RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर का नाग बेलगाम घोड़े की तरह थुनक उठा, जिसकी हलचल महसूस करते ही सलौनी ने अपनी पीठ को और पीछे खिसक कर उसके उपर दबा दिया..,
साथ ही वो 20-30 डिग्री और साइड को घूम गयी और उसने एक हाथ को शंकर के बाजू पर रखकर अपने एक नीबू को उसकी बाजू पर दबा दिया…!
अपने गाल को उसकी थोड़ी से सटाते हुए बोली – भैया.. साइकल उस जामुन के पेड़ के पास रोक देना, मुझे जामुन खानी है…!
शंकर ने भी मौके का फ़ायदा लेकर अपने उसी बाजू को उसके सीने के दोनो उभारों पर दबाकर भींचते हुए कहा – ऐसी बारिश में जामुन कैसे तोड़ेंगे...
शंकर ने उत्तेजना में आकर उसे कुछ ज़्यादा ही ज़ोर्से भींच दिया था, उसकी दोनो नन्ही मुन्नी गेंदें बुरी तरह से दब गयी,
हल्के से दर्द की अनुभूति में वो कराह कर बोली – आअहह…भैया…इतनी ज़ोर्से मत भींच मुझे…दर्द होता है…
शंकर को अपनी ग़लती का एहसास होते ही उसने अपने बाजू को हटाना चाहा, तभी सलौनी ने उसके बाजू को वहीं थामकर वो उससे और ज़ोर्से चिपट गयी..
फिर उसने भाई के हाथ को अपने हाथ में लेकर अपने एक अमरूद पर रखकर उसे दबाते हुए बोली..
हमें कॉन्सा उपर चढ़कर जामुन तोड़ना है, देख वो पेड़ आ गया रोक साइकल,
वाअहह…क्या काले-काले, मोटे-मोटे जामुन लगे हैं, थोड़ी कोशिश करेंगे तो नीचे से भी हमारे लायक मिल जाएँगे…
पेड़ रास्ते से थोड़ा सा ही हटकर था, सच में ही बहुत मस्त जामुन लदे हुए थे, बारिस में कोई रोकने वाला भी नही था,
शंकर ने उसके दूसरे अमरूद को भी धीरे से सहला कर अपनी साइकल पेड़ के नीचे ले जाकर खड़ी कर दी…!
शंकर की हाइट चूँकि अच्छी थी, सबसे नीचे की डाली के अंतिम छोर तक उसका हाथ आसानी से पहुँच गया, लेकिन जैसे ही उसने उसे पकड़कर झुकाने की कोशिश की,
वो पडाक से टूट गयी, हाथ में रह गये कुछ पत्तों समेत एक छोटा सा डाली का टुकड़ा, जिसमें दो-चार कच्चे-पके जामुन थे…!
ओह्ह्ह…भैया, ये तूने क्या किया, इससे क्या होगा..? चल वो डाली नीची है, उसपे कोशिश करते हैं.
शंकर ने दूसरी डाली को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हाथ नही आई, अपनी जगह उच्छल कर डाली को पकड़ा, लेकिन कुछ पत्तों के अलावा कुछ हाथ नही लगा…!
शंकर ने सलौनी के कच्चे अमरूद जो उसके शर्ट के उपर से झाँक रहे थे, उनपर नज़र डालते हुए कहा – जामुन खाने हैं तो चल घोड़ी बन जा…!
सलौनी ने चोन्क्ते हुए कहा – क्या..? लेकिन क्यों..?
शंकर ने मुस्कराते हुए कहा – अरे तेरी पीठ पर खड़ा होकर जामुन तोड़ूँगा और क्या..? वैसे तू क्या समझी थी..?
सलौनी – पागल हो गया है तू, वजन देखा है अपना, सांड़ जैसा है, तेरा वजन झेल पाउन्गि में..? मेरी पीठ ही चटक जाएगी…!
शंकर – तो फिर रहने दे, चल चलते हैं घर, खा ली जामुन…!
सलौनी ज़मीन पर पैर पटकते हुए थुनक कर बोली – हुन्न्ह..हुन्न्ह…मुझे जामुन खाने हैं…, फिर अपना दिमाग़ चलाते हुए बोली –
भैया तू एक काम कर मुझे उपर उठा ले, मे तोड़ लूँगी खूब सारी, चल उठा मुझे, ये कहकर वो उसके सामने मुँह करके खड़ी हो गयी…
शंकर – तो घूम तो जा, पीछे से ही तो उठाउंगा तुझे…
सलौनी – नही ऐसे ही आगे से उठा, तुझे पता तो रहेगा और कितना उठाना है..
शंकर ने थोड़ा झुक कर उसके छोटे-छोटे चुतड़ों के नीचे अपनी बाजू मोड़ कर उसे अपने बाजुओं पर बिठा लिया और खड़ा हो गया..!
अब सलौनी के कच्चे अमरूद उसकी आँखों के ठीक सामने थे, जो गीली समीज़ में होते हुए बेआवरण जैसे ही लग रहे थे,
शंकर का मन किया की वो उन्हें अपने मुँह में लेकर चूसे, उधर सलौनी अपने अमरुदो पर शंकर के मुँह की भाप महसूस करके गन्गना उठी..
बारिश के ठंडे पानी की वजह से उसके कड़क हो चुके निपल शंकर के मुँह की गरम भाप से मचल उठे, उनमें सुर-सुराहट और तेज होने लगी…
सलौनी का मन कर रहा था की कोई उन्हें काट खाए, या फिर मसल दे जिससे उनमें हो रही चुन-चुनाहट कम हो सके…
वो सोचने लगी कि काश भैया मेरे अमरुदो को खा जाए, उन्हें चूसे.., ये विचार आते ही उसकी कुँवारी मुनिया में चींतियाँ सी रेंगने लगी…!
इधर शंकर के दिल में भी ऐसा ही कुछ चल रहा था, उसका मन काबू से बाहर होने लगा, और उसने अपनी छोटी बेहन के कच्चे अमरुदो के बीच की खाई पर अपने तपते होंठ रख दिए…!
सलौनी की मस्ती में आँखें बंद हो गयी, वो मन ही मन प्रार्थना करने लगी, हे भगवान भाई का मुँह थोड़ा इधर-उधर को करदो…,
लेकिन भगवान ने ऐसी बातों का कोई ठेका थोड़ी नही ले रखा था…, जब कुछ देर शंकर ने आगे और कोई हरकत नही की , तो सलौनी बोली –
भैया, यहाँ तक की जामुन तो मेने तोड़ ली, इसके थोड़ा उपर एक बड़ा सा गुच्छा लगा है, थोड़ा और उपर कर ना…!
शंकर ने उसे ताक़त से किसी गुड़िया की तरह उसे उपर उच्छाल दिया, फूल जैसी सलौनी उसके सिर के उपर तक उच्छल गयी, उसी पल उसने एक हाथ से अपनी स्कर्ट को उपर उठा लिया,
और जैसे ही नीचे आने लगी, तभी उसने अपने दोनो पैर शंकर के कंधों से होकर पीछे की तरफ कर दिए…
अब सलौनी आगे से शंकर की पीठ की तरफ पैर लटकाए उसके मुँह के सामने आराम से बैठी थी, उसकी स्कर्ट शंकर के सिर पर थी, छोटी सी सफेद कच्छी में क़ैद उसकी मुनिया ठीक शंकर की आँखों के सामने थी…!
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