RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घूमने के नाम से हर समय हवेली में क़ैद रहने वाली बच्ची खुश हो गयी, रंगीली उसे अपनी गोद में उठाए अपने घर की ओर चल दी…!
इधर पीठ की मालिश करते हुए शंकर का बुरा हाल था, ब्रा की स्ट्रीप खुल चुकी थी, ब्लाउस चढ़कर गले तक पहुँच चुका था…
अब थोड़ा नीचे भी तो करो, आहह…कमर भी तो दुख रही है…
शंकर अब किसी रोबोट की तरह उसके कहे शब्दों को फॉलो कर रहा था, तभी उसे अपनी माँ के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे…
कोई औरत अपने मुँह से नही बोलती बेटा कि उसे चोदो, उसकी छेड़-च्छाद और इशारे बताते हैं कि वो क्या चाहती है…
ब्रा के हुक्स खुलवाते ही वो समझ चुका था कि सुषमा उससे चुदने के लिए तैयार है, लेकिन फिर भी वो अपनी तरफ से कोई पहल नही करना चाहता था,
वो बस उसकी बात मानता जा रहा था, देखना चाहता था, कि ये खेल और कितनी देर तक चलता है, अब उसे भी इस खेल में मज़ा आने लगा था…, डर अब उत्तेजना में तब्दील हो चुका था…!
उसने अपने हाथ सुषमा की वेल्ली में जमा दिए, मूव को आगे पीछे मलते हुए उसके हाथ साइड तक पहुँचने लगे थे…
आहह…थोड़ा और नीचे तक करो, सुषमा अब बनावटी कराहते हुए जैसे ही बोली – शंकर ने उसे पुच्छने की जहमत नही उठाई कि साड़ी और पेटिकोट नीचे करो,
वो समझ गया कि यहाँ भी ब्लाउस की तरह सब कुछ खुला ही होगा, सो उसने अपने दोनो हाथ उसके दो चट्टानों की तरह उपर को सिर उठाए हुए गान्ड के दोनो पाटों की तरफ बढ़ा दिए…,
गान्ड के उभारों तक हाथों को लेजा कर वो उन्हें अच्छे से रगड़ने लगा…फिर उसने उसकी गान्ड की चोटियों को अपने दोनों पंजों में भींच लिया…
सुषमा बुरी तरह से सिसक पड़ी…सस्सिईईई… आअहह…शंकर… ऐसे ही करो… आअहह…बहुत अच्छा लग रहा है…,
शंकर ने उसके दोनो मटके जैसे चुतड़ों की मालिश करते हुए अपने एक हाथ की उंगली उसकी गान्ड की दरार में फँसा कर उपर से नीचे तक फेरने लगा,
गान्ड के छेद पर उसकी उंगली पहुँचते ही सुषमा की सिसकियाँ तेज हो गयी, सस्सिईईई…आअहह…और आगे तक करो राजा…आहह…बहुत अच्छा लग रहा है…
शंकर ने अपना हाथ पैंटी में और अनादर तक घुसा दिया, और जैसे ही उसकी उंगलियाँ उसकी रस गागर के मुँह पर पहुँची,
गचाक्क्क से उसकी बीच की उंगली अपने आप उसके रस कुंड में डूब गयी.. जैसे किसी रह चलते हुए के सामने अचानक से दलदल आजाए और वो उसमें डूब जाए…!
गचाकककक…से शंकर की उंगली उसके अमृत कुंड के अंदर जाते ही, सुषमा ने अपनी दोनो जांघों को कस कर भींच लिया, जिससे शंकर की उंगली, उसके गरम कुंड में जप्त होकर रह गयी…!
मूव की झंझनाहट से उसकी गरम चूत और ज़्यादा गरम हो गयी, कुछ देर उसे अपनी चूत में मूव की चुन-चुनाहट महसूस हुई, लेकिन जल्दी ही मज़े में वो उसे नज़रअंदाज कर गयी…
शंकर अपनी उंगली को अंदर ही अंदर इधर से उधर गोल-गोल घुमाने लगा…, रस कुंड लबालब भरा होने की वजह से उसकी उंगली को चुत में इधर-उधर चलने से भी हल्की हल्की चप-चॅप जैसी आवाज़ आ रही थी…
उत्तेजना के कारण सुषमा का बुरा हाल हो रहा था, उसकी चूत बुरी तरह पनिया गयी थी, उसे अब अपने आपको रोक पाना मुश्किल होने लगा था…!
वो उत्तेजना की चरम सीमा लाघ कर अपना कामरस छोड़ने ही वाली थी कि तभी शंकर ने अपनी उंगली बाहर निकाल ली और उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगा…!
चपर-चपर उंगली के चूसने की आवाज़ सुनकर सुषमा अपनी सारी संकोच की दीवार तोड़कर उठ बैठी, और वो शंकर से किसी बेल की तरह लिपट गयी…!
आअहह…शंकर, मेरे राजा… मेरे सपनों के राजकुमार…, अब नही रहा जाता मुझसे… चोद डालो अपनी रानी को… ,
वो उसके लंड को मुट्ठी में लेकर बोली - मे अब तुम्हारे इस लंड के बिना नही रह पाउन्गि मेरे हीरो…..!
ये कहकर उसने उसे बिस्तर पर धकेल दिया, और शंकर के उपर सवार होकर उसके कपड़ों पर टूट पड़ी……!
सुषमा के मुँह से खुलेआम चुदने की बात सुनकर शंकर के चेहरे पर स्माइल आ गयी, वो उसके कपड़े उतार रहे हाथों को पकड़कर रोकते हुए बोला –
ये आप क्या कर रही हैं भाभी, मे आपका नौकर हूँ, भला मे आपके साथ ऐसा कैसे कर सकता हूँ, प्लीज़ छोड़िए मुझे, जाने दीजिए मुझे वरना अनर्थ हो जाएगा…!
वो किसी ख़ूँख़ार बिल्ली की तरह उसके कपड़े उतारते हुए गुर्राई…नही शंकर, तुम मेरे नौकर नही हो, तुम तो मेरे सपनों के राजकुमार हो मेरे राजा.., आज अगर तुमने मेरी प्यास नही बुझाई, तो बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा…!ना जाने में क्या कर बैठूँगी, मे खुद भी नही जानती.., इसलिए अब ज़्यादा सोचो मत और अपनी इस दासी की प्यास बुझा दो मेरे सरताज…!
ये शब्द कहते-कहते जैसे वो रो ही पड़ी…, उसकी सुनी आँखों जिनमें अब उम्मीद की किरण आती दिखाई देने लगी थी, से दो बूँद पानी की टपक कर शंकर के सीने में दफ़न हो गयी…!
उसे अपनी माँ के कहे शब्द याद आने लगे…, सुषमा बहुत प्यासी औरत है बेटा, उसकी प्यास बुझा दे…!
ये याद करते ही उसने नीचे से उसकी बगलों में अपने हाथ डालकर उसे बिस्तर पर पलट दिया,
और खुद उसके उपर आकर उसके दोनो अनारों को अपने बड़े-बड़े हाथों में थामकर मसलते हुए उसके प्यासे होंठों पर अपने तपते होंठ रख दिए…!
अंधे को मानो दो आँखें मिल गयी हो, सुषमा के बरसों से प्यासे होंठ लरज उठे, उसकी मरमरी बाहों ने शंकर की पीठ पर अपना घेरा बना लिया, और अपने होंठों में जगह देकर उसका साथ देने लगी…!
सुषमा के मीठे लज़ीज़ होंठों की लज़्ज़त पाकर शंकर के होंठों में तरावट आ गई, वो अपनी जीभ उसके मुँह में डालकर उसकी जीभ के साथ अठखेलियाँ करवाने लगा…!
सुषमा के लिए ये सब एकदम अनूठा और आनंद से भरा अनुभव था, जो उसे किसी सपने की तरह लग रहा था,
इस तरह के अनूठे सुख की लालसा वो इस जीवन में त्याग चुकी थी, सो अनायास उसे पाकर दीन दुनिया भूलकर शंकर की बाहों में पिघलने लगी…!
जब उसने सुषमा के होंठों को छोड़ा, उसकी आँखें जो अब तक बंद थी, उसके अलग होते ही खुल गयी, वो अपनी वासना से सुर्ख हो चुकी सवालिया निगाहों से उसे घूर्ने लगी, उसे शंकर का यूँ रुकना पसंद नही आया…!
शंकर ने उसकी आँखों में झंकार पुछा – एक बार और सोच लो भाभी…, ऐसा ना हो बाद में आपको कोई पश्चाताप हो…!
सुषमा उसके हाथों को अपने उभारों पर रख कर बोली – पश्चाताप की आग में तो मे आजतक जलती आरहि हूँ उस आग को बुझा दो शंकर, तुम्हारी माँ भी यही चाहती हैं…!
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