RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
वो रूठा सा मुँह बनाकर बोली – क्या यार, मेने तुम्हें डराने के लिए ऐसी आवाज़ निकाली और तुम डरे भी नही,
शंकर ने उसकी आँखों में देखते हुए मुस्कुरा कर कहा – ये शहर नही है दीदी, यहाँ ऐसे खेल खेलते हुए ही हम बड़े हुए हैं.., आप सुनाए, यहाँ कैसे..?
वो – क्यों हम अपने खेतों को देखने नही आ सकते क्या..?
शंकर – अरे क्यों नही, सब आप ही का तो है, और बताइए, आपकी ससुराल में सब कुशल मंगल है, वैसे आप पहले से भी ज़्यादा सुंदर लग रही हैं…!
वो मुस्कराते हुए बोली – तुम भी कुछ कम हॅंडसम नही हो, अब तो पूरे धर्मेन्द्र लगते हो…!
शंकर – वो कॉन है ? अब बेचारे ने अभी तक कोई फिल्म देखी ही नही थी..
वो – अरे अपनी फिल्मों के बहुत बड़े हीरो हैं वो, अच्छी-अच्छी हेरोयिन उनपर मरती हैं..!
शंकर खुश होते हुए बोला – अच्छा, तो क्या मेरी शकल पर भी कोई मर सकती है..?
सुप्रिया ने मन ही मन कहा – तुम पर तो मैं ही मर मिटी हूँ शंकर, अपनी मन की आँखों से तो देखो, लेकिन प्रत्यक्ष में बोली - चलो ये सब छोड़ो, तुम मुझे गन्ना नही खिलाओगे..?
शंकर – अरे क्यों नही अभी तोड़कर लाता हूँ, ऐसा मीठा वाला गन्ना चुस्वाउंगा आपको कि बस अपने होंठ चाटते रह जाएँगी…!
ये कहकर वो गन्ने के खेत की तरफ बढ़ गया, तभी सुप्रिया ने पीछे से उसका हाथ थाम लिया और बोली – चलो मे भी तुम्हारे साथ चलती हूँ..
वो दोनो गन्ने के खेत तक आ गये, शंकर उसे किनारे पर खड़ा करके बोला – रुकिये मे थोड़ा अंदर से अच्छा वाला गन्ना लाता हूँ..
वो अंदर की तरफ बढ़ गया, और थोड़ा अंदर जाकर उसने एक मोटा और मीठा वाला गन्ना तोड़ लिया, उसे लेकर वो जैसे ही पलटा पीछे खड़ी सुप्रिया से टकरा गया…!
वो पीछे को गिरने को हुई की तभी शंकर ने एक हाथ का सहारा उसकी पीठ पर देकर उसे गिरने से बचा लिया…!
सुप्रिया उसकी मजबूत बाजू के सहारे तिरछी खड़ी थी, उसके टॉप में क़ैद गोल-गोल उभार, उभरकर सामने आ गये और शंकर को मुँह चिढ़ाने लगे…
दोनो की नज़रें एक हुई, और वो एक दूसरे में खोने लगे, दिल का पैगाम नज़रों के द्वारा एक दूसरे तक पहुँचने का प्रयास करते हुए ना जाने कितनी ही देर वो उसी अवस्था में एक दूसरे को निहारते रहे…!
फिर एका-एक शंकर को होश आया, और उसने सुप्रिया को सीधे खड़े करते हुए कहा – आप ठीक तो हैं, मे तो गन्ना ला ही रहा था, फिर आप यहाँ क्यों आई…!
सुप्रिया अभी भी उसी को घूरे जा रही थी, वो तो बस किसी संगेमरमर की मूरत बनी शंकर के कामदेव जैसे रूप में खो चुकी थी…,
उसके मर्दाने बदन की खुश्बू ने उसे बहाल कर दिया…!
शंकर ने उसकी बाजू पकड़ कर हिलाते हुए कहा – दीदी क्या हुआ, आप ठीक तो हैं..
वो मानो नींद से जागी हो, हड़बड़ा कर बोली – हाँ मे ठीक हूँ, थॅंक यू शंकर, तुमने मुझे गिरने से बचा लिया…!
शंकर ने मन ही मन मुस्कराते हुए पुछा – तो आप ऐसे क्या देख रही थी मेरी ओर…?
वो – तुम कितने सुंदर और सजीले नौजवान हो किसी कामदेव का स्वरूप, बस मे अपने आप को तुम्हें देखने से रोक ही नही पाई.., बचपन की चाहत फिर से उमड़ पड़ी…!
शंकर – ये आप क्या कह रही हैं, बचपन की चाहत मतलब..?
वो – तुम नही समझोगे शंकर, तुम तो नादान थे उस वक़्त, मासूम थे, तुम्हें कैसे पता होगा, कि मे तुम्हें कितना पसंद करती थी, लेकिन आज जब तुम्हें जवानी की दहलीज़ पर खड़े देखा तो अपने आपको रोक नही पाई…
आइ लव यू शंकर, मे तुम्हें बहुत प्यार करती हूँ, ये कहकर वो उससे लिपट गयी…
शंकर भौचक्का सा खड़ा रह गया, फिर उसने उसके कंधे पकड़कर अपने से अलग करते हुए कहा – अब आप किसी और की अमानत हो,
बचपन की चाहत का अब कोई अर्थ नही रहा…, हम दोनो के रास्ते जुदा हो चुके हैं.!
सुप्रिया उसके चौड़े चिकने लेकिन पत्थर जैसे शख्त सीने पर अपने मुलायम हाथ से सहलाते हुए बोली – कुछ कदम तो अपने साथ लेकर चल सकते हो मुझे…?
शंकर – जमाने का डर है, कहीं किसी ने साथ चलते हुए देख लिया तो मेरा तो जो होना होगा सो होगा ही, आप बेकार में रुसबा हो जाएँगी…!
मुझे जमाने से छुपाकर कुछ कदम साथ ले लो शंकर, वो उसके चौड़े सीने पर अपना सिर रख कर बोली – तुम्हारा एक पल का प्यार ही मेरे लिए काफ़ी होगा..,
शंकर ने ना चाहते हुए अपना हाथ उसकी कमर पर रख दिया, फिर उसके रूई जैसे मुलायम कूल्हे को सहलाते हुए बोला – अभी आप यहाँ से चलिए, यहाँ कोई भी आ सकता है…!
वो उसके सीने पर किस करते हुए बोली – थोड़ा सा नीचे तो झुको, पूरे ताड़ हो गये हो, ये कहकर उसने उसके चेहरे को अपने दोनो हाथों के बीच लेकर अपने सुर्ख गीले होंठ शंकर के खुश्क होंठों पर रख दिए…!
शंकर ने अपने दोनो हाथों को उसकी गोल-गोल मुलायम गान्ड के नीचे लगाकर उसे अपनी गोद में उठा लिया, और चुंबन में उसका साथ देने लगा…!
वो दोनो एक दूसरे को चूमने में मसगूल हो गये, सुप्रिया किसी गुड़िया की तरह उसके कसरती सीने पर अपने सुडौल अनारों को रगड़ते हुए उसके होंठों को चूसे जा रही थी..
दोनो पर वासना का भूत सवार होने लगा था, आँखों में खुमारी उतरने लगी, सुप्रिया तो इतनी सी देर में ही कहीं दूर आसमानों में उड़ने लगी…,
अब वो एक दूसरे से अलग नही होना चाह रहे थे, लेकिन तभी उन्हें प्रिया की चीख सुनाई दी….बचाऊओ….!
चीख इतनी तेज थी, कि वो दोनो बुरी तरह चोंक गये, अपने किस को तोड़कर शंकर ने सुप्रिया को नीचे उतारा और बिना कुछ कहे आवाज़ की दिशा में दौड़ पड़ा…!
गन्ने के खेत से बाहर निकल कर कूदते फान्दते उसने गेंहू के खेत को कुछ ही सेकेंड्स में पार कर लिया,
फिर जैसे ही उसकी नज़र चकरोड़ में गयी, सामने के मंज़र को देखकर उसके बदन के सारे रोंगटे खड़े हो गये………..….!
हुआ यूँ कि जहाँ प्रिया & पार्टी घूम रहे थे उसी के पास वाले गेंहू के खेत में एक सांड़ घुस आया, और फसल को चरने लगा…!
होशियार की नानी प्रिया ने किसी मजदूर को बुलाने की वजाय, खुद ही उसे खदेड़ने चल दी, उसकी सहेलियों ने मना भी किया…!
लेकिन जिद्दी स्वाभाव, नही मानी और उसे हुर्र्रर..हुर्र्रर..करके पहले भागने की कोशिश की लेकिन वो ठहरा मस्त मलन्द सांड़, लगा रहा अपनी मन पसंद हरियाली चरने में…
प्रिया ने आव-ना देखा टॉ, एक पत्थर का टुकड़ा उठाया, और फेंक कर सांड़ को दे मारा, खुदा ना ख़स्ता अगर वो पत्थर कहीं उसकी पीठ वग़ैरह पर पड़ता तो कोई फरक उसे नही पड़ता, लेकिन वो नुकीला सा पत्थर उसकी नाक पर पड़ा…!
फिर क्या था सांड़ भड़क गया, पहले तो उसने वहीं से धाँभार दी, उसी से प्रिया की फूँक सरक गयी, और वो ज़ोर से चिल्लाई, उसका चिल्लाना सुनकर वो और ज़्यादा बिदक गया और उसकी तरफ दौड़ पड़ा…!
वो बचाओ..बचाओ… चिल्लाति हुई चकरोड़ में दौड़ पड़ी, लेकिन ज़्यादा दूर तक नही जा पाई, की उसकी सॅंडल की हील टूट गयी, और वो वहीं गान्ड के बल जा गिरी..
पल-प्रतिपल सांड़ उसके करीब आता जा रहा था, वो उससे कुछ कदम ही दूर था कि तभी उसने अपने हाथ जोड़ दिए और अपनी आँखें मूंदकर इस आशा में अढ़लेटी सी अपनी एक कोहनी के बल पड़ी रह गयी, की शायद वो सांड़ उसकी गुहार सुनकर पीछे हट जाए…!
लेकिन तभी उसने अपनी अधखुली आँखों से एक अद्भुत नज़ारा देखा…,
एक इंसानी जिस्म हवा में तैरते हुए आया और सांड़ के उपर आ गिरा, उस इंसान के दोनो पैर भड़क से सांड़ की टाट (गर्दन के उपर का उठा हुआ भाग-हंबल) पर पड़ी…!
सांड़ लहराकार अपनी जगह से हिल गया, उसके आगे बढ़ते कदम ठिठक गये.., अपने को गिरने से बचाता हुआ वो पीछे को हटा.., तब तक वो इंसान भी खड़ा हो चुका था…,
वो कोई और नही शंकर था, जो अब उसके और सांड़ के बीच अपनी कमर पर हाथ जमाए किसी चट्टान की तरह खड़ा था…!
शंकर ने सांड़ पर नज़र जमाए हुए ही उससे कहा – आप यहाँ से भाग जाइए प्रिया दीदी, मे रोकता हूँ इसे…!
लेकिन वो हतप्रभ सी ऐसे ही पड़ी रही…, वो वहाँ से उठकर भागने की हिम्मत भी नही जुटा पाई…
उसकी चीखो-पुकार सुनकर आनन फानन में आस-पास खेतों में काम कर रहे मजदूर भी जमा हो गये, सुप्रिया समेत वाकी लड़कियाँ भी ये तमाशा देखने आ पहुँची..
हाफ बाजू की कमीज़ और पाजामे में खड़ा शंकर किसी देव-दूत सा उस मस्त मलन्द सांड़ से दो-दो हाथ करने को खड़ा था, उसके बाजुओं के मसल्स फडक उठे..
उसने अपने हाथों को अपनी जांघों के पाटों पर मारा, फिर बाजुओं की मछलियो पर मारते हुए सांड़ को इशारा किया, कि अब आजा बेटा, हो जायें दो-दो हाथ…
सुप्रिया अपनी जगह पर खड़ी थर-थर काँपने लगी, वो चीखते हुए बोली – उसके सामने से हट जाओ शंकर, वो तुम्हें मार डालेगा…!
लेकिन शंकर ने तो जैसे उसकी आवाज़ सुनी ही नही, सारे लोग दम साधे इस घटना को देख रहे थे, वो चाहते तो उस सांड़ को मिलकर खदेड़ सकते थे,
लेकिन ना जाने कैसा सम्मोहन था लड़के की अदाओं में कि वो वहीं खड़े ये तमाशा देखने पर मजबूर थे…
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