Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
10-16-2019, 01:48 PM,
#45
RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली की कामुक बातों का इतना असर हुआ कि लाला अपना पूरी दम-खम लगाकर उसे चोदने लगे, ऐसे सुलेमानी धक्कों से रंगीली की मुनिया खुशी के आँसू बहाने लगी,

वो किसी जोंक की तरह लाला की गान्ड को अपने पैरों में कस कर जबरदस्त तरीक़े से झड़ने लगी….

लाला भी दो-चार तगड़े धक्के मार कर अपनी पिचकारी छोड़ते हुए हाँफने लगे और उसके उपर पड़े रह गये….!

कुछ देर बहू को पटाने का प्लान तय करके वो अपने काम काज में जुट गयी, और लाला अपनी नयी कमसिन बहू को चोदने के ख्वाबों में खो गये……………!

आज सनडे का दिन था, रंगीली चौक में बैठकर सील पर लाला जी के लिए ठंडाइ बना रही थी, बादाम, पिसता, काजू, किस्मीस, सौंफ, इलायची मिक्स ठंडाइ वो लाला के लिए रोज़ सुवह ही सुवह घोंटति थी…!

नज़र बचाकर उसी में से वो शंकर को भर ग्लास दूध मिक्स ठंडाइ का पिला देती थी, उसकी कसरत के बाद…!

तभी उसे छोटी बहू लाजो रसोई घर में घुसती हुई दिखाई दी,

उसने शंकर को आवाज़ दी, वो अपनी माँ की एक आवाज़ पर दौड़ा चला आया,

उसने उँची आवाज़ में उससे कहा जिससे लाजो भी सुन ले..- बेटा देख तो रसोई घर में ठंडाइ का समान रखा है, थोड़ा सा छोटी बहू से पुछ्कर ला तो, साथ में कल्लू भैया के लिए भी बना दूं…

अपनी माँ का आदेश सुनकर वो रसोई की तरफ चल दिया, पीछे से रंगीली के होंठों पर मुस्कान तैर गयी…!

रसोई में जाकर शंकर ने लाजो से कहा – छोटी भाभी माँ ने ठंडाइ का समान मँगाया है, कहाँ रखा है…!

अपने सामने शंकर को देख कर उसके बदन के रोंगटे खड़े हो गये, वो उसके एकदम पास जाकर धीमी आवाज़ में बोली –

एक बार मेरी ठंडाइ चख कर देखो राजा, बहुत स्वादिष्ट है…, बार बार चाटने का मन करेगा…

ये कहकर उसने उसकी कमर में अपनी बाहें लपेट दी, और उसके बदन से चिपक गयी,

वो एकदम से हड़बड़ा गया, और अपने बदन को हिलाते हुए बोला – ये क्या कर रही हो आप, छोड़ो मुझे वरना माँ आ गई तो बहुत मारेगी मुझे…!

वो – इतना क्यों डरते हो अपनी मा से, उसे मे संभाल लूँगी, तुम बोलो पीओगे मेरी ठंडाइ…, बहुत ज़ायकेदार है..!

ये कहकर उसने उसके चौड़े सीने को चूम लिया, और अपने आमों को उसके बदन से रगड़ने लगी,

शंकर की हालत खराब होने लगी, उसे ये डर सताने लगा कि अगर कहीं फिर से उसका लंड खड़ा हो गया, तो उसकी माँ खम्खा उसे डान्टेगी..

सो उसने उसके बाजू पकड़कर अपने से अलग किया, कि तभी उसकी नज़र दरवाजे पर खड़ी अपनी माँ पर गयी,

उसने फ़ौरन अपने आपको लाजो से अलग किया और अपनी माँ से बोला – तू ही देख ले माँ, मुझे कहीं नही मिला समान, ये कहकर वो तेज़ी से बाहर निकल गया…!

उधर जैसे ही लाजो ने सुना जो शंकर ने कहा था, वो फ़ौरन से पलटी, और सामने रंगीली को खड़े देखकर उसकी गान्ड फट गयी…!

वो हकलाते हुए बोली – अरे रंगीली काकी तूमम…वऊू मे…समान ढूँढ ही रही थी, मेने शंकर भैया को बोला कि रूको अभी देखती हूँ..पर वू…

रंगीली अपने चेहरे पर गुस्से वाले भाव लाकर बोली – वो तो मे देख ही रही हूँ छोटी बहू, तुम कॉन्सा समान ढूँढ रही थी..., भले ही आप इस हवेली की बहू हो, लेकिन मेरे बेटे से दूर रहो वरना….!

लाजो अपने अधिकार जताते हुए बोली – वरना… वरना क्या..? दो टके की नौकर ज़ुबान चलाती है, दो मिनिट नही लगेंगे हवेली से बाहर करवा दूँगी, बड़ी आई बेटे वाली…,

ऐसे क्या तेरे बेटे में सुरखाब के पर लगे हैं, जो मे उसके पास जाउन्गि, अरे वो ही मुझे पकड़ रहा था…!

रंगीली – अच्छा, वो पकड़ रहा था, कि आप उससे चिपकी हुई थी, और ये पहली बार नही है, पहले भी तुम्हारी वजह से उस बेचारे पर मार पड़ चुकी है,

सुनो छोटी बहू, तुम क्या मुझे इस हवेली से बाहर करवाओगी, अगर मेने तुम्हारी ये हरकतें मालिक और मालकिन को बता दी ना, तो जानती हो क्या होगा…?

धक्के मारकर कल्लू भैया खुद तुम्हें इस हवेली से बाहर कर देंगे, फिर जाकर रहना अपने उसी राजमहल में जहाँ से आई हो…

हमारा क्या है, हम तो पहले भी ग़रीब थे आज भी ग़रीब हैं…, मेहनत मज़दूरी करके हवेली के बाहर भी पेट भर ही लेंगे…!

पासा पलटे देख, लाजो फ़ौरन गिरगिट की तरह रंग बदलकर उसके सामने हाथ जोड़कर बोली – मुझे माफ़ करदो काकी, मे अपने आप पर काबू नही कर पाई,

पर मे भी क्या करूँ, मुझे जिस काम के लिए ब्याहकर इस हवेली में लाया गया है, वो काम मे कैसे करूँ..?

रंगीली – तुम कहना क्या चाहती हो छोटी बहू..? क्या कल्लू भैया आपको खुश नही रख पाते…?

लाजो – जाने भी दो काकी, मे कह नही पाउन्गि, और आप सुन नही पाओगि, बस गीली लकड़ी की तरह सुलग रही हूँ यहाँ, ये कहकर उसकी आँखें भीग गयी…!

रंगीली ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा – खुलकर कहो क्या दुख है आपको यहाँ, सारी सुख सूबिधायें तो हैं, और क्या चाहिए…?

लाजो – आप एक औरत होकर इस तरह की बात कर रही हो, क्या एक औरत को सिर्फ़ धन-दौलत या महल तिबारे से ही खुशी मिलती है, और फिर धन दौलत से ही वारिस पैदा हो जाता तो इनकी दूसरी शादी क्यों की…?

रंगीली – मे आपकी बात समझ नही पा रही, आप कहना क्या चाहती हो…! साफ-साफ बताओ बात क्या है…?


लाजो – साफ-साफ सुनना चाहती हो तो सुनो, आपके मालिक के बेटे में बच्चे पैदा करने की क्षमता ही नही है………,

लाजो भभक्ते स्वर में आगे बोली - अरे जो मर्द किसी औरत को गरम तक ना कर पाए, वो बच्चे क्या खाक पैदा कर सकता है…

इसलिए मेने सोचा कि अगर इस घर को वारिस देना है, तो दूसरा रास्ता ही देखना पड़ेगा, इसलिए में शंकर भैया के साथ…..

अपनी बात अधूरी छ्चोड़कर लाजो चुप हो गयी…!

उसकी बात पर रंगीली चोन्कने की जबरदस्त आक्टिंग करते हुए बोली – हाए राम, ये आप क्या कह रही हैं छोटी बहू, नही..नही… ऐसा नही हो सकता,

अगर ऐसा होता, तो बड़ी बहू को एक बिटिया कैसे हो गयी..?

लाजो – यही सोचकर तो मे हैरान हूँ, लेकिन सच मानो काकी, पहली रात से ही वो मुझे आज तक वो सुख नही दे पाए जो एक औरत को मिलना चाहिए…!

रंगीली कुछ देर खड़ी उसके चेहरे को देखती रही, फिर उसने लाजो के कंधे पकड़ कर कहा – मे सब समझ गयी छोटी बहू…!

और ये भी जानती हूँ, कि अगर इस हवेली में आपको मान-सम्मान चाहिए तो वारिस पैदा करना ही पड़ेगा… लेकिन इसके लिए मे अपने बेटे की बलि नही दे सकती…

वो अभी बहुत मासूम है, अरे उसे तो अभी तक स्त्री-पुरुष के संबंधों के बारे में भी ज्ञान नही होगा, फिर वो भला आपको वो सब कैसे दे सकता है, जिसकी आपको ज़रूरत है…!

लाजो – मे आपके आयेज हाथ जोड़ती हूँ काकी, शंकर भैया को मे सब कुछ सिखा दूँगी, बस आप एक बार हां करदो…!

रंगीली – कैसे हां कर दूं छोटी बहू, वो अभी नादान है, भूल से भी ये बात किसी को पता चल गयी, तो…ना..ना…कल्लू भैया मेरे बेटे की जान ही ले लेंगे…, उसे तो आप माफ़ ही कर दो…!

लाजो – तो फिर मे क्या करूँ ? आप ही कुछ रास्ता दिखाइए मुझे,

कहीं ऐसा ना हो कि नादान सासुमा, पोते की चाह में इनकी एक और शादी करदें, और फिर एक और बेचारी बेबस नारी हवेली में आकर तड़पति रहे…!
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