RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
कुच्छ पुरानी खुर्राट नौकरानियाँ जो बस सेठानी की चापलूसी में ही लगी रहती, और अपने हिस्से का काम भी रंगीली जैसी सीधी-सादि नयी नौकर से ही करवाती..
फिर कुच्छ दिन बाद सेठ ने धीरे से सेठानी को बातों में लगा कर रंगीली को अपने निजी कामों, जैसे बैठक की साफ-सफाई, बही खातों को व्यवस्थित करना आदि कामों के लिए लगवा लिया…
अब वो जब अपने कामों में व्यस्त रहती, और सेठ जी उसके नव-यौवन का रसस्वादन बोले तो चक्षु-चोदन करते रहते…
काम के बहाने अपने बही खातों को इधर से उधर रखवाने के बहाने वो उसके शरीर का स्पर्श भी करने लगे…
निश्चल मन, अल्हड़ रंगीली, लाला के मनोभावों को भला क्या पढ़ पाती, बस उसे स्वाभिवीक बात समझ कर नज़र अंदाज कर दिया करती…!
धीरे-धीरे सेठ ने उसे घूँघट ना करने पर भी राज़ी कर लिया, ये कहकर कि मेरे लिए तो तेरे मायके और ससुराल वाले एक जैसे हैं…!
लाला की गद्दी के पीछे की तरफ दीवार से लगी हुई एक लाइन से लकड़ी की अलमारियाँ बनी हुई थी, जिनमे उनके बाप दादाओं के जमाने तक के बही खाते भरे हुए थे…!
एक दिन लाला ने रंगीली से उन बही खातों से धूल साफ करने के लिए कहा – वो उसका जहाँ तक हाथ पहुँच सकता था उस उँचाई से धूल सॉफ करने लगी…!
लाला – अरे पहले उपर से सॉफ कर वरना बाद में नीचे धूल लगेगी…!
रगीली उनकी बात सुनकर बैठक से बाहर की तरफ जाने के लिए मूडी, लाला ने उसका मन्तव्य समझते ही फ़ौरन कहा – अरे कहाँ चली…?
उसने कहा – मालिक हम कोई स्टूल लेकर आते हैं, वरना उपर तक हाथ नही पहुँचेगा…!
लाला – अरे तो हम हैं ना, तू फिकर क्यों करती है, फूल सी बच्ची को तो मे ऐसे ही आराम से उठा लूँगा, तू सॉफ कर देना…
लाला की बात पर वो हिच-किचाई, और बोली – नही मालिक, आप हमें उठाएँगे, अच्छा नही लगेगा…
लाला – अरी बाबली ! हमसे क्या शरमाना, मे तो तेरे पिता जैसा हूँ, क्या कभी अपने बाप की गोद में नही बैठी तू…?
रगीली अपनी नज़रें नीची किए हुए ही बोली – वो तो हम बचपन में बहुत बार बापू की गोद में खेले रहे… पर अब आपकी गोद में कैसे…
नही नही ! हमें बहुत लाज आएगी, हम स्टूल ही लिए आते हैं..
लाला को लगा कि मामला उल्टा होता नज़र आ रहा है, सो फ़ौरन अपनी आवाज़ में रस घोलते हुए अपने शब्दों को चासनी में लिपटा कर बोले –
तू तो खमखाँ शर्म कर रही है बिटिया…, है ही कितनी जगह, 4-6 खाने ही तो हैं, उसके लिए इतने भारी स्टूल को उठाकर लाएगी, और फिर ना जाने कहाँ पड़ा होगा…!
चल तू झाड़ू और कपड़ा पकड़, हम तुझे सहज ही उठा लेंगे, है ही कितना वजन..? फूल सी बच्ची ही तो है…!
लाला की ऐसी रस भरी बातें सुनकर रंगीली की झिझक कुच्छ कम होती जा रही थी, सो वो हँसते हुए बोली –
क्या बात कर रहे हैं मालिक, इतनी हल्की भी नही हूँ मे, एक मन (40किलो) से तो बहुत ज़्यादा हूँ…!
लाला – कोई बात नही, तू चिंता ना कर हम तुझे आराम से संभाल लेंगे.., अब ज़्यादा बात ना बना और जल्दी काम शुरू कर…
सरल स्वाभाव रंगीली सेठ की बातों में आ गई, अपनी चुनरी के पल्लू को कमर में खोंस कर अपनी चोली को ढक लिया, और बोली – ठीक है मालिक फिर उठाइए हमें…!
लाला – ज़रा रुक, हम अपनी धोती को निकाल कर अलग रख देते हैं नही तो धूल गिरने से गंदी होगी, और हां तू भी अपनी चुनरी को अलग रख्दे, धूल चढ़ेगी बेकार में…!
ये कहकर लाला ने अपनी धोती उतार कर गद्दी पर रख दी, और मात्र अपने पट्टे के घुटने में आ गये,
बातों में फँसाकर उन्होने रंगीली की चुनरी भी अलग रखवा दी..,
और फिर रंगीली के पीछे जाकर उसे अपनी बाहों में लेने के लिए तैयार हो गये….!
सेठ धरमदास ने रंगीली को पीछे से उठाने के लिए जैसे ही अपने हाथ आगे किए, रंगीली बोली – देखना मालिक कहीं हम गिर ना जाएँ…!
उसके एक हाथ में झाड़ू और दूसरे में एक मोटा सा कपड़ा था, उसने जैसे ही अपने दोनो हाथ उपर उठाए, सेठ के बड़े-बड़े हाथ उसकी बगलों पर जम गये…!
रंगीली के लिए तो ये शायद साधारण सी बात रही होगी, लेकिन लाला के बदन में मादकता से परिपूर्ण बिजली की भाँति एक लहर सी दौड़ गयी…!
मजबूर और छिनाल औरतों के साथ मूह काला करते रहने वाले लाला के हाथों में एक कमसिन कली का बदन आते ही उसके बदन में अजीब सी कंपकपि सी दौड़ने लगी…!
एक नव-यवना के सानिध्य के एहसास ने उसके खून में उबाल पैदा कर दिया, और बादाम युक्त दूध और हलवा खाने वाले लाला का लंड एक सेकेंड में ही उछल कर खड़ा हो गया…
लाला के शरीर में ताक़त की कोई कमी नही थी, सो उसने ब-मुश्किल 48-50 किलो की रंगीली को किसी बच्ची की तरह उठा लिया…!
हाथों के अंगूठे और तर्जनी उंगली के बीच की गोलाई वाला भाग उसकी कांख (आर्म्पाइट) पर फिट होगया,
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