RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर का लंड उसकी दोनो मोटी-मोटी जांघों के बीच फँसा था, उसके लंड को वहाँ गर्मी का एहसास हुआ जिससे वो और ज़्यादा फूलने लगा…
उत्तेजना में वो अपनी कमर को आगे पीछे करने लगा, रंगीली उसकी हरकत देख कर मन ही मन मुस्करा उठी,
वो उसे छेड़ते हुए बोली – क्यों रे बदमाश ये तू क्या कर रहा है…?
शंकर – माँ, मेरी एक इच्छा पूरी करोगी..?
रंगीली – क्या..?
शंकर – वो उस दिन जैसे आपने मेरे साथ किया था मेरा सू सू मुँह में लेकर, वैसे ही एक बार और करदो ना माँ, प्लीज़ माँ, उस दिन मुझे बहुत मज़ा आया था…!
रंगीली ने उसके सिर को उपर उठाया, कुछ देर अपनी वासना से भरी नशीली आँखों से उसे देखती रही, फिर एक झटके से उसने अपने बेटे के होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए…!
अपनी जीभ निकाल कर वो शंकर के होंठों को चाटने लगी..,
शंकर के लिए ये पहला अवसर था, जब किसी की जीभ उसके होंठों को इस तरह से चाट रही थी, उसने अपने बंद होंठों को खोल दिया और रंगीली की जीभ उसके मुँह में पेवस्त हो गयी…
वो उसके होंठों को चूसने लगी, कुछ देर तो शंकर को कुछ अंदाज़ा नही लगा कि वो उसके होंठों को चूस क्यों रही है, लेकिन जल्दी ही उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी, और वो भी अपनी माँ के होंठों को चूसने लगा…!
अपनी माँ की लिजलीज़ी जीभ अपने मुँह में पाकर वो अपनी जीभ से उसके साथ खेलने लगा, दोनो को इस खेल में असीम आनद आ रहा था…!
कुछ देर बाद रंगीली ने अपना मुँह हटा लिया, और अपनी नशीली आँखों से शंकर की तरफ देख कर मुस्कराते हुए बोली – आज तुझे उस दिन से भी ज़्यादा मज़ा दूँगी मेरे लाल…
आज तुझे स्त्री और पुरुष के असल संबंधों के बारे में सब कुछ बताउन्गी,
अब मेरा बेटा भी जवान हो गया है, इसलिए अब तुझे वो सब बातें पता होनी चाहिए जो एक जवान मर्द को होती हैं…!
इतना कहकर उसने अपना हाथ उसकी कमीज़ के अंदर डाल दिया, और वो उसके कशरति बदन को सहलाने लगी…!
कुछ देर बाद उसने शंकर को अपनी कमीज़ निकालने को कहा, जिसे उसने फ़ौरन अपने बदन से अलग कर दिया…!
अपने बेट एके गोरे चिट्टे कशरति बदन को देखकर रंगीली की वासना में इज़ाफा होता जा रहा था…
वैसे तो वो उसे रोज़ ही देखती थी, लेकिन इस समय उसकी नज़र में वो मजबूत नौजवान था, जो आज उसकी काफ़ी दिनो दबी प्यास को बुझाने वाला था…!
बेटे की चौड़ी छाती पर अपने तपते होंठों से एक चुंबन लेकर उसने उसके पाजामा के नाडे को भी खींच दिया,
पाजामे को टाँगों से निकाल कर उसके मस्ती में झूम रहे घोड़ा पछाड़ नाग को अपनी हथेली में लेकर सहलाया, फिर मुट्ठी को कसते हुए उसकी सख्ती को परखने के लिए उसने उसे ज़ोर्से मरोड़ दिया…
शंकर के मुँह से आअहह… निकल गयी, जिसे सुनकर वो कामुकता से मुस्करा उठी, और उसके लौडे को चूमकर खड़ी हो गयी…!
बेटे के पैरों में खड़ी होकर उसने अपनी चुनरी हटा कर एक तरफ को फैंक दी, इसी के साथ वो एकदम से पलट गयी, और चार कदम उससे दूर जाकर उसकी तरफ पीठ करके उसने अपनी चोली के सारे बटन खोल डाले…
शंकर ये बिस्तर पर नंगा पड़ा अपनी माँ को देख रहा था, उसने जैसे ही अपनी चोली अपने बदन से अलग की, अपनी माँ की गोरी-गोरी पीठ जो उसने आज तक नही देखी थी उसके सामने थी…
ना जाने कैसा आकर्षण था जो अपनी माँ के उपरी भाग को पीछे से नंगा होते देख कर उसका लंड झटके लगाने लगा…
अब रंगीली के हाथ उसके लहंगे के नाडे पर थे, शंकर को पीछे से कुछ दिखा तो नही पर वो उसके हाथों से अनुमान लगा रहा था कि उसकी माँ अपना लहनगा भी उतारने जा रही है…!
कैसा होगा माँ का नीचे का बदन, इसी कल्पना मात्र से ही उसका बदन कमोवेश में आकर तपने लगा…!
नाडे की गाँठ खुलते ही उसका लहनगा सर्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर… से नीचे उसके कदमों में जा गिरा जिसे उसने अपने पैर से दूर उछाल दिया…,
कमरे में जल रही लालटेन की पीली सी रोशनी में शंकर अपनी माँ के नंगे पिच्छवाड़े को देखकर उत्तेजना से भर उठा..
उसका घोड़ा पछड वास्तव में ही किसी फन फैलाए विषधर की तरह आगे पीछे लहराने लगा…!
आअहह…क्या मस्त नितंब थे रंगीली के.., मोटापा तो कहीं छू भी नही पाया था उसे अभी तक, संतुलित 30 की कमर के बाद उसकी गान्ड के दोनो उभार ऐसे प्रतीत हो रहे थे मानो दो अर्ध कलश आपस में मिलाकर रख दिए हों…
एकदम गोल मटोल, पीछे को उभरे हुए दोनो कलषों के बीच की गहरी दरार जो इस समय दोनो तरफ के दबाब के कारण एक मोटी लाइन सी दिख रही थी…
उन दो कलषों के नीचे चिकनी गोरी-गोरी जांघें एकदम गोलाई में किसी केले के मोटे तने जैसी, जो नीचे की तरह पतली होती चली गयी थी, किसी शंकु की तरह…!
कमर तक लहराते हुए उसके काले घने लंबे बाल, जिनमें से कुछ उसके सुंदर नितंबों को छुने की कोशिश भी कर रहे थे…
अपनी माँ के इस जान मारु पिछवाड़े को देख कर शंकर का लंड बुरी तरह से ऐंठने लगा..,
सामने दिख रहे अपने पसंदीदा बिल में जाने के लिए उतबला होकेर फड़फडा रहा था…, फूलकर किसी डंडे के तरह और ज़्यादा सख़्त हो गया, उसकी नसे उभर आई.
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