RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
घर पहुँचने तक उन दोनो के बीच कोई बात नही हुई.., पीछे बैठी सलौनी सोचते सोचते उसकी आँखों में आँसू आगये, इधर शंकर के अंदर भी बबन्डर सा चल रहा था….,
क्या उसने अपनी प्यारी बेहन पर हाथ उठाकर अच्छा किया..? नही शायद ये अच्छा नही हुआ.., उसे उसको प्यार से समझाना चाहिए था…!
लेकिन मेने उसे बहुत मना किया, ऐसे खुलेआम ये सब ठीक नही है, लेकिन उसपर आज इतना चुदाई का भूत सवार था जिसे उतारना ज़रूरी था… वरना वो इसके लिए हर रोज़ ज़िद करती और खुदा न ख़स्ता किसी रोज़ किसी पहचान वाले को ये पता चल जाता कि देखो सगे भाई बेहन आपस में ये सब करते हैं, तो समाज में हमारे परिवार की क्या इज़्ज़त रह जाती…!
आज उसे ये सबक मिलना ज़रूरी था, कभी कभी अपने प्यार से प्यारे को भी दंडित करना पड़ता है…!
खैर वो दोनो घर भी पहुँच गये, दोनो को गुम सूम देखकर रंगीली समझ गयी कि आज इन दोनो के बीच कुच्छ तो हुआ है..? लेकिन उसने इस समय दोनो से कोई बात करना सही नही समझा.
अकेला होते ही शंकर ने खुद से ही उसे सब कुच्छ बता दिया…, जिसे रंगीली ने भी सही ठहराया और अकेले में सलौनी को समझाने का सोचा.
दिन बीतते गये, लेकिन अब सलौनी ने शंकर के साथ छेड़-छाड़ बिल्कुल बंद कर दी, वो चुपचाप उसके पीछे बैठ जाती, कभी कभार शंकर उससे बात करने की कोशिश करता तो वो बस उसे हां या ना में जबाब दे देती.
खैर इसी तरह से शंकर का फाइनल एअर भी ख़तम हो गया, कॉलेज कुच्छ दिनो के लिए बंद हो गया…!
एक दिन सुषमा को शहर जाना था, उसने शंकर को पहले ही बता दिया था.., तैयार होकर जाने से पहले वो कल्लू को देखने उसके कमरे में गयी.., उसकी बेटी गौरी जो अब कुच्छ समझदार सी होने लगी थी…
वो अपने पापा के पास बैठी उससे बातें कर रही थी.., कल्लू कुच्छ बोल तो पाता नही था, बस अपनी बेटी की प्यारी प्यारी बातें सुनकर कभी मुस्करा देता तो कभी सीरीयस हो जाता.
सुषमा के आते ही गौरी उसके पास से उठी और दौड़कर अपनी मम्मी से लिपट गयी.., और अपनी उसी मासूमियत के साथ शिकायत करने लगी…
गौरी – मम्मी देखो ना मे कब से पापा से बातें कर रही हूँ, लेकिन ये कुच्छ बोलते ही नही…!
सुषमा – बेटा ! पापा बीमार हैं ना, इसलिए कुच्छ बोल नही पाते.., अब तू जा, रंगीली काकी को बोल वो तेरे को नहला कर खाना दे देगी, और हां ज़्यादा शरारत मत करना और भैया के साथ अच्छे से खेलना, ये तेरी ज़िम्मेदारी है कि वो रोए नही…!
गौरी – आप कहीं जा रहे हो..?
सुषमा – हां मेरा बच्चा मामा किसी काम से शहर जा रही है, जल्दी आ जाएगी ठीक है, अब जाओ…
गौरी मुन्डी हिलाकर किसी चंचल तितली की तरह उस कमरे से बाहर भाग गयी, तभी शंकर भी तैयार होकर वहाँ पहुँचा, उसने भी कल्लू का हाल जाना…!
सुषमा, शंकर के बिल्कुल पास जाकर उससे सट्ते हुए खड़ी हो गयी और कल्लू को संबोधित करते हुए बोली- क्यों पतिदेव, मे अकेली शंकर के साथ शहर जा रही हूँ, तुम्हें बुरा तो नही लग रहा…..?
इतने महीनो ही नही सालों से कल्लू बिस्तर पकड़े हुए था, कुच्छ बोल तो नही सकता था लेकिन उसकी आँखों के इशारों को सब समझने लगे थे,
सुषमा की बात सुनकर उसने आँखों के इशारे से बताया कि उसे कुच्छ बुरा नही लगा…!
सुषमा उसके इशारे को समझते हुए शंकर की बाजू में अपनी बाजू डालते हुए बोली – चलो अच्छा है तुम्हें बुरा नही लगा, हालातों से समझौता कर लेना ही बुद्धिमानी है..,
अच्छा तो शायद ये भी पता होगा कि हम दोनो के आपस में संबंध किस हद तक हैं…?
कल्लू ने फिर एक बार अपनी पलकें झपका कर ये जता दिया कि उसे इस बारे में भी सब पता है…, उसके इस इशारे पर वो दोनो एक बार को चोंक गये फिर संभालते हुए सुषमा ने फिर कहा…
इसका मतलब तुम्हें हमारे संबंधों से भी कोई एतराज नही है..?
कल्लू ने फिर एकबार इशारे से जताया कि उसे अब कोई शिकायत नही है..,
क्योंकि शायद उसे कहीं ना कहीं ये विश्वास हो चुका था कि अब वो दुबारा कभी भी इस लायक नही हो पाएगा कि घर को संभाल सके…!
सुषमा के मन से मानो एक बोझ हल्का हो गया हो.., उसे ना जाने क्यों आज पहली बार कल्लू पर दया आई, वो शंकर को साथ लिए उसके नज़दीक तक गयी, उसके बालों को सहलाते हुए उसने उसे इस रज़ामंदी के लिए धन्यवाद किया…!
उसके बालों में उंगलियाँ घूमाते हुए वो फिर बोली – अच्छा ये बताओ, अगर तुम्हें ये पता चले कि अंशुल (बेटा) शंकर का अंश है तो ???
सुषमा के ये शब्द सुनकर पहले तो कल्लू को हल्का सा आघात लगा, वैसे तो उसे शक़ तो था ही, लेकिन आज सुषमा ने खुद अपने मूह से बताया तो उसे थोड़ा दुख हुआ फिर एक फीकी सी मुस्कान उसके होठों पर आ गयी…,
जिसे देखकर सुषमा के साथ साथ शंकर भी चोन्के बिना ना रह सका……!
………………………
कल्लू के कमरे से निकलते ही वो दोनो अहाते में खड़ी जीप की तरफ बढ़ गये जो प्रिया ने शंकर को गिफ्ट में दी थी,
चलते-चलते शंकर ने सुषमा से पुछा – वैसे हम जा कहाँ रहे हैं भाभी…?
सुषमा ने अपने चेहरे पर एक मनमोहक मुस्कान बिखेरते हुए कहा – अब तुम्हारे भविष्य को बदलने का समय आगया है, हम सीधे शहर अपने मामा जी के यहाँ जा रहे हैं जहाँ उनके कॉलेज से तुम्हें एमबीए की डिग्री लेनी है जिससे तुम बिज़्नेस की सारी बारीक़ियाँ समझ सको…!
शंकर – लेकिन हो सकता है हमें आने में देर हो जाए, ये भी हो सकता है वो हमें ज़बरदस्ती आज की रात रोक लें, तो ऐसे में अंशुल को यहाँ छोड़ना क्या सही होगा..?
शंकर की बात सुनकर सुषमा को भी लगा कि उसकी बात सही है, फिर भी वजाय सीरीयस होने के उसे छेड़ते हुए बोली – वाह बच्चू वाह, अब बेटे की माँ से ज़्यादा अपने बेटे की चिंता होने लगी…!
शंकर अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करते हुए बोला – ऐसी बात नही है, मे तो बस इसलिए बोल….
सुषमा उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…मज़ाक कर रही थी, वैसे तुम्हारी बात सही है, 5 मिनिट रूको मे उसे अभी लेकर आती हूँ.
कहते ही वो तुरंत पलटी और अपने सुडौल कसे हुए गोल-मटोल फुटबॉल जैसे नितंबों को मटकाते हुए हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गयी…!
सिल्क की कसी हुई साड़ी में लिपटे हुए उसके लयबद्ध तरीक़े से थिरकते हुए सुडौल नितंबों को देखकर शंकर के लौडे ने एक मस्त अंगड़ाई ली.
सुषमा तो घर के अंदर चली गयी, शंकर उसकी थिरकति गान्ड को तब तक देखता रहा जब तक वो उसकी आँखों से ओझल नही हो गयी.., काफ़ी दिनो से वो सुषमा को चोद नही पा रहा था, इसलिए वो आज उसे स्वर्ग से उतरी किसी अप्सरा जैसी लग रही थी…!
लंड के मचलने का असर उसके दिमाग़ तक चढ़ने लगा, मन बहलाने की गरज से वो कॉंपाउंड में टहलने लगा.., टहलते टहलते वो फाटक से बाहर निकल गया..,
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