RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
रंगीली के मूह से ये शब्द सुनते ही सेठानी को एक जोरदार झटका लगा.., बिना सोचे समझे उनके मूह से निकल पड़ा…क्या..??? ये क्या कह रही है तू…? परसों ही तो हम मिले थे…!
रंगीली ने चोन्क्ते हुए कहा – आप….उनसे मिली थी..? कहाँ…?
सेठानी को अपनी ग़लती का एहसास हुआ.., उन्होने बात संभालते हुए कहा – अरे..याद नही पड़ रहा मेने उसे कहाँ देखा था.., परसों ही की तो बात है..!
तभी मेरे दिमाग़ मे उसे काम पर रखने की बात आई थी.., बड़ा हॅटा कट्टा अच्छा ख़ासा मर्द है वो….!
रंगीली को ये बात हजम नही हुई.., शक़ का कीड़ा उसके दिमाग़ को कचॉटने लगा.., भला सेठानी इतनी भली कैसे हो गयी कि सामने से उन्हें काम देने की बात सोचने लगी…!
और फिर उनको हॅटा-कट्टा मर्द बोल रही हैं.., ऐसे तो और बहुत सारे मर्द होंगे गाओं में.., फिर उनके लिए ही क्यों पूछा…!
हो ना हो ज़रूर कोई तो बात है.., फिर उसके दिमाग़ को बड़ा तेज झटका लगा.., हे भगवान.., इन्होने लाजो को उनके साथ रंगे हाथों पकड़ा था…,
कहीं इनको उनका वो अजगर भा तो नही गया…? कहीं ये उसे ले तो नही रही अब तक..., ज़रूर यही बात है.., तभी उन्हें यहाँ हवेली में ही काम पर रखने को कहा है…!
सेठानी – अरी अब क्या सोचने लगी..? तूने बताया नही… कहाँ भेज दिया उसे…?
रंगीली को उसे सच्चाई बताना सही नही लगा सो फ़ौरन नया बहाना सोचकर बोली – जी वो इनके मामा के यहाँ खेती बाड़ी संभालने वाला कोई नही था.., सो सासू जी ने उन्हें वहीं भेज दिया है…!
सेठानी – वो आधा पागल क्या खेती बाड़ी संभालेगा..? बुला ले उसे यहीं.., कुछ कमाएगा धामाएगा…!
रंगीली – जी मे बोल दूँगी अम्मा जी को…इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए अपने काम में लग गयी…!
उधर शंकर मौका देख कर सुषमा के पास चला गया.., अपने बच्चे के साथ साथ उसने उसकी माँ को भी जी भरकर खिलाया..!
सलौनी की छेड़-छाड़ से दिन में जितना उसके लंड ने उसे परेशान किया था उसकी सारी कसर उसने सुषमा को रगड़ कर निकाल ली…!
सुषमा भी अपने बच्चे के बाप के साथ जमकर खाट कबड्डी खेलने के बाद पूरी तरह से संतुष्ट हो गयी…!
दिन में ज़्यादा भीगते रहने और मस्ती करते रहने से शाम को सलौनी जल्दी खा-पीकर सो गयी.., इसका फ़ायदा उठाते हुए रामू के खाना खाकर खेतों की ओर निकलते ही रंगीली अपने बेटे के कमरे में चली गयी…!
शंकर लालटेन की रोशनी में अभी तक पढ़ रहा था.., माँ को आया देख कर उसने अपनी किताबें बंद करनी चाही.., तो वो बोली – पढ़ता रह, अभी समय ही कितना हुआ है…!
वो तो सलौनी आज जल्दी सो गयी, तेरे बापू खेतों की रखवाली को चले गये सो मे तेरे पास चली आई.., तू पढ़ तब तक मे तेरे बालों में तेल लगा देती हूँ..,
ये कहकर वो पलंग पर उसके पीछे दोनो तरफ को टाँगें चौड़ी करके, अपने लहंगे को घुटनों तक चढ़कर बैठ गयी.., फिर उसने तेल की कटोरी से अपनी उंगलियों को भिगोकर उसके घुघराले बालों में डाल दी…!
वो धीरे-धीरे अपनी उंगलियों को उसके बालों में घुमा रही थी जिसके कारण, शंकर को एक अजीब सी शांति मिल रही थी.., लेकिन माँ की गोरी मुलायम पिंडलियाँ उसके मन को ललचा रही थी…,
उसने रंगीली की गोरी-गोरी पिंडलाइयों पर अपना हाथ रख दिया.., रंगीली के बदन में सिहरन सी दौड़ गयी.., तेल लगाते उसके हाथ एक क्षण को ठहर गये..,
कितनी सुन्दर और चिकनी टाँगें हैं मेरी माँ की.., तुझे कोई एतराज ना हो तो इनपर हाथ फेर लूँ..?
रंगीली अपने लहंगे को और उपर चढ़ाते हुए बोली – तू सब कुछ तो कर चुका है.., तो फिर सहलाने के लिए क्यों पूछ रहा है…,
अपने हाथ को उपर नीचे करके उसकी टाँग सहलाते हुए वो बोला – हर काम के लिए पुच्छना ज़रूरी है.., आख़िर तू मेरी माँ है.. तेरी मर्ज़ी के बगैर आज तक मेने कुछ किया है..?
रंगीली उसके सिर की मालिश करते हुए बोली – तेरी पढ़ाई पर असर तो नही पड़ेगा..?
शंकर – नही, आँखें और दिमाग़ अपना काम करेगा.., हाथ अपना.., बस इनकी चिकनाहट देख कर मन करने लगा सो पूछ लिया…!
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