RE: Desi Sex Kahani रंगीला लाला और ठरकी सेवक
बाल-बाल बचे, कहीं और आगे का खेल देखने लग जाती तो आज तो फँस ही जाना था… ऐसा ही कुच्छ बड़बड़ाते हुए उन्होने लपक कर गेट खोला.., सामने अपने थकेले पति को देखते हुए पुछा….!
आज तो आप कुच्छ ज़्यादा ही लेट हो गये…, खाना लगाऊ…?
पुरुषोत्तम – हां, आज एक कस्टमर के साथ मीटिंग में कुच्छ ज़्यादा ही देर हो गयी, खाना मे खाकर ही आया हूँ, तुमने तो खा लिया होगा…?
वर्षा – हां, आज सुषमा बिटिया आई हैं अपनी नौकरानी के बेटे के साथ तो उन लोगों के साथ ह्मने भी खा लिया था…!
ये सब बातें करते हुए वो बेडरूम में आगये.., सेठ ने अपने सोने के कपड़े बदल कर बिस्तर पकड़ लिया…!
पुरुषोत्तम – क्या वोही लड़का है., जिसने इन लोगों की कई बार मदद की है…, क्या नाम है उसका…?
वर्षा – शंकर…शंकर नाम है उसका, सुषमा बता रही थी, बहुत ही हौन्हार और बहादुर लड़का है.., पढ़ाई के साथ साथ घर के सारे काम-काज संभाल लिए हैं उसने, अब वो उसे यहाँ से एमबीए कराना चाहती है आगे उनका बिज़्नेस संभालने के लिए…!
वर्षा ये सब बताती जा रही थी.., लेकिन वहाँ सुनने वाला कोई नही था…, कुच्छ ही देर में सेठ के खर्राटे कमरे में गूंजने लगे…, लेकिन वर्षा देवी की आँखों से नींद कोसों दूर थी…!
उन्हें रह रह कर शंकर के रूम के वो सीन याद आ रहे थे, शंकर का वो फन्फनाता लाल सुर्ख डंडे जैसा लंड बार बार उनकी आखों में घूमने लगता और उसकी कल्पना मात्र से ही उनकी चूत फिरसे रिसने लगी…!
खुली आँखों से वो शंकर का मस्त मलन्द लंड अपनी चूत में फील करके उसे मसल्ते हुए इधर से उधर करवट बदलने लगी…, जब कोई राह नही दिखाई दी तो हार मानकर एक बार फिरसे उनकी उंगलियाँ चूत के अंदर घुस गयी..!!!
सुषमा और शंकर की मुलाकात मामा जी से नाश्ते की टेबल पर ही हुई, सुषमा के शंकर के बारे में बताने के बाद मामा जी ने भी उसकी खूब तारीफ़ की जैसा कि उन्हें उसके बारे में मालूमात था..,
जब सुषमा ने अपने आने का मक़सद बताया तो मामा जी बोले – अरे इसमें पुच्छने की क्या बात है, तुम्हारा अपना कॉलेज है बेटी.., मे तो कहता हूँ, तुम लोग चारू के साथ आज कॉलेज जाकर देख लो…, प्रिन्सिपल को बोलकर आज ही अड्मिशन भी करा लेना…!
शंकर – लेकिन मालिक मेरा तो अभी तक रिज़ल्ट भी नही आया है…!
ममाजी – मालिक नही, जब तुम सुषमा को भाभी बोलते हो तो मुझे भी मामा जी ही कहो…, रही बात रिज़ल्ट की तो पास तो हो ही जाओगे ना…?
शंकर – वो तो पक्का है, और शायद काफ़ी अच्छे मार्क्स के साथ….!
मामा जी – बस तो फिर कोई प्राब्लम ही नही है.., अच्छा मे चलता हूँ, तुम लोग दो-चार दिन तो रुकोगे ना…!
सुषमा – नही मामा जी.., हम तो आज ही निकलने वाले थे, लेकिन जब आप कॉलेज जाने के लिए बोल रहे हैं तो कल निकल जाएँगे, वैसे भी घर की ज़िम्मेदारी अकेले पिताजी नही संभाल पाते हैं अब…!
मामा जी – जैसा तुम चाहो.., अचा मुझे ज़रा देर हो रही है.., तुम लोग अच्छे से नाश्ता करो, शाम को मिलते हैं ओके.., इतना कहकर वो अपना बॅग लेकर हॉल से बाहर निकल गये…!
आज मामी को रात भर नींद ना आने के कारण उनकी आँखें कुच्छ बोझिल सी हो रही थी…, आज उन्होने बहुत ही हल्के कलर की पिंक साड़ी पहनी हुई थी, वो मामा जी के जाते ही ठीक शंकर के सामने आकर बैठ गयी…!
वैसे तो काफ़ी डीप गले के ब्लाउस के कारण उनकी घाटी हल्की साड़ी के कारण पल्लू के बावजूद भी दिखाई दे ही रही थी फिर भी उन्होने बैठते हुए अपना आँचल थोड़ा और ढालका दिया जिससे वो शंकर को अपने यौवन के दर्शन करा सकें…!
मामी के मन में क्या चल रहा है इस सबसे बेख़बर चारू और सुषमा दोनो अपनी बातों में लगी हुई थी…!
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