RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घर से स्टेशन तक लाला जी की बग्घी ने पहुँचा दिया, वहाँ से लोकल ट्रेन से जाना था, 70-80 किमी की दूरी ये ट्रेन घूम फिरकर 4-5 घंटे लगाती थी…
ट्रेन में ज़्यादा भीड़ भाड़ नही थी, नौकरों की मदद से सब समान अच्छे से एक खाली से कूपे में रखवा दिया, और वो दोनो प्रेमी एक खाली सीट पर बैठ गये…!
गाड़ी के चलते ही सुप्रिया, शंकर के सीने पर अपना सिर टिका कर बैठ गयी.., वो उसके चौड़े कसरती सीने को चूमकर उसे सहलाते हुए बोली –
थॅंक यू शंकर अपना पहला वादा पूरा करने के लिए…
शंकर ने प्रश्नवचक निगाहों से उसकी तरफ देखा, तो वो बोली – मे तुम्हारे बच्चे की माँ बनने वाली हूँ,
भाभी के बाद मुझे अपना प्यार देकर तुमने दो ज़िंदगियों को बर्बाद होने से बचा लिया, मे तुम्हारा ये अहसान कभी नही उतार पाउन्गि मेरे प्यारे…
कूपे के उस भाग में उन दोनो के अलावा और कोई भी नही था, सो बिंदास शंकर ने उसे उठाकर अपनी गोद में बिठा लिया, और उसके होंठों को चूमते हुए बोला –
अहसान चुकवाने के लिए नही किए जाते मेरी जान, दिल की आवाज़ सुनकर किए गये फ़ैसले निस्वार्थ होते हैं, मेने तुम्हारे उपर कोई अहसान नही किया है, तुम इसकी हक़दार थी…!
किसी का हक़ मारने वाला मे कॉन होता हूँ.., फिर तुम तो मेरे बचपन की यादों की अमिट कहानी हो जिसे मे कभी भुला नही सकता…!
सुप्रिया – सच ! क्या तुम भी मुझे चाहते थे बचपन में…?
शंकर – पता नही वो क्या था ? चाहत थी या प्यार, लेकिन जबसे मे थोड़ा बहुत संबंधों को समझने लगा, अपनी माँ और बेहन के अलावा कोई मुझे अपना सा लगता था तो वो तुम थी…!
फिर वो अपनापन बढ़ता गया, और मुझे तुम्हें हर हाल में देखते रहने की लालसा होने लगी, जब तुम शादी होकर विदा हुई तो मे बहुत उदास हो गया,
मुझे लगा, जैसे मेरे अंदर से कोई चीज़ मुझसे दूर चली गयी हो, मेरी ये हालत बहुत दिनो तक रही, जिसे शायद मेरी माँ ने समझ लिया था,
फिर समय के साथ साथ यादें धूमिल होती गयी…!
लेकिन जैसे ही उस दिन तुम हवेली में आईं, ना जाने क्यों मेरे दिल की धड़कनें बढ़ गयी, चोर निगाहों से मेने तुम्हें देखने की कोशिश की,
जैसे ही तुमसे नज़र मिली, मुझे ऐसा लगा कि मेरा दिल उछल कर मेरे हाथ में आ गया हो…, तुम्हारी मुस्कान देख कर मुझे बहुत सकुन मिला…!
सुप्रिया किसी पत्थर की मूरत बनी शंकर की बातों में खो गयी थी, उसकी बात ख़तम होते ही, वो उसके बदन से लिपट कर सुबकने लगी..,
ये उम्र, समाज, उन्च-नीच के बंधन क्यों होते हैं शंकर…? अब हम कभी जुदा नही होंगे, मे तुम्हें अब वापस नही आने दूँगी,
अपने घर से ढेर सारा पैसा लेकर हम कहीं दूर चले जाएगे, जहाँ हम तीनों के अलावा और कोई हमें रोकने – टोकने वाला ना हो…!
शंकर ने उसकी ठोडी के नीचे हाथ लगाकर उसके चेहरे को उपर किया, और उसकी आँखों में झाँकते हुए बोला –
तुम्हारा प्यार इतना स्वार्थी कैसे हो सकता है मेरी जान..? जानती हो उसके बाद क्या होगा…?
तुम्हारा पति ज़िल्लत की वजह से मौत को अपने गले लगा लेगा, मलिक मेरे परिवार को मिट्टी में मिला देंगे…!
तो फिर मे क्या करूँ मेरे राजा.., मे अब तुम्हारे बिना नही रह पाउन्गि, तुम्हारी जुदाई नही सह पाउन्गि मे…!
शंकर – मेने तुम्हें वादा किया है, जब भी मेरी ज़रूरत पड़े, हाज़िर हो जाउन्गा..., अब अपनों की भलाई के लिए इतना बलिदान तो करना ही पड़ेगा जान..!
ओह्ह्ह…शंकर..! तुम सबके बारे में कितना सोचते हो, ये कहकर वो उसके होंठों को चूसने लगी, शंकर भी उसका साथ देने लगा…!
दोनो के शरीर गरम होने लगे, लेकिन इससे ज़्यादा लोकल ट्रेन के कूपे में कुछ नही हो सकता था…!
कहते हैं, आदमी की अच्छाई या बुराई, हमेशा उसके चार कदम आगे चलती है,
सुप्रिया की ससुराल में उनके पहुँचने से पहले ही ये बात पहुँच गयी कि कैसे हवेली के एक नौकर ने प्रिया की जान एक सांड़ से अकेले टक्कर लेकर बचाई…!
जब प्रिया को पता चला कि आज शंकर उसकी छोटी बेहन को साथ लेकर आरहा है, तो वो उसके पूरे परिवार के साथ उसके घर पहुँच गयी…!
सुप्रिया की ससुराल में दोनो परिवारों ने शंकर का भव्य स्वागत किया.., वो बेचारा गाओं का नादान छोरा,
जो आज भी एक खड़ी की कमीज़ और ढीले-ढाले से पॅंट में, गले में लाल रंग की स्वाफी (कॉटन तौलिया) डाले उसके घर की भव्यता देख कर भौचक्का रह गया…!
ये तो उसके घर के बाहर के लॉन और उसकी पोर्च/ पार्किंग ही थी, जहाँ उसका फूल मालाओं से स्वागत किया जा रहा था,
प्रिया और उसके पति ने खुद आगे आकर उसको माला पहनकर स्वागत किया…!
फिर जैसे ही उसने उसके घर के अंदर कदम रखा, वो एक विशालकाय हॉल की भव्यता को देख कर पलकें झपकाना ही भूल गया,
चारों ओर घूम-घूम कर उसने उस हॉल का निरीक्षण किया, जिसके ठीक सामने ही किसी बहुत चौड़े रोड के बराबर की सीडीयाँ कुछ उपर तक जाती हुई, उसके बाद वो दो अलग-अलग दिशाओं में चली गयी…!
सीडीयों के दोनो तरफ बहुत ही सुंदर तरीक़े की सजावट वाली रेलिंग.., हॉल की छत तो मानो आसमान छू रही थी, जिसमें बीचो-बीच एक बहुत बड़ा फ़ानूस लटका हुआ, वो उसका नाम भी नही जानता होगा शायद…!
हॉल की भव्यता में खोया हुआ शंकर तब चोंका जब प्रिया ने उसके कंधे पर हाथ रखा,
प्रिया – क्या देख रहे हो शंकर…? चलो उस सोफे पर बैठो…!
वो उसकी बात समझा ही नही कि सोफा क्या होता है, जब वो उसका हाथ पकड़ कर उसे हॉल के बीचो- बीच एक गद्दी दार सोफे को देखा जिसे देख कर वो प्रिया की शकल देखने लगा…
प्रिया ने उसका हाथ पकड़ कर उसे सोफे पर बिठाया, उसे लगा मानो वो किसी जन्नत में आ गया हो, उसका पूरा पिच्छवाड़ा उस मुलायम सोफे की गद्दी में धँस गया…!
अपने दोनो तरफ हाथ रखकर वो उसे दबा-दबाकर देखने लगा, वाकी सभी लोग उसे देख कर मंद मंद मुस्करा रहे थे…
प्रिया भी उसके बाजू में बैठ गयी, तो उसने पुछा, आपका भी घर ऐसा ही है दीदी..?
प्रिया ने अपनी आँखों को छोटा करते हुए मुस्कुरा कर कहा – हां, बस थोडा सा इससे बड़ा है..!
शंकर चोन्क्ते हुए बोला – क्या..? इससे भी बड़ा…? उसने ये बात इतनी ज़ोर्से कही थी कि वहाँ पर मौजूद हर शख्स सुनकर हँसने लगा…!
खैर इतने बड़े घरानों में अपना इस तरह का स्वागत देख कर शंकर अपने अंदर गर्व महसूस कर रहा था…!
आज उसे अपनी माँ का वो त्याग और बलिदान याद आ रहा था, जो दिन-रात काम करके भी वो उसका ख़याल रखती थी, उसे इतना मजबूत बनाया था उसने,
जिसकी वजह से ही वो उस सांड़ से मुक़ाबला कर पाया था, और आज यहाँ इस घर में इतनी इज़्ज़त पा रहा था…!
फिर उसने सबसे उसका परिचय कराया, सुप्रिया की सास, ससुर उससे मिलकर बड़े खुश हुए, उसका पति श्याम, शक्ल से ही गान्डु टाइप, चिकना लंबे बाल, शर्मिला सा,
वहीं प्रिया का पति विवेक, शानदार व्यक्तित्व, लंबा-चौड़ा, चेहरे से ही एक बहुत बड़े बिज़्नेस मॅन जैसा रुआब.., उसके सास-ससुर और उसका पति शंकर से बहुत प्रभावित दिख रहे थे…
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