RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
दूसरे दिन बड़े हर्सोउल्लास के साथ गोद भराई की रसम अदा हुई.., सुषमा के माता-पिता भी आए अपनी बेटी को आशीर्वाद देने.
सबने कुछ ना कुछ बहू को तोहफे भेंट किए, बड़े बुजुर्गों ने आशीर्वाद दिए…, अंत में जब सेठ और सेठानी ने अपनी बहू को आशीर्वाद दिया, तब सुषमा ने अपने ससुर से कहा -
पिताजी आज मे आपसे आशीर्वाद के अलावा भी कुछ और माँगना चाहती हूँ,
लाला जी – हां बहू, माँगो जो भी माँगना चाहती हो, हमारे बस में हुआ तो हम आज किसी भी चीज़ के लिए मना नही करेंगे तुम्हें…!
सुषमा – मे जानती हूँ, आज आप सब लोग मुझसे नही मेरी कोख में पल रहे इस घर के चिराग की वजह से खुश हैं..,
लाला जी – ऐसी बात नही है बेटा, तुम हमारी बड़ी बहू हो हम तुमसे हमेशा से ही खुश हैं…
सुषमा - अगर ऐसा ही था तो आप मेरे होते हुए अपने बेटे का दूसरा विवाह नही करते…!
अब मे उसी चिराग के भविष्य के लिए इस घर की सारी मिल्कियत की मालिकी चाहती हूँ, क्या आप दे पाएँगे ये मुझे…?
लाला समेत सभी उसकी ये बात सुनकर सन्नाटे में आ गये, वहीं रंगीली के होंठों पर मुस्कान तैर गयी…!
लाला चोन्कते हुए बोले – ये तुम क्या कह रही हो बहू..? ये सब कुछ तुम्हारा ही तो है…!
सुषमा – ऐसा आप आज कह रहे हैं, क्योंकि आज मे आपको इस घर का चिराग देने जा रही हूँ इसलिए, वरना आप इनकी दूसरी शादी कभी नही करते…!
सुषमा के शब्द लाला के दिल में किसी नुकीले तीर की तरह चुभे, वो कसमसाते हुए बोले – ये संभव नही है बहू, ये सब कुछ हमारे बाद कल्लू का होने वाला है, और उसके बाद उसकी औलाद का..,
कल को अगर तुमने ही या छोटी बहू से और बच्चे पैदा हुए तो वो भी इसमें बराबर के हक़दार होंगे…!
सुषमा – इसके लिए मे कभी इनकार नही करती, बेशक वो इस मिल्कियत के हक़दार होंगे, लेकिन तब तक सब कुछ मेरे अधिकार में रहेगा…!
लाला – आख़िर ये सब तुम क्यों चाहती हो, क्या तुम्हें हमारे उपर भरोसा नही है ?
सुषमा – भरोसा !.... ये एक ऐसा शब्द है, जो एक-दूसरे पर समान रूप से लागू होता है पिताजी,
जब आपने मुझ पर भरोसा नही किया, कि मे बेटा पैदा करने योग्य हूँ या नही.. तो अब इस शब्द का कोई अर्थ नही रहा…!
लाला उसके तर्क के आगे निरुत्तर हो गये, आज उन्हें अपनी पत्नी के कहने पर बरसों पहले की गयी अपनी ग़लती का एहसास हो रहा था,
लेकिन वो उसकी इस शर्त को भी मंजूर नही कर सकते थे, सो बोले –ये संभव नही है बहू…!
सुषमा – तो फिर इस बच्चे का भी इस हवेली में पैदा होना संभव नही है…!
सुषमा के ये शब्द किसी तीर की तरह उनके सीने को बेधते चले गये, वो दर्दभरे स्वर में बोले – ये कैसी हट है तुम्हारी बहू..,
फिर वो उसके पिता को संबोधित करके बोले –समधी जी आप ही कुच्छ कहिए ना इसे, ये जो चाहती है वो हमारे जीते जी संभव नही है…
सुषमा के पिता – वो ग़लत भी तो नही कह रही समधी जी, क्या पता कल को कुछ और ही बात बने और हमारी बेटी दर-दर की ठोकरें खाने पर मजबूर हो जाए…,
लाला – आप भी..! समझदार होकर, आप भी ऐसी बातें कर रहे हैं…?
सुषमा के पिता – आप ने भी तो समझदार होकर एक ग़लत फ़ैसला किया ही था, मे अपनी बेटी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ,
अगर आप उसकी इस जायज़ माँग को नही मान सकते तो वो भी अपना फ़ैसला लेने के लिए स्वतन्त्र है, और इसमें मे हमेशा उसके साथ हूँ…
वो चाहे तो अपने बच्चे को लेकर यहाँ से जा सकती है, मे उसका जिंदगी भर हर संभव साथ दूँगा, आख़िर वो भी मेरी औलाद है.., एक फॅक्टरी उसके नाम से ही सही…!
अब लाला के पास हथियार डालने के अलावा और कोई चारा नही था, क्या पता आगे कोई और बच्चा उसकी दूसरी बहू से ना हुआ तो…? इसके लिए वो खुद भी कोशिश कर ही चुके हैं..
ये सब सोच विचार करने के बाद उन्होने फ़ैसला ले ही लिया और बोले – ठीक है बहू, हम अपनी सारी मिल्कियत तुम्हरे हाथों में सौंपते हैं, लेकिन तुम्हें भी एक वचन देना होगा,
अगर भविश्य में कल्लू की कोई और औलाद होती है तो वो इसमें बराबर की हक़दार होगी…!
सुषमा – मुझे मंजूर है, चाहें तो आप वसीयत में ये बात लिखवा सकते हैं.
लाला के इस फ़ैसले से जहाँ एक ओर लगभग सभी लोग सहमत दिखे, वहीं लाजो पर तो मानो गाज ही गिर पड़ी, वो अंदर ही अंदर घायल नागिन की तरह फुफ्कार उठी,
लेकिन फिलहाल इतने सारे लोगों की मौजूदगी में वो कर भी क्या सकती थी, हवेली में उसे अपनी औकात पता थी…
जहाँ सुषमा का मायका लाला से भी कई गुना ज़्यादा समृद्ध था, वहीं लाजो के ग़रीब माँ-बाप उसे अपने घर में अब पनाह भी नही दे सकते थे…,
इसलिए वो इस समय जल-भुन’ने के अलावा कुछ नही कर सकती थी, उसे बस इंतजार था तो अपने ससुर से अकेले में बात करने का जब वो उसके लंड पर झूला झूल रही होगी…!
शंकर की आगे की पढ़ाई का सपना खटाई में डालने के बाद लाला जी ने उसे अपनी जयदाद की देखभाल का काम सौंप दिया…!
उसकी ज़िम्मेदारी थी सारी ज़मीनों की देखभाल रखना, लाला की ज़मीनों पर काम करने वाले सभी मजदूरों का लेखा-जोखा रखना, जिसमें उसका अपना धर्म पिता भी शामिल था…!
यही नही अब लाला ने शंकर और रंगीली को रहने के लिए हवेली के बाहरी हिस्से में ही एक बड़ा सा घर जिसमें दो कमरे रसोई के साथ साथ वाकी अन्य ज़रूरत के साधन भी उपलब्ध थे दे दिया था…
घर हवेली से अल्हेदा और बड़ा होने की वजह से उसने अपनी बेटी और पति को भी अपने साथ रहने के लिए बुला लिया था…!
गोद भराई का सारा काम थोड़े बाद-विवादों के बीच ठीक तरह से संपन्न हो चुका था, लाला ने दूसरे ही दिन सारे दस्तावेज़ बनवाने के लिए अपने वकील को सौंप दिए…
उनकी दोनो बेटियों को छोड़ सारे नाते रिश्तेदार, सगे संबंद्धि जा चुके थे, जो कुछ बचे थे वो भी एक-एक करके विदा हो रहे थे…!
दूसरे दिन प्रिया और सुप्रिया ने अपने बाग-बगीचों की सैर करने का प्लान बनाया.., वो अपनी एक दो पुरानी सखी सहेलियों जो इस वक़्त गाओं में मौजूद थी उनको लेकर अपने खेतों की तरफ चल पड़ी…
थोड़े बहुत शहरी परिधानो में वो सारे गाओं की निगाहों का केंद्र बनी हुई अपने खेतों पर पहुँची..,
यौं तो लाला की ज़मीन बहुत सारी जगहों पर थी, यहाँ तक कि दूसरे गाओं में भी, लेकिन मुख्य रूप से वो अपने गाओं से थोड़ी ही दूरी पर थी, जहाँ उनका एक बहुत बड़ा बगीचा भी था..!
उस बगीचे के लिए एक चकरोड़ (कच्चा चौड़ा रास्ता जिसमें कोई भी वहाँ आसानी से जा सके) से होते हुए जाया जाता था,
चाक्रॉड के दोनो तरफ लाह-लाहते खेत, जिसमें सरसों, गेंहू इत्यादि की फसल खड़ी थी, जिसमें कुछ मजदूर काम कर रहे थे…!
वो दोनो अपनी सखी सहेलियों के साथ बगीचे में पहुँची, वहीं पास के एक खेत में गन्ने (शुगरकेन) की फसल खड़ी थी, और दूसरी तरफ गेंहू खड़े थे…
दोनो बहनें अपने अपने ग्रूप बनाकर इधर उधर घूमने लगी, सुप्रिया भी अपनी दो सखियों के साथ गेंहू के खेतों की तरफ बढ़ गयी, जहाँ उसकी नज़र शंकर पर पड़ी…
वो अपनी सहेलियों को वही खड़ा करके उसकी तरफ बढ़ गयी, उस समय शंकर कुछ मजदूरों को गेंहू के खेतों से खरपतवार निकालने का काम करवा रहा था…
सुप्रिया ने चुप-चाप पीछे से जाकर एक साथ भों..भों की आवाज़ करके उसे डराना चाहा…
शंकर ने उसकी आवाज़ पहचान ली और मुस्करा कर पलटते हुए बोला – अरे सुप्रिया दीदी आप और यहाँ.., खेतों में क्या कर रही है..?
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