RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
आने-जाने के साधन कुच्छ थे नही, सो बेचारे कडकती धूप में पैदल ही चल दिए, और डेढ़-दो घंटे का सफ़र तय करने के बाद वो अपने मैके पहुँच गयी…
खूब रोई वो अपनी माँ के गले से लगकर…, माँ को भी इतने दिन अपनी बेटी के बिछड़ने से रोना आ ही गया…!
ससुर को वापस भेज दिया ये कहकर, अब वो कुच्छ दिन अपनी माँ के पास ही रहेगी..., इसमें कोई विशेष बात भी नही थी…
शादी के बाद पहली बार वो अपने घर आई थी, आमतौर पर शादी के बाद 6-8 महीने लड़कियाँ अपने मैके में रह ही जाती हैं, सो ससुर उसे छोड़ कर कर चले गये…!
उधर जब एक दो दिन रंगीली काम पर नही आई, तो चौथे दिन मुनीम आ धमका रामलाल के यहाँ, तब पता चला कि वो तो अपने मैके चली गयी…!
जब ये बात लाला को पता चली कि उसने अपने घर उस घटना के विषय में कुच्छ नही बताया है, तो वो समझने लगा,
कि कहीं ना कहीं रंगीली उसके साथ ये रिस्ता बनाना चाहती है, लेकिन झिझक रही है जिसे अब उसे जल्द से जल्द दूर करना होगा.
उधर श्रवण मास शुरू होने को था, तो धीरे-धीरे करके गाओं की दूसरी नव विवाहित सखी सहेलियों का भी आना शुरू हो गया,
जब वो आपस में मिल बैठकर अपनी ससुराल और पति के साथ बिताए हुए पलों के बारे में बातें करती, इससे रंगीली अपने दुख को भूल इन बातों में अपनी रूचि लेने लगी…
कोई-कोई कोरी गप्प भी मारती थी, अपनी ससुराल और पति के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताती…, जो भी हो अच्छा टाइम पास होता उसका दोपहर के वक़्त..
इसी दौरान रंगीली की एक खास सखी चमेली एक दिन उसके घर आई, उसकी शादी भी रंगीली से कुच्छ दिन पहले ही हुई थी…
सुंदरता में वो रंगीली के कहीं आस-पास भी नही फटकती थी, शादी के पूर्व एक सुखी-ठितूरी सी युवती थी…!
लेकिन आज उसे देखते ही रंगीली मूह बाए उसे देखती ही रह गयी, क्या रंग-रूप निखर आया था उसका…
जहाँ उसका शरीर हड्डियों का ढाँचा नज़र आता था, वहीं चन्द महीनों में ही उसका बदन भर गया था, और वो 32-28-34 के फिगर की एक पटाखा माल नज़र आ रही थी, जो किसी भी मर्द का लंड खड़ा कर्दे..!
ख़ासकर उसकी गोलाइयाँ जहाँ नीबू के आकर की हुआ करती थी, आज वो इलाहाबादी अमरूद जैसी हो गयी थी, और गान्ड तो बस पुछो ही मत…
जब कसे हुए घाघरे में कमर मटका कर चलती, तो मानो दो फुटबॉल आपस में मिला दिए हों…!
रंगीली उसे देखते ही हाथ पकड़ कर अंदर ले आई और दोनो सखियाँ एक दूसरे को बाहों में लिए पूरे आँगन में नाचने लगी…
इसी दौरान रंगीली के हाथ उसके नाज़ुक अंगों पर चले गये और उनका आकार और पुश्टता मापते हुए बोली –
अरी चमेली ! तू तो कितनी सुंदर हो गयी है री, ये हड्डियों का ढाँचा इतना जल्दी एक भरपूर औरत में कैसे तब्दील हो गया…?
चमेली – लेकिन तू कुच्छ बुझी-बुझी सी लग रही है, क्या बात है…जीजाजी तुझे अच्छे से प्यार नही करते…? या खाने पीने को अच्छा नही मिलता…?
रंगीली – ऐसी कोई बात नही है, सब मुझे अच्छे से रखते हैं, और सभी प्यार करते हैं…
चमेली – अरी में सभी की बात नही कर रही, मे तो बस तेरे पति के बारे में पूछ रही हूँ, क्या वो तुझे बिस्तर पर पूरा सुख देते हैं…?
रंगीली – पूरा सुख से तेरा क्या मतलव है…?
चमेली – अब तुझे कैसे समझाऊ…? अच्छा छोड़ पहले ये बता तेरी सुहागरात कैसी थी, कितना मज़ा किया तुम दोनो ने…?
चमेली की बात सुनकर रंगीली थोड़ा शरमा गयी, वो अपने होंठ काटते हुए बोली – मुझे नही पता,
पता नही तू क्या बात कर रही है, ऐसे भी कोई बता सकता है भला अपनी सुहागरात के बारे में..
चमेली समझ गयी की रंगीली को कुच्छ तो दुख है, वो उसकी शादी के वक़्त मौजूद तो नही थी, लेकिन दूसरी सहेलियों से उसने उसके पति के बारे में सब सुन रखा था…
इसलिए उसने भाँप लिया कि उसका पति उसे वो सुख नही दे पा रहा जो उसे मिल रहा है, अतः वो उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर बोली –
अरी उसमें क्या शरमाना, ये तो सभी लड़कियों के साथ होता है, बताना क्या-क्या किया.., हम भी तो सुनें मेरी प्यारी सखी ने कैसे कैसे मज़े लिए..? उसके बाद मे भी अपने बारे में सब बताउन्गी…!
ना चाहते हुए भी रंगीली को वो सब बताना पड़ा जो उसकी सुहागरात और फिर उसके बाद उसके साथ उसके पति द्वारा किया जा रहा था…
उसकी सुहागरात का किस्सा सुनकर चमेली को बड़ा दुख हुआ…, वो बड़े दुखी स्वर में बोली – इसलिए तू इतनी बुझी-बुझी सी लग रही है,
एक औरत शादी के बाद वाकी सारे दुखों को दरकिनार कर सकती है, अगर उसे उसका पति बिस्तर पर सच्चा सुख दे सके,
वरना उसके बदन की आग अंदर ही अंदर उसे जलाती रहती है, और वो औरत किसी गीली लकड़ी की तरह जीवन भर सुलगती रहती है…
चमेली के द्वारा कहे गये शब्द उसे एकदम अपने उपर सही फिट बैठते दिखाई दे रहे थे, और उसकी हिरनी जैसी कजरारी आँखें अनायास ही नम हो उठी,
लेकिन तुरंत ही अपने मनोभावों पर काबू करते हुए बोली – ये सब छोड़, तू अपने बारे में तो बता, तेरी सुहागरात कैसी रही…..?
चमेली मुस्कुराती हुई, उसके हाथों को पकड़कर बोली – अच्छा तुझे मेरी सुहागरात के बारे में सुनना है,
तो चल कहीं एकांत में बैठकर बताती हूँ, यहाँ चाची आगयि तो बात पूरी नही हो पाएगी…!
फिर वो उसका हाथ पकड़कर अपने घेर (जहाँ जानवरों को रखा जाता है) में लेगयि, उसकी मस्तानी चाल से उसके कलश जैसे मटकते चूतड़ देखकर रंगीली अपने कुल्हों पर हाथ लगाकर देखने लगी लेकिन वहाँ उसे इतनी थिरकन नही लगी…
वो मन ही मन सोचने लगी कि सुखी लकड़ी जैसी चमेली के चूतड़ इतने मोटे-मोटे कैसे हो गये…, काश मेरे भी ऐसे होते…!
घेर में पहुँचकर दोनो सखियाँ एक झाटोले सी चारपाई पर बैठकर बातें करने लगी, चमेली अपनी सुहागरात के बारे में बताते हुए इतनी एक्शिटेड थी, खुशी उसके चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी…
चमेली – तुझे तो पता ही है, मेरे पति एक फ़ौजी हैं, थोड़ा कड़क मिज़ाज हैं, और सच कहूँ तो मर्द कड़क स्वाभाव ही होना चाहिए, तभी तो वो मर्द कहलाता है..
खैर, सुहाग सेज पर मे सिकुड़ी सिमटी सी बैठी थी, कि तभी किसी के आने की आहट मुझे सुनाई दी, मेने फ़ौरन अपना घूँघट निकाल लिया और घूँघट की ओट से ही दरवाजे की तरफ देखा…
मेरे पति हल्के से शराब के नसे में झूमते हुए मेरे पास आकर बैठ गये, और मेरे कंधे पर अपना हाथ रखा, मे डर और लज्जावस अंदर तक सिहर गयी…
मेरा शरीर काँपने लगा, तो वो बोले – अरे, तुम इस तरह काँप क्यों रही हो..? तबीयत ठीक नही है क्या तुम्हारी…!
मेने मूह से जबाब देने की बजाय, गर्दन ना में हिला दी, वो समझे कि मे कह रही हूँ कि तबीयत सही नही है, सो बोले.. तो चलो तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलता हूँ..
फिर मुझे बोलना ही पड़ा – नही जी मे ठीक हूँ, मुझे कुच्छ नही हुआ…
वो – तो इस तरह काँप क्यों रही हो…?
मे – बस ऐसे ही, थोड़ा डर सा लग रहा है…
वो हंस कर बोले – किससे, यहाँ मेरे अलावा तो कोई नही है, फिर किससे डर रही हो?
मे – जी आपसे, मेरी सहेलियाँ कहती थी कि पहली रात को पति बहुत परेशान करते हैं..
मेरी बेवकूफी भरी बात सुनकर वो ठहाका मार कर हँसने लगे, मे उनके चेहरे को देखने लगी…
फिर उन्होने मेरा घूँघट हटा दिया, और मेरे गालों को बड़े प्यार से सहलाते हुए बोले – तुम्हारी सहेलियाँ ठिठोली कर रही होंगी, आज के बाद तुम्हारा सारा डर दूर हो जाएगा..
ये कहकर उन्होने मुझे पलग पर लिटा दिया, और खुद मेरे बगल में बैठ कर अपने हाथ से मेरे गालों को सहलाया, फिर गर्दन, फिर मेरे सीने को…
इस तरह बिना कपड़े निकाले उन्होने मेरे पूरे बदन पर अपने हाथ से सहलाया..
तू विस्वास नही करेगी, उनके हाथ के स्पर्श से ही मेरे पूरे बदन में अजीब सी सनसनाहट फैल गयी, डर का तो कहीं नामो-निशान भी नही रहा..
मेरा विरोध ना जाने कहाँ चला गया… फिर उन्होने एक एक करके मेरे सारे कपड़े निकाल दिए, और खुद भी निवस्त्र होकर मेरे बगल में लेट गये…
मे तो किसी कठपुतली की तरह बस पड़ी थी…
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