RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
लाला धरमदास अपनी गद्दी पर आकर बैठ तो गये, लेकिन उनके दिलो-दिमाग़ में इस समय भारी उथल-पुथल मची हुई थी..,
उन्हें ये तो पता था कि लाजो एक महा चुदक्कद औरत है, जब वो अपने साडे-साती लंड से उसे तृप्त नही कर पाते थे, तो भला कल्लू की नूनी उसका क्या कर पाती होगी..,
लेकिन उन्हें कहीं ना कहीं ये भी नागवार गुजरा था कि वो उनके घर की इज़्ज़त को ताक पे रखके भोला जैसे आधे पागल आदमी से चुद रही थी..,
अब अगर कहीं लाजो ने गुस्से में आकर उनका भंडा सबके सामने फोड़ दिया तो…?
सेठानी को तो वो कैसे भी करके संभाल लेंगे, लेकिन अगर उनके संबंध अगर लोगों के सामने उजागर हो गये तो…, सोच कर ही वो अंदर तक हिल उठे…!
वो अपनी इसी उधेड़-बुन में अपना सिर हाथों में लिए बैठे थे कि तभी उन्हें लाजो अपना संदूक लटकाए हवेली से बाहर जाती हुई दिखाई दी…!
उसकी चाल देखकर ही वो समझ गये कि ये गुस्से में निकली है, सेठानी ने जिस तरह से उसे जलील करके हवेली से निकाला है, ज़रूर कुछ ना कुछ वो भी खरी-खोटी सुनाकर ही गयी होगी…!
ये भी हो सकता है कि उसने सेठानी के सामने अपने रिस्ते को भी उजागर कर दिया हो.., जो कभी भी बॉम्ब की तरह सेठानी द्वारा उनके सिर पर फूटने वाला है…!
लेकिन तभी उनके दिमाग़ में आया, जब सेठानी ने लाजो को घर के अंदर तक नही घुसने दिया, तो इस समय इसके पास पैसे भी नही होंगे, इतनी भरी दोपहरी में ये बेचारी कहाँ भटकेगी..?
कहीं ना कहीं लाला के दिल ने अपने गुप्त रिस्ते की दुहाई देते हुए कहा – धरमदास तुझे इसकी मदद करनी चाहिए, वरना ये बेचारी कहाँ कहाँ भटकती फ़िरेगी..?
ये भी हो सकता है कि किसी ग़लत हाथों में पड़कर और ज़्यादा इसकी जिंदगी बर्बाद ना हो जाए.., ये विचार आते ही वो लपक कर उठे, फ़ौरन रंगीली के पास पहुँचे और उसे सारी वस्तुस्थिति से अवगत कराया…!
रंगीली को भी उनकी बात जायज़ लगी, फिर उन्होने उसे कुछ रकम दी और बोले – ये लो रंगीली, ये इतने पैसे हैं कि लाजो कहीं भी रहकर अपना गुज़ारा कर सकती है..,
इन्हें ले जाओ और उसे किसी ऐसी जगह पहुँचा दो जिससे वो किसी ग़लत रास्ते पर ना चली जाए और अपना जीवन बसर कर सके..,
क्योंकि अब शायद इस घर के दरवाजे उसके लिए हमेशा के लिए बंद ही समझो..,
सेठानी उसे अब कभी भी इस घर में नही रहने देगी.., और हां ! हो सके तो उसको समझा देना कि अपना मुँह हमेशा के लिए बंद ही रखे,
आगे भी अगर उसे किसी चीज़ की ज़रूरत होगी उसे हम पूरा करते रहेंगे…!
अब तुम जल्दी से जाओ वरना भटकती हुई वो कहीं इधर उधर ना निकल जाए…!
इतना समझाकर लाला जी अपनी गद्दी की तरफ बढ़ गये और रंगीली रकम के थैले को लेकर लाजो की खोज में जो इस समय गाओं के बस अड्डे की तरफ बढ़ी चली जा रही थी..!
तैश-तैश में वो निकल तो आई थी, लेकिन अब उसके दिमाग़ ने सोचना शुरू किया.., एक घने से पेड़ की छाँव में बैठकर वो सोचने लगी…!
इतनी बड़ी दुनिया में अब वो जाएगी कहाँ ? अपने माँ-बाप के घर जाए तो किस मुँह से और क्या कहेगी…?
हाथ में फूटी कौड़ी नही, करे तो क्या करे, पल भर में वो घर से बेघर हो चुकी थी.., उसके अंतर मन में एक तरह का अंधड़ सा मचा हुआ था…!
ज़िल्लत और हिकारत से भरी जिंदगी बिना पैसों के कहाँ और कैसे गुजारेगी..? एक बार उसके मन में आया कि लौट चले हवेली और कर्दे हंगामा खड़ा..,
कर्दे सेठ-सेठानी को समाज के सामने नंगा..., फिर कहीं से उसके मन के कोने में छुपी बैठी अच्छाई बोली – ये तू क्या करने जा रही है करम्जलि..,
तुझे तो फिर भी ज़िल्लत ही उठानी पड़ेगी.., अभी कम से कम लोगों को जो बातें पता नही हैं वो सबको पता लग जाएँगी, क्या मुँह लेकर समाज में रहेगी..!
तो फिर क्या करूँ..मे..? कहाँ जाउ..? उसका मॅन कुंठा से भर उठा..,
लानत है ऐसी जिंदगी पर.., इससे तो मर जाना अच्छा.., ये विचार करते ही वो गाओं के बाहर बने उस कुए की तरफ बढ़ चली जहाँ से लगभग आधा गाओं पानी लाता था..,
दोपहर होने के कारण चारों तरफ सन्नाटा पसरा हुआ था, गर्मी से बचने के लिए लोग अपने अपने घरों में छुपे बैठे थे…!
अंतर्मन में उठ रहे विचारों के अंधड़ में फाँसी लाजो के कदम कुए की तरफ बढ़े चले जा रहे थे.., संदूक को वो वहीं भूल चुकी थी..,
कुए के पास पहुँच कर एक बार वो ठिठकी.., मन में कहीं ना कहीं डर ने आ घेरा.., नही तू ये ग़लत कर रही है.., सोच तेरे मरने से भी क्या होगा..? बातें तो फिर भी उठेंगी…!
फिर दूसरे ही पल.., उठी हैं तो उठें.., मुझे अब कोई फरक नही पड़ता.., ऐसा दृढ़ निश्चय करके वो कुए की मुंडेर पर जा खड़ी हुई.., एक बार कुए के अंदर झाँका..,
किसी बड़ी सी तली के समान 60-70 फुट गहरे पानी की सतह उसे दिखाई दी.., कस कर आखें बंद करके उसने भगवान को याद किया और कुए में छलान्ग लगाने को आगे बढ़ी…!
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