RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
शंकर उसकी एक चुचि को चूसने में व्यस्त था, जब उसने सुषमा के ये शब्द सुने, तो उसे मुँह से निकालकर उसकी घुंडी को उंगली से सहलाते हुए बोला –
क्यों भाभी मे क्यों..? मालिक हैं, आप हैं, फिर मे तो उपरी देखभाल कर ही रहा हूँ ना…!
तुम बुद्धू के बुद्धू ही रहोगे, चलो अब मुझे एक बाद जमकर चोद दो, फिर बताती हूँ क्या करना है, ये कहकर सुषमा सीधी लेट गयी,
और शंकर ने उसकी टाँगें चौड़ी करके अपना मूसल उसकी रस से सराबोर चूत में डाल दिया…!
पूरा लंड अंदर जाते ही, उसकी चूत की पंखुड़ियों ने उसके उपर पकड़ बना ली, शंकर को लगा जैसे वो उसके लंड को किस कर रही हों…, मज़े से उसकी आहह निकल गयी…
आअहह….सस्सिईईई…भाभी, ये क्या है..? आज आपकी चूत ऐसे क्यों कर रही है, जैसे मेरे लंड को चूम रही हो…!
सुषमा ने अपने पैरों की केँची से उसे जकड़ते हुए कहा – हां मुझे भी ऐसा लग रहा है.., सच में कुछ अलग ही मज़ा है, हैं ना…, कुछ देर यौंही रहो.. बड़ा मज़ा आरहा है…
फिर वो दोनो एक दूसरे से किस करने में जुट गये, शंकर उसकी चुचियों को भी मसल रहा था, जिनमें अब पहले से ज़्यादा गुदाजपन आ गया था…!
कुछ देर रुककर उसने अपनी कमर चलाना शुरू किया, ज़्यादा तगड़े धक्के लगाने को सुषमा ने उसे मना किया था,
कुछ देर बाद उसने करवट से लिटा दिया, और खुद ने पीछे से उसकी चूत में लंड डालकर चोदने लगा…
जब उसकी मोटी मोटी, कसरती जांघें सुषमा की गद्देदार गान्ड से टकराती, तो अजीब किस्म की आवाज़ आने लगती..,
आधे घंटे की दमदार लेकिन प्यार भरी चुदाई के बाद दोनो की अपना-अपना पानी छोड़कर कर शांत पड़ गये.., सुषमा एक बार फिर पलटकर उसके दामन में समा गयी…!
उसे देखकर लगता था, जैसे वो उसीके लिए बनी हो, शंकर को वो बेइंतहाँ मुँबबत करने लगी थी, वो उसे शरीर की पूर्ति से उपर देखने लगी थी…!
उसने मन ही मन कुछ फ़ैसला ले लिया था, उसी के चलते उसने शंकर को आगे पढ़ने के लिए कहा, जिससे वो आगे चलकर अपने कारोबार की चाबी उसके हाथ में दे सके…!
उसने उसके होंठों पर एक प्यारा सा चुंबन किया, और उसके बदन को सहलाते हुए बोली – तुम्हारा आगे पढ़ना ज़रूरी हो गया है, वैसे भी तुम तो पढ़ना ही चाहते थे ना…!
शंकर – लेकिन भाभी, मालिक नही चाहते की मे आगे पढ़ुँ…!
सुषमा – वो तुम्हें यहाँ से बाहर भेजने के खिलाफ थे, यहीं रहकर अपने लोकल कॉलेज से जो भी डिग्री मिलती है ले लो.., वाकी मे पिताजी से बात कर लूँगी..
शंकर – लेकिन अब तो समय निकल गया अड्मिशन का…!
सुषमा – कोई समय नही निकला है, तुम कल ही जाओ, मे एक लेटर दे दूँगी प्रिन्सिपल के नाम, तुम्हारा अड्मिशन हो जाएगा…!
शंकर उसकी बात सुनकर बहुत खुश हुआ, उसने उसे ज़ोर्से अपने शरीर के साथ चिपका लिया…!
सुषमा को लगा, वो उसे पिचका ही देगा सो फ़ौरन बोली – ज़ोर्से नही मेरे राजा.., मेरी दम निकालोगे क्या…!
शंकर ने झट से उसे अपनी पकड़ से आज़ाद किया और बोला – ऊहह…सॉरी भाभी, मे कुछ ज़्यादा ही खुश हो गया, फिर उसके होंठों को चूमते हुए बोला – थॅंक यू, आपने मेरी पढ़ने की इच्छा पूरी करदी…!
सुषमा – कोरी थॅंक्स से काम नही चलेगा राजाजी, अपनी जान को खुश करो, ये कहकर उसने उसके लंड को अपने मुँह में भर लिया और उसे लॉलीपोप की तरह चूसने लगी…!
शंकर ने भी उसे अपने उपर खींचकर उसकी चूत को अपने मुँह पर रखवाया, और वो दोनो एक दूसरे के अंगों को चूसने लगे…!
दोनो ने एक दूसरे का रसस्वादन करने के बाद, सुषमा उसके लंड पर बैठकर कूदने लगी…,
उसने जी भरकर एक महीने की कसर निकाली, और फिर हान्फ्ते हुए वो दोनो एक दूसरे की बाहों में सिमट गये..
वो किसी मासूम बच्ची की तरह उसके बलिष्ठ शरीर पर पड़ी सकुन के पलों में डूब गयी,
कुछ देर रुक कर शंकर ने उसके बदन को अपने उपर से हटाया, वो नींद में जा चुकी थी, सो वो चुपचाप उसके पास से उठा और अपने घर आकर सो गया…!
अगले दिन दोपहर के समय, जब ज़्यादातर लोग अपने घरों में थे, लाजो अपनी चूत की परेशानी दूर करने निकल पड़ी,
हल्का सा घूँघट निकाले वो सीधी भोला के घेर में जा पहुँची…
भोला इस समय खा-पीकर भूसे वाले कोठे में चैन की नींद ले रहा था..,
लाजो ने चुपके से कोठे का पुराना सा दरवाजा अंदर से बंद किया, सांकॅल चढ़ाकर वो उसके नज़दीक पहुँची और झाटोले जैसी चारपाई पर जाकर उसके बगल में बैठ गयी,
इस समय भी उसके बदन पर मात्र एक लूँगी ही थी, जो आगे से बँधी थी, बस उसके दोनो पल्लों को हटाना था और कोई भी उसके सोए हुए नाग देवता के दर्शन प्राप्त कर सकता था…!
कुछ देर वो दम साधे उसे देखती रही, भोला मस्त नींद में डूबा हुआ था, ना कोई चिंता, ना कोई फिकर बस पेट भर खाना मिल गया तो नींद तो आनी ही थी…!
कच्चा मिट्टी का बना हुआ कोठा, बाहर की इतनी गर्मी के बबजूद भी अंदर ठंडा था….
कुछ देर अपना साहस बटोरकर एक लंबी साँस खींची और उसने चुपके से उसकी लूँगी के पाट अलग-अलग कर दिए…!
भोला का सोया हुआ नाग इस समय भी किसी दामुंहे साँप जैसा टाँगों के बीच पड़ा हुआ था, जिसका आगे का मुँह थोड़ा सा खुला था, जिसमें से उसके मूतने वाली धारी दिख रही थी…!
खेली खाई लाजो ने सोए हुए नाग को देख कर ही ये अंदाज़ा लगा लिया कि ये पूरा खड़ा होने के बाद किस रूप में होगा, ये कल्पना करते हुए उसका हाथ उसके नाग के फन पर चला गया…!
वो उसे हौले-हौले से सहलाने लगी, हाथ की गर्मी पाकर ठंडा पड़ा भोला का नाग धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाने लगा…!
लाजो ने उसे अपने हाथ में लेकर उसके पेलरों से उसे उपर उठा लिया, और दूसरे हाथ से उसे सहलाते हुए वो उसके बढ़ते आकर को बड़ी तन्मयता से निहारने लगी…!
अभी वो आधा ही खड़ा हो पाया था उसी से उसका आकर इतना बड़ा हो गया कि उसके आगे अपने ससुर का लंड उसे छोटा लगने लगा…!
ये देखकर उसकी आँखों की चमक बढ़ गयी, वो सोचने लगी कि पूरा खड़ा होने के बाद तो ये उसकी चूत की गहरियों में जाकर भी पानी निकल सकता है…!
इसी कल्पना में खोई लाजो को पता भी नही चला कब उसने उसे अपने मुँह में ले लिया और उसे मुँह में लेकर अंदर बाहर करने लगी…!
अपने लंड पर गीलापन महसूस करके भोला की नींद खुल गयी, उसने अपना सिर उठाकर देखा, लेकिन लाजो का सिर नीचे होने के कारण वो उसे पहचान नही पाया..!
अभी वो हाथ बढ़ाकर उसे अपने लंड से अलग करने ही वाला था, कि तभी लाजो ने उसे अपने मुँह से बाहर निकाला, कारण था भोला के नाग का पुर जोश में आजाना,
अब वो अपना फन फैलाए पूरी मस्ती में आ चुका था….
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