RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
वो एक ऐसी माँ की बेटी थी, जो इधर उधर की खबर रखने में और पहुँचाने में माहिर होती हैं.., तो जाहिर सी बात है कि माँ के गुण तो बेटी में पहले से ही होने चाहिए…!
अपनी इसी सोच के कारण उसकी नज़र शंकर पर पड़ी, जिसके लिए पूरी हवेली में कहीं भी आने-जाने पर कोई रोक-टोक नही थी…!
तेज स्वाभाव लाजो, ये भली भाँति जानती थी, कि शंकर अभी नादान है, कच्चा है, अगर अभी से इस पर डोरे डाले जायें, इसे अपने जाल में फँसाया जाए, तो उसका काम आसान हो सकता है…!
अपनी इसी सोच को कार्यान्वित करने के लिए वो हर समय उसपर नज़र रखने लगी,
काम-धाम तो कोई था नही, सो लग गयी उसे अपने जाल में फँसाने…!
एक दिन अपनी माँ के कहने पर शंकर रसोई घर से कुछ समान लेने गया, मौका देखकर लाजो भी उसके पीछे-पीछे लपक ली….,
वो समान लेकर निकल ही रहा था, कि लागो ने उसे शहद भरे स्वर में पुकारा – शंकर भैया, ज़रा सुनो तो…!
वो उसकी आवाज़ सुनकर ठिठक गया, और बोला – जी छोटी भाभी, कुछ काम था ?
लाजो – हां, मे वो अखरोट देख रही थी, कहीं दिखाई नही दे रहे, ज़रा देखो तो उपर कहीं तो नही रखे…!
उसने अपने हाथ का समान नीचे रखा, और उपर अलमारी के खाने से अखरोट का डिब्बा ढूँढने लगा…!
उसने जैसे ही अपने हाथ उपर किए, वो उसके ठीक सामने आकर उससे सत्कार खड़ी हो गयी, और अपने पंजों पर उचक-उचक कर अपनी गान्ड को उसके लंड के पास लेजाने की कोशिश करती हुई बोली –
इधर देखो तो, उधर देखो तो, यहीं कहीं होंगे, गये कहाँ…, ज़रा अच्छे से देखो, ये कहकर उसने अपनी गान्ड को उसके आगे ज़ोर्से घिस डाला…
लाजो की गुद-गुदि गान्ड की गर्मी पाकर उसका जवान लंड एक सेकेंड में ही खड़ा हो गया, और ढीले-ढाले पाजामे के कपड़े को तानकर उसकी गान्ड की दरार के उपर ठोकर मारने लगा…
खेली खाई लागो, उसके लंड की सख्ती को अच्छे से पहचान कर मस्ती से भर गयी..! वो अपनी गान्ड को और ज़्यादा पीछे को दबाकर मज़े लेने लगी…!
कुछ देर उपर देखने के बाद शंकर ने कहा – यहाँ तो कहीं नही दिखाई दे रहा छोटी भाभी…!
उसने उसके पाजामे के उपर से ही उसके लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर कहा – जाने दो, मुझे जो चाहिए था वो मिल गया…!
शंकर ने उसकी तरफ देख कर कहा – क्या मिल गया आपको…?
वो उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके लंड को मसलकर बोली – ये तुम्हारा खिलौना…आअहह…क्या मस्त है, इसे खेलने के लिए दोगे मुझे..?
शंकर ने उसकी कलाई पकड़कर अपने लंड को छुड़ाते हुए कहा – छोड़िए इसे, ये कोई खिलौना नही है, मेरी सू-सू है…! शायद कोई ग़लत फहमी हुई है आपको…!
लंड को छोड़ कर वो उसके बदन से लिपट गयी, आअहह…शंकर भैया, आपको नही पता, इससे खेलने में बड़ा मज़ा आता है, खेलकर तो देखो एक बार…!
शंकर ने अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए कहा – मुझे नही आता खेलना ऐसा कोई खेल, जाने दीजिए वरना माँ की डाँट पड़ेगी, उसका समान देना है…!
वो दाँतों से अपना नीचे का होंठ काट कर उसकी आँखों में झाँकते हुए बोली – आअहह.. राजा, ताड़ की तरह इतने लंबे और तगड़े हो रहे हो…
माँ के पल्लू से कब तक बँधे रहोगे, थोड़ा जिंदगी के मज़े लेना सीखो राजा.., तुम्हें खेलना नही आता तो मे सीखा दूँगी ये खेल…!
शंकर इतना भी नादान नही था, वो कुछ- कुछ उसकी मंशा समझने लगा, लंड तो उसका भी अकड़ ही चुका था, लेकिन माँ की अवग्या वो नही कर सकता था,
उसे बस इतना पता था, कि उसकी माँ जब तक नही कहेगी, वो किसी के साथ कुछ भी नही करेगा, वो मेरा भला चाहती है…
उसने ज़बरदस्ती से उसके बाजुओं को पकड़कर अपने बदन से अलग करते हुए बोला – मुझे नही सीखना आपका कोई खेल,
फिर झट-पट से अपना समान उठाया, और लंबे-लंबे डॅग भरते हुए तेज़ी से वहाँ से निकल गया…!
खिसियानी लाजो, कुछ देर वहीं खड़ी भुन-भुनाती रही, फिर बुदबुदाते हुए बोली
कब तक बचेगा बच्चू, मे भी ऐसी जोंक हूँ जो एक बार चिपक गयी तो छूटेगी नही…!
उधर जब शंकर अपनी माँ के पास पहुँचा तो उसने देरी से आने का कारण पुछा, अभी वो उसकी बात का कोई जबाब भी नही दे पाया था कि तभी उसकी नज़र उसके पाजामे में बने तंबू पर पड़ी…!
उसने आव ना देखा ताव, दो गाल पर तमाचे चटका दिए बेचारे के, और तमक कर बोली – तुझे जिस काम के लिए मना करती हूँ, तू वही काम क्यों करता है…!
वो बेचारा तो वहीं खड़े खड़े जड़ हो गया, उसकी मार का उसपर कोई असर नही हुआ, क्योंकि उसके शरीर का हर एक अंग इतना मजबूत था, कि रंगीली जैसी कोमलांगी के ही हाथ के थप्पड़ों से उसपर क्या असर होना था,
उल्टा वो सोचने लगा कि कहीं माँ के हाथ में चोट तो नही आ गई…!
लेकिन वो ये सोचने लगा कि मेने तो कोई जबाब भी नही दिया फिर माँ ने उसे किस बात के लिए मारा…?
दो थप्पड़ जड़ने के बाद उसे खुद को दर्द हुआ और तड़प कर बोली – बेटा तू क्यों समझना नही चाहता है…?
शंकर – तू क्या कह रही है माँ..., मेरी तो कुछ समझ में नही आ रहा, तूने जो सवाल किया, पहले उसका जबाब तो सुन लेती कि मुझे देर कैसे हुई…!
रंगीली – वो तू बाद में बताना, पहले ये बता, ये तेरा पाजामा इतना उठा हुआ क्यों है आगे से…?
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