RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
बाइक से उतरते ही.., सलौनी ने अपना भी बॅग बाइक पर ही छोड़ा.., और घर के बाहर खाली जगह में बारिश का मज़ा लूटते हुए झूम-झूम कर, बाहें फैला कर, जंगल की मोरनी की तरह नाचने लगी…!
शंकर ने अपना और उसका बॅग उठाया.., जो एक पॉली बॅग के अंदर सेफ था.., घर के अंदर बैठी अपनी माँ को आवाज़ देकर बाहर बुलाया.., उसे बाहर से ही बॅग थमाकर खुद बाथ रूम की तरफ बढ़ गया…!
आज वो भी अपनी गुड़िया के साथ बने इस रिश्ते के एहसास में डूबा अपने अंदर ही अंदर एक अजीब सी खुशी को महसूस कर रहा था…!
शंकर के हाथ से बॅग लेते वक़्त रंगीली की नज़र जब बाहर खुले में भीगते हुए झूम-झूम कर नाचती अपनी लाडली पर पड़ी.., तो वो उसे प्यार से डपटते हुए बोली…!
अरी ओ..करम्जलि…, इतनी भी मस्ती ठीक नही है.., रास्ते भर भीगते हुए आई है.., अभी भी तेरा मन नही भरा…, चल जल्दी से कपड़े बदल ले वरना सर्दी लग जाएगी…!
सलौनी अपनी बाहें फैलाए.., आसमान की तरफ अपना सुन्दर सा खिला हुआ चेहरा उठाए आँखें बंद करके बूँदों का मज़ा लेते हुए हुए बोली
अरे माँ…, मज़ा लेने दे मुझे…, आज के जैसा सावन बार बार नही आएगा.., इसका भरपूर मज़ा लूटने दे मुझे…!
रंगीली – ऐसी क्या खास बात है आज के सावन में.., ये तो रोज़ ही बरसता है…!
सलौनी – बस कुछ खास बात है आज की इस बरसात में.., जिसे तू नही समझेगी.., फिकर मत कर मुझे कुछ नही होने वाला…!
रंगीली – ज़रा मे भी तो सुनू.., ऐसी क्या खास बात है आज.., जो तू इतनी खुश नज़र आ रही है.., रास्ते में कोई कुबेर का खजाना मिल गया क्या..?
सलौनी खिलखियालाती कुई बारिश का मज़ा लेते हुए बोली – यही समझ ले…,
रंगीली – तो बता ना.., ऐसा क्या मिल गया तुझे जो इतनी खुश हो रही है…?
सलौनी – वो मे तुझे नही बता सकती.., ये कहकर वो किसी चंचल हिरनी की तरह कुलाँचे भरती हुई बाथरूम में घुस गयी.., रंगीली उसके इस अल्हाड़पन को देख कर मन ही मन खुश हो उठी…!
कोई भी माँ जब अपने बच्चों को खुश होते हुए देखती है तो ऐसे ही सच्चे मन से खुश हो जाती है.., लेकिन रंगीली के मन में अपनी बेटी की खुशी देखकर और उसकी बात सुनकर कई सवाल घूमड़ने लगे…!
इस उमर में लड़के लड़कियों के पैर फिसलने के पूरे पूरे चान्स रहते हैं, कोमल भावनाओं के बीच कोई भी आ सकता है और वो तथाकथित प्यार की राह पर चल पड़ते हैं..,
तो क्या सलौनी किसी से दिल लगा बैठी है…? इस सोच ने रंगीली को बैचैन कर दिया.., अब वो इस बात की तस्दीक़ शंकर से करने की सोचने लगी..,
क्योंकि ज़्यादातर बच्चे अपने हमउम्र के साथ ही ऐसी बातें शेयर करते हैं.., हो सकता है अपने भाई को ये बात उसने न बताई हो….!
उधर जब सलौनी बाथरूम में घुसी उस समय शंकर अपने कपड़े उतारकर अपने बदन को तौलिए से पोंच्छ कर उसी तौलिए को लपेटे हुए बाथरूम से निकलने ही वाला था…!
गीले बदन अपनी छोटी बेहन को अचानक से बाथरूम में पाकर उसकी नज़र उसके उपर पड़ी…!
गीले कपड़ों में उसका साँचे में ढला बदन जो कपड़ों के बदन से चिपकने के कारण उसके अंग-प्रत्यंग को उजागर कर रहा था..,
उसके कच्चे अनार जिनके कड़क अनार के दाने कपड़े के बावजूद चोंच निकाले अपनी स्थिति बयान कर रहे थे.., कुर्ते के गले से उसकी कच्ची चुचियों का क्लीवेज देख कर शंकर अवाक सा खड़ा उसे देखता ही रह गया…!
दोनो मांसल होती जा रही जांघों के बीच उसकी कुरती का कपड़ा एकदम से जांघों से चिपक गया था.., जिससे उसका त्रिकोण साफ साफ अपना आकार दिखा रहा था…!
अपनी छोटी बेहन का इतना खूब सूरत बदन देखकर शंकर का मन डंवांडोल होने लगा.., उपर से कुछ ही पलों पहले वो दोनो ऐसी स्थिति में पहुँच चुके थे जिसके बाद से अब उन दोनो के नज़रिए एक दूसरे के प्रति बदल चुके थे…!
भाई की कामुक नज़रों का स्पर्श अपने बदन पर पा कर सलौनी के चेहरे पर एक नशीली सी मुस्कान तैर गयी.., वो उसके अत्यधिक नज़दीक जाकर लगभग उसके बदन से सटाते हुए शरारत भरे शोख लहजे में बोली…
ऐसे क्यों देख रहा है भाई तू मुझे…???
सलौनी की बात सुनकर शंकर एकदम सकपका गया.., उसके बगल से निकलते हुए बोला – क.क.कुछ नही.., चल अब तू भी कपड़े चेंज करके आजा बाहर..,
सलौनी उसका बाजू थामते हुए बोली – दो मिनिट रुक ना भाई.., साथ ही चलते हैं.., मे चाहती हूँ, तू एक बार अपनी बेहन को जी भरकर देख ले…!
शंकर ने उसे प्यार से डपटते हुए कहा – तू सच में पागल है.., छोड़ जाने दे मुझे.., माँ को शक़ हो जाएगा…!
सलौनी – यही तो मे चाहती हूँ.., जब हम दोनो के बीच एक नया रिश्ता बने तो माँ को इस बात का पता रहे.., वरना जब उसे किसी दूसरे तरीक़े से पता चलेगा तो ज़्यादा दुख होगा…!
शंकर ने अपने हाथ से उसका हाथ हटाते हुए कहा – तू चिंता मत कर, वक़्त आने दे सब संभाल लूँगा…!
इतना बोलकर वो जल्दी से बाथरूम से बाहर आ गया.., पीछे से बड़ी मोहक मुस्कान अपने चेहरे पर लाकर सलौनी मन ही मन बुद-बुदाई…!
कम से कम अब तो अपनी बाहों में ले लेता भाई.., पर चल कोई ना..अब मे तेरी झिझक ज़्यादा दिन नही रहने दूँगी.., तेरी एक हां ने मेरा आगे का रास्ता आसान बना दिया है…!
बारिश बंद होते ही शंकर और उसकी माँ हवेली चले गये.., बातों बातों में सेठानी ने रंगीली से भोला के बारे में जिकर छेड़ ही दी…!
अरी रंगीली आजकल तेरा वो आधा पागल जेठ क्या करता रहता है.., उसे भी लाला जी से कह कर हवेली में ही कुछ काम धाम पर लगा दे.., चार पैसे कमा कर ही देगा…!
सेठानी की बात सुनकर रंगीली ने अपने मन ही मन विचार किया.., आख़िर आज सेठानी ने जेठ जी के बारे में क्यों पूछा.., ज़रूर कोई बात है…?
वरना सेठानी ने जिस आदमी की वजह से अपनी बहू को घर से बाहर निकाल दिया वो भला उनके बारे में इतने दिनो बाद क्यों पूछ रही है और वो भी काम पर लगाने के लिए…!
उसे सोच में डूबा देख कर सेठानी बोली – अरी क्या सोचने लगी…?
मेने कुछ ग़लत बोला क्या..? यहाँ आकर कुछ टहोका करेगा तो कुछ ना कुछ तो तुम लोगों की मदद ही होगी…!
रंगीली – बात तो आपकी सही है मालकिन.., लेकिन वो अब यहाँ नही हैं..,
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