RE: Incest Kahani दीदी और बीबी की टक्कर
मेने गेट बंद कर दिया और एक गिलास पानी खुद पिया और एक दीदी को दिया. में हॉल में आया तो दीदी ने कहा कि मेरे साथ इसी सोफे पे आ जा. वो थोड़ा उठी और में उसके पैर वाली साइड पे बैठ गया वो फिर से लेटी और उसने अपने पैर मेरे गोदी में रख लिए ये बड़ा ही सेक्सी पोज़ था मेरी जांघों पे उसके पैर थे बाकी बदन सोफे पर था और उसने पेटिकोट आधा उठाया हुआ था में उसकी साइड देख रहा था और और अगर वो अपना पैर उठाती तो मुझे पेटिकोट के अंदर का सीन सॉफ दिख जाता तो मेरे लंड ने फिर से सलामी देनी शुरू कर दी
दीदी के पैरों में लंड टच तो हुआ लेकिन दीदी ने कुछ कहा नही और कुछ किया भी नही हमारी बातें चलती रहीं. दीदी बड़े आराम से इसी पोज़ में लेटी रही उसके ब्रा से उसकी चुचियाँ बाहर निकलने को बेताब हो रही थी उसने छुपाया भी नही उसका पूरा पेट नंगा था.
मेरे सामने उसकी चूत के सिवा सब कुछ ऑलमोस्ट खुला हुआ ही था हम लोग काफ़ी देर तक इधर उधर की बात करते रहे फिर दीदी उठी और बोली कि में सोने जा रही हूँ वो उठी और अपने रूम में चली गयी में थोड़ी देर उसी कोने पे बैठा रहा फिर जबसोफे पे लेटा तो पीठ पे कुछ गढ़ता सा फील हुआ.
मेने उठ के देखा तो नीचे सोफे पे एक पैंटी पड़ी हुई थी दीदी की पैंटी थी दीदी रात में पैंटी नही पहनती थी लेकिन में श्योर नही था कि उसने यह पैंटी यहाँ रखी है या ग़लती से भूल गयी है मेने पैंटी हाथ में ली थोड़ी देर ऐसे ही लिए बैठा रहा फिर वो पैंटी मेने अपनी अंडरवेर के अंदर डाल ली.
दीदी की पैंटी मेरे लंड के उपर पड़ी हुई थी में भी थोड़ी देर में सो गया अगले कुछ दिन ऐसे ही बीते राजीव के साथ हमने बहुत अच्छा टाइम स्पेंड किया. और स्वेता रोज रात में टाइम निकाल के आ जाती थी में उसे बाथरूम में चोदता कभी किचन में चोदता हर रात में उसे 2 बार चोद तो लेता था लेकिन प्राब्लम इस बात की थी कि हमें हमेशा जल्दबाज़ी में काम करना पड़ता था वो आती अपनी साड़ी उठाती और में सीधे लंड घुसेड देता हम चुदाई कर तो रहे थे लेकिन इसका मज़ा अच्छे से नही आ पा रहा था.
दीदी भी लगभग रोज ही हमारी चुदाई के बाद स्वेता के अंदर जाते ही बाहर आ जाती थी मुझे इस बात का भी शक था कि शायद वो हमें छुप छुप के देखती भी है स्वेता को इसके बारे में नही मालूम था कि में और दीदी रात में बातें करते हैं.
दीदी हमेशा ही उसके रूम का गेट बंद कर देती थी करीब 7 दिन बाद राजीव के जाने का टाइम आ ही गया. उसे भेजने के बाद हम लोग घर आए तो दीदी ने मेरे सामने ही स्वेता को आयिल की एक नयी बॉटल दी. स्वेता को लेकर में रूम में आया और उस रात हमने सही ढ़ंग से चुदाई की.
स्वेता अब मज़े से चुद लेती थी बस लंड पूरा डालने के बाद उसे धक्के धीर धीरे मारने पड़ते थे. जोरदर्द धक्कों से उसे अभी भी दर्द होता था लाइफ में सबकुछ सेट्ल लग रहा था. मेने रात में उठ कर दीदी से बात करना भी बंद कर दिया था रात भर तो मैं स्वेता के उपर ही पड़ा रहता था.
करीब 10 दिनो बाद एक नयी बात हुई माँ जो कि इतने दीनो से सेहत से जूझ रही थी उस दिन मुझसे बोली की अब वो बिना देर किए कुछ तीर्थ दर्शन करना चाहती है. और मेने भी सोचा कि ठीक है इनकी इच्छा है तो मना नही किया जाए.
दीदी को यही बात बताई.वो भी खुश हुईं लेकिन प्राब्लम इस बात की थी ट्रिप कैसे की जाए. मुझे ऑफीस छुट्टी नही मिली दीदी अगर छुट्टी लेती तो इससे हमारी इनकम कम पड़ जाती और ट्रिप बहुत महँगी पड़ती ट्रिप थी भी लंबी.
करीब 21 दिन की ट्रिप थी 4 धाम का एक टूर जा रहा था लेकिन माँ को अकेले भेजना ठीक ना था
में और दीदी अपने अपने जॉब में फँसे थे इसलिए अकेली बची स्वेता. और दीदी ने कहा कि स्वेता माँ के साथ ट्रिप पे जाए.
स्वेता माँ से और माँ स्वेता से बहुत प्यार करते थे और भोली भाली स्वेता ने तुरंत हां कर दी कि वो माँ के साथ जाएगी वो तो इनफॅक्ट बहुत खुश भी थी.मेने भी सोचा कि ठीक है. लेकिन इसका दूसरा मतलब यह था कि में और दीदी घर में 21 दिनो तक अकेले रहेंगे. मुझे चूत नही मिलेगी चोदने को और दीदी तो हमेशा से ही गरम है ही.
एक बार तो मेरा मन किया कि में स्वेता को रोक के दीदी को ट्रिप पे भेज दूं लेकिन फाइनान्षियल रीज़न के कारण यह पासिबल नही था.
तो यह फ़ैसला लिया गया कि स्वेता ही माँ के साथ जाएगी. अगले दिन ही टूर जाने वाला था और स्वेता और माँ की पॅकिंग कर दी गयी. अगले दिन में दोनो को गाड़ी में बिठा आया.
रास्ते में मेरे दिमाग़ थोडी शंका हुई थी. मुझे ना जाने क्यूँ दीदी के साथ उस घर में अकेले रहने में थोड़ी प्राब्लम हो रही थी में सोच भी नही पा रहा था कि क्या क्या होने वाला है मुझे पता था कि दीदी इस आज़ादी का पूरा फ़ायदा उठाएगी.
में यह भी जानता था कि वो मेरे सामने कुछ भी कर सकती है वो मुझे भी उकसाने की पूरी कोशिश करेगी लेकिन डाइरेक्ट्ली नही कहेगी. तो अब उसकी ऑर से खुल्ला खेल होने वाला था मुझे सेक्स के लिए तड़पाने का . सवाल यह था कि में क्या करूँ?
|