RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
उसे लाला का अपने उभारों के पास वो स्पर्श, उनके घुटन्ने में फुफ्कार्ता हुआ उनका कालिया नाग, उसकी अपनी मुनिया के होंठों पर महसूस होने वाली उसकी वो ठोकर, वो रगड़..
सोचकर ही उसकी चूत गीली होने लगती..., मन के किसी कोने में उसे लगने लगा, कि अगर चमेली जैसा शारीरिक सुख लेना है, तो लाला के अतिरिक्त और कोई चारा उसके पास नही है…
लेकिन दूसरे ही पल वो अपने माँ-बापू के दिए संस्कारों में उलझ जाती, और उसे फिर से उसका पतिव्रत धर्म दिखाई देने लगता…
उसका काम में मन नही लगता, अपने छोटे भाई-बहनों के प्रति भी वो उदासीन रहने लगी…
अपनी बेटी की मनो-दशा देख कर उसकी माँ व्यथित हो गयी, उसने उससे इसका कारण जानना चाहा, लेकिन उसने इसका कोई ठोस जबाब नही दिया…!
उधर सेठ धर्मदास ने जबसे रंगीली के बदन का स्पर्श सुख लिया था, तभी से उनका दिलो-दिमाग़ बस उसी को पाने के लिए सोचता रहता,
वो अगर चाहते तो उसे जोरे जबदस्ती उठवा कर भी भोग सकते थे, लेकिन वो उसके मामले में प्यार से हल निकालना चाहते थे…!
उसके कई सारे कारण उनके दिल और दिमाग़ ने पेश कर दिए :
1) वो उसे दिल से चाहने लगे थे, उनके जीवन में, उनके दिल पर रंगीली जैसी कमसिन बाला ने पहली बार दुस्तक दी थी,
2) रंगीली के सामने उसकी व्यक्तिगत कोई मजबूरी नही थी, जिसके चलते वो उनकी जबदस्ती को सहन करती…
अगर उसने विरोधाभास आत्महत्या करने जैसा कदम उठा लिया तो….लाला मुसीबत में पड़ सकते थे, समाज में उनका अस्तित्व ख़तम हो सकता था…
भले ही वो पैसे के दम पर बच निकलें लेकिन फिर कोई रंगीली उनके जीवन में संभव नही थी…
इन सब कारणों को ध्यान में रखकर लाला सब्र से काम लेना चाहते थे…!
इसी बीच एक दिन उनका दौरा रंगीली के गाओं में हुआ, अपने काम निपटाकर वो बुधिया के घर की तरफ निकल लिए…
इस आस में की शायद कोई बात बन जाए…
लाला को आया देखकर बुधिया एक पैर पर खड़ा हो गया, और क्यों ना हो, लाला की मेहरबानी की वजह से उसकी बेटी का ब्याह जो फोकट में हो गया था…
दुआ सलाम के बाद लाला ने रंगीली की बात चला ही दी, फिर खैर खबर लेने के बाद वो बोले –
बुधिया, तुम्हारी बेटी कहाँ है, हमें उससे मिलना था, उसके पति की एक सूचना देनी थी उसको…!
संकोच वस भला एक पिता कैसे पुछ्ता कि उसके पति ने उसके लिए क्या संदेशा भेजा है, सो अपनी पत्नी को कहकर लाला की एक अकेले कोठे में मुलाकात करवा दी…!
पहले तो रंगीली मुलाकात करने से मना करने वाली थी, लेकिन फिर कुच्छ सोचकर वो मिलने के लिए तैयार हो गयी…
रंगीली को सामने देख कर लाला ने बड़े मीठे शब्दों में उससे पुछा –
काम पर क्यों नही आ रही रंगीली, पता है तेरे बिना मेरे मन-मुताविक काम कोई नही कर पाता…!
रंगीली – मुझे अपने मैके की याद आ रही थी, सो चली आई, कुच्छ दिन रहकर आउन्गि, तभी काम पर लौट सकूँगी…
लेकिन मालिक ! अब मे आगे से आपकी बैठक का काम नही करूँगी, चाहे आप काम पर रखो या निकाल दो…!
रंगीली के ये शब्द सुनकर लाला को अपनी योजना धारसाई होती नज़र आने लगी.., लेकिन वो हार मानने वालों में से नही थे, सो बोले –
क्यों..? मेरी बैठक का काम करने में तुझे क्या आपत्ति है..? उल्टा और काम कम करना पड़ता है, तू कहे तो वाकी के सभी काम बंद करवा दूँगा…
रंगीली अपनी नज़रें झुकाए हुए ही बोली – हमें आपसे डर लगने लगा है..
लाला – डर..! किस बात से ? क्या तू उस्दिन की बात को लेकर चिंतित है…? देख रंगीली, अब तू चाहे माने या ना माने, हम तुझे सच्चे दिल से चाहने लगे हैं..
अब तेरे बिना जी नही लगता, तेरे लिए हम कुच्छ भी करने को तैयार हैं, बस तू एक बार हां करके देख, फिर जो कहेगी वैसा ही होगा…!
लाला की बात सुनकर रंगीली ने एक बार अपनी नज़र उठाकर उनकी तरफ देखा…, और बोली – किस बात के लिए हां कर दूँ…?
लाला – हम तुझे अपनी बाहों में लेकर प्यार करना चाहते हैं रंगीली, इसके एबज में सारे जहाँ की खुशियाँ हम तेरी झोली में डाल देंगे…
रंगीली – मेरे पति और समाज का क्या करेंगे आप…?
लाला – वो तुम सब हम पर छोड़ दो, हम वादा करते हैं, अपने प्यार की भनक हम किसी को नही लगने देंगे…!
रंगीली – जिसे आप प्यार कह रहे हैं, वो आपकी हमारे जिस्म को पाने की ललक भर है, इसे प्यार नही हवस कहते हैं मालिक…
और जब दिल भर जाता है, हवस शांत हो जाती है तब हम जैसी औरतों को आप चूसे हुए आम की गुठली की तरह कूड़े करकट में फेंक देते हो..!
रंगीली झोंक-झोंक इतनी तीखी बात कह तो गयी, लेकिन फिर उसे डर सताने लगा, क्योंकि लाला अगर अपनी पर आ गया, तो वो उसके दोनो परिवारों को तबाह कर सकता है,
यही नही, वो जब चाहे उसे भी रौंद सकता है, और चाहकर भी कोई कुच्छ नही कर पाएगा…
|