RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अभी शंकर बेचारा अपनी माँ के इस सुंदर पिच्छवाड़े के रूप जाल से उभर भी नही पाया था, कि तभी रंगीली ने यौंही खड़े-खड़े अपनी गर्देन को बड़े अनौखे अंदाज में झटका दिया…
उसके लहराते हुए खुले बाल, पीठ पर से उड़कर किसी काली स्याह घटा की तरह उसके दाई तरफ से होकर आगे पहुँच गये.., जिससे उसकी गर्देन से नीचे तक का संपूर्ण भाग नुमाया होने लगा…
एक हाथ से अपने बालों को संभालते हुए उसने गर्देन पीछे को घूमाकर मदभरी नज़रों से अपने बेटे की तरफ देखा..!
उसके तन्तनाये मस्ती में झूम रहे लंड पर नज़र पड़ते ही उसकी चूत में चींतियाँ सी रेंगने लगी,
एक हल्की सी सिसकारी लेकर उसने अपनी रसीली चूत पर हाथ फिराया जिसके मोटे-मोटे होंठों पर कामरस पसीने की बूँदों की तरह लगा हुआ था…!
उसने बड़ी कामुक अदा से अपने कदम आगे को बढ़ा दिए.., उसके चलते ही उसके कलश भी हरकत में आ गये,
जिस पैर पर दबाब होता वो कलश एकदम गोल शेप में आकर कुछ और ज़्यादा पीछे को दिखने लगता, उसके बाद दूसरा…!
मानो उन दोनो में हम बड़े या तुम बड़े होने की कोई प्रतियोगिता चल रही हो…
धीरे-धीरे कदम बढ़ाने से उसकी दोनो कलषों के बीच की दरार भी अपनी लय में उसी अनुसार इधर से उधर होने लगती और दोनो पाटों के बीच घर्षण पैदा होने लगा…!
अपनी माँ की इस अदा ने तो शंकर के लंड की माँ ही चोद डाली, वो बुरी तरह से ऐंठने लगा, उसके लंड में दर्द होना शुरू हो गया,
शंकर किसी महान मूर्ख की तरह नंगा पुंगा अपनी कुहनी टिकाकर लेटा हुआ अपनी माँ की मादक अदाओं से बिचलित होता जा रहा था, उसकी काम इचा पल-प्रतिपल बलवती होती जा रही थी..
अपने आप पर कंट्रोल रखना उसके बस से बाहर होने लगा… बेचारे को अभीतक मूठ मारना भी नही आता था..,
लेकिन उसका मन कर रहा था की अपने लंड को पकड़ कर मरोड़ दे… बस इसी आवेश में आकर पहली बार उसने अपने लंड को हाथ लगाया और उसे ज़ोर्से मरोड़ दिया…
लंड की ऐंठन से उसके मुँह से कराह निकल पड़ी…आआहह….माआ…
रंगीली अपने बेटे की कराह सुनकर एक दम से पलट गयी…, और दौड़ते हुए उसके पास आकर बोली – क्या हुआ मेरे लाल…?
सामने से अपनी माँ के नग्न शरीर पर नज़र पड़ते ही शंकर अपने लंड का दर्द भूलकर उसके यौवन में खो गया, उसका मुँह खुला का खुला रह गया…….,
शंकर को इस अंदाज से अपने सुंदर गोरे बदन को घूरते देखकर वो मंद मंद मुस्कराते हुए मद्धम गति से एक-एक कदम आगे बढ़ाते हुए उसकी तरफ आने लगी…,
उसकी एकदम चिकनी संपूर्ण गोलाई लिए हुए केले के तने जैसी मांसल जांघें मानो संगेमरमर के दो स्तंभ चले आ रहे हों..
जांघों के भीच का यौनी प्रदेश, जिस पर उसके पेडू तक हल्के हल्के काले बाल, जो शायद एक हफ्ते की फसल रही होगी,
उनके बीच माल पुए जैसी फूली हुई दो फांकों के बीच एक पतली सी दरार जो इस समय दोनो तरफ के जांघों के दबाब के कारण मात्र एक बारीक लाइन सी दिखाई दे रही थी..
उसने बड़ी कामुक अदा से अपनी हिरनी जैसी चंचल कजरारी आँखों से अपने बेटे की तरफ देखा, और उसके सामने खड़ी होकर बोली – अब बता मेरे लाल, कैसी है तेरी माँ…?
तेरे सपनों में आने वाली उस युवती जैसी है या नही…?
शंकर के चेहरे पर विश्मय के भाव सॉफ-सॉफ उजागर थे, वो फ़ौरन उठ खड़ा हुआ, और अपनी माँ के हाथों को अपने हाथों में लेकर उसने उसे उपर से नीचे तक अपनी भरपूर नज़र डालकर देखा…
रंगीली थी ही बहुत सुंदर, लेकिन आज उसे बिना कपड़ों के उसने पहली बार देखा था, वो म्रिग्नयनि अपनी चंचल कजरारी आँखों को नचाते हुए बोली – ऐसे कब तक देखता रहेगा, जल्दी बता ना मुझे शर्म आ रही है…
शंकर ने अपनी माँ के चेहरे को अपनी हथेलियों में भर लिया और उसकी नशीली आँखों में देखते हुए विस्मित स्वर में बोला –
वो तू ही थी माँ, मे उस दिन जिस परच्छाई को पहचान नही पा रहा था, आज तेरे इस रति स्वरूप को देख कर मेरे मन में अब कोई शंका नही है…!
लेकिन ये क्या है माँ, तेरा ये रूप तेरे अपने बेटे को क्यों आकर्षित करता रहा..? कोई और क्यों नही..?
रंगीली ने बड़े प्यार से अपने पंजों पर उचक कर अपने बेटे के ललाट को चूमते हुए कहा –
क्योंकि तेरे जन्म से लेकर बड़े होने तक, हर वक़्त मे तेरे सामने रही, हर सुख-दुख, दर्द, खुशी की तेरी साझेदार मे ही थी, तो स्वाभाविक है, कि तेरे हर भाव में मेरी ही छवि बस गयी…,
फिर चाहे वो माँ की ममता का स्वरूप हो या एक प्रेयशी का….!
फिर उसने अपने बेटे का हाथ पकड़ा और उसे अपने एक उरोज पर रखते हुए बोली – चल छोड़ ये बातें, और करले आज अपना सपना पूरा…!
जो स्त्री सुख तूने अपने सपने में लिया था, आज तुझे वो में जागते हुए दूँगी, मसल मेरे लाल इन चुचियों को जिन्हे चुस्कर तूने कभी अपनी भूख शांत की थी…!
शंकर ने उसके दोनो मक्खन जैसे मुलायम कसे हुए उरोजो को अपनी मुट्ठी में कस लिया, और ज़ोर्से मसल दिया…!
रंगीली सिसक कर उसके बदन से लिपट गयी, फिर उसने अपने बेटे के नंगे बदन को सहलाते हुए चूमना शुरू कर दिया…!
उसके होंठों से चूमना शुरू करके वो उसे नीचे तक चूमती चली गयी.., अपने बेटे का गोरा सुर्ख कसरती बदन किसी कामदेव से कम नही लग रहा था इस समय…
शंकर का अपनी उत्तेजना को संभाल पाना दूभर हो रहा था, जहाँ-जहाँ उसकी माँ के गीले लज़्ज़त भरे होंठ पड़ते, उसका वो हिस्सा थर-थरा उठता…!
चूमते हुए रंगीली अपने पंजों पर बैठ गयी, अपने बेटे की कसी हुई पत्थर के मानिंद सख़्त जांघों को सहलाते हुए उसने उसके डंडे जैसे कड़क लंड को अपने हाथ में पकड़ा, कुछ देर तक वो उसे चाहत भरी नज़रों से निहारती
रही,
उसके साइज़ को तौलती रही, जो किसी भी सूरत में लाला के लंड से 21 नही 22 था…, एकदम सुर्ख दहक्ता हुआ…!
उत्तेजना के कारण लंड की परिधि में नसें उभर आई थी, जो इस बात की गवाही दे रही थी, कि इस समय वो कितना शख्त हो चुका है…!
उसे देखकर रंगीली की चूत में चींतियाँ सी दौड़ने लगी...,
वो उसे अपनी चूत में फील करते हुए सोचने लगी, आअहह…जब ये मेरी चूत में होगा, तब क्या हाल करेगा उसका…?
उसने उसे एक बार उसकी खाल को खींच कर उसके सुपाडे को नंगा किया, जो पूरी तरह से खुल भी नही पा रहा था,
पहले उसने उसके दहक्ते हुए लाल सेब जैसे सुपाडे पर अपनी जीभ फिराई…!
शंकर की आँखें बंद हो गयी, मज़े की पराकाष्ठा में उसके मुँह से एक जोरदार सिसकी निकल गयी…,
आआहह….म्म्माआअ….और चाट इसे माआ…तू सच में काम देवी स्वरूपा है माआ….!
अपने बेटे की हर मनोकामना पूरण करने वाली मनोकामना देवी है तू….जल्दी से कुछ कर माँ, वरना मेरा बदन सुलग उठेगा….!
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