RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अपने घेर में आकर वो भूसे के ढेर पर पसर गयी, उसकी खुद की साँसें भी सबेरे-सबेरे ऐसा गरमा-गरम नज़ारा देख कर उखड़ने लगी थी…
ना चाहते हुए भी उसका एक हाथ अपने घान्घरे के अंदर चला गया, और वो अपनी मुनिया को कच्छि के उपर से ही सहलाने लगी…
दूसरे हाथ से अपने एक अमरूद को मसल्ते हुए सोचने लगी, हाए राम ये पारो चाची अपने ही जेठ के साथ मूह काला कर रही है…
कहाँ तो ये मेरी विदाई के वक़्त कितना ज्ञान छोड़ रही थी साली, और यहाँ देखो कैसी अपने ही जेठ के सामने गान्ड औंधी करके खड़ी थी…
अपने लिए इसका पतिव्रत धर्म कहाँ चला गया, जो दूसरों को ज्ञान देती फिरती है साली हरामजादि छिनाल रंडी कहीं की…!
फिर उसे उसके शब्द याद आए, आपके भाई के छोटे से लंड से मेरी प्यास नही बुझती, और वैसे भी जल्दी ही पानी छोड़ कर हाँफने लगते है, मुझे अधूरा छोड़ कर सो जाते हैं…!
रंगीली सोचने लगी … उसके साथ भी तो यही सब हो रहा था…
रंगीली की काम वासना अपने अंगों को मसल्ने से बढ़ती ही जा रही थी, कभी उसे पारो चाची की मोटी गान्ड दिखाई देती, दूसरे ही पल उनके जेठ का वो काला सोट जैसा लंड..
जो उनकी चूत में अंदर बाहर हो रहा था, ये सब सोच कर ना जाने कब उसका हाथ अपनी कच्छी के अंदर चला गया, उसकी मुनिया उसके कामरस से भीग चुकी थी…
उसे ये होश ही नही रहा कि कब उसकी एक उंगली उसकी चूत के अंदर समा गयी जिसे वो सिसकते हुए अंदर बाहर करने लगी…
अपनी चोली के अंदर हाथ डालकर वो अपने चुचक (निपल) को मरोड़ने लगी, उत्तेजना के मारे उसकी आँखें बंद हो चुकी थी,
तेज़ी से अपनी उंगली को अपनी चूत में चलाते हुए रंगीली के मूह से अस्फुट से शब्द फूटने लगे…आअहह….सस्स्सिईइ….मालिक…चोदो..मुझीए…. आआईयईई… म्माआ…आआईयईईईईईईईईई..उउउफ़फ्फ़…और तेज़ी से पेलो….हहाआंन्न….आअंग्ग्घह… इसके साथ ही उसकी मुनिया ने ढेर सारा पानी उसके हाथ पर फेंक दिया…!
आज पहली बार उसकी चूत से इतना कामरस निकला था, वो आँखें बंद किए बुरी तरह हाँफ रही थी…!
फिर जब उसकी उत्तेजना पूरी तरह से शांत हो गयी, तो उसके चेहरे पर एक शुकून भरी मुस्कान आगयि…!
उसे झड़ने से पहले उसके मूह से निकले शब्द याद पड़ गये…और वो खुद से ही बुरी तरह शर्मा उठी…
वो सोचने लगी, कि जब लाला जी की कल्पना मात्र से ही इतना मज़ा आया है तो वो जब उसके उपर चढ़कर उसे चोदेन्गे तब क्या हाल होगा उसका…! सोच कर ही उसकी मुनिया फिर से फड़कने लगी…
अब उसने अटल निश्चय कर लिया, कि चाहे जो भी हो अब वो अपने बदन की अधूरी प्यास की आग में नही जलेगी…
उउन्न्ह….! पतिव्रत धर्म, नियम क़ानून, भाड़ में जाओ सब, तेल लागाएँ ऐसे नियम क़ानून जो जीवन भर एक ही लुल्ली से बाधे रहें…
ये सब किताबी और मन बहलाने की बातें हैं.. जो सिर्फ़ दूसरों पर ही लागू होती हैं, अपने बारे में कोई इन बातों को नही मानता…!
“पर उपदेश कुशल बहुतेरे..”
अब वो सारी बातें भूलकर मस्त रहने लगी, मौका लगते ही अपने अंगों के साथ खेलती रहती, और हर वो तरीक़ा इस्तेमाल करती जो उसे ज़्यादा से ज़्यादा मज़ा दे सकता था…!
लेकिन अपने मैके में रहते हुए किसी और मर्द से वो संबंध नही बनाना चाहती थी, जिससे उसके माँ-बाप को शर्मिंदा होना पड़े…
ऐसा नही था, कि गाओं के मर्द उसे अच्छे नही लगते थे, या उसे कोई पसंद नही करता था.
रंगीली जैसी नमकीन लड़की को भोगने की कामना तो इस गाओं का हर युवा पाले बैठा था…,
कुच्छेक ने तो उसका रास्ता रोक कर अपने मन की बात ही बोल दी थी, लेकिन उसने अभी तक किसी को घास नही डाली…!
वो अब अपने आपको सजने सँवरने भी लगी थी, गाओं के सीमित संसाधनों से जितना हो सकता था, वो उतने से ही अपने शरीर को किसी भी मर्द के आकर्षण के लायक बनाने का हर संभव प्रयत्न करती…!
आख़िर वो दिन भी आ पहुँचा जब उसे अपने ससुराल वापस जाना था, अपने पति को उसने खबर भिजवा दी थी कि उस दिन आकर वो उसे विदा करा ले जाए…
उधर लाला ने रंगीली के घर का काम छोड़ कर जाने का ठीकरा अपनी सेठानी के सर मढ़ दिया,
कि वो और उसकी चमचियाँ उस बेचारी सीधी सादी लड़की को परेशान करती थी, उससे ज़्यादा काम लेती थी, इसलिए वो काम छोड़ कर चली गयी…,
उसके बिना अब उनकी बैठक फिर से एक कबाड़े का डिब्बा हो गयी है, वो कितने अच्छे से उसे व्यवस्थित रखती थी…
जब सेठानी ने कहा कि आप अपने काम के लिए किसी और को ले लो, वो बैठक को सही कर देगी तो वो बोले –
कोई ज़रूरत नही हैं, सब की सब साली कामचोर और नकारा हैं,
हमने रामलाल को बोल दिया है कि उसे मनाकर वापस काम पर भेजे, अब हम उससे अपने हिसाब से ही काम कराएँगे, कोई और उसपर हुकुम नही चलाएगा…
वो मान भी गयी है, और अपने मायके से वापस आकर वो हमारे यहाँ काम पर वापस आ जाएगी..,
लेकिन याद रहे, अब कोई भी उसके काम में दखल नही देगा, हम उसे बताएँगे कि उसे क्या करना है और क्या नही…
इस तरह से रंगीली के आने से पहले ही सेठ धरमदास ने उसकी शर्त के मुतविक हवेली में मामला सेट कर दिया…!
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