RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
दिन ऐसे ही मौज मस्ती में निकल रहे थे.., शंकर अपनी माँ के साथ साथ सुषमा की काम वासना की पूर्ति कर देता था..,
ऐसे ही एक रात जब वो चौबारे में सुषमा के साथ था.., अपने बच्चे को वो रंगीली के सुपुर्द कर गयी थी..,
एक बार दोनो अपनी काम क्रीड़ा ख़तम कर चुके थे, इस समय बसंत के सुहाने मौसम में चौबारे के वरॅंडा में ज़मीन पर गद्दे डाले मदरजात नंगे एक दूसरे की बाहों में लिपटे.., एक दूसरे के अंगों से खेलते हुए बातें कर रहे थे…!
सुषमा उसकी चौड़ी कसरती छाती को अपनी हथेली से सहलाते हुए बोली – बस मेरे प्यारे कुच्छ दिन और हैं तुम्हारा ग्रॅजुयेशन कंप्लीट हो जाएगा..,
मे तब तक एक पवर ऑफ अटर्नी तैयार करवाती हूँ, उसके बाद इस सारी जयदाद के तुम केर टेकर हो जाओगे.., संभाल लोगे ना ये ज़िम्मेदारी…?
शंकर ने सुषमा को अपने बदन से चिपकाते हुए उसकी भरावदार गान्ड की दरार में उंगली घुमाते हुए कहा…
इसकी क्या ज़रूरत है भाभी.., आप जैसे कहेंगी मे वैसे ही आपका साथ देता रहूँगा ना., फिर पवर आपके हाथ में रहे या मेरे क्या फ़र्क पड़ना है…?
शंकर तुम अभी बच्चे हो, समझने की कोशिश करो.., मे मानती हूँ पिताजी मेरे किसी मामले में टाँग नही अड़ाएँगे.., लेकिन वाकई लोग ऐसे नही हैं, वो तुम्हें रोकने की कोशिश ज़रूर करेंगे…,
फिर उसके फुल टाइट लंड को अपनी गीली चूत पर घिसते हुए बोली - जब एक बार लिखित में पवर तुम्हारे हाथ आ जाएगी फिर किसी की मज़ाल नही जो तुम्हारे काम में रुकावट डाल सके.,
इसलिए मे जो कर रही हूँ खूब सोच समझकर कर रही हूँ.., और वही ठीक है हम सबके लिए…!
जैसे ही उसके लंड का गरम सुपाडा सुषमा की चूत के मुहाने पर पहुँचा.., शंकर ने अपनी कमर आगे करके लंड को थोड़ा सा चूत में सरकाते हुए कहा..
सस्सिईइ…आअहह…जैसा ठीक समझो जानेमन, लेकिन पहले एग्ज़ॅम तो ख़तम होने दो.., ये कहते हुए उसने आधा लंड उसकी चूत में सरका दिया..,
और उसकी एक चुचि को मूह मे लेकर कमर में हाथ डालकर उसको अपने उपर ले लिया.., सुषमा ने उपर से अपने भारी-भरकम कुल्हों को दबाते हुए वाकी का लंड भी अपनी सुरंग में समा लिया…!
एक बार फिरसे चुदाई का एक जबरदस्त दौर शुरू हुआ जो अगले आधे घंटा तक चला.., सुषमा थक कर चूर चूर हो गयी, लंड को चूत में ही लिए हुए वो उसके आगोस में सिर रखकर सो गयी…!
जब दोनो की आँख खुली तो सुबह के 5 बज चुके थे…, हड़बड़ा कर वो उसके उपर से उतरी.., अपने कपड़े समेटे और शंकर को नीचे आने का इशारा करके वो नीचे चली गयी…!
ठीक उसी वक़्त कल्लू को जोरों की पेशाब लगी थी, वो चौक में बनी नाली पर ही खड़े खड़े धार मार रहा था.., इतनी सुबह सुबह सुषमा को उपर से आते देख वो चोंक पड़ा…!
सुषमा को पता ना चले इस वजह से वो थोड़ा साइड की दीवार की आड़ में हो गया.., थकान की मस्ती में चूर सुषमा ने भी इधर-उधर कोई ध्यान नही दिया.., और वो जाकर सीधी अपने कमरे में सो गयी…!
अभी वो अपना मुतना बंद भी नही कर पाया था कि सीडीयों पर उसे फिरसे किसी के आने की आहट सुनाई दी…,
जब उसने शंकर को उपर से नीचे आते देखा तब उसका माथा ठनका.., उसका मुतना ऑटोमॅटिकली थम गया.., एक बारगी गुस्से की तेज लहर उसके पूरे बदन में दौड़ गयी…!
रात की दारू की खुमारी उडनछू हो गयी.., आनन फानन में उसने अपना पाजामा उपर चढ़ाया.., रुका हुआ मूत उसके पाजामे में ही निकल गया..,
हाथ से रगड़ कर उसे सुखाने की कोशिश करते हुए वो उसे रंगे हाथों पकड़ने के लिए खुले में आना ही चाहता था कि तब तक शंकर अंधेरे में कहीं विलुप्त हो गया..!
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