल खोल के ऐय्याशी की लेकिन मेरे अम्मी और अब्बू के लौटने के बाद तो हर रोज़ शाम को इस तरह अपने स्टूडेंट्स से मिलना मुमकिन नहीं था। मुझे तो चुदवाने का शद्दीद चस्का लग चुका था। मैं स्कूल की बस से स्कूल जाने की बजाय अब फिर से अपनी स्कोरपियो ड्राइव करके जाने लगी। छुट्टी के बाद चारों लड़के मेरे साथ मेरी स्कोरपियो में घर जाते लेकिन उससे पहले रास्ते में हाइवे से एक सुनसान कच्चे रास्ते से होते हुए हम एक पुरानी खंडहर बनी फैक्ट्री के पीछे कार रोकते और कार में ही मैं नंगी होकर उनसे चुदवाती। हफ़्ते के पाँच दिन इस ज़ल्दबाज़ी की चुदाई के अलावा कोई चारा भी तो नहीं था। शाम को फोन पे उनके सैक्सी मेसेज आते तो मैं भी वैसे ही जवाब दे देती। रात को सोने से पहले इंटरनेट पे पोर्न वेबसाइट देखती या फोन पे उन चारों स्टूडेंट्स के साथ गरम-गरम शहवत-अंगेज़ बातें करते हुए मोटे केले या लंबे बैंगन से खुद-लज़्ज़ती का लुत्फ़ उठाती। उनकी टीचर होते हुए भी उन चारों नालायकों की इंगलिश तो मैं ज्यादा सुधार नहीं सकी लेकिन मैं उनसे गंदी-गंदी गालियाँ और फ़ाहिशी गंदी ज़ुबान ज़रूर सीख गयी। उनके साथ गंदे अल्फ़ाज़ों में बात करने में अजीब-सा लुत्फ़ महसूस होता था और फिर आहिस्ता-आहिस्ता मेरी ज़ुबान में भी गालियाँ और गंदे अल्फ़ाज़ इस तरह शामिल हो गये कि अब तो किसी से आमतौर पे बातचीत के दौरान मुझे एहतियात बरतनी पड़ती है।
हफ़्ते भर मैं फ्राइडे का बेसब्री से इंतज़ार करने लगी क्योंकि अगले दो दिन स्कूल की छुट्टी होती थी और फ्राइडे को हम पूरी रात ऐयाशी करते। मैंने अपने घर पे कह दिया था कि हर फ्राइडे को मैं अपनी एक सहेली के घर रुक कर एम-ए की पढ़ाई करती हूँ और वो चारों लड़के तो थे ही आवारा किस्म के। वो भी अपने घरों में कोई ना कोई बहाना बना देते थे। फिर हम संजय के खेत के उसी कमरे में या कुल्दीप के फार्म-हाउज़ पे जहाँ कहीं भी मुनासिब होता वहाँ रात गुज़ारते। मैं शराब पी कर नशे में बदमस्त होकर देर रात तक घंटों उनसे चुदवाती। इन मौकों पर वो मज़दूरों और दूसरे नौकरों को पहले ही फ़ारिग कर देते थे।
इतना चुदवाने के बावजूद मेरी हवस की आग दिन-ब-दिन और ज्यादा बुलंद होती जा रही थी। हर वक़्त मेरे ज़हन में फ़ाहिश और शहवत अंगेज़ तसव्वुरात रहने लगे। स्कूल में भी अपने कमरे में हर रोज़ एक-दो दफ़ा सलवार औए पैंटी नीचे खिसका कर उंगलियों या केले के ज़रिये खुद-लज़्ज़ती कर लेती। अब तब़स्सुम़ अखतर पहले वाली स्ट्रिक्ट टीचर नहीं थी और स्टूडेंट्स की पिटाई करना भी कम कर दिया था। उन चारों लड़कों के लिए तो अब मैं अख़तर मैडम से आमतौर पे भी तब्बू मैम हो गयी थी और अकेले में तो तब्बु जान के अलावा तब्ससुम रंडी... तब्बू डार्लिंग और भी बहोत कुछ नामों से बुलाई जाती। जब उन चारों लड़्कों की क्लास में जाती तो बाकी स्टूडेंट्स से छुपा कर उनके साथ इशारेबाजी करती और दोहरे माइने वाले अल्फाज़ों के ज़रिये उनके साथ मज़ाक और छेड़छाड़ करती थी। आहिस्ता-आहिस्ता मेरी हिम्मत बढ़ने लगी तो बाज़ दफ़ा जब अपनी चुदास पे काबू नहीं रहता तो स्कूल में ही उन चारों में से किसी एक को अपने कमरे में बुला कर चुदवाने का खतरा भी लेना शुरू कर दिया।
अगले दो-ढाई महीने तो ये ही सिलसिला चला। फिर मुझे एक तदबीर नज़र आयी जिससे मैं रोज़ अपने घर में भी शाम को इन लड़कों के साथ चुदाई का मज़ा ले सकूँ। मैंने घर में बताया कि मैं पढ़ाई में कमज़ोर तीन-चार स्टूडेंट्स की मदद करने के लिये उन्हें शाम को घर पे एक-दो घंटे मुफ़्त में ट्यूशन देना चाहती हूँ तो उम्मीद के मुताबिक मेरे अम्मी और अब्बू ने कोई ऐतराज़ नहीं किया और खुशी-खुशी मंज़ूरी दे दी। हमारा बंगला काफी बड़ा है और घर के पीछे वाले लॉन के एक तरफ़ एक छोटा सा बिल्कुल फर्निश्ड गेस्ट-हाऊज़ भी है जिसमें हॉल और एक बेडरूम और अटैचड बाथरूम भी है। ये गेस्ट हॉऊज़ ज्यादातर बंद रहता है और उस तरफ़ कोई जाता भी नहीं है इसलिये अपने स्टूडेंट्स के साथ बिला-परेशानी ऐयाशी करने के लिये वो गेस्ट हाऊज़ सबसे मुनासिब जगह थी।
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