RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाला के बड़े-बड़े हाथों की उंगलियाँ रंगीली की कच्चे अमरूदो जैसी अविकसित गोलाईयो के बगल से उनकी कठोरता का स्वाद लेने लगी…!
शायद ही किसी मर्द के हाथों का स्पर्श अभी तक हुआ हो उसकी इन गोलाईयों पर, सो लाला की उंगलियों का स्पर्श पाकर वो अंदर तक सिहर गयी…, और उसका पूरा बदन बिजली के झटके की तरह झन-झना गया…!
आज शायद पहली बार उसे ये एहसास हुआ, कि उसके सीने के ये उभार भी खाली दिखाने या बच्चे को दूध पिलाने के लिए नही है, इनका भी शायद कोई ज़रूरी उपयोग होता होगा…!
लाला की लंबाई, रंगीली से 4-5” ज़्यादा थी, वो उसे कोई एक फुट ही उपर उठा पाया था,
धरम लाला का 7” लंबा और खूब मोटा लंड एकदम सीधा खड़ा होकर रंगीली के कुल्हों और जांघों के जोड़ों के बीच जा घुसा…!
रगीली के नितंब और जांघें किसी अधेड़ औरत की तरह इतने मांसल तो नही थे, फिर भी एक कोमलांगी के बदन का मखमली एहसास लाला के लंड की साँसें रोकने के लिए काफ़ी था…!
भले ही वो घाघरा पहने थी, फिर भी लाला का घोड़ा ऐसा मस्त अस्तबल पाकर हिनहिनने लगा…!
रंगीली अपनी जांघों के जोड़ों के बीच किसी सोट जैसी चीज़ को फँसा पाकर सोच में पड़ गयी,
मालिक के दोनो हाथ तो उसकी बगलों के नीचे लगे हुए हैं, फिर ये तीसरी चीज़ क्या है…, लेकिन जल्द ही उसे मर्द के शरीर की भौगौलिक स्थिति का भान हुआ…!
वो बुरी तरह सिहर गयी, मन ही मन सोचने लगी, हे राम ये क्या है…, लंड तो उसने अपने पति का भी देखा था, वो तो उंगली से थोड़ा ही मोटा था, फिर ये ?
नही..नही ! ये वो नही हो सकता.. ये तो कुच्छ और ही चीज़ होगी…
अभी वो इस असमंजस से बाहर भी नही निकल पाई, कि लाला ने उसे थोड़ा सा नीचे को कर दिया,
इसी के साथ रंगीली की छोटी सी गान्ड की दरार किसी बबूल के डंडे की खूँटि जैसे लंड पर टिक गयी…!
गान्ड के छेद पर दबाब पड़ते ही रंगीली की चूत में सुरसूराहट सी होने लगी...,
ये देखकर वो हैरान रह गयी, कि ये आज उसे कैसे-कैसे अजीब तरह के एहसास हो रहे हैं…!
उसे सेठ के लंड पर गान्ड रखने में बहुत अच्छा लग रहा था, इधर उसकी गोलाईयों पर उनकी उंगलियों का एहसास दूसरी तरह की मस्ती दे रहे थे…
वो एक अजीब तरह की मस्ती में डूबती जा रही थी…!
इससे पहले कि वो इस मस्ती को कुच्छ देर और फील करती, की लाला जी बोले - हाथ पहुँच गया तेरा रंगीली उपर तक…?
वो जैसे नींद से जागी हो, और अपनी चेतना में लौटते हुए बोली – अभी थोड़ा और उपर उठाना पड़ेगा मालिक, अलमारी के उपर की धूल दिखाई नही दे रही…!
लाला – भाई, इस तरह से तो और उँचा नही कर सकता मे तुम्हें, एक काम करते हैं, दूसरी तरह से उठाता हूँ, इतना कहकर उसने धीरे-2 रंगीली को नीचे उतारा…!
जैसे-जैसे उसका भार लाला जी के लंड पर पड़ता जा रहा था, वो नीचे को अपनी गर्दन झुकाने पर मजबूर होता चला गया,
रंगीली की गान्ड की दरार पर एक साथ ही दबाब और बढ़ा और उसके मूह से ना चाहते हुए एक सिसकी निकल गयी…!
लंड उसकी दरार में घिस्सा लगाते हुए उसकी कमर पर जा लगा..., इसी के साथ उसके पैर ज़मीन पर टिक गये…!
अब रंगीली के मन में ये तीव्र जिग्यासा हुई, कि आख़िर वो खूँटे जैसी चीज़ थी क्या, सो नीचे आते ही वो फ़ौरन लाला जी की तरफ घूम गयी,
और जैसे ही उसकी नज़र अपने मालिक के घुटन्ने में क़ैद कालिया नाग पर पड़ी…, वो अंदर तक सिहर गयी…!
हे राम ! ये तो वोही चीज़ है, शायद मेरी सहेलियाँ ऐसे ही किसी लंड के बारे में बोलती थी, कि बहुत दर्द देता है, खून ख़राबा तक होता है…!
रंगीली को अपने लंड पर नज़र गढ़ाए हुए देख कर सेठ धरमदास के चेहरे पर एक अर्थपूर्ण मुस्कान तैर गयी, वो उसका हाथ पकड़ कर बोले –
क्या देख रही है रंगीली…?
लाला की बात सुनकर वो एकदम हड़बड़ा गयी, बोली – कककुकच्छ नही मालिक, चलो अब कैसे उपर उठाओगे…
लाला – हां चल, उठाता हूँ, और फिर उन्होने अलमारी की तरफ अपनी पीठ कर ली और उसको अपनी तरफ पलटकर जांघों के बाहर से हाथ लपेट कर उसे उपर उठा लिया…!
अब रंगीली आसानी से अलमारी की उपरी सतह को भी अच्छे से देख सकती थी, लेकिन इस स्थिति में लालजी का मूह ठीक उसके उभारों की घाटी के मुहाने पर था…
रंगीली ने सबसे पहले झाड़ू से उस सतह की धूल सॉफ की, ना जाने कितने दिनो से उसे सॉफ नही किया था, सो ढेर सारी धूल जमा हो रही थी…!
उसने जैसे ही झाड़ू से धूल को नीचे गिराया, आधी धूल उन दोनो के उपर गिरी,
चूँकि रंगीली का सर तो उपर था, सो धूल का भाग उसके उपर तो कम गिरा..
लेकिन सेठ जी की खोपड़ी धूल से अट गयी, कुच्छ धूल के कन उनकी आँखों में भी चले गये…!
बिलबिला कर उन्होने अपनी आँखें मींच ली और अपने धूल से सने चेहरे को रंगीली की चोली से रगड़ते कुए बोले –
ये क्या गजब कर दिया तूने, सारी धूल मेरे उपर ही डाल दी…
क्षमा करना मालिक ग़लती से गिर गयी, लेकिन मे भी क्या करती, उपर हाथ किए हुए अंदाज़ा नही लगा..., आप छोड़ दीजिए हमें और अपना चेहरा सॉफ कर लीजिए…
सेठ भला ऐसे मौके को हाथ से कैसे जाने देता, सो अपनी नाक को उसके उभारों के बीच रगड़ते हुए बोला –
कोई बात नही रंगीली, अब गंदे तो हो ही गये है, तुम ठीक से उपर की सफाई कर्लो…!
जितनी देर उसने उपर की सफाई की, उतनी देर लाला जी उसके अविकसित उभारों में अपना मूह डाले अपने होठों, नाक, गालों और कभी-कभी जीभ से भी उसी घाटी को चाटते रहे, रगड़ते रहे…
मालिक की इस हरकत से रंगीली भी खुमारी में डूबने लगी थी…
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