RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घुसते ही अंदर का सीन देख कर उसको झटका सा लगा.., सकते जैसी हालत में उसके पैर गेट पर जम गये..,
फिर वो झटके से पलटकर वो वापस लौटने लगा…!
अंदर सलौनी ड्रेसिंग टेबल के सामने मात्र ब्रा और पैंटी में खड़ी थी…! बाहर जाने के लिए वो कपड़े चेंज कर रही थी..,
अभी-अभी वो बाथ रूम से ही निकली थी.., और अब शायद सुषमा अंदर थी…!
सुबह ही उसने अपने भाई के खड़े तंबू को देखा था, बात रूम में वो उस पल को याद करके उतेज़ित होने लगी थी.., नहाते समय उसका हाथ अनायास ही अपनी प्यारी सी कुँवारी मुनिया पर चला गया था…!
पिक्की पर हाथ लगते ही उसका पूरा बदन झंझणा उठा था.., बड़े हल्के हाथ से वो बहुत देर तक अपनी नाज़ुक उंगलियों से अपनी पतली पतली फांकों को सहला उठी थी..,
उन्हें सहलाते हुए ही उसने खुद ये फील किया कि उसकी मुनिया की पतली पतली फाँकें फूलने पिचकने लगी हैं.., अपनी कुँवारी चूत में उसे कंपन सा महसूस होने लगा…!
सलौनी का पूरा शरीर जुड़ी के मरीज की तरह काँपने लगा था, उसने अपनी उंगलियों का दबाब अपनी फांकों पर बढ़ा दिया.., अब वो उसे बजाय हल्के हल्के से छूने के, हाथ पर ज़ोर देकर मसलने लगी थी…!
तभी उसे अपनी उंगलियों पर कुछ नोकदार चीज़ का एहसास हुआ.., उसने नीचे झुक कर अपनी मुनिया को देखा, उसके उपरी सिरे पर दोनो फांकों के बीच एक चोंच जैसी तोड़ी सी बाहर निकली दिखाई दी…!
उसके दोनो तरफ फांकों पर दबाब डालते ही वो और ज़्यादा बाहर को उभर आई…!
अपना दूसरा हाथ ले जाकर उसने जैसे ही अपनी क्लिट (भज्नासे) को छुआ…, कामुकता से उसका पूरा शरीर झन-झना उठा, उसे ऐसा लगा जैसे कोई बिजली का नंगा तार उसने पकड़ लिया हो…!
वो अब अपनी एक उंगली से उसे मसलने लगी.., अप्रत्याशित रूप से उसकी फांकों के बीच गीलापन महसूस होने लगा.., उसे लगा जैसे उसका पेशाब छूटने वाला हो..,
गीलेपन वाली जगह पर हाथ ले जाते ही उसकी उंगलियाँ चिप-चिपाने लगी.., वो विश्मय के साथ उस चिप-चिपाहट को अपनी उंगलियों पर लेकर सूंघने लगी…!
उसमें से एक अजीब सी गंध लगी उसे.., एक-दो बार सूंघने से उसे वो गंध अच्छी लगने लगी.., जिसे सूंघ कर वो मदहोश होने लगी.., और स्वतः ही उसकी उंगली उस जगह पहुँच गयी जहाँ से वो चिप-चिपा रस निकल रहा था…!
सलौनी को अपनी उंगली किसी पुल-पुले गड्ढे में जाती हुई लगी.., उंगली का दबाब डालते ही उसके मुँह से एक बहुत ही मादक सिसकी निकल पड़ी.., उसे इतना मज़ा पहले कभी नही आया था…!
अभी वो अपनी उंगली पर दबाब बढ़कर उसे और अंदर करने की सोच ही रही थी कि तभी कमरे से सुषमा की आवाज़ सुनकर चोंक पड़ी.., उसकी वासना का उफान धडाम से गिरने लगा…!
अरे सलौनी…, क्या कर रही है..? अभी तक नहा नही पाई.., जल्दी आजा.., वरना देर होगी…!
सुषमा की आवाज़ सुनकर उसने जैसे-तैसे अपनी बेकाबू साँसों पर काबू करने की कोशिश करते हुए कहा – बस भाभी दो मिनिट में आई…!
उसने अपना ध्यान उन बातों से हटाकर जल्दी जल्दी से नहाना किया और 5 मिनिट में ही अपनी ब्रा और पैंटी पहन कर उपर से तौलिया लपेट कर बाहर आ गई…!
सुषमा के बाथरूम में घुसते ही उसने अपनी तौलिया अपने बदन से निकाल कर बेड पर फेंकी और आदमकद आईने के सामने खड़ी होकर अपने बदन को निहारने लगी..!
आज पहली बार उसे अपने बदन की एहमियत का एहसास हुआ था.., अपनी माँ को भाई के साथ चुदाई करते हुए वो देख ही चुकी थी.., लेकिन इन कामों में इतना मज़ा मिलता है.., उसे आज कुछ-कुछ एहसास होने लगा था…!
वो अपनी इन्ही सोचों में डूबी, आईने में अपने आप को निहार ही रही थी कि तभी वहाँ शंकर ने प्रवेश किया.., अपनी बेहन को इस हालत में देख कर वो ठगा सा खड़ा रह गया…!
कुछ देर तक वो उसके कमसिन बदन को अपनी मीठी नज़रों से देखता रहा.., छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अमरूद उसे मंत्रमुग्ध कर रहे थे..,
सलौनी अपने भाई को दरवाजे पर खड़ा मिरर में देख चुकी थी.., उसे देखकर वो अपनी ब्रा के लाश ठीक करने के बहाने अपने अमरुदो की झलक उसे दिखाने की कोशिश करने लगी…!
अब वो शायद शंकर को दिखे या नही.., लेकिन पीछे से उसकी पतली सी पीठ, उसके बाद उसकी निहायत पतली कमर, जो शायद अभी 20 या 22 की हुई थी.., जिसके नीचे छोटी सी पनटी में क़ैद उसके गोल-गोल नितंब…!
मानो बच्चों के खेलने वाली दो बड़ी वाली गेंदें वहाँ रख दी हों…, सलौनी के इस कमसिन बदन को देख कर शंकर के बदन में भी उत्तेजना बढ़ने लगी…!
तभी उसके दिमाग़ में एक झटका सा लगा.., ये क्या देख रहा है कमीने, ये तेरी छोटी बेहन है.., और तू उसे देखकर उत्तेजित हो रहा है.., साले कुछ तो लिहाज कर.., इतनी ठरक अच्छी नही…!
ये विचार आते ही वापस जाने के लिए वो फ़ौरन पलट गया.., लेकिन इससे पहले की वो अपना कदम बाहर जाने के लिए बढ़ाता.., पीछे से उसे सलौनी की आवाज़ सुनाई दी…!
अरे भैया… कहाँ जा रहा है.., आना.. अंदर, बस अभी तैयार होती हूँ…!
शंकर ने बिना मुड़े ही कहा – तू तैयार होकर आजा बाहर.., में हॉल में ही हूँ.., और भाभी कहाँ हैं उनको भी बोल जल्दी तैयार हो जायें वरना देर हो जाएगी…!
सलौनी मिरर के सामने खड़े अपने बाल सही करते हुए बोली – भाभी बाथ रूम में हैं, तू बैठ यहाँ, और बता मुझे क्या पहन’ना चाहिए…!
शंकर ने बिना मुड़े ही कहा – तुझे जो पहन’ना हो वो पहन ले, मे हॉल में जा रहा हूँ, मे यहाँ नही रुक सकता..!
सलौनी – क्यों.., क्यों नही रुक सकता..?
शंकर – तू समझकर छुटकी.., तू कपड़े बदल रही है.., मे भला यहाँ बैठ कर क्या करूँगा..!
सलौनी – तो क्या आज से पहले मेने तेरे सामने कपड़े नही बदले.., जो आज नही बदल सकती…?
शंकर – पहले की बात अलग थी..,तब तू छोटी सी थी..,
शंकर की बात सुनकर सलौनी मुस्करा उठी.., दबे पाँव उसके पीचे जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे अपनी तरफ पलटाने का प्रयास करते हुए बोली –
तो अब कोन्से मेरे अंदर सुरखाब के पर निकल आए हैं, जो तू मुझे कपड़े बदलते हुए नही देख सकता…?
शंकर, सलौनी की ज़िद पर झल्लाते हुए बिना पलटे ही बोला – तू ज़्यादा ज़िद मत किया कर..समझी.., अब जल्दी से तैयार होकर भाभी को लेकर बाहर आ., वरना देर हो जाएगी…!
सलौनी ने अपना हाथ बढ़ाकर उसके आगे से उसकी बाजू को मजबूती से थामा और जबरन अपनी ओर घुमाया…, उसके दोनो हाथों को थामकर अपनी बलखाती कमर पर टिकाते हुए बोली-
अब ज़रा हाथ लगाकर बता तो.. किधर से बड़ी हो गयी हूँ मे…!
ना चाहते हुए भी शंकर को उसपर नज़र डालनी ही पड़ी.., छोटी सी ब्रा में क़ैद उसके कच्चे अमरूद जिनके बीच अभी काफ़ी चौड़ी और हल्की सी गहरी खाई थी..,
सलौनी अपना पासा सही पड़ते देख मंद-मंद मुस्कुरा रही थी…!
अब बता ना भाई.., मे किधर से बड़ी हो गयी हूँ, जिसे तू अब देखना नही चाहता था…?
शंकर ने हल्के से उसके गाल पर एक चपत लगाई और मुस्कुराते हुए बोला – मे जानता हूँ तू बहुत जिद्दी है, अपनी बात मनवा कर ही रहेगी…!
फिर उसने अपने दोनो हाथ उसके कंधे पर टिकाए, सहलाकर उसकी पीठ पर ले गया.., जो धीरे-धीरे नीचे की तरफ बढ़ते जा रहे थे..,
शंकर के हाथों का स्पर्श अपने अनछुए नंगे बदन पर पाकर सालौनी की कोमल भावनाओं को हवा मिलने लगी थी.., आनद में उसकी आँखें नशीली होने लगी…!
फिर जैसे ही शंकर की उंगलियों ने उसकी ब्रा की स्ट्रीप को टच किया..,
सलौनी का बदन उत्तेजना से काँपने लगा…!
नीचे की तरफ जाते हुए शंकर के हाथ उसकी पतली सी कमर की वॅली से होते हुए जैसे ही उसके गोल-गोल नितंबों पर पहुँचे..,
सलौनी और आगे सरक कर शंकर के बदन से सॅट गयी.., शंकर का अधखड़ा लंड पॅंट के अंदर से ही उसे अपने पेट पर महसूस होने लगा…!
शंकर ने उसके गोल-मटोल नितंबों को सहलाते हुए कहा – देख एक तो यहाँ से बड़ी हो गयी है तू…,
सलौनी के मुँह से दबी दबी सी सिसकी निकली, फिर कांपति सी आवाज़ में बोली – और…..
शंकर उसके कोमल वक्षों पर निगाह डालते हुए बोला.., वाकी बाद में बताउन्गा, अब जा जाकर अपने कपड़े पहन…
इतना काकर वो झटके से बाहर निकल गया.., पीछे सलौनी मन ही मन मुस्कुरा कर बुदबुदाई…,
कब तक भागेगा भाई..., देखना एक दिन मे भी तेरा प्यार पाकर ही रहूंगी…!
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भोला को कुछ पता नही था कि लाजो के साथ क्या घंटा घटित हुई है.., छल कपट से रहित हर हाल में मस्त रहने वाला प्राणी…!
वैसे समाज के दृष्टिकोण से ऐसे लोग पागल लगते हैं.., लेकिन मेरी नज़र में वो सबसे सुखी इंसान हैं, जिन्हें ना तो समाज के नियमों की चिंता.., ना घर के हालातों से वास्ता..,
बिना चिंता फिकर के बस दो वक़्त की रोटी जैसी भी हो मिल जाए बस, हमेशा वर्तमान में जीते हैं ऐसे लोग जिन्हें संतोष-असंतोष जैसे शब्दों का कोई अर्थ ग्यात नही होता…!
वैसे तो भोले को चोदने के लिए और भी चूतें थी, लेकिन जब से उसने लाजो को भोगा था तबसे उसे सुंदर और गैर सुंदर शरीर का ज़ायक़ा पता चल गया था…!
कहाँ दिन भर जी तोड़ मेहनत करने वाली औरत का शरीर जो एक दम सख़्त.. और कहाँ हमेशा पर्दे में रहने वाली लाला जी की बहू का वो मखमली गोरा चिटा बदन…!
उपर से जब से लाजो ने राबड़ी के साथ साथ अपना पूरा बदन उससे चटवाया था तबसे तो उसकी जीभ और लंड का टेस्ट ही बदल गया था…!
पुरानी सेट्टिंग खडूस औरतों की तरफ अब वो देखना भी पसंद नही करता था.., कोई आगे से उससे बात करने की कोशिश भी करती तो वो उसे झिड़क देता था…!
उसे तो अब लाजो की वो मखमली संगेमरमर जैसी चिकनी मांसल जांघें भा गयी थी.., उपर से वो उसके लिए कुछ ना कुछ अच्छी अच्छी खाने की चीज़ें लाती रहती थी..,
लेकिन जब दो दिन तक भी लाजो उसके पास नही आई तो वो बैचैन होने लगा.., हमेशा बिंदास रहने वाले भोला के मन में लाजो अपनी जगह बना चुकी थी…!
उस घंटा के तीसरे दिन रंगीली दिन ढले खेतों की तरफ गयी.., कुछ देर अपने पति रामू के पास बैठी बात-चीत करती रही…!
बात कितनी भी छुपाई जाए.., कभी ना कभी वो खुलने ही लगती है.., उस दिन भी किसी ने रंगीली के साथ लाजो को गाओं से बाहर जाते देखा था..,
बस फिर क्या था.. लोगों में ख़ुसर-पुशर शुरू हो गयी.., औरतों ने अपनी तरफ से ये नतीजा भी निकाल लिया कि लाजो घर छोड़कर कहीं चली गयी है…!
उड़ती-उड़ती बात बेचारे रामू को भी पता चली.., उसने रंगीली के सामने इस बात का जिकर छेड़ दिया…!
रामू – अरे रंगीली.. सुना है लाला जी की छोटी बहू हवेली छोड़कर कहीं चली गयी है.., क्या ये बात सच है..?
रंगीली – हमें किसी के आँगन में झाँकने की क्या ज़रूरत.., हमें बस अपने काम से काम रखना चाहिए.., हो गयी होगी कोई बात आपस में…, चली गयी होगी अपने मायके.., आ जाएगी.
रामू – हां तू सही कहती है.., वैसे तुम्हें तो पता ही होगा क्या हुआ था..?
रंगीली – क्या करोगे जानकर..? बस सेठानी को झगड़ते देखा था उसके साथ, उसके बाद चली गयी वो.., मे उस वखत सो रही थी.., असल मुझे भी पता नही है…!
रामू – पर मेने तो सुना है गाओं से वो तेरे साथ ही गयी थी…,
रंगीली ने एक भरपूर नज़र से रामू को देखा.., रामू उसकी नज़र का सामना नही कर पाया और इधर उधर देखने लगा…!
अपने पति की मनोदशा देख कर रंगीली के चेहरे पर मुस्कान आ गई.., उसे पता था की वो उससे कितना डरता है.., उसका डर दूर करने की गर्ज से उसने उसका हाथ अपने हाथ में लिया..,
उसे प्यार से सहला कर बोली – कुछ बातें ऐसी होती हैं जो दूसरे कान तक ना पहुँचें उसी में सबकी भलाई होती है.., समय आने पर तुम्हें सब बता दूँगी.., अभी तुम बस अपना काम करते रहो…!
रामू को प्यार से समझा बुझाकर वो उसके पास से हवेली की तरफ चल पड़ी…!
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