RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठानी के उपर एक के बाद एक झटके लग रहे थे.., लेकिन ये भी बात सही थी, कि उनको अब बुरा लगने की बजाय, देखने में मज़ा आने लगा था..,
सामने ऐसा गरमा-गरम सीन और अपनी बहू के मुँह से ऐसी कामुक बातें सुनकर सेठानी की अधेड़ चूत, जिसे लाला जी ने मुद्दत से देखा तक नही था, उसमें भूचाल आने लगा..,
वो खड़े-खड़े रस बहाने पर मजबूर हो गयी.., सेठानी की आँखों में भी वासना के कीड़े तैरने लगे, उन्होने अपनी साड़ी उपर की और चूत में दो उंगलियाँ सरका दी..,
वर्सों से उजाड़ पड़ी सेठानी की बगिया को मानो सावन की फ़ुआरों ने फिर से हरा भरा कर दिया हो.., गीली चूत में सर्र्र्र्र्र्ररर…से दो उंगलियाँ चली गयी..,
वर्सों के बाद चूत में उंगलियाँ डालते वक़्त सेठानी ने मारे गुदगुदी के अपनी टाँगें भींचकर उंगलियों को चूत के अंदर ही लॉक कर दिया…!
कुछ देर बाद जब उन्होने आखें खोलकर दोबारा अंदर झाँका.., तभी भोला ने लाजो को कुतिया बनाकर अपना मूसल जैसा कड़क लंड पीछे से उसकी रसीली चूत में पेल दिया..,
लाजो अपना थोबड़ा उपर करके मादक कराह लेते हुए पूरा लंड अपनी चूत में ले गयी.., ये देख कर सेठानी की साँसें ही अटक गयी.., वो समझ चुकी थी कि उसकी बहू कितनी बड़ी चुदैल है..,
लेकिन साथ ही उन्होने अपनी टाँगें चौड़ी करके अपनी तीन-तीन उंगली एक साथ अपनी चूत में पेल दी.., थोड़ा दर्द तो हुआ, लेकिन उससे ज़्यादा उन्हें इसमें मज़ा आया..,
उन्हें ये बात समझते देर नही लगी कि चुदाई का असली मज़ा मोटे और तगड़े लंड से ही आता है.., अंदर चल रही चुदाई की लय पर वो भी अपनी उंगलियों को अंदर बाहर करने लगी..,
उन्हें वो क्षण याद आने लगे, जब लाला जी उसे घोड़ी बनाकर चोदते थे, लेकिन यहाँ भोला का मूसल तो उनके लंड से सवाया दिख रहा था…,
अंदर लाजो और भोला अपनी दमदार चुदाई में लिप्त थे तो वहीं दरवाजे के ठीक बाहर सेठानी अपनी चूत में वर्सों बाद लगी आग को शांत करने का प्रयास करते हुए अपनी उंगलियों को अंदर बाहर कर रही थी..,
आख़िर कुछ ही देर में उनकी वर्सों से बंद चूत का बाँध टूट ही गया, ढेर सारा खारा पानी इनकी चूत से बाहर आने लगा.., वो अपनी उंगलियों को चूत के अंदर चेन्प्कर झाड़ते हुए हाँफने लगी.., मानो मीलों की दौड़ लगाकर आई हों….!
अपने होश ठिकाने करते हुए जब उन्होने अंदर देखा, तभी भोला ने भी एक लंबी सी हुंकार भरते हुए लाजो की कमर को दबाकर अपने लंड का पानी उसकी चूत में भर दिया…!
ऐसी गरमा गरम धमाकेदार चुदाई का दृश्य देखकर सेठानी की वर्सों से सूखी हुई चूत भी हरी-भरी हो गयी थी, अपनी चूत का गीलापन लहंगे को जांघों के बीच दबाकर कम किया..,
कुछ देर वो असमंजस की स्थिति में वहीं दीवार के सहारे खड़ी रही.., फिर मन ही मन एक निर्णय लेकर वो हवेली की तरफ चल दी…!
उधर भोला के साथ हुई खाट कबड्डी के बाद लाजो कुछ देर तक उससे चिपक कर पड़ी रही, कुछ देर बाद उसने भोला को फिर से उकसाना शुरू किया..,
भोला ने उसकी नंगी मोटी चौड़ी चकली गान्ड पर एक जोरदार चाँटा मारते हुए कहा – साली तेरी चूत है या कुँआ.., कभी खाली ही नही होती..,
अब जा यहाँ से इतनी दोपहरी में अब और नही छोड़ पाउन्गा सोने दे मुझे, कुछ देर बाद अपने पशुओं को चराने भी जाना है..!
मन मसोस कर लाजो बिस्तर से खड़ी हुई, अपने कपड़े पहने और फिर भोला के नाग की प्रदक्षिणा (चूमकर) रात को आने का वादा करके वहाँ से चल दी…!
उधर भन्नाइ हुई सेठानी जब हवेली पहुँची.., वो सीधी लाजो के कमरे में पहुँची, और उसके सारे कपड़े लत्ते एक बकषे (सूटकेस) में डाले और निकालकर आँगन में बाहर रख दिया..!
जाते जाते उन्होने उसके कमरे को बाहर से एक मोटा सा ताला लगा दिया..!
जब लाजो घर पहुँची, अपने कमरे पर एक मोटा सा ताला लटका देखकर उसके होश उड़ गये.., पास ही एक बक्शा देखकर वो सारी स्थिति भाँप गयी…!
उसका पहला शक़ लाला जी पर ही गया.., लगता है ससुर जी को पता चल गया है, अब उनको मनाना पड़ेगा.., ये सोचकर वो उनको गद्दी की तरफ बढ़ गयी..!
अभी उसने कुछ कदम ही बढ़ाए थे कि तभी सेठानी की कड़क आवाज़ सुनाई दी..
उधर कहाँ जा रही है हरम्जादि कुलटा.., ये अपना बक्शा उठा और चलती बन इस घर से…,
लाजो ने पलटकर सेठानी की तरफ देखा, जो अपनी कमर पर दोनो हाथ रखे किसी मारखनी भेंस की तरह अपने नथुने फुलाए खड़ी थी…!
उन्हें देखते ही लाजो की गान्ड फट गयी.., वो समझ चुकी थी की उसकी पॉल-पट्टी ससुरजी के सामने नही इस हिटलार्नी सासू के सामने खुल चुकी है.., लेकिन कैसे..?
अपना सारा साहस बटोरकर उसने कहा – ये आप क्या कह रही हैं सासू जी..? ऐसा मेने क्या कर दिया जो आप मुझे घर से निकल जाने के लिए कह रही हैं..?
सेठानी गुस्से से लाल भभूका हो रही थी, फिर भी अपने गुस्से पर काबू रखते हुए बोली – क्या बता सकती है, इतनी भीषण गर्मी में इतनी दोपहर को तू कहाँ से आ रही है..?
लाजो उनके इस सवाल पर सकपका गयी.., हकलाते हुए बोली -म.मे.मईए…वो..मी..
सेठानी – अब ये बकरिया की तरह क्यों मिमिया रही है.., बता कहाँ गयी थी तू..? बोल जबाब दे…!
सेठानी की तेज आवाज़ सुनकर लाला जी अपनी गद्दी से बाहर आ गये.., ये तो अच्छा था कि इस समय सारे नौकर हवेली से बाहर अपने अपने घरों में आराम कर रहे थे वरना वहाँ ख़ासी भीड़ हो जाने वाली थी…!
लाला जी ने बाहर आकर देखा माजरा क्या है.., पहले तो वो कुछ समझ नही पाए.., फिर जब लाजो के कमरे पर ताला लटका देख और उसका संदूक बाहर रखा देख उन्हें झटका सा लगा…!
वो सेठानी की तरफ बढ़ते हुए बोले – क्या हुआ भगवान.., इस तरह बहू पर क्यों चिल्ला रही हो..? क्या किया है इसने..?
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