RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
सेठानी उसी गुस्से में लाला जी की तरफ देखते हुए बोली – तुम अभी चुप रहो जी.., अभी सब कुछ समझ में आ जाएगा…, फिर पलटकर लाजो से बोली –
हां बोल.. कहाँ से आ रही है तू इतनी गर्मी में…?
लाजो को काटो तो खून नही.., मानो उसे साँप सूंघ गया हो.., अब जबाब दे तो क्या..? लेकिन कुछ तो बोलना ही पड़ेगा.., सो हकलाते हुए बोली – जी..वो..मी…मे.. थोड़ा बाहर तक गयी थी…!
सेठानी किसी भाटीयारी की तरह हाथ नचाते हुए बोली – क्यों..? इतनी गर्मी में यहाँ कोन्से पार्क में घूमने गयी थी..? या तेरी उस छिनाल माँ के बाग़ीचे हैं जिनमें तफरीह करने गयी थी…?
लाला जी – ये तुम किस तरह की बात कर रही हो बहू से..?
सेठानी – तुम चुप रहो जी.., तुम नही जानते ये क्या क्या गुल खिला रही है…? हमारी नाक के नीचे ये हमारी इज़्ज़त को सरे बाज़ार नीलाम करके आ रही है…!
लाला जी – तुम जानती भी हो क्या कह रही हो..? ये इल्ज़ाम उस बेचारी पर किस बिना पर लगा रही हो..?
सेठानी – उउन्न्ह..बेचारी.., तो पुछो इस बेचारी से ये भोला के घेर में क्या करने गयी थी.., और ये पहली मर्तबा नही है.., ना जाने कब से ये उस आधे पागल आदमी से चुद रही है…!
लाजो को अपना भंडा फूटता देख उसकी टाँगें काँपने लगी, उसका खड़ा रहना मुश्किल होने लगा.., सो वो फुट-फूटकर रोते हुए वहीं ज़मीन पर बैठ गयी…!
लाला जी उसे सहारा देने की गर्ज से जैसे ही आगे बढ़े.., सेठानी गरज कर बोली – खबरदार जो तुमने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो, अब ये एक पल भी इस घर में नही रहेगी…!
लाजो ने हिम्मत करके रोते हुए कहा – ये सरासर झूठ है.., किसी ने मेरे उपर झूठा इल्ज़ाम लगाया है.., ये भोला कॉन है.., मे तो जानती तक नही..?
लाजो की बात सुनकर जहाँ लाला जी ने सेठानी को देखा.., वहीं सेठानी लपक कर लाजो के पास पहुँची और उसके बाल पकड़कर खड़ा करते हुए बोली –
मुझे झूठा ठहरा रही है साली कुतिया.., कुलटा.., किसी और ने नही.., मेने खुद अपनी आँखों से कुछ देर पहले तुझे उस पागल के मूसल जैसे लंड से चुद’ते हुए देखा है..,
कह दे मेरी आँखों को भी धोखा हुआ होगा.., वो तू नही कोई और होगी.., क्यों…!
सेठानी के मुँह से ये खुलासा होते ही जहाँ लाला जी का मुँह खुला का खुला रह गया.., वहीं लाजो ने हथियार डालते हुए सेठानी के पैर पकड़ लिए..,
रोते गिडगिडाते हुए बोली – मुझसे ग़लती हो गयी सासू जी.., मुझे माफ़ कर दीजिए..!
सेठानी – ये ग़लती नही.., तेरे जिस्म की आग है जो तुझे खींचकर हवेली के बाहर तक ले गयी.., एक आधे पागल तक को नही छोड़ा तूने तो और ना जाने कितने होंगे,
हमें तेरी जैसी बहू नही चाहिए.., अब जल्दी से अपना समान उठा और चलती बन यहाँ से वरना.. नौकरों से धक्के मार-मारकर निकलवाउंगी…!
मे नही चाहती कि ये बात किसी को पता चले.., इसलिए शांति से कह रही हूँ, तू अभी इसी वक़्त इस घर से चली जा…!
लाला जी किसी पत्थर की मूरत बने खड़े सिर्फ़ तमाशा ही देख रहे थे.., ऐसे मामले में उनका बोलना भी ठीक नही था.., इनमें से अगर किसी का भी पक्ष लेते हैं तो बात और बिगड़ सकती है..,
ये भी हो सकता है कि कहीं उनकी ही पोल ना खुल जाए, अतः उन्हें यहाँ से सरकने में ही अपनी भलाई दिखी…!
सेठ जी को वहाँ से जाते देख लाजो की रही सही आशा भी धूमिल होती लगी.., अब उसके पास अपना समान उठाने के अलावा और कोई चारा नज़र नही आया.., सो वो अपना संदूक उठाते हुए बोली –
ठीक है सासू जी.., मे तो यहाँ से चली जाती हूँ, लेकिन जाते जाते एक बात कहे जाती हूँ.., कि सारा दोष मेरा नही, दोष तुम्हारे उस नपुंश्क बेटे का है..,
अगर वो मेरी आग बुझा पाता तो मे आज बाहर नही जाती.., और एक बात..तुमने सही कहा.. कि और कितने होंगे.., तो उनमें से एक तुम्हारे प्यारे पातिदेव भी हैं, जो अभी अभी दम दबाकर यहाँ से सटक लिए…!
सेठानी मुँह फाडे उसके थोबडे को देखती रह गयी.., उसे अपने कानों पर विश्वास नही हुआ.., लेकिन फिर भी वो भभके हुए स्वर् में बोली – जा साली छिनाल अपनी करनी दूसरों पर तो मढ़ेगी ही…!
अपने ससुर पर झूठा आरोप माढते हुए लज़्ज़ा नही आई.., और रही बात मेरे बेटे की.., तो दूसरी के एक बेटी और अब दूसरा बेटा कैसे होने वाला है…!
लाजो – विस्वास ना हो तो अपने पति से पुच्छ लेना.., हां ये बात ज़रूर मेरी समझ में नही आ रही कि सुषमा कैसे गर्भवती हुई..,
खैर तुझे तेरा नपुंश्क बेटा मुबारक, अब मे भी उसके साथ नही रहना चाहती..!
ये कहकर लाजो अपना संदूक उठाकर हवेली से निकल गयी.., बिना ये सोचे समझे कि अब वो जाएगी कहाँ..? रहेगी कहाँ..? उसके पास तो इस समय फूटी कौड़ी भी नही थी..,
लेकिन इस समय उसके सोचने समझने की शक्ति बिल्कुल गायब थी.., बस रोष में आकर वो हवेली से निकल गयी…!
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