RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
अब वो रंगीली को फिर से वही पहले वाला प्यार देने लगे थे, रंगीली को देखते ही उन्होने उसके हाथ से नाश्ता लेकर अपनी गद्दी के एक किनारे रखा और उसे गोद में उठाकर गद्दी पर ले आए..,
अरे..अरे.., लाला जी क्या कर रहे हो..? सुबह ही सुबह ना राम का नाम ना कुछ.., लगता है आजकल छोटी बहू ने आना कम दिया है..?
लाला जी – अरे छोड़ो उसे, वैसे भी मे उससे परेशान हो गया हूँ, बहुत जान खाने लगी थी.., तुम तो जानती ही हो, तुम्हारे कहने पर मेने उसके साथ संबंध बनाए थे..,
मुझे तुम्हारे साथ जो मज़ा आता है, वो किसी और के साथ नही.., ये सुनकर रंगीली मन ही मन खुश हो उठी, चलो कम से कम अभी भी वो लाला जी की पहली पसंद है..!
रंगीली अपने आप पर इतराते हुए इठलाकर बोली – ऐसी क्या खास बात हैं मुझमें, जो एक भरपूर जवान बहू के आगे आप मुझे तबज्जो दे रहे हैं..,
लाला जी ने रंगीली के लज़्जत भरे रसीले होंठों को चूमकर कहा – ये हम मात्र तुम्हें खुश करने की वजह से नही कह रहे मेरी जान, तुम सचमुच हमारी पहली पसंद हो…!
लेकिन अब ये मत पुछ्ना कि लाजो में क्या कमी है, क्योंकि हम बता नही पाएँगे, तुम तुम हो और वो वो है..,
अबतक रंगीली की गदराई हुई, मुलायम गान्ड की गर्मी पाकर लाला जी का लॉडा अपना आकार ले चुका था, उसे अपनी धोती से बाहर निकाल कर रंगीली के हाथ में पकड़कर बोले…
इसे तुम्हारी तबज्ज़ो की ज़रूरत है मेरी जान, कुछ करदो इसका भी..,
रंगीली ने उनके गरम लौडे को मुट्ठी में कस कर उनकी मूठ मारने लगी, लाला जी सिसकते हुए बोले…
सस्सिईई…आअहह…रानी, इसे ज़रा मुँह में तो लो.., उनकी बात मानकर उसने उसे अपने होंठों में दबा लिया..,
थोड़ी देर लंड चुस्वा कर लाला ने रंगीली को गद्दी पर औंधी कर लिया, उसकी सारी को कमर तक चढ़कर अपना लंड उसकी रसीली चूत में डाल दिया..,
लंबे-लंबे धक्के मारकर वो उसकी ओखली को कूटने का भरसक प्रयास करने लगे, लेकिन अपने बेटे के लंड के आगे अब उसे लाला के लंड में पहले जैसा मज़ा नही आता था..,
फिर भी वो सिसकियाँ भरते हुए अपनी गान्ड को लाला जी के लंड पर पटकने लगी.., आअहह…पेलो राजा जी, सस्सिईई…उउउफ़फ्फ़ आज भी बहुत मज़ा आता है आपसे चुद्वाने में..,
हहुऊन्ण…ले..मेरी रानी.., ले..पीली मेरा पानी…आअहह….हम तो गये..रीि..,
रंगीली ने भी कस कर अपनी गान्ड दो-तीन बार लाला के लंड पर पटकी, और फिर उसे उसके उपर दबाकर वो भी झड़ने लगी…!
कुछ देर बाद जब अलग होकर लाला गुसलखाने में जाकर फ्रेश हुए और नाश्ता करने लगे..,
रंगीली ने पंखा झलते हुए बात चलाई – छोटी बहू की कोई उम्मीद है लाला जी..?
लाला नाश्ता करते हुए बोले – अब क्या उम्मीद होगी, इतने दिन तो होगये, हमें लगता है, अब हमारे वीर्य में वो बात नही रही.., वरना तुम तो दो महीने में ही उम्मीद से हो गयी थी..,
रंगीली – तो अब आपने क्या सोचा है उसके बारे में..?
लाला जी – हमारे हाथ में है ही क्या..? ईश्वर को मंजूर होगा तो कल्लू के ही किए कुछ हो पाएगा.., अब इसलिए बहू ने भी हमारे पास आना कम कर दिया है..,
रंगीली अपने मन में बोली – अब उसे आपकी लुल्ली से कुछ नही होता लाला जी, अब तो वो पूरा अजगर ले रही है आजकल…!
उसे चुप रहते देख लाला बोले – अब तुम क्या सोचने लगी..?
रंगीली – जी कुछ नही, बस सोच रही थी, शहर में बहू और बच्चे क्या कर रहे होंगे..?
लाला जी – हमारी बेटियाँ बहुत समझदार हैं, संबंधी भी भेद नही मानते, तुम चिंता मत करो, वो लोग मज़े से होंगे..!
रंगीली सोच रही थी, कि लाजो वाली बात लाला को बताए या नही, फिर खुद ही फ़ैसला किया कि इनको बताने का कोई फ़ायदा नही होगा,
वो छिनाल सॉफ मुकर जाएगी, कुछ ज़्यादा बात बढ़ गयी तो खम्खा लाला जी को ही बदनाम ना कर्दे, ये सोच कर वो फिलहाल उस बात पर चुप्पी लगा गयी,
गद्दी से निकलकर रंगीली सीधी रसोईघर में गयी, और सेठानी के लिए नाश्ता निकालकर वो उसके कमरे में पहुँची..,
हालाँकि सेठानी उसे एक आँख नही सुहाती थी, फिर भी अपना मतलब हल करने की गाराज़ से वो ना केवल उसके लिए नाश्ता लेकर गयी अपितु वहाँ जाकर चापलूसी भरे अंदाज में कहा –
मालकिन लीजिए नाश्ता कर लीजिए, मालिक ने कर लिया है, आप ही बची हैं..,
सेठानी भृकुटी टेडी करके बोली – क्यों री मालिक की चमची.., आज इधर का रास्ता कैसे भूल गयी.., और क्या मर गयी जो तू नाश्ता लेकर आई है..?
रंगीली ने उसकी बात का बुरा मानने की वजाय अपने मुँह में मिठास घोलते हुए कहा – ऐसी बात क्यों कह रही हैं मालकिन, मे तो आप दोनो की सेवा में ही लगी रहती हूँ..,
अब थोड़ा बड़ी बहू का काम नही है तो सोचा मे अपने हाथ से ही आपको नाश्ता करा दूं.., देखिए मे आपके लिए गरम गरम आलू के परान्ठे दही के साथ लाई हूँ, आपको तो ये बेहद पसंद हैं ना..,
परान्ठो का नाम सुनकर सेठानी की तबीयत ग्लॅड हो गयी…, आसान पर बैठते हुए बोली – ला लेआा, तू सही कहती है, ये तो मेरी पसंद के ही हैं..,
सेठानी नाश्ता करने लगी, और रंगीली पंखे से उनकी हवा झलने लगी.., रेंगीली की तरफ से ऐसा सेवा भाव देखकर सेठानी खुश हो गयी…!
उसको खुशी देखकर रंगीली उससे बातें करने लगी…!
मालकिन आप बुरा न मानें तो एक बात पुछु..?
सेठानी नाश्ता करते हुए उसकी तरफ मुस्करा कर देखते हुए बोली – पुच्छ क्या पुच्छना चाहती है..?
छोटी बहू को कल रात आपने कहीं भेजा था..?
सेठानी ने चोन्क्ते हुए उसकी तरफ देखा और थोड़ा असमंजस जैसी स्थिति में आकर बोली – नही तो मेने तो उसे कहीं जाने को नही भेजा था..? कहाँ गयी थी वो और कितने बजे..?
रंगीली – मे ज़रा मुतने के लिए उठी थी, यही कोई 10-10:30 का समय था, देखा तो छोटी बहू हवेली से बाहर बस्ती की तरफ जा रही थी.., मेने सोचा शायद आपने कोई टोना-टोटका बताया हो करने को..?
सेठानी थोड़ा तल्ख़ लहजे में बोली – अरी करम जैल, मे क्यों कोई टोटका बताने लगी.., मेने तो कभी ऐसे काम किए ही नही तो उसको क्या बताउन्गी..?
जा तू उसे बुलाकर ला यहाँ, पुछु तो सही इतनी रात को कहाँ गयी थी हरम्जादि.., कहीं हमारी नाक ना कटवादे…!
रंगीली – नही मालकिन ! अगर वो आपको पुछ कर नही गयी थी, तो आप खुद सोचिए क्या वो आपसे सच बोलेंगी..?
खम्खा मुझे ही झूठा ठहराएगी.., और आप भी उनकी बात का विश्वास करके मुझे झूठा मान लेंगी…!
सेठानी – तो फिर कैसे साबित होगा कि तू सच बोल रही है…?
रंगीली – अब मे आपको क्या बताऊ, आप खुद ही इतने समझ दार हैं.., वैसे मेरे ख्याल से अगर वो चुप-चाप कोई टोना-टोटका कर रही होंगी, तो आगे भी जाएँगी..,
फिर आप जानो आपका काम.. , आपकी नौकर होने के नाते मेने आपको बताना अपना फ़र्ज़ समझा.., इतना कहकर वो उसके झूठे बर्तन उठाकर रसोईघर की तरफ चल दी…!
रंगीली ने सेठानी के दिमाग़ में शक़ का कीड़ा बो दिया था, उसका कूद मगज भी सोचने पे मजबूर हो गया कि आख़िर इतनी रात को लाजो बहू कहाँ और क्यों गयी होगी..?
कहीं ये हरम्जादि रंगीली झूठ तो नही बोल रही, जाकर पूछ ही लेती हूँ बहू से, क्या पता ये नौकरानी बातें बना रही हो उसे बदनाम करने को…!
लेकिन फिर उसे रंगीली की बात याद आ गयी, लाजो है तो बनफर, सही सही तो बताने से रही अगर बिना बताए कुछ कर रही है तो..,
तो फिर मे कैसा पता लगाऊ सच्चाई क्या है…?
इधर हेवी नाश्ता करने की वजह से सेठानी की आँखें भी भारी होने लगी थी, लेकिन दिमाग़ में यही उधेड़-बुन चल रही थी…, वो चाहकर भी सो नही पा रही थी…!
इसी उधेड़-बुन में उसे समय का भी पता नही चला और दोपहर हो गयी.., कुछ देर बाद मुन्नी उसके लिए दोपहर का खाना ले आई..,
सेठानी को अभी भूख नही थी, सो उसने खाने को वहीं अपने कमरे में रखवा लिया और मुन्नी को जाने के लिए बोल दिया…!
|